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नारद भक्ति सूत्र (नारद भक्ति दर्शन)
Narad Bhakti Sutra (Narada Bhakti Sutra)
सूत्र 57 - Sutra 57
उत्तरस्मादुत्तरस्मात्पूर्वपूर्वा श्रेयाय भवति ॥ 57 ॥
57 - ( उनमें ) उत्तर-उत्तर क्रमसे पूर्व-पूर्व क्रमकी भक्ति कल्याणकारिणी होती है।
तामसीकी अपेक्षा राजसी और राजसीकी अपेक्षा सात्त्विकी भक्ति उत्तम है। इसी प्रकार अर्थार्थी भक्तकी अपेक्षा जिज्ञासुकी और इन दोनोंकी अपेक्षा आर्तकी भक्ति विशेष कल्याणकारिणी होती है।