बाहरी ज्ञान बना रहनेकी स्थितिमें भी प्रेमी भक्त अपने प्रियतमके प्रति अनन्य भाव रखता हुआ उसके प्रतिकूल कार्योंसे सर्वथा उदासीन रहता है। इस प्रकार सावधानीसे होनेवाले कर्म भी निरोध कहलाते हैं।
प्रेमी भक्तके द्वारा होनेवाली प्रत्येक चेष्टा अपने प्रियतमके अनुकूल होती है और अनन्य भावसे उसीकी सेवाके लिये होती है।
प्रतिकूल चेष्टा तो उसके द्वारा वैसे ही नहीं होती जैसे सूर्यके द्वारा कहीं अँधेर नहीं होता या अमृतके द्वारा मृत्यु नहीं हो सकती।