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पद्म पुराण (पद्मपुराण)

Padma Purana,Padama Purana ()

खण्ड 5, अध्याय 152 - Khand 5, Adhyaya 152

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त्रिरात्र तुलसीव्रतकी विधि और महिमा

नारदजी बोले - भगवन्! आपकी कृपासे मैंने तुलसीके माहात्म्यका श्रवण किया। अब त्रिरात्र तुलसी व्रतका वर्णन कीजिये।

महादेवजीने कहा- विद्वन्! तुम बड़े बुद्धिमान् हो, सुनो; यह व्रत बहुत पुराना है। इसका श्रवण करके मनुष्य निश्चय ही सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। नारद! व्रत करनेवाला पुरुष कार्तिक शुक्लपक्षकी नवमी तिथिको नियम ग्रहण करे। पृथ्वीपर सोये और इन्द्रियाँको काबू रखे त्रिराव्रत करनेके उद्देश्य से वह शौच स्नानसे शुद्ध हो मनको संयममें रखते हुए प्रतिदिन रातको नियमपूर्वक तुलसीवन के समीप शयन करे। मध्याह्नकालमें नदी आदिके निर्मल जलमें स्नान करके विधिपूर्वक देवताओं और पितरोंका तर्पण करे। इस व्रतमें पूजाके लिये लक्ष्मी और श्रीविष्णुको सुवर्णमयी प्रतिमा बनवानी चाहिये तथा उनके लिये दो वस्त्र भी तैयार करा लेने चाहिये। वस्त्र पीत और श्वेत वर्णके हों। व्रतके आरम्भमें विधिपूर्वक नवग्रह शान्ति कराये, उसके बाद चरु पकाकर उसके द्वारा श्रीविष्णु देवताकी प्रीतिके लिये हवन करे। द्वादशीके दिन देवदेवेश्वर भगवान्‌की यत्नपूर्वक पूजा करके विधिके अनुसार कलश स्थापन करे। कलश शुद्ध हो और फूटा-टूटा न हो। उसमें पंचरत्न, पंचपल्लव तथा ओषधियाँ पड़ी हों। कलशके ऊपर एक पात्र रखे और उसके भीतर लक्ष्मीजीके साथ भगवान् विष्णुको प्रतिमाको विराजमान करे। फिर वैदिक और पौराणिक मन्त्रोंका उच्चारण करते हुए तुलसीवृक्षके मूलमें भगवत्प्रतिमाकी स्थापना करे। तुलसीकी वाटिकाको केवल जलसे सींचे। फिर देवाधिदेव जगद्गुरु भगवान्‌को पंचामृत से स्नान कराकर इस प्रकार प्रार्थना करे प्रार्थना - मन्त्र

योऽनन्तरूपोऽखिलविश्वरूपो गर्भोदके

लोकविधिं बिभर्ति प्रसीदतामेष स देवदेवो

यो मायया विश्वकृदेव रूपी

'जिनके रूपका कहीं अन्त नहीं है, सम्पूर्ण विश्व जिनका स्वरूप है, जो गर्भरूप (आधारभूत) जलमें स्थित होकर लोकसृष्टिका भरण-पोषण करते हैं और मायासे ही रूपवान् होकर समस्त संसारकी सृष्टि करते हैं, वे देवदेव परमेश्वर मुझपर प्रसन्न हों। '

आवाहन - मन्त्र

आगच्छाच्युत देवेश तेजोराशे जगत्पते

सदैव तिमिरध्वंसिंस्त्राहि मां भवसागरात् ॥

'हे अच्युत ! हे देवेश्वर ! हे तेज:पुंज जगदीश्वर ! यहाँ पधारिये; आप सदा ही अज्ञानान्धकारका नाश करनेवाले हैं, इस भवसागरसे मेरी रक्षा कीजिये।'

स्नान-मन्त्र

पञ्चामृतेन सुस्नातस्तथा गन्धोदकेन

गङ्गादीनां च तोयेन स्नातोऽनन्तः प्रसीदतु ॥

पंचामृत और चन्दनयुक्त जलसे भलीभाँति नहाकर गंगा आदि नदियोंके जलसे स्नान किये हुए भगवान् अनन्त मुझपर प्रसन्न हों।'

विलेपन मन्त्र

श्रीखण्डागुरुकर्पूरकुङ्कुमादिविलेपनम्

भक्त्या दत्तं मयाऽऽधेयं लक्ष्म्या सह गृहाण वै ॥

'भगवन्! मैंने चन्दन, अगरजा, कपूर और केसर आदिका सुगन्धित अंगराग भक्तिपूर्वक अर्पण किया है; आप श्रीलक्ष्मीजीके साथ इसे स्वीकार करें।'

वस्त्र-मन्त्र

नारायण नमस्तेऽस्तु नरकार्णवतारण।

त्रैलोक्याधिपते तुभ्यं ददामि वसनं शुचि ll

'नरकके समुद्रसे तारनेवाले नारायण! आपको नमस्कार है। त्रिलोकीनाथ! मैं आपको पवित्र वस्त्र अर्पण करता हूँ।'

यज्ञोपवीत-मन्त्र

दामोदर नमस्तेऽस्तु प्राहि मां भवसागरात् ।

ब्रह्मसूत्रं मया दत्तं गृहाण पुरुषोत्तम ॥

'दामोदर! आपको नमस्कार है, भवसागरसे मेरी रक्षा कीजिये। पुरुषोत्तम! मैंने ब्रह्मसूत्र (यज्ञोपवीत) अर्पण किया है, आप इसे ग्रहण करें।'

पुष्प-मन्त्र

पुष्पाणि च सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।

मया दत्तानि देवेश प्रीतितः प्रतिगृह्यताम् ॥

'प्रभो! मैंने मालती आदिके सुगन्धित पुष्प सेवामें प्रस्तुत किये हैं, देवेश्वर ! आप इन्हें प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करें।'

नैवेद्य-मन्त्र

नैवेयं गुह्यतां नाथ भक्ष्यभोज्यैः समन्वितम्।

सर्वं रसैः सुसम्पन्नं गृहाण परमेश्वर ॥

'नाथ! भक्ष्यभोज्य पदार्थोंसे युक्त नैवेद्य स्वीकार कीजिये; परमेश्वर ! यह सब रसोंसे सम्पन्न है, इसे ग्रहण करें।'

ताम्बूल मन्त्

पूगानि नागपत्राणि कर्पूरसहितानि

मया दत्तानि देवेश ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥

'देवेश्वर! मैंने सुपारी, पानके पत्ते और कपूरआपकी सेवामें भेंट किये हैं। आप यह बीड़ा स्वीकार करें।"

तत्पश्चात् भक्तिपूर्वक धूप, अगर तथा थी मिलाया हुआ गुग्गुल इनकी आहुति देकर भगवान्‌को सुँघाये। इस प्रकार पूजा करनी चाहिये। घीका दीपक जलाना चाहिये। मुनिश्रेष्ठ एकाग्रचित्त हो भगवान् श्रीलक्ष्मीनारायणके सामने तथा तुलसीवनके समीप नाना प्रकारका दीपक सजाना चाहिये। चक्रधारी देवाधिदेव विष्णुको प्रतिदिन अर्घ्य भी देना चाहिये। पुत्र- प्राप्तिके लिये नवमीको नारियलका अर्घ्य देना उत्तम है। धर्म, काम तथा अर्थ-तीनोंकी सिद्धिके लिये दशमीको बिजरिका अर्घ्य अर्पण करना उचित है तथा एकादशीको अनारसे अर्घ्य देना चाहिये; इससे सदा दरिद्रताका नाश होता है। नारद! बाँसके पात्रमें सप्तधान्य रखकर उसमें सात फल रखे; फिर तुलसीदल, फूल एवं सुपारी डालकर उस पात्रको वस्त्रसे ढक दे। तत्पश्चात् उसे भगवान्‌के सम्मुख निवेदन करे। विप्रेन्द्र! अर्घ्यं निम्नांकित मन्त्रसे देना चाहिये; इसे एकाग्रचित्त होकर सुनो

अर्घ्य मन्त्र

तुलसीसहितो देव सदा शङ्खेन संयुतम् ।

गृहाणा मया दत्तं देवदेव नमोऽस्तु ते ॥

'देव! आप तुलसीजीके साथ मेरे दिये हुए इस शंखयुक्त अर्घ्यको ग्रहण करें। देवदेव! आपको नमस्कार है।'

इस प्रकार लक्ष्मीसहित देवेश्वर भगवान् विष्णुकी पूजा करके व्रतकी पूर्तिके निमित्त उन देवदेवेश्वरसे प्रार्थना करे

उपोषितोऽहं देवेश कामक्रोधविवर्जितः ।

व्रतेनानेन देवेश त्वमेव शरणं

गृहीतेऽस्मिन् व्रते देव यदपूर्णं कृतं मया ।

सर्वं तदस्तु सम्पूर्णं त्वत्प्रसादाज्जनार्दन ॥

कमलपत्राक्ष नमस्ते जलशायिने ।

इदं व्रतं मया चीर्णं प्रसादात्तव केशव ॥

अज्ञानतिमिरध्वंसिन् व्रतेनानेन केशव

प्रसादसुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ॥

'देवेश्वर ! मैंने काम-क्रोधसे रहित होकर इस व्रतके द्वारा उपवास किया है। देवेश! आप ही मेरे शरणदाता हैं। देव! जनार्दन! इस व्रतको ग्रहण करके मैंने इसके जिस अंगकी पूर्ति न की हो, वह सब आपके प्रसादसे पूर्ण हो जाय। कमलनयन ! आपको नमस्कार है। जलशायी नारायण! आपको प्रणाम है। केशव ! आपके ही प्रसादसे मैंने इस व्रतका अनुष्ठान किया है। अज्ञानान्धकारका विनाश करनेवाले केशव ! आप इस व्रतसे प्रसन्न होकर मुझे ज्ञान दृष्टि प्रदान करें ।'

तदनन्तर रातमें जागरण, गान तथा पुस्तकका स्वाध्याय करे। गानविद्या तथा नृत्यकलामें प्रवीण पुरुषोंद्वारा संगीत और नृत्यकी व्यवस्था करे। अत्यन्त सुन्दर एवं पवित्र उपाख्यानोंके द्वारा रात्रिका समय व्यतीत करे। निशाके अन्तमें प्रभात होनेपर जब सूर्यदेवका उदय हो जाय, तब ब्राह्मणोंको निमन्त्रित करके भक्तिपूर्वक वैष्णव श्राद्ध करे । यज्ञोपवीत, वस्त्र, माला तथा चन्दनदेकर वस्त्राभूषण एवं केसरके द्वारा पूजनपूर्वक तीन ब्राह्मण-दम्पतिको भोजन कराये। घृत-मिश्रित खीरके द्वारा यथेष्ट भोजन करानेके पश्चात् दक्षिणासहित पान, फूल और गन्ध आदि दान करे। अपनी शक्तिके अनुसार बाँसके अनेक पात्र बनवाकर उन्हें पके हुए नारियल, पकवान, वस्त्र तथा भाँति-भाँतिके फलोंसे भरे। सपत्नीक आचार्यको वस्त्र पहनाये । दिव्य आभूषण देकर चन्दन और मालासे उनका पूजन करे। फिर उन्हें सब सामग्रियोंसे युक्त दूध देनेवाली गौ दान करे। गौके साथ दक्षिणा, वस्त्र, आभूषण, दोहनपात्र तथा अन्यान्य सामग्री भी दे। श्रीलक्ष्मीनारायणकी प्रतिमा भी सब सामग्रियोंसहित आचार्यको दे। सब तीर्थोंमें स्नान करनेवाले मनुष्योंको जो पुण्य प्राप्त होता है, वह सब इस व्रतके द्वारा देवदेव विष्णुके प्रसादसे प्राप्त हो जाता है। व्रत करनेवाला पुरुष इस लोकमें मनको प्रिय लगनेवाले सम्पूर्ण पदार्थों और प्रचुर भोगोंका उपभोग करके अन्तमें श्रीविष्णुकी कृपासे भगवान् विष्णुके परमधामको प्राप्त होता है।

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पद्म पुराण
Index


  1. [अध्याय 148] नारद-महादेव-संवाद- बदरिकाश्रम तथा नारायणकी महिमा
  2. [अध्याय 149] गंगावतरणकी संक्षिप्त कथा और हरिद्वारका माहात्म्य
  3. [अध्याय 150] गंगाकी महिमा, श्रीविष्णु, यमुना, गंगा, प्रयाग, काशी, गया एवं गदाधरकी स्तुति
  4. [अध्याय 151] तुलसी, शालग्राम तथा प्रयागतीर्थका माहात्म्य
  5. [अध्याय 152] त्रिरात्र तुलसीव्रतकी विधि और महिमा
  6. [अध्याय 153] अन्नदान, जलदान, तडाग निर्माण, वृक्षारोपण तथा सत्यभाषण आदिकी महिमा
  7. [अध्याय 154] मन्दिरमें पुराणकी कथा कराने और सुपात्रको दान देनेसे होनेवाली सद्गतिके विषयमें एक आख्यान तथा गोपीचन्दनके तिलककी महिमा
  8. [अध्याय 155] संवत्सरदीप व्रतकी विधि और महिमा
  9. [अध्याय 156] जयन्ती संज्ञावाली जन्माष्टमीके व्रत तथा विविध प्रकारके दान आदिकी महिमा
  10. [अध्याय 157] महाराज दशरथका शनिको संतुष्ट करके लोकका कल्याण करना
  11. [अध्याय 158] त्रिस्पृशाव्रतकी विधि और महिमा
  12. [अध्याय 159] पक्षवर्धिनी एकादशी तथा जागरणका माहात्म्य
  13. [अध्याय 160] एकादशीके जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप, एकादशीकी विधि, उत्पत्ति कथा और महिमाका वर्णन
  14. [अध्याय 161] मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी 'मोक्षा' एकादशीका माहात्म्य
  15. [अध्याय 162] पौष मासकी 'सफला' और 'पुत्रदा' नामक एकादशीका माहात्म्य
  16. [अध्याय 163] माघ मासकी पतिला' और 'जया' एकादशीका माहात्म्य
  17. [अध्याय 164] फाल्गुन मासकी 'विजया' तथा 'आमलकी एकादशीका माहात्म्य
  18. [अध्याय 165] चैत्र मासकी 'पापमोचनी' तथा 'कामदा एकादशीका माहात्म्य
  19. [अध्याय 166] वैशाख मासकी 'वरूथिनी' और 'मोहिनी' एकादशीका माहात्म्य
  20. [अध्याय 167] ज्येष्ठ मासकी' अपरा' तथा 'निर्जला' एकादशीका माहात्म्य
  21. [अध्याय 168] आषाढ़ मासकी 'योगिनी' और 'शयनी एकादशीका माहात्म्य
  22. [अध्याय 169] श्रावणमासकी 'कामिका' और 'पुत्रदा एकादशीका माहात्म्य
  23. [अध्याय 170] भाद्रपद मासकी 'अजा' और 'पद्मा' एकादशीका माहात्म्य
  24. [अध्याय 171] आश्विन मासकी 'इन्दिरा' और 'पापांकुशा एकादशीका माहात्म्य
  25. [अध्याय 172] कार्तिक मासकी 'रमा' और 'प्रबोधिनी' एकादशीका माहात्म्य
  26. [अध्याय 173] पुरुषोत्तम मासकी 'कमला' और 'कामदा एकादशीका माहात्य
  27. [अध्याय 174] चातुर्मास्य व्रतकी विधि और उद्यापन
  28. [अध्याय 175] यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माहात्म्य
  29. [अध्याय 176] वैष्णवोंके लक्षण और महिमा तथा श्रवणद्वादशी व्रतकी विधि और माहात्म्य-कथा
  30. [अध्याय 177] नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन
  31. [अध्याय 178] गृहस्थ आश्रमकी प्रशंसा तथा दान धर्मकी महिमा
  32. [अध्याय 179] गण्डकी नदीका माहात्म्य तथा अभ्युदय एवं और्ध्वदेहिक नामक स्तोत्रका वर्णन
  33. [अध्याय 180] ऋषिपंचमी - व्रतकी कथा, विधि और महिमा
  34. [अध्याय 181] न्याससहित अपामार्जन नामक स्तोत्र और उसकी महिमा
  35. [अध्याय 182] श्रीविष्णुकी महिमा - भक्तप्रवर पुण्डरीककी कथा
  36. [अध्याय 183] श्रीगंगाजीकी महिमा, वैष्णव पुरुषोंके लक्षण तथा श्रीविष्णु प्रतिमाके पूजनका माहात्म्य
  37. [अध्याय 184] चैत्र और वैशाख मासके विशेष उत्सवका वर्णन, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़में जलस्थ श्रीहरिके पूजनका महत्त्व
  38. [अध्याय 185] पवित्रारोपणकी विधि, महिमा तथा भिन्न-भिन्न मासमें श्रीहरिकी पूजामें काम आनेवाले विविध पुष्पोंका वर्णन
  39. [अध्याय 186] कार्तिक-व्रतका माहात्म्य - गुणवतीको कार्तिक व्रतके पुण्यसे भगवान्‌की प्राप्ति
  40. [अध्याय 187] कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसंग शंखासुरके वध, वेदोंके उद्धार तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
  41. [अध्याय 188] कार्तिक मासमें स्नान और पूजनकी विधि
  42. [अध्याय 189] कार्तिक व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि
  43. [अध्याय 190] कार्तिक- व्रतके पुण्य-दानसे एक राक्षसीका उद्धार
  44. [अध्याय 191] कार्तिक-माहात्म्यके प्रसंगमें राजा चोल और विष्णुदास की कथा
  45. [अध्याय 192] पुण्यात्माओंके संसर्गसे पुण्यकी प्राप्तिके प्रसंगमें धनेश्वर ब्राह्मणकी कथा
  46. [अध्याय 193] अशक्तावस्थामें कार्तिक व्रतके निर्वाहका उपाय
  47. [अध्याय 194] कार्तिक मासका माहात्म्य और उसमें पालन करनेयोग्य नियम
  48. [अध्याय 195] प्रसंगतः माघस्नानकी महिमा, शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास- व्रतकी विधिका वर्णन
  49. [अध्याय 196] शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य
  50. [अध्याय 197] भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली कृत्य, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन
  51. [अध्याय 198] प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपंचक व्रतकी विधि एवं महिमा
  52. [अध्याय 199] भक्तिका स्वरूप, शालग्रामशिलाकी महिमा तथा वैष्णवपुरुषोंका माहात्म्य
  53. [अध्याय 200] भगवत्स्मरणका प्रकार, भक्तिकी महत्ता, भगवत्तत्त्वका ज्ञान, प्रारब्धकर्मकी प्रबलता तथा भक्तियोगका उत्कर्ष
  54. [अध्याय 201] पुष्कर आदि तीर्थोका वर्णन
  55. [अध्याय 202] वेत्रवती और साभ्रमती (साबरमती) नदीका माहात्म्य
  56. [अध्याय 203] साभ्रमती नदीके अवान्तर तीर्थोका वर्णन
  57. [अध्याय 204] अग्नितीर्थ, हिरण्यासंगमतीर्थ, धर्मतीर्थ आदिकी महिमा
  58. [अध्याय 205] माभ्रमती-तटके कपीश्वर, एकधार, सप्तधार और ब्रह्मवल्ली आदि तीर्थोकी महिमाका वर्णन
  59. [अध्याय 206] साभ्रमती-तटके बालार्क, दुर्धर्षेश्वर तथा खड्गधार आदि तीर्थोंकी महिमाका वर्णन
  60. [अध्याय 207] वार्त्रघ्नी आदि तीर्थोकी महिमा
  61. [अध्याय 208] श्रीनृसिंहचतुर्दशी के व्रत तथा श्रीनृसिंहतीर्थकी महिमा
  62. [अध्याय 209] श्रीमद्भगवद्गीताके पहले अध्यायका माहात्म्य
  63. [अध्याय 210] श्रीमद्भगवद्गीताके दूसरे अध्यायका माहात्म्य
  64. [अध्याय 211] श्रीमद्भगवद्गीताके तीसरे अध्यायका माहात्म्य
  65. [अध्याय 212] श्रीमद्भगवद्गीताके चौथे अध्यायका माहात्म्य
  66. [अध्याय 213] श्रीमद्भगवद्गीताके पाँचवें अध्यायका माहात्म्य
  67. [अध्याय 214] श्रीमद्भगवद्गीताके छठे अध्यायका माहात्म्य
  68. [अध्याय 215] श्रीमद्भगवद्गीताके सातवें तथा आठवें अध्यायोंका माहात्म्य
  69. [अध्याय 216] श्रीमद्भगवद्गीताके नवें और दसवें अध्यायोंका माहात्म्य
  70. [अध्याय 217] श्रीमद्भगवद्गीताके ग्यारहवें अध्यायका माहात्म्य
  71. [अध्याय 218] श्रीमद्भगवद्गीताके बारहवें अध्यायका माहात्म्य
  72. [अध्याय 219] श्रीमद्भगवद्गीताके तेरहवें और चौदहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  73. [अध्याय 220] श्रीमद्भगवद्गीताके पंद्रहवें तथा सोलहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  74. [अध्याय 221] श्रीमद्भगवद्गीताके सत्रहवें और अठारहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  75. [अध्याय 222] देवर्षि नारदकी सनकादिसे भेंट तथा नारदजीके द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्यके वृत्तान्तका वर्णन
  76. [अध्याय 223] भक्तिका कष्ट दूर करनेके लिये नारदजीका उद्योग और सनकादिके द्वारा उन्हें साधनकी प्राप्ति
  77. [अध्याय 224] सनकादिद्वारा श्रीमद्भागवतकी महिमाका वर्णन तथा कथा-रससे पुष्ट होकर भक्ति, ज्ञान और वैराग्यका प्रकट होना
  78. [अध्याय 225] कथामें भगवान्का प्रादुर्भाव, आत्मदेव ब्राह्मणकी कथा - धुन्धुकारी और गोकर्णकी उत्पत्ति तथा आत्मदेवका वनगमन
  79. [अध्याय 226] गोकर्णजीकी भागवत कथासे धुन्धुकारीका प्रेतयोनिसे उद्धार तथा समस्त श्रोताओंको परमधामकी प्राप्ति
  80. [अध्याय 227] श्रीमद्भागवतके सप्ताहपारायणकी विधि तथा भागवत माहात्म्यका उपसंहार
  81. [अध्याय 228] यमुनातटवर्ती 'इन्द्रप्रस्थ' नामक तीर्थकी माहात्म्य कथा
  82. [अध्याय 229] निगमोद्बोध नामक तीर्थकी महिमा - शिवशर्मा के पूर्वजन्मकी कथा
  83. [अध्याय 230] देवल मुनिका शरभको राजा दिलीपकी कथा सुनाना - राजाको नन्दिनीकी सेवासे पुत्रकी प्राप्ति
  84. [अध्याय 231] शरभको देवीकी आराधनासे पुत्रकी प्राप्ति; शिवशमांके पूर्वजन्मकी कथाका और निगमोद्बोधकतीर्थकी महिमाका उपसंहार
  85. [अध्याय 232] इन्द्रप्रस्थके द्वारका, कोसला, मधुवन, बदरी, हरिद्वार, पुष्कर, प्रयाग, काशी, कांची और गोकर्ण आदि तीर्थोका माहात्य
  86. [अध्याय 233] वसिष्ठजीका दिलीपसे तथा भृगुजीका विद्याधरसे माघस्नानकी महिमा बताना तथा माघस्नानसे विद्याधरकी कुरूपताका दूर होना
  87. [अध्याय 234] मृगशृंग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
  88. [अध्याय 235] मृगशृंग मुनिके द्वारा माघके पुण्यसे एक हाथीका उद्धार तथा मरी हुई कन्याओंका जीवित होना
  89. [अध्याय 236] यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन
  90. [अध्याय 237] महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार
  91. [अध्याय 238] मृगशृंगका विवाह, विवाहके भेद तथा गृहस्थ आश्रमका धर्म
  92. [अध्याय 239] पतिव्रता स्त्रियोंके लक्षण एवं सदाचारका वर्णन
  93. [अध्याय 240] मृगशृंगके पुत्र मृकण्डु मुनिकी काशी यात्रा, काशी- माहात्म्य तथा माताओंकी मुक्ति
  94. [अध्याय 241] मार्कण्डेयजीका जन्म, भगवान् शिवकी आराधनासे अमरत्व प्राप्ति तथा मृत्युंजय - स्तोत्रका वर्णन
  95. [अध्याय 242] माघस्नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
  96. [अध्याय 243] माघ मासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति
  97. [अध्याय 244] सनातन मोक्षमार्ग और मन्त्रदीक्षाका वर्णन
  98. [अध्याय 245] भगवान् विष्णुकी महिमा, उनकी भक्तिके भेद तथा अष्टाक्षर मन्त्रके स्वरूप एवं अर्थका निरूपण
  99. [अध्याय 246] श्रीविष्णु और लक्ष्मीके स्वरूप, गुण, धाम एवं विभूतियोंका वर्णन
  100. [अध्याय 247] वैकुण्ठधाममें भगवान् की स्थितिका वर्णन, योगमायाद्वारा भगवान्‌की स्तुति तथा भगवान्‌के द्वारा सृष्टि रचना
  101. [अध्याय 248] देवसर्ग तथा भगवान्‌के चतुर्व्यूहका वर्णन
  102. [अध्याय 249] मत्स्य और कूर्म अवतारोंकी कथा-समुद्र-मन्धनसे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव और एकादशी - द्वादशीका माहात्म्य
  103. [अध्याय 250] नृसिंहावतार एवं प्रह्लादजीकी कथा
  104. [अध्याय 251] वामन अवतारके वैभवका वर्णन
  105. [अध्याय 252] परशुरामावतारकी कथा
  106. [अध्याय 253] श्रीरामावतारकी कथा - जन्मका प्रसंग
  107. [अध्याय 254] श्रीरामका जातकर्म, नामकरण, भरत आदिका जन्म, सीताकी उत्पत्ति, विश्वामित्रकी यज्ञरक्षा तथा राम आदिका विवाह
  108. [अध्याय 255] श्रीरामके वनवाससे लेकर पुनः अयोध्या में आनेतकका प्रसंग
  109. [अध्याय 256] श्रीरामके राज्याभिषेकसे परमधामगमनतकका प्रसंग
  110. [अध्याय 257] श्रीकृष्णावतारकी कथा-व्रजकी लीलाओंका प्रसंग
  111. [अध्याय 258] भगवान् श्रीकृष्णकी मथुरा-यात्रा, कंसवध और उग्रसेनका राज्याभिषेक
  112. [अध्याय 259] जरासन्धकी पराजय द्वारका-दुर्गकी रचना, कालयवनका वध और मुचुकुन्दकी मुक्ति
  113. [अध्याय 260] सुधर्मा - सभाकी प्राप्ति, रुक्मिणी हरण तथा रुक्मिणी और श्रीकृष्णका विवाह
  114. [अध्याय 261] भगवान् के अन्यान्य विवाह, स्यमन्तकमणिकी कथा, नरकासुरका वध तथा पारिजातहरण
  115. [अध्याय 262] अनिरुद्धका ऊषाके साथ विवाह
  116. [अध्याय 263] पौण्ड्रक, जरासन्ध, शिशुपाल और दन्तवक्त्रका वध, व्रजवासियोंकी मुक्ति, सुदामाको ऐश्वर्य प्रदान तथा यदुकुलका उपसंहार
  117. [अध्याय 264] श्रीविष्णु पूजनकी विधि तथा वैष्णवोचित आचारका वर्णन
  118. [अध्याय 265] श्रीराम नामकी महिमा तथा श्रीरामके १०८ नामका माहात्म्य
  119. [अध्याय 266] त्रिदेवोंमें श्रीविष्णुकी श्रेष्ठता तथा ग्रन्थका उपसंहार