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पद्म पुराण (पद्मपुराण)

Padma Purana,Padama Purana ()

खण्ड 1, अध्याय 7 - Khand 1, Adhyaya 7

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देवता, दानव, गन्धर्व, नाग और राक्षसोंकी उत्पत्तिका वर्णन

भीष्मजीने कहा- गुरुदेव! देवताओं, दानवों, गन्धव, नागों और राक्षसोंकी उत्पत्तिका आप विस्तारके साथ वर्णन कीजिये।

पुलस्त्यजी बोले- कुरुनन्दन। कहते हैं पहले प्रजा वर्गकी सृष्टि संकल्पसे, दर्शनसे तथा स्पर्श करनेसे होती थी; किन्तु प्रचेताओंके पुत्र दक्षप्रजापतिके बाद मैथुनसे प्रजाकी उत्पत्ति होने लगी। दक्षने आदिमें जिस प्रकार प्रजाकी सृष्टि की, उसका वर्णन सुनो। जब वे [पहलेके नियमानुसार संकल्प आदिसे] देवता, ऋषि और नागौकी सृष्टि करने लगे किन्तु प्रजाकी वृद्धि नहीं हुई, तब उन्होंने मैथुनके द्वारा अपनी पत्नी वीरिणीके गर्भसे साठ कन्याओंको जन्म दिया। उनमेंसे उन्होंने दस धर्मको, तेरह कश्यपको, सत्ताईस चन्द्रमाको चार अरिष्टनेमिको दो भृगुपुत्रको दो बुद्धिमान् कृशाश्वको तथा दो महर्षि अंगिराको व्याह दी। वे सब देवताओंकी जननी हुई। उनके वंश विस्तारका आरम्भसे ही वर्णन करता है, सुनो अस्थती, वसु, जामी, लंबा, भानु, मरुत्वती, संकल्पा, मुहूर्ता, साध्या और विश्वा-ये दस धर्मकी पत्नियाँ बतायी गयी हैं। इनके पुत्रोंके नाम सुनो विश्वाके गर्भ से विश्वेदेव हुए। साध्याने साध्य नामक देवताओंको जन्म दिया। मरुत्वतीसे मरुत्वान् नामक देवताओंकी उत्पत्ति हुई। वसुके पुत्र आठ वसु कहलाये। भानुसे भानु और मुहूर्तासे मुहूर्ताभिमानी देवता उत्पन्न हुए। लंबासे घोष, जामीसे नागवीथी नामकी कन्या तथा अरुन्धतीके गर्भ से पृथ्वीपर होनेवाले समस्त प्राणी उत्पन्न हुए। संकल्पसे संकल्पोंका जन्म हुआ। अब वसुकी सृष्टिका वर्णन सुनो। जो देवगण अत्यन्त प्रकाशमान और सम्पूर्ण दिशाओंमें व्यापक हैं, वे वसु कहलाते हैं; उनके नाम सुनो। आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास-ये आठ वसु हैं। 'आप' के चार पुत्र हैं—शान्त, वैतण्ड, साम्ब और मुनिव। ये सब यज्ञरक्षाके अधिकारी हैं। ध्रुवके पुत्र काल और सोमके पुत्र वर्चा हुए। धरके दो पुत्र हुए द्रविण और हव्यवाह। अनिलके पुत्र प्राण, रमण औरशिशिर थे। अनलके कई पुत्र हुए, जो प्रायः अग्निके समान गुणवाले थे। अग्निपुत्र कुमारका जन्म सरकंडों में हुआ। उनके शाख, उपशाख और नैगमेय-ये तीन पुत्र हुए। कृत्तिकाओंकी सन्तान होनेके कारण कुमारको कार्तिकेय भी कहते हैं। प्रत्यूषके पुत्र देवल नामके मुनि हुए। प्रभाससे प्रजापति विश्वकर्माका जन्म हुआ, जो शिल्पकलाके ज्ञाता हैं। वे महल, घर, उद्यान, प्रतिमा, आभूषण, तालाब, उपवन और कूप आदिका निर्माण करनेवाले हैं। देवताओंके कारीगर वे ही हैं। अजैकपाद्, अहिर्बुध्न्य, विरूपाक्ष, रैवत, हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, सावित्र, जयन्त, पिनाकी और अपराजित - ये ग्यारह रुद्र कहे गये हैं; ये गणके स्वामी हैं। इनके मानस संकल्पसे उत्पन्न चौरासी करोड़ पुत्र हैं, जो रुद्रगण कहलाते हैं वे श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये रहते हैं। उन सबको अविनाशी माना गया है। जो गणेश्वर सम्पूर्ण दिशाओंमें रहकर सबकी रक्षा करते हैं, वे सब सुरभिके गर्भ से उत्पन्न उन्होंके पुत्र पौत्रादि हैं। अब मैं कश्यपजीकी स्त्रियोंसे उत्पन्न पुत्र पौत्रोंका वर्णन करूंगा अदिति, दिति, दनु, अरिष्टा, सुरसा, सुरभि, विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कद्रू, खसा और मुनि-ये कश्यपजीकी पत्नियोंके नाम हैं। इनके पुत्रोंका वर्णन सुनो। चाक्षुष मन्वन्तरमें जो तुषित नामसे प्रसिद्ध देवता थे, वे ही वैवस्वत मन्वन्तरमें बारह आदित्य हुए। उनके नाम हैं-इन्द्र, धाता, भग, त्वष्टा, मित्र, वरुण, अर्यमा, विवस्वान्, सविता, पूषा, अंशुमान् और विष्णु। ये सहस्रों किरणोंसे सुशोभित बारह आदित्य माने गये हैं। इन श्रेष्ठ पुत्रोंको देवी अदितिने मरीचिनन्दन कश्यपके अंशसे उत्पन्न किया था। कृशाश्व नामक ऋषिसे जो पुत्र हुए, उन्हें देव -प्रहरण कहते हैं। ये देवगण प्रत्येक मन्वन्तर और प्रत्येक कल्पमें उत्पन्न एवं विलीन होते रहते हैं। भीष्म ! हमारे सुननेमें आया है कि दितिने कश्यपजीसे दो पुत्र प्राप्त किये, जिनके नाम थे हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष हिरण्यकशिपुसे चार पुत्रउत्पन्न हुए-प्रह्लाद, अनुहाद, संहाद और हाद। प्रह्लादके चार पुत्र हुए- आयुष्मान् शिवि, वाष्कलि और चौथा विरोचन। विरोचनको बलि नामक पुत्रकी प्राप्ति हुई । बलिके सौ पुत्र हुए। उनमें बाण जेठा था। गुणोंमें भी वह सबसे बढ़ा चढ़ा था। बाणके एक हजार बाँहें थीं तथा वह सब प्रकारके अस्त्र चलानेकी कलामें भी पूरा प्रवीण था। त्रिशूलधारी भगवान् शंकर उसकी तपस्यासे सन्तुष्ट होकर उसके नगरमें निवास करते थे। बाणासुरको 'महाकाल' की पदवी तथा साक्षात् पिनाकपाणि भगवान् शिवकी समानता प्राप्त हुई वह महादेवजीका सहचर हुआ। हिरण्याक्षके उलूक, शकुनि, भूतसन्तापन और महाभीम-ये चार पुत्र थे। इनसे सत्ताईस करोड़ पुत्र-पौत्रोंका विस्तार हुआ। वे सभी महाबली, अनेक रूपधारी तथा अत्यन्त तेजस्वी थे। दनुने कश्यपजीसे सौ पुत्र प्राप्त किये। वे सभी वरदान पाकर उन्मत्त थे। उनमें सबसे ज्येष्ठ और अधिक बलवान् विप्रचित्ति था। दनुके शेष पुत्रोंके नाम स्वर्भानु और वृषपर्वा आदि थे। स्वर्भानुसे सुप्रभा और पुलोमा नामक दानवसे शची नामकी कन्या हुई। मपके तीन कन्याएँ हुई- उपदानवी मन्दोदरी और कुहू । वृषपर्वाके दो कन्याएँ थीं- सुन्दरी शर्मिष्ठा और चन्द्रा वैश्वानरके भी दो पुत्रियाँ र्थी - पुलोमा और कालका। ये दोनों ही बड़ी शक्तिशालिनी तथा अधिक सन्तानोंकी जननी हुई। इन दोनोंसे साठ हजार दानवोंकी उत्पत्ति हुई। पुलोमाके पुत्र पौलोम और कालकाके कालखंज (या कालकेय) कहलाये। ब्रह्माजीसे वरदान पाकर ये मनुष्योंके लिये अवध्य हो गये थे और हिरण्यपुरमें निवास करते थे फिर भी ये अर्जुनके हाथसे मारे गये।" विप्रचित्तिने सिंहिकाके गर्भसे एक भयंकर पुत्रको जन्म दिया, जो सैंहिकेय (राहु) के नामसे प्रसिद्ध था हिरण्यकशिपुको बहिन कुल तेरह पुत्र जिनके नाम ये हैं-कंस, शंख, नल, वातापि, इल्वल, नमुचि, खसृम, अंजन, नरक, कालनाभ, परमाणु,कल्पवीर्य तथा दनुवंशविवर्धन। संहाद दैत्यके वंशमें निवातकवचका जन्म हुआ। वे गन्धर्व, नाग, राक्षस एवं सम्पूर्ण प्राणियोंके लिये अवध्य थे। परन्तु वरवर अर्जुन संग्राम-भूमिमें उन्हें भी बलपूर्वक मार डाला। ताम्राने कश्यपजीके वीर्यसे छः कन्याओंको जन्म दिया, जिनके नाम हैं-शुकी, स्पेनी भासी सुश्री, गृधिका और शुचि। शुकीने शुक और उल्लू नामवाले पक्षियोंको उत्पन्न किया। स्पेन स्पेन (बाजों को तथा भासीने कुर नामक पक्षियोंको जन्म दिया। गृध्रीसे गृध्र और सुगृधीसे कबूतर उत्पन्न हुए तथा शुचिने हंस, सारस, कारण्ड एवं प्लव नामके पक्षियोंको जन्म दिया। यह ताम्राके वंशका वर्णन हुआ। अब विनताकी सन्तानोंका वर्णन सुनो पक्षियोंमें श्रेष्ठ गरुड और अरुण विनताके पुत्र हैं तथा उनके एक सौदामनी नामकी कन्या भी है, जो वह आकार में चमकती दिखायी देती है। अरुणके दो पुत्र हुए- सम्पाति और जटायु। सम्पातिके पुत्रोंका नाम बभ्रु और शीघ्रग हैं। इनमें शीघ्रग विख्यात हैं। जटायुके भी दो पुत्र हुए-कर्णिकार और शतगामी। वे दोनों ही प्रसिद्ध थे। इन पक्षियोंके असंख्य पुत्र-पौत्र हुए।

सुरसाके गर्भसे एक हजार सपकी उत्पत्ति हुई तथा उत्तम व्रतका पालन करनेवाली कद्रूने हजार मस्तकवाले एक सहस्र नागोंको पुत्रके रूपमें प्राप्त किया। उनमें छब्बीस नाग प्रधान एवं विख्यात है-शेष वासुकि, कर्कोटक, शंख, ऐरावत, कम्बल, धनंजय, महानील, पद्य, अश्वतर, तक्षक, एलापत्र, महापद्म धृतराष्ट्र बलाहक, शंखपाल, महाशंख, पुष्पदन्त, सुभावन, शंखरोमा, नहुष, रमण, पाणिनि, कपिल, दुर्मुख तथा पतंजलिमुख इन सबके पुत्र-पौत्रोंकी संख्याका अन्त नहीं है। इनमेंसे अधिकांश नागपूर्वकालमें राजा जनमेजय - मण्डपमें जला दिये गये। क्रोधवशाने अपने ही नामके क्रोधवशसंज्ञक राक्षससमूहको उत्पन्न किया। उनको बड़ी-बड़ी दा थीं उनमें से दस लाखक्रोधवश भीमसेनके हाथसे मारे गये। सुरभिने कश्यपजीके अंशसे रुद्रगण, गाय, भैंस तथा सुन्दरी स्त्रियोंको जन्म दिया। मुनिसे मुनियोंका समुदाय तथा अप्सराएँ प्रकट हुईं। अरिष्टाने बहुत-से किन्नरों और गन्धर्वोंको जन्म दिया । इरासे तृण, वृक्ष, लताएँ और झाड़ियाँ - इन सबकी उत्पत्ति हुई । खसाने करोड़ोंराक्षसों और यक्षोंको जन्म दिया। भीष्म ! ये सैकड़ों और हजारों कोटियाँ कश्यपजीकी सन्तानोंकी हैं। यह स्वारोचिष मन्वन्तरकी सृष्टि बतायी गयी है। सबसे पीछे दितिने कश्यपजीसे उनचास मरुद्गणोंको उत्पन्न किया, जो सब-के-सब धर्मके ज्ञाता और देवताओंके प्रिय हैं।

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पद्म पुराण
Index


  1. [अध्याय 1] ग्रन्थका उपक्रम तथा इसके स्वरूपका परिचय
  2. [अध्याय 2] भीष्म और पुलस्त्यका संवाद-सृष्टिक्रमका वर्णन तथा भगवान् विष्णुकी महिमा
  3. [अध्याय 3] ब्रह्माजीकी आयु तथा युग आदिका कालमान, भगवान् वराहद्वारा पृथ्वीका रसातलसे उद्धार और ब्रह्माजीके द्वारा रचे हुए विविध सर्गोंका वर्णन
  4. [अध्याय 4] यज्ञके लिये ब्राह्मणादि वर्णों तथा अन्नकी सृष्टि, मरीचि आदि प्रजापति, रुद्र तथा स्वायम्भुव मनु आदिकी उत्पत्ति और उनकी संतान-परम्पराका वर्णन
  5. [अध्याय 5] लक्ष्मीजीके प्रादुर्भावकी कथा, समुद्र-मन्थन और अमृत-प्राप्ति
  6. [अध्याय 6] सतीका देहत्याग और दक्ष यज्ञ विध्वंस
  7. [अध्याय 7] देवता, दानव, गन्धर्व, नाग और राक्षसोंकी उत्पत्तिका वर्णन
  8. [अध्याय 8] मरुद्गणोंकी उत्पत्ति, भिन्न-भिन्न समुदायके राजाओं तथा चौदह मन्वन्तरोंका वर्णन
  9. [अध्याय 9] पृथुके चरित्र तथा सूर्यवंशका वर्णन
  10. [अध्याय 10] पितरों तथा श्रद्धके विभिन्न अंगका वर्णन
  11. [अध्याय 11] एकोद्दिष्ट आदि श्राद्धोंकी विधि तथा श्राद्धोपयोगी तीर्थोंका वर्णन
  12. [अध्याय 12] चन्द्रमाकी उत्पत्ति तथा यदुवंश एवं सहस्रार्जुनके प्रभावका वर्णन
  13. [अध्याय 13] यदुवंशके अन्तर्गत क्रोष्टु आदिके वंश तथा श्रीकृष्णावतारका वर्णन
  14. [अध्याय 14] पुष्कर तीर्थकी महिमा, वहाँ वास करनेवाले लोगोंके लिये नियम तथा आश्रम धर्मका निरूपण
  15. [अध्याय 15] पुष्कर क्षेत्रमें ब्रह्माजीका यज्ञ और सरस्वतीका प्राकट्य
  16. [अध्याय 16] सरस्वतीके नन्दा नाम पड़नेका इतिहास और उसका माहात्म्य
  17. [अध्याय 17] पुष्करका माहात्य, अगस्त्याश्रम तथा महर्षि अगस्त्य के प्रभावका वर्णन
  18. [अध्याय 18] सप्तर्षि आश्रमके प्रसंगमें सप्तर्षियोंके अलोभका वर्णन तथा ऋषियोंके मुखसे अन्नदान एवं दम आदि धर्मोकी प्रशंसा
  19. [अध्याय 19] नाना प्रकारके व्रत, स्नान और तर्पणकी विधि तथा अन्नादि पर्वतोंके दानकी प्रशंसामें राजा धर्ममूर्तिकी कथा
  20. [अध्याय 20] भीमद्वादशी व्रतका विधान
  21. [अध्याय 21] आदित्य शयन और रोहिणी-चन्द्र-शयन व्रत, तडागकी प्रतिष्ठा, वृक्षारोपणकी विधि तथा सौभाग्य-शयन व्रतका वर्णन
  22. [अध्याय 22] तीर्थमहिमाके प्रसंगमें वामन अवतारकी कथा, भगवान्‌का बाष्कलि दैत्यसे त्रिलोकीके राज्यका अपहरण
  23. [अध्याय 23] सत्संगके प्रभावसे पाँच प्रेतोंका उद्धार और पुष्कर तथा प्राची सरस्वतीका माहात्म्य
  24. [अध्याय 24] मार्कण्डेयजीके दीर्घायु होनेकी कथा और श्रीरामचन्द्रजीका लक्ष्मण और सीताके साथ पुष्करमें जाकर पिताका श्राद्ध करना तथा अजगन्ध शिवकी स्तुति करके लौटना
  25. [अध्याय 25] ब्रह्माजीके यज्ञके ऋत्विजोंका वर्णन, सब देवताओंको ब्रह्माद्वारा वरदानकी प्राप्ति, श्रीविष्णु और श्रीशिवद्वारा ब्रह्माजीकी स्तुति तथा ब्रह्माजीके द्वारा भिन्न-भिन्न तीर्थोंमें अपने नामों और पुष्करकी महिमाका वर्णन
  26. [अध्याय 26] श्रीरामके द्वारा शम्बूकका वध और मरे हुए ब्राह्मण बालकको जीवनकी प्राप्ति
  27. [अध्याय 27] महर्षि अगस्त्यद्वारा राजा श्वेतके उद्धारकी कथा
  28. [अध्याय 28] दण्डकारण्यकी उत्पत्तिका वर्णन
  29. [अध्याय 29] श्रीरामका लंका, रामेश्वर, पुष्कर एवं मथुरा होते हुए गंगातटपर जाकर भगवान् श्रीवामनकी स्थापना करना
  30. [अध्याय 30] भगवान् श्रीनारायणकी महिमा, युगोंका परिचय, प्रलयके जलमें मार्कण्डेयजीको भगवान् के दर्शन तथा भगवान्‌की नाभिसे कमलकी उत्पत्ति
  31. [अध्याय 31] मधु-कैटभका वध तथा सृष्टि-परम्पराका वर्णन
  32. [अध्याय 32] तारकासुरके जन्मकी कथा, तारककी तपस्या, उसके द्वारा देवताओंकी पराजय और ब्रह्माजीका देवताओंको सान्त्वना देना
  33. [अध्याय 33] पार्वतीका जन्म, मदन दहन, पार्वतीकी तपस्या और उनका भगवान शिवके साथ विवाह
  34. [अध्याय 34] गणेश और कार्तिकेयका जन्म तथा कार्तिकेयद्वारा तारकासुरका वध
  35. [अध्याय 35] उत्तम ब्राह्मण और गायत्री मन्त्रकी महिमा
  36. [अध्याय 36] अधम ब्राह्मणोंका वर्णन, पतित विप्रकी कथा और गरुड़जीका चरित्र
  37. [अध्याय 37] ब्राह्मणों के जीविकोपयोगी कर्म और उनका महत्त्व तथा गौओंकी महिमा और गोदानका फल
  38. [अध्याय 38] द्विजोचित आचार, तर्पण तथा शिष्टाचारका वर्णन
  39. [अध्याय 39] पितृभक्ति, पातिव्रत्य, समता, अद्रोह और विष्णुभक्तिरूप पाँच महायज्ञोंके विषयमें ब्राह्मण नरोत्तमकी कथा
  40. [अध्याय 40] पतिव्रता ब्राह्मणीका उपाख्यान, कुलटा स्त्रियोंके सम्बन्धमें उमा-नारद-संवाद, पतिव्रताकी महिमा और कन्यादानका फल
  41. [अध्याय 41] तुलाधारके सत्य और समताकी प्रशंसा, सत्यभाषणकी महिमा, लोभ-त्यागके विषय में एक शूद्रकी कथा और मूक चाण्डाल आदिका परमधामगमन
  42. [अध्याय 42] पोखरे खुदाने, वृक्ष लगाने, पीपलकी पूजा करने, पाँसले (प्याऊ) चलाने, गोचरभूमि छोड़ने, देवालय बनवाने और देवताओंकी पूजा करनेका माहात्म्य
  43. [अध्याय 43] रुद्राक्षकी उत्पत्ति और महिमा तथा आँखलेके फलकी महिमामें प्रेतोंकी कथा और तुलसीदलका माहात्म्य
  44. [अध्याय 44] तुलसी स्तोत्रका वर्णन
  45. [अध्याय 45] श्रीगंगाजीकी महिमा और उनकी उत्पत्ति
  46. [अध्याय 46] गणेशजीकी महिमा और उनकी स्तुति एवं पूजाका फल
  47. [अध्याय 47] संजय व्यास - संवाद - मनुष्ययोनिमें उत्पन्न हुए दैत्य और देवताओंके लक्षण
  48. [अध्याय 48] भगवान् सूर्यका तथा संक्रान्तिमें दानका माहात्म्य
  49. [अध्याय 49] भगवान् सूर्यकी उपासना और उसका फल – भद्रेश्वरकी कथा