देवर्षि नारद भक्तितत्त्वके प्रधान प्रधान आचार्योंका मत देकर अपने कथनकी पुष्टि करते हैं। ये सभी महापुरुष भक्तितत्त्वके ज्ञाता और आचार्य हुए हैं। सनत्कुमार नित्य 'हरिः शरणम्' मन्त्रका जाप करते रहते हैं और भक्तिमार्गके प्रधान प्रवर्तक हैं। भगवान् श्रीवेदव्यासने अठारहों पुराणोंमें भक्तिको ही मुख्य बतलाया है, उनका श्रीमद्भागवत तो भक्तिकी खानि ही है।
श्रीशुकदेवजीकी भक्तिका क्या कहना ? भक्तिरसप्रधान श्रीमद्भागवत उन्हींके मुखसे निकला हुआ सुधासमुद्र है। महर्षि शाण्डिल्यके भक्तिसूत्र ही उनके भक्तितत्त्वके एक प्रधान आचार्य होनेका प्रमाण दे रहे हैं। महर्षि गर्गकी गर्गसंहितामें भक्तिका प्रवाह बहता है। महर्षि विष्णु प्रधान स्मृतिकार थे। एक विष्णुस्वामी प्रसिद्ध भक्तिसम्प्रदायके आचार्य हुए हैं। कौण्डिन्यजीने तन्मयतासक्तिमें सिद्धि प्राप्त की थी ऐसा माना जाता है। भगवान् शेषजी तो दिन-रात सहस्त्र मुखोंसे हरिगुणगान ही करते हैं। आप दास्यभावके परम आचार्य हैं। दासस्वरूप लक्ष्मणके रूपमें आपने ही अवतार लिया था । उद्धवजी महाराज भगवान् श्रीकृष्णके प्रधान सखा थे। आरुणिको निम्बार्कका नामान्तर मानते हैं, आप युगल स्वरूपके उपासक थे।
राजा बलि सर्वात्मनिवेदनासक्तिके मूर्तिमान् स्वरूप हैं, इनके भक्तिबलसे भगवान्ने स्वयं इनका द्वारपाल बनना स्वीकार किया था। प्रातःस्मरणीय भक्तराज श्रीहनुमान्जीका दास्यभाव प्रसिद्ध है। महाभाग विभीषणजीने भक्तिके प्रतापसे भगवान् श्रीरामचन्द्रका सख्य प्राप्त किया था। इन भक्तिशास्त्रके सभी आचार्योंने लोगोंकी निन्दा-स्तुतिकी कुछ भी परवा न कर भक्तिकी महिमा गायी है और अपने जीवनद्वारा भक्तिकी सर्वश्रेष्ठता सिद्ध की है। इन्हींके मतके अनुसार श्रीनारदजी भी निर्भय होकर भक्तिका डंका बजा रहे हैं।