इससे पूर्व सूत्रके अनुसार भक्ति करनेवाला भगवान्का अनन्य भक्त ही सबमें श्रेष्ठ है। क्योंकि उसका तन, मन, धन सब कुछ परमात्माका हो जाता है। वह परमात्माका यन्त्रवत् होकर संसारमें रहता है। उसका आत्मा परमात्मासे मिल जाता है, उसका मन परमात्माके मनमें रम जाता है, उसके नेत्र सब जगह सर्वदा परमात्माको ही देखते हैं
प्रीतम छवि नैनन बसी, पर छबि कहाँ समाय ।
भरी सराय 'रहीम' लखि, आप पथिक फिरि जाय ॥
'कबिरा' काजर - रेखहू, अब तो दई न जाय ।
नैननि पीतम रमि रहा, दूजा कहाँ समाय ॥
आठ पहर चौंसठ घरी, मेरे और न कोय।
नैना माहीं तू बसै, नींदहिं ठौर न होय ॥