भक्तोंका आविर्भाव सभीके लिये शुभ होता है, क्योंकि उनके सभी कर्म स्वाभाविक ही लोककल्याणकारी होते हैं। उनके प्रभावसे लोगोंमें धर्मके प्रति श्रद्धा बढ़ती है, पितृकार्य और देवकार्यों में विश्वास उत्पन्न हो जाता है। इससे धर्मपथसे डिगे हुए लोग पुनः धर्ममार्गपर आरूढ़ होकर यज्ञ, दान, श्राद्ध, तर्पण आदि कर्म करने लगते हैं, जिससे देवता और पितरोंको बड़ा सुख मिलता है। भक्तिके प्रतापसे भक्तके आगे-पीछेके कई कुल तर जाते हैं, इसलिये अपने कुलमें भक्तको उत्पन्न हुआ देखकर पितरगण अपनी मुक्तिकी दृढ़ आशासे हर्षोत्फुल्ल हो जाते हैं।
पद्मपुराणमें कहा है...
'पितृ-पितामहगण अपने वंशमें भगवद्भक्तका जन्म हुआ जानकर - यह हमारा उद्धार कर देगा, इस आशासे प्रसन्न होकर नाचने और ताल ठोकने लगते हैं।'
मचले हुए दर्शनाकांक्षी भक्त किसी भी बातसे सन्तुष्ट नहीं होते, अतः स्नेहमयी जननीकी भाँति उन्हें अपनी गोदमें खिलाकर सुखी करनेके लिये सच्चिदानन्दघन भगवान् दिव्यरूपमें साक्षात् प्रकट होते हैं। उनके प्रकट होते ही देवताओंका अहित करनेवाले असुरोंका विनाश आरम्भ हो जाता है। इस प्रकार भक्तके आविर्भावको ही भगवान्के प्राकट्यमें कारण समझकर देवतागण भी नाचने लगते हैं। जबतक भगवान् या भगवान् के प्यारे धर्मात्मा भक्तोंका आविर्भाव नहीं होता तबतक पृथ्वीदेवी अनाथा रहती हैं। और जब भक्त प्रकट होते हैं तब बछड़ेके पीछे स्नेहवश दौड़नेवाली गौकी तरह भगवान् भी प्रकट हो जाते हैं, अतएव भक्तके आविर्भावसे ही पृथ्वी सनाथा हो जाती है।