अवश्य ही ऐसे सन्तका मिलन हरि कृपासे ही होता है। भगवान् जिसपर कृपा करके अपनाना चाहते हैं, उसीके पास, प्रेमपाशमें अपनेको बाँध रखनेकी शक्तिवाले, अपने ही स्वरूपभूत प्रेमी भक्तको भेजते हैं। वस्तुतः भगवत्कृपा और महान् पुरुषोंका संग एक-दूसरेके आश्रित हैं। महत्पुरुषोंके संग बिना भगवत्कृपाका अनुभव नहीं होता और भगवत्कृपा बिना ऐसे महापुरुष नहीं मिलते।
श्रीविभीषणको भी श्रीहनूमान्जीके मिलनेपर ही भगवत्कृपाका अनुभव हुआ, इसीसे उन्होंने कहा...
अब मोहि भा भरोस हनुमंता
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहि संता ॥