भगवान्में अनन्य प्रेम ही वास्तवमें अमृत है; वह सबसे अधिक मधुर है और जिसको यह प्रेमामृत मिल जाता है वह उसे पानकर अमर हो जाता है। लौकिक वासना ही मृत्यु है।
अनन्य प्रेमी भक्तके हृदयमें भगवत्प्रेमकी एक नित्य नवीन, पवित्र वासनाके। अतिरिक्त दूसरी कोई वासना रह ही नहीं जाती। इसी परम दुर्लभ वासनाके कारण वह भगवान्की मुनिमनहारिणी लीलाका एक साधन बनकर कर्मबन्धनयुक्त जन्म-मृत्युके चक्करसे सर्वथा छूट जाता है।
वह सदा भगवान्के समीप निवास करता है और भगवान् उसके समीप प्रेमीभक्त और प्रेमास्पद भगवान्का यह नित्य अटल संयोग ही वास्तविक अमरत्व है। इसीसे भक्तजन मुक्ति न चाहकरभक्ति चाहते हैं।