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पद्म पुराण (पद्मपुराण)

Padma Purana,Padama Purana ()

खण्ड 1, अध्याय 46 - Khand 1, Adhyaya 46

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गणेशजीकी महिमा और उनकी स्तुति एवं पूजाका फल

पुलस्त्यजी कहते हैं- भीष्म ! इसके बाद एक दिन व्यासजी के शिष्य महामुनि संजयने अपने गुरुदेवको प्रणाम करके प्रश्न किया।

संजयने पूछा- गुरुदेव ! आप मुझे देवताओंके पूजनका सुनिश्चित क्रम बतलाइये। प्रतिदिनको पूजामें सबसे पहले किसका पूजन करना चाहिये ?

व्यासजी बोले- संजय ! विघ्नोंको दूर करनेके लिये सर्वप्रथम गणेशजीकी पूजा करनी चाहिये। पार्वतीदेवीने पूर्वकालमें भगवान् शंकरजीके संयोगसे स्कन्द (कार्तिकेय) और गणेश नामके दो पुत्रोंको जन्म दिया। उन दोनोंको देखकर देवताओंको पार्वतीजीपर बड़ी श्रद्धा हुई और उन्होंने अमृतसे तैयार किया हुआएक दिव्य मोदक (लड्डू) पार्वतीके हाथमें दिया । मोदक देखकर दोनों बालक मातासे माँगने लगे। तब पार्वतीदेवी विस्मित होकर पुत्रोंसे बोलीं- 'मैं पहले इसके गुणोंका वर्णन करती हूँ, तुम दोनों सावधान होकर सुनो। इस मोदकके सूँघनेमात्रसे अमरत्व प्राप्त | होता है; जो इसे सूँघता या खाता है, वह सम्पूर्ण शास्त्रोंका मर्मज्ञ, सब तन्त्रोंमें प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान्, ज्ञान-विज्ञानके तत्त्वको जाननेवाला और सर्वज्ञ होता है इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। पुत्रो ! तुममेंसे जो धर्माचरणके द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आयेगा, उसीको मैं यह मोदक दूँगी। तुम्हारे पिताकी भी यही सम्मति है । ' माताके मुखसे ऐसी बात सुनकर परम चतुर स्कन्दमयूरपर आरूढ़ हो तुरंत ही त्रिलोकीके तीर्थोंकी यात्राके लिये चल दिये। उन्होंने मुहूर्तभरमें सब तीर्थोंमें स्नान कर लिया। इधर लम्बोदरधारी गणेशजी स्कन्दसे भी बढ़कर बुद्धिमान् निकले। वे माता-पिताकी परिक्रमा करके बड़ी प्रसन्नताके साथ पिताजीके सम्मुख खड़े हो गये। फिर स्कन्द भी आकर पिताके सामने खड़े हुए और बोले, 'मुझे मोदक दीजिये।' तब पार्वतीजीने दोनों पुत्रोंकी ओर देखकर कहा- 'समस्त तीर्थोंमें किया हुआ स्नान, सम्पूर्ण देवताओंको किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञोंका अनुष्ठान तथा सब प्रकारके व्रत, मन्त्र, योग और संयमका पालन- ये सभी साधन माता-पिताके पूजनके सोलहवें अंशके बराबर भी नहीं हो सकते। इसलिये यह गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणोंसे भी बढ़कर है। अतः देवताओंका बनाया हुआ यह मोदक मैं गणेशको ही अर्पण करती हैं। माता-पिताकी भक्तिके कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञमें सबसे पहले पूजा होगी।"

महादेवजी बोले- इस गणेशके ही अग्रपूजनसे सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हों।

व्यासजी कहते हैं— अतः द्विजको उचित है कि वह सब में पहले गणेशजीका हो पूजन करे। ऐसा करनेसे उन यज्ञोंका फल कोटि-कोटि गुना अधिक होगा। सम्पूर्ण देवी-देवताओंका कथन भी यही है। देवाधिदेवी पार्वतीने पवित्र मोदक गणेशजीको ही दिया तथा बड़ी प्रसन्नताके साथ सम्पूर्ण देवताओंके सामने ही उन्हें समस्त गणका अधिपति बनाया इसलिये विस्तृत वह स्तोत्रपाठ तथा नित्यपूजनमें भी पहले गणेशजीकी पूजा करके ही मनुष्यसम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त कर सकता है। चतुर्थीको दिनभर उपवास करके श्रीगणेशजीका पूजन करे और रातमें अन्न ग्रहण करे। गणेशजीकी स्तुति इस प्रकार करनी चाहिये-'श्रीगणेशजी! आपको नमस्कार है। आप सम्पूर्ण विघ्नोंकी शान्ति करनेवाले हैं। उमाको आनन्द प्रदान करनेवाले परम बुद्धिमान् प्रभो। भवसागरसे मेरा उद्धार कीजिये। आप भगवान् शंकरको आनन्दित करनेवाले हैं। अपना ध्यान करनेवालोंको ज्ञान और विज्ञान प्रदान करते हैं। विघ्नराज! आप सम्पूर्ण दैत्योंके एकमात्र संहारक हैं, आपको नमस्कार है। आप सबको प्रसन्नता और लक्ष्मी देनेवाले हैं, सम्पूर्ण यज्ञोंके एकमात्र रक्षक तथा सब प्रकारके मनोरथोंको पूर्ण करनेवाले हैं। गणपते ! मैं प्रेमपूर्वक आपको प्रणाम करता हूँ।" जो मनुष्य उपर्युक्त भावके मन्त्रोंसे गणेशजीका पूजन करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। अब मैं गणेशजीके बारह नामोंका कल्याणमय स्तोत्र सुनाता हूँ। उनके बारह नाम ये हैं―गणपति, विघ्नराज, लम्बतुण्ड, गजानन, द्वैमातुर, हेरम्ब, एकदन्त, गणाधिप, विनायक, चारुकर्ण, पशुपाल और भवात्मज। जो प्रातः काल उठकर इन बारह नामका पाठ करता है, सम्पूर्ण विश्व उसके वशमें हो जाता है तथा उसे कभी विघ्नका सामना नहीं करना पड़ता।

उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण मांगलिक कार्यों में जो श्रीगणेशजीका पूजन करता है, वह सबको अपने वशमें | कर लेता है और उसे अक्षय पुण्यकी प्राप्ति होती है। जो मनुष्य सम्पूर्ण यज्ञके कलशोंमें 'गणानां त्वा-' इस मन्त्रसे श्रीगणेशजीका आवाहन करके उनकी पूजाकरता है, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं तथा वह स्वर्ग और मोक्षको भी पा लेता है। विद्वान् पुरुषको चाहिये वह मिट्टीकी दीवारोंमें, प्रतिमा अथवा चित्रके रूपमें पत्थरपर, दरवाजेकी लकड़ीमें तथा पात्रोंमें श्रीगणेशजीकी मूर्ति अंकित करा ले। इनके सिवा दूसरे- दूसरे स्थानमें भी, जहाँ हमेशा दृष्टि पड़ सके, श्रीगणेशजीकी स्थापना करके अपनी शक्तिके अनुसार उनका पूजन करे। जो ऐसा करता है उसके समस्त प्रिय कार्य सिद्ध होते हैं। उसके सामने कोई विघ्न नहीं आतातथा वह तीनों लोकोंको अपने वशमें कर लेता है। सम्पूर्ण देवता अपने अभीष्टकी सिद्धिके लिये जिनका पूजन करते हैं, समस्त विघ्नोंका उच्छेद करनेवाले उन श्रीगणेशजीको नमस्कार है। * जो भगवान् श्रीविष्णुको प्रिय लगनेवाले पुष्पों तथा अन्यान्य सुगन्धित फूलोंसे, फल, मूल, मोदक और सामयिक सामग्रियोंसे, दही और दूधसे, प्रिय लगनेवाले बाजोंसे तथा धूप और दीप आदिके द्वारा गणेशजीकी पूजा करता है, उसे सब प्रकारकी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

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पद्म पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] ग्रन्थका उपक्रम तथा इसके स्वरूपका परिचय
  2. [अध्याय 2] भीष्म और पुलस्त्यका संवाद-सृष्टिक्रमका वर्णन तथा भगवान् विष्णुकी महिमा
  3. [अध्याय 3] ब्रह्माजीकी आयु तथा युग आदिका कालमान, भगवान् वराहद्वारा पृथ्वीका रसातलसे उद्धार और ब्रह्माजीके द्वारा रचे हुए विविध सर्गोंका वर्णन
  4. [अध्याय 4] यज्ञके लिये ब्राह्मणादि वर्णों तथा अन्नकी सृष्टि, मरीचि आदि प्रजापति, रुद्र तथा स्वायम्भुव मनु आदिकी उत्पत्ति और उनकी संतान-परम्पराका वर्णन
  5. [अध्याय 5] लक्ष्मीजीके प्रादुर्भावकी कथा, समुद्र-मन्थन और अमृत-प्राप्ति
  6. [अध्याय 6] सतीका देहत्याग और दक्ष यज्ञ विध्वंस
  7. [अध्याय 7] देवता, दानव, गन्धर्व, नाग और राक्षसोंकी उत्पत्तिका वर्णन
  8. [अध्याय 8] मरुद्गणोंकी उत्पत्ति, भिन्न-भिन्न समुदायके राजाओं तथा चौदह मन्वन्तरोंका वर्णन
  9. [अध्याय 9] पृथुके चरित्र तथा सूर्यवंशका वर्णन
  10. [अध्याय 10] पितरों तथा श्रद्धके विभिन्न अंगका वर्णन
  11. [अध्याय 11] एकोद्दिष्ट आदि श्राद्धोंकी विधि तथा श्राद्धोपयोगी तीर्थोंका वर्णन
  12. [अध्याय 12] चन्द्रमाकी उत्पत्ति तथा यदुवंश एवं सहस्रार्जुनके प्रभावका वर्णन
  13. [अध्याय 13] यदुवंशके अन्तर्गत क्रोष्टु आदिके वंश तथा श्रीकृष्णावतारका वर्णन
  14. [अध्याय 14] पुष्कर तीर्थकी महिमा, वहाँ वास करनेवाले लोगोंके लिये नियम तथा आश्रम धर्मका निरूपण
  15. [अध्याय 15] पुष्कर क्षेत्रमें ब्रह्माजीका यज्ञ और सरस्वतीका प्राकट्य
  16. [अध्याय 16] सरस्वतीके नन्दा नाम पड़नेका इतिहास और उसका माहात्म्य
  17. [अध्याय 17] पुष्करका माहात्य, अगस्त्याश्रम तथा महर्षि अगस्त्य के प्रभावका वर्णन
  18. [अध्याय 18] सप्तर्षि आश्रमके प्रसंगमें सप्तर्षियोंके अलोभका वर्णन तथा ऋषियोंके मुखसे अन्नदान एवं दम आदि धर्मोकी प्रशंसा
  19. [अध्याय 19] नाना प्रकारके व्रत, स्नान और तर्पणकी विधि तथा अन्नादि पर्वतोंके दानकी प्रशंसामें राजा धर्ममूर्तिकी कथा
  20. [अध्याय 20] भीमद्वादशी व्रतका विधान
  21. [अध्याय 21] आदित्य शयन और रोहिणी-चन्द्र-शयन व्रत, तडागकी प्रतिष्ठा, वृक्षारोपणकी विधि तथा सौभाग्य-शयन व्रतका वर्णन
  22. [अध्याय 22] तीर्थमहिमाके प्रसंगमें वामन अवतारकी कथा, भगवान्‌का बाष्कलि दैत्यसे त्रिलोकीके राज्यका अपहरण
  23. [अध्याय 23] सत्संगके प्रभावसे पाँच प्रेतोंका उद्धार और पुष्कर तथा प्राची सरस्वतीका माहात्म्य
  24. [अध्याय 24] मार्कण्डेयजीके दीर्घायु होनेकी कथा और श्रीरामचन्द्रजीका लक्ष्मण और सीताके साथ पुष्करमें जाकर पिताका श्राद्ध करना तथा अजगन्ध शिवकी स्तुति करके लौटना
  25. [अध्याय 25] ब्रह्माजीके यज्ञके ऋत्विजोंका वर्णन, सब देवताओंको ब्रह्माद्वारा वरदानकी प्राप्ति, श्रीविष्णु और श्रीशिवद्वारा ब्रह्माजीकी स्तुति तथा ब्रह्माजीके द्वारा भिन्न-भिन्न तीर्थोंमें अपने नामों और पुष्करकी महिमाका वर्णन
  26. [अध्याय 26] श्रीरामके द्वारा शम्बूकका वध और मरे हुए ब्राह्मण बालकको जीवनकी प्राप्ति
  27. [अध्याय 27] महर्षि अगस्त्यद्वारा राजा श्वेतके उद्धारकी कथा
  28. [अध्याय 28] दण्डकारण्यकी उत्पत्तिका वर्णन
  29. [अध्याय 29] श्रीरामका लंका, रामेश्वर, पुष्कर एवं मथुरा होते हुए गंगातटपर जाकर भगवान् श्रीवामनकी स्थापना करना
  30. [अध्याय 30] भगवान् श्रीनारायणकी महिमा, युगोंका परिचय, प्रलयके जलमें मार्कण्डेयजीको भगवान् के दर्शन तथा भगवान्‌की नाभिसे कमलकी उत्पत्ति
  31. [अध्याय 31] मधु-कैटभका वध तथा सृष्टि-परम्पराका वर्णन
  32. [अध्याय 32] तारकासुरके जन्मकी कथा, तारककी तपस्या, उसके द्वारा देवताओंकी पराजय और ब्रह्माजीका देवताओंको सान्त्वना देना
  33. [अध्याय 33] पार्वतीका जन्म, मदन दहन, पार्वतीकी तपस्या और उनका भगवान शिवके साथ विवाह
  34. [अध्याय 34] गणेश और कार्तिकेयका जन्म तथा कार्तिकेयद्वारा तारकासुरका वध
  35. [अध्याय 35] उत्तम ब्राह्मण और गायत्री मन्त्रकी महिमा
  36. [अध्याय 36] अधम ब्राह्मणोंका वर्णन, पतित विप्रकी कथा और गरुड़जीका चरित्र
  37. [अध्याय 37] ब्राह्मणों के जीविकोपयोगी कर्म और उनका महत्त्व तथा गौओंकी महिमा और गोदानका फल
  38. [अध्याय 38] द्विजोचित आचार, तर्पण तथा शिष्टाचारका वर्णन
  39. [अध्याय 39] पितृभक्ति, पातिव्रत्य, समता, अद्रोह और विष्णुभक्तिरूप पाँच महायज्ञोंके विषयमें ब्राह्मण नरोत्तमकी कथा
  40. [अध्याय 40] पतिव्रता ब्राह्मणीका उपाख्यान, कुलटा स्त्रियोंके सम्बन्धमें उमा-नारद-संवाद, पतिव्रताकी महिमा और कन्यादानका फल
  41. [अध्याय 41] तुलाधारके सत्य और समताकी प्रशंसा, सत्यभाषणकी महिमा, लोभ-त्यागके विषय में एक शूद्रकी कथा और मूक चाण्डाल आदिका परमधामगमन
  42. [अध्याय 42] पोखरे खुदाने, वृक्ष लगाने, पीपलकी पूजा करने, पाँसले (प्याऊ) चलाने, गोचरभूमि छोड़ने, देवालय बनवाने और देवताओंकी पूजा करनेका माहात्म्य
  43. [अध्याय 43] रुद्राक्षकी उत्पत्ति और महिमा तथा आँखलेके फलकी महिमामें प्रेतोंकी कथा और तुलसीदलका माहात्म्य
  44. [अध्याय 44] तुलसी स्तोत्रका वर्णन
  45. [अध्याय 45] श्रीगंगाजीकी महिमा और उनकी उत्पत्ति
  46. [अध्याय 46] गणेशजीकी महिमा और उनकी स्तुति एवं पूजाका फल
  47. [अध्याय 47] संजय व्यास - संवाद - मनुष्ययोनिमें उत्पन्न हुए दैत्य और देवताओंके लक्षण
  48. [अध्याय 48] भगवान् सूर्यका तथा संक्रान्तिमें दानका माहात्म्य
  49. [अध्याय 49] भगवान् सूर्यकी उपासना और उसका फल – भद्रेश्वरकी कथा