देवर्षि नारद आनन्दमें भरकर पुकार रहे हैं कि जो इस प्रकार भगवान्के प्रेममें मतवाला हो जाता है वह स्वयं तो तर ही गया, अपितु वह समस्त लोकोंको भी तार देता है। वही सच्चा तरन तारन होता है। भगवान्ने भी श्रीमद्भागवतमें कहा है— 'मद्भक्तियुक्तो भुवनं पुनाति' - ऐसा मेरा भक्त त्रिभुवनको पवित्र कर देता है।
छियालीसवें सूत्रमें मायासे कौन तरता है, यह प्रश्न करके यहाँतक उसका उत्तर दिया गया। चार सूत्रोंमें प्रेमके साधन और प्रेमियोंके लक्षण बतलाये गये। अब आगे उस प्रेमका रूप बतलाया जायगा, जिसको पाकर प्रेमी महानुभावगण इस दुर्लभ स्थितिको स्वाभाविक गुणोंके रूपमें अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं।