वसिष्ठजी कहते हैं— राजन्! पृथ्वीकी परिक्रमा आरम्भ करनेवाले मनुष्यको पहले जम्बूमार्गमें प्रवेश करना चाहिये। वह पितरों, देवताओं तथा ऋषियोंद्वारा पूजित तीर्थ है। जम्बूमार्गमें जाकर मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है और अन्तमें विष्णुलोकको जाता है। जो मनुष्य प्रतिदिन उठे पहरमें एक बार भोजन करते हुए पाँच राततक उस तीर्थमें निवास करता है, उसकी कभी दुर्गति नहीं होती तथा वह परम उत्तम सिद्धिको प्राप्त होता है। जम्बूमार्गसे चलकर तुण्डलिकाश्रमकी यात्रा करनी चाहिये। वहाँ जानेसे मनुष्य दुर्गतिमें नहीं पड़ता तथा स्वर्गलोकमें उसका सम्मान होता है। राजन्! जो अगस्त्याश्रममें जाकर देवताओं और पितरोंकी पूजा करता और वहाँ तीन रात उपवास करके रहता है, उसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है तथा जो शाक या फलसे जीवन-निर्वाह करते हुए वहाँ निवास करता है, वह परम उत्तम कार्तिकेयजीके धामको प्राप्त होता है। राजाओंमें श्रेष्ठ दिलोप। लक्ष्मीसे सेवित तथा समस्त लोकोंद्वारा पूजित कन्याश्रम तीर्थं धर्मारण्यके नामसे प्रसिद्ध है, वह पुण्यदायक और प्रधान क्षेत्र है; वहाँ पहुँचकर उसमें प्रवेश करनेमात्र से मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। जो नियमानुकूल आहार करके शौच संतोष आदि नियमों का पालन करते हुए वहाँ देवता तथा पितरोंका पूजन करता है, वह सम्पूर्ण कामनाओंको पूर्ण करनेवाले यज्ञका फल पाता है। उस तीर्थको परिक्रमा करके ययातिपतन नामक स्थानको जाना चाहिये वहाँको यात्रा करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है।
तदनन्तर नियमानुकूल आहार और आचारका पालन करते हुए [उज्जैनमें स्थित] महाकाल तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ कोटितीर्थमें स्नान करके मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। वहाँसे धर्मज्ञ पुरुषको भद्रवट नामक स्थानमें जाना चाहिये, जो भगवान् उमापतिका तीर्थ है। वहाँकी यात्रा करनेसे एक हजारगोदानका फल मिलता है तथा महादेवजीकी कृपासे शिवगणोंका आधिपत्य प्राप्त होता है। नर्मदा नदीमें जाकर देवताओं तथा पितरोंका तर्पण करके मनुष्य अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता है। युधिष्ठिर बोले- द्विजश्रेष्ठ नारदजी मैं पुनः नर्मदाका माहात्म्य सुनना चाहता हूँ।
नारदजीने कहा- राजन्! नर्मदा सब नदियोंमें श्रेष्ठ है। वह समस्त पापका नाश करनेवाली तथा स्थावर-जंगम सम्पूर्ण भूतोंको तारनेवाली है। सरस्वतीका जल तीन सप्ताहतक स्नान करनेसे, यमुनाका जल एक सप्ताहतक गोता लगानेसे और गंगाजीका जल स्पर्शके समय ही पवित्र करता है; किन्तु नर्मदाका जल दर्शनमात्रसे पवित्र कर देता है। नर्मदा तीनों लोकोंमें रमणीय तथा पावन नदी है। महाराज! देवता, असुर, गन्धर्व और तपोधन ऋषि-ये नर्मदाके तटपर तपस्या करके परम सिद्धिको प्राप्त हो चुके हैं। युधिष्ठिर! वहाँ स्नान करके शौच संतोष आदि नियमोंका पालन करते हुए जो जितेन्द्रियभावसे एक रात भी उसके तटपर निवास करता है, वह अपनी सौ पीढ़ियोंका उद्धार कर देता है। जो मनुष्य जनेश्वर तीर्थमें स्नान करके विधिपूर्वक पिण्डदान देता है, उसके पितर महाप्रलयतक तृप्त रहते हैं। अमरकण्टक पर्वतके चारों ओर कोटि रुद्रोंकी प्रतिष्ठा हुई है; जो वहाँ स्नान करता और चन्दन एवं फूल-माला आदि चढ़ाकर रुद्रकी पूजा करता है, उसपर रुद्रकोटिस्वरूप भगवान् शिव प्रसन्न होते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। पर्वतके पश्चिम भागमें स्वयं भगवान् महेश्वर विराजमान हैं। वहाँ स्नान करके पवित्र हो ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए जितेन्द्रियभावसे शास्त्रीय विधिके अनुसार श्राद्ध करना चाहिये तथा वहीं तिल और जलसे पितरों तथा देवताओंका तर्पण भी करना चाहिये। पाण्डुनन्दन। जो ऐसा करता है, उसकी सातवीं पीढ़ीतकके सभी लोग स्वर्गमें निवास करते हैं। राजा युधिष्ठिर। सरिताओंमें श्रेष्ठ नर्मदाकी लंबाईसौ योजनसे कुछ अधिक सुनी जाती है तथा चौड़ाई दो योजनकी है। अमरकण्टक पर्वतके चारों ओर साठ करोड़ और साठ हजार तीर्थ है। वहाँ रहनेवाला पुरुष ब्रह्मचर्य का पालन करे, पवित्र रहे, क्रोध और इन्द्रियोंको काबूमें रखे तथा सब प्रकारकी हिंसाओंसे दूर रहकर अब प्राणियों के हित-साधनमें संलग्न रहे इस प्रकार समस्त सदाचारोंका पालन करते हुए क्षेत्रपालों (तीर्थ देवताओं) के दर्शनके लिये यात्रा करनी चाहिये। नर्मदाके दक्षिण-भागमें थोड़ी ही दूरपर एक कपिला नामकी बहुत बड़ी नदी है, जो अपने तटपर उगे हुए देवदारु एवं अर्जुनके वृक्षोंसे आच्छादित रहती है। यह परम सौभाग्यवती पावन नदी तीनों लोकोंमें विख्यात है। युधिष्ठिर उसके तटपर सौ करोड़से अधिक तीर्थ हैं। कपिलाके तीरपर जो वृक्ष कालचक्र प्रभावसे गिर जाते हैं, वे भी नर्मदाके जलसे संयुक्त होनेपर परम गतिको प्राप्त होते हैं एक दूसरी भी नदी है, जिसका नाम विशल्यकरणा है। उस शुभ नदीके किनारे स्नान करनेसे मनुष्य तत्काल शल्यरहित- शोकहीन हो जाता है। नर्मदा मिली हुई विशल्या नामकी नदी सब पापका नाश करनेवाली है। राजन् जो मनुष्य वहाँ स्नान करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जितेन्द्रियभावसे एक रात निवास करता है, वह अपनी सौ पीढ़ियोंको तार देता है। महाराज! जो उस तीर्थमें उपवास करता है, वह सब पापोंसे शुद्ध होकर इन्द्रलोकको जाता है। नर्मदामें स्नान करके मनुष्य अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। अमरकण्टक पर्वतपर जिसकी मृत्यु होती है, वह सौ करोड़ वर्षोंसे अधिक कालतक इन्द्रलोकमें प्रतिष्ठित होता है। फेन और लहरोंसे सुशोभित नर्मदाका पावन जल मस्तकपर चढ़ानेयोग्य है; ऐसा करनेसे सब पापोंसे छुटकारा मिल जाता है। नर्मदा सब प्रकारके पुण्य देनेवाली और ब्रह्महत्याका पाप दूर करनेवाली है। जो नर्मदा तटपर एक दिन और एक रात उपवास करता है, वह ब्रह्महत्यासे छूट जाता है। पाण्डुनन्दन! इस प्रकार नर्मदा परम पावन एवं रमणीय नदी है। यह महानदी तीनों लोकोंको पवित्र करती है।महाराज! अमरकण्टक पर्वत सब ओरसे पुण्यमय है जो चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहणके अवसरपर अमर कण्टककी यात्रा करता है, उसके लिये मनीषी पुरुष अश्वमेधसे दसगुना पुण्य बताते हैं। वहाँ महेश्वरका दर्शन करनेसे स्वर्गलोककी प्राप्ति होती है। जो लोग सूर्यग्रहणके समय समुदायके साथ अमरकण्टक पर्वतकी यात्रा करते हैं, उन्हें पुण्डरीक यज्ञका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। उस पर्वतपर ज्वालेश्वर नामक महादेव हैं, वहाँ स्नान करके मनुष्य स्वर्गलोकको प्राप्त होते हैं तथा जिनकी वहाँ मृत्यु होती हैं, वे पुनः जन्म-मरणके बन्धनमें नहीं पड़ते। मनुष्यके हृदयमें सकाम भाव हो या निष्काम, वह नर्मदाके शुभ जलमें स्नान करके सब पापोंसे मुक्त हो जाता है और अन्तमें रुद्रलोकको जाता है।
सूतजी कहते हैं- युधिष्ठिर आदि सब महात्मा पुरुषोंने नारदजीसे पूछा- 'भगवन्! सम्पूर्ण लोकोंके हितके उद्देश्यसे तथा हमलोगोंके ज्ञान एवं पुण्यकी वृद्धिके लिये आप [कृपापूर्वक नर्मदा-कावेरी संगमकी यथार्थ महिमाका वर्णन कीजिये।'
नारदजीने कहा- राजन्! लोक-विख्यात कावेरी नदी जहाँ नर्मदामें मिली हैं, उसी स्थानपर पहले कभी सत्यपराक्रमी कुबेर स्नान करके पवित्र हो तपस्या करते थे। उन्होंने सौ दिव्य वर्षोंतक भारी तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर महादेवजीने उन्हें उत्तम वर प्रदान किया। वे बोले-'महान् सत्त्वशाली यक्ष ! तुम इच्छानुसार वर माँगो; तुम्हारे मनमें जो अभीष्ट कार्य हो, उसे बताओ।"
कुबेरने कहा- देवेश्वर! यदि आप संतुष्ट हैं और मुझे वर देना चाहते हैं तो ऐसी कृपा कीजिये कि मैं सब यक्षोंका स्वामी बनूँ।
कुबेरकी बात सुनकर भगवान् महेश्वर बहुत प्रसन्न हुए, वे 'एवमस्तु' कहकर वहीं अन्तर्धान हो गये। वर पाकर कुबेर यक्षपुरी- अलकापुरीमें गये। वहाँ श्रेष्ठ यक्षोंने उनका बड़ा सम्मान किया और उन्हें 'राजा' के पदपर अभिषिक्त कर दिया। जहाँ कुबेरने तपस्या की थी, वहाँ कावेरी संगमका जलसब पापोंका नाश करनेवाला है। जो लोग उस संगमकी महिमाको नहीं जानते, वे बड़े भारी लाभसे वंचित रह जाते हैं। अतः मनुष्यको सर्वथा प्रयत्न करके वहाँ स्नान करना चाहिये। कावेरी और महानदी नर्मदा दोनों ही परम पुण्यदायिनी हैं। महाराज ! वहाँ स्नान करके वृषभध्वज भगवान् शंकरका पूजन करना चाहिये। ऐसा करनेवाला पुरुष अश्वमेध यज्ञकाफल प्राप्त करके रुद्रलोकमें पूजित होता है। गंगा और यमुनाके संगममें स्नान करके मनुष्य जिस फलको प्राप्त करता है, वही फल उसे कावेरी नर्मदा-संगममें स्नान करनेसे भी मिलता है। राजेन्द्र ! इस प्रकार नर्मदा-कावेरी-संगमकी बड़ी महिमा है। वहाँ सब पापका नाश करनेवाला महान् पुण्यफल प्राप्त होता है।