भक्तिके मार्गपर चलनेवाले पुरुषोंको भक्तिसुखका प्रमाण अपने आप ही मिलता रहता है। उन्हें स्वयमेव अनुभव होता रहता है, दूसरे किसी प्रमाणकी इसमें आवश्यकता नहीं है। पतिसुखके आनन्दका अनुभव भार्या बननेपर ही मिल सकता है; यह कुमारी कन्याको समझानेकी बात नहीं है। इसी प्रकार भक्तिसुखका अनुभव भक्तोंको ही होता है, यह कहकर बतलानेकी बात नहीं है।
जो पुण्यात्मा महानुभाव सब कामनाओंका त्याग कर एकमात्र भगवत्प्रेमकी कामनासे ही भगवत्कृपाका आश्रय लेकर भगवान्का सदा-सर्वदा प्रेमपूर्वक पुलकित चित्तसे भजन करते हैं वे ही भक्तिसुखका अनुभव करते हैं।