नारदजी कहते हैं- युधिष्ठिर! नर्मदाके उत्तर 'तटपर 'पत्रेश्वर' नामसे विख्यात एक तीर्थ है, जिसका विस्तार चार कोसका है। वह सब पापका नाश करनेवाला उत्तम तीर्थ है। राजन्! वहाँ स्नान करके मनुष्य देवताओंके साथ आनन्दका अनुभव करता है। वहाँसे 'गर्जन' नामक तीर्थमें जाना चाहिये, जहाँ [रावणका पुत्र] मेघनाद गया था; उसी तीर्थके प्रभावसे उसको 'इन्द्रजित्' नाम प्राप्त हुआ था वहाँसे 'मेघराव' तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये, जहाँ मेघनादने मेघके समान गर्जना की थी तथा अपने परिकरोंसहित उसने अभीष्ट वर प्राप्त किये थे। राजा युधिष्ठिर! उस स्थानसे 'ब्रह्मावर्त' नामक तीर्थको जाना चाहिये, जहाँ ब्रह्माजी सदा निवास करते हैं। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित होता है।
तदनन्तर अंगारेश्वर तीर्थमें जाकर नियमित आहार ग्रहण करते हुए नियमपूर्वक रहे। ऐसा करनेवाला मनुष्य सब पापोंसे शुद्ध हो रुद्रलोकमें जाता है। वहाँसे परम उत्तम कपिला तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्यको गोदानका फल प्राप्त होता है। तत्पश्चात् कुण्डलेश्वर नामक उत्तम तीर्थमें जाय, जहाँ भगवान् शंकर पार्वतीजीके साथ निवास करते हैं। राजेन्द्र वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य देवताओंके लिये भी अवध्य हो जाता है।वहाँसे पिप्पलेश्वर तीर्थकी यात्रा करे, वह सब पापका नाश करनेवाला तीर्थ है। वहाँ जानेसे रुद्रलोकमें सम्मानपूर्वक निवास प्राप्त होता है। इसके बाद विमलेश्वर तीर्थमें जाय; वह बड़ा निर्मल तीर्थ है; उस तीर्थमें मृत्यु होनेपर रुद्रलोककी प्राप्ति होती है। तदनन्तर पुष्करिणीमें जाकर स्नान करना चाहिये; वहाँ स्नान करनेमात्रसे मनुष्य इन्द्रके आधे सिंहासनका अधिकारी हो जाता है। नर्मदा समस्त सरिताओंमें श्रेष्ठ है, वह स्थावर जंगम समस्त प्राणियोंका उद्धार कर देती है। मुनि भी इस श्रेष्ठ नदी नर्मदाका स्तवन करते हैं। यह समस्त लोकोंका हित करनेकी इच्छासे भगवान् रुद्रके शरीरसे निकली है। यह सदा सब पापका अपहरण करनेवाली और सब लोगोंके द्वारा अभिवन्दित है। देवता, गन्धर्व और अप्सरा- सभी इसकी स्तुति करते रहते हैं- 'पुण्यसलिला नर्मदा ! तुम सब नदियोंमें प्रधान हो, तुम्हें नमस्कार है। सागरगामिनी! तुमको प्रणाम है। ऋषिगणोंसे पूजित तथा भगवान् शंकरके श्रीविग्रहसे प्रकट हुई नर्मदे ! तुम्हें बारंबार नमस्कार हैं। सुमुखि तुम धर्मको धारण करनेवाली हो, तुम्हें प्रणाम है। देवताओंका समुदाय तुम्हारे चरणोंमें मस्तक झुकाता है तुम्हें नमस्कार है। देवि! तुम समस्त पवित्र वस्तुओंको भी परम पावन बनानेवाली हो, सम्पूर्ण संसार तुम्हारी पूजा करता है; तुम्हें बारंबार नमस्कार है।"जो मनुष्य प्रतिदिन शुद्धभावसे इस स्तोत्रका पाठ करता है, वह ब्राह्मण हो तो वेदका विद्वान् होता है, क्षत्रिय हो तो युद्धमें विजय प्राप्त करता है, वैश्य हो। तो [ व्यापारमें] लाभ उठाता है और शूद्र हो तो उत्तम गतिको प्राप्त होता है। साक्षात् भगवान् शंकर भी नर्मदा नदीका नित्य सेवन करते हैं; अतः इस नदीको परम पावन समझना चाहिये। यह ब्रह्महत्याको भी दूर करनेवाली है।
शूलभद्र नामसे विख्यात एक परम पवित्र तीर्थ हैं। वहाँ स्नान करके भगवान् शिवका पूजन करना चाहिये। इससे एक हजार गोदानका फल मिलता है। राजन्! जो उस तीर्थमें महादेवजीको पूजा करते हुए तीन राततक निवास करता है, उसका इस संसारमें फिर जन्म नहीं होता । तदनन्तर क्रमशः भीमेश्वर, परम उत्तम नर्मदेश्वर तथा महापुण्यमय आदित्येश्वरकी यात्रा कानी चाहिये। आदित्येश्वर तीर्थमें स्नान के पश्चात् भी और मधुसे शिवजीका पूजन करना उचित है। मल्लिकेश्वर तीर्थमें जाकर उसकी परिक्रमा करनेसे जन्मका पूर्ण फल प्राप्त हो जाता है। वहाँसे वरुणेश्वरमें तथा वरुणेश्वरसे परम उत्तम नीराजेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये। नीराजेश्वरके पंचायतन (पंचदेवमन्दिर) का दर्शन करनेसे सब तीर्थोंका फल प्राप्त हो जाता है। राजेन्द्र वहाँसे कोटितीर्थकी यात्रा करनी चाहिये; वह तीर्थ सर्वत्र प्रसिद्ध है। वहाँ भगवान् शिवने करोड़ों दानवोंका वध किया था; इसीलिये उन्हें कोटीश्वर कहा गया है। उस तीर्थका दर्शन करनेसे मनुष्य सशरीर स्वर्गको चला जाता है। वहाँ त्रयोदशीको महादेवजीकी उपासना करके स्नान करनेमात्रसे मनुष्यको सम्पूर्ण यज्ञोंका फल प्राप्त हो जाता है। तत्पश्चात् परम शोभायमान और उत्तम तीर्थ अगस्त्येश्वरकी यात्रा करे, वह पापका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नान करके मनुष्यको ब्रह्महत्यासे कृष्णपक्षकी चतुर्दशी तिथिको छुटकारा मिल जाता है। जो कार्तिक मासके उस तीर्थमें इन्द्रियसंयमपूर्वक एकाग्रचित्त हो घृतसे भगवान् शिवको स्नान कराता है, वह इक्कीस पीड़ियोतक शिव-धानकी प्राप्तिसे वंचित नहीं होता जोवहाँ सवारी, जूते, छाता, घृतपूर्ण सुवर्णपात्र तथा भोजन-सामग्री ब्राह्मणोंको दान करता है, उसका वह सारा दान कोटिगुना अधिक फल देनेवाला होता है। राजेन्द्र ! अगस्त्येश्वर तीर्थसे चलकर रविस्तव नामक उत्तम तीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य राजा होता है। नर्मदाके दक्षिण किनारे एक इन्द्र तीर्थ है, जो सर्वत्र प्रसिद्ध है; वहाँ एक रात उपवास करके स्नान करना चाहिये। स्नान के पश्चात् विधिपूर्वक भगवान् जनार्दनका पूजन करे। ऐसा करनेसे उसे एक हजार गोदानका फल मिलता है तथा अन्तमें वह विष्णुलोकको प्राप्त होता है। इसके बाद ऋषितीर्थमें जाना चाहिये; वहाँ स्नान करनेमात्रसे मनुष्य शिवलोक में प्रतिष्ठित होता है। वहीं परम कल्याणमय नारदतीर्थ भी है; वहाँ नहानेमात्रसे एक हजार गोदानका फल मिलता है। तदनन्तर देवतीर्थकी यात्रा करे, जिसे पूर्वकालमें साक्षात् ब्रह्माजीने उत्पन्न किया था; वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकमें सम्मानित होता है।
महाराज! इसके बाद परम उत्तम वामनेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये; वहाँके मन्दिरका दर्शन करनेसे ब्रह्महत्याका पाप छूट जाता है। वहाँसे मनुष्यको निश्चय ही ईशानेश्वरकी यात्रा करनी चाहिये। तत्पश्चात् वटेश्वरमें जाकर भगवान् शिवका दर्शन करनेसे जन्म लेनेका सारा फल मिल जाता है। वहाँसे भीमेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये, वह सब प्रकारकी व्याधियोंका नाश करनेवाला है। उस तीर्थमें स्नानमात्र करके मनुष्य सब दुःखोंसे छुटकारा पा जाता है। तत्पश्चात् वारणेश्वर नामक उत्तम तीर्थकी यात्रा करे, वहाँ स्नान करनेसे भी सब दुःख छूट जाते हैं। उसके बाद सोमतीर्थ में जाकर चन्द्रमाका दर्शन करना चाहिये; वहाँ परम भक्तिपूर्वक स्नान करनेसे मनुष्य तत्काल दिव्य देह धारण करके शिवलोकको चला जाता है और वहाँ भगवान् शिवकी ही भाँति चिरकालतक आनन्दका अनुभव करता है। शिवलोकमें वह साठ हजार वर्षोंतक सम्मानपूर्वक निवास करता है। वहाँसे परम उत्तम पिंगलेश्वर तीर्थको जाय। वहाँ एक दिन रातके उपवाससे त्रिरात्र व्रतका फल मिलता है।राजन्! जो उस तीर्थमें कपिला गौका दान करता है, वह उस गौके तथा उससे होनेवाले गोवंशके शरीर में जितने रोएँ होते हैं, उतने हजार वर्षोंतक रुद्रलोकमें सम्मानपूर्वक रहता है।
तदनन्तर नन्दितीर्थमें जाकर वहाँ स्नान करे; इससे उसपर नन्दीश्वर प्रसन्न होते हैं और वह सोमलोक में सम्मानपूर्वक निवास करता है। इसके बाद व्यासतीर्थकी यात्रा करे व्यासतीर्थ एक तपोवनके रूपमें है। पूर्वकालमें वहाँ महानदी नर्मदाको व्यासजीके भयसे लौटना पड़ा था व्यासजीने हुंकार किया, जिससे नर्मदा उनके स्थानसे दक्षिण दिशाकी ओर होकर बहने लगी। राजन्! जो उस तीर्थकी परिक्रमा करता है, उसपर व्यासजी संतुष्ट होते और उसे मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। जो मनुष्य परम तेजस्वी भगवान् व्यासकी प्रतिमाको वेदीसहित सूत्रसे आवेष्टित करता है, वह शंकरजीकी भाँति अनन्त कालतक शिवलोकमें विहार करता है। इसके बाद एरण्डीतीर्थकी यात्रा करनी चाहिये, वह एक उत्तम तीर्थ है। वहाँ नर्मदा-एरण्डी संगमके जलमें स्नान करनेसे मनुष्य सब पातकोंसे मुक्त हो जाता है। एरण्डी नदी तीनों लोकोंमें विख्यात और सब पापोंका नाश करनेवाली है। आश्विन मासमें शुक्लपक्षकी अष्टमी तिथिको यहाँ पवित्र भावसे स्नान करके उपवास करनेवाला मनुष्य यदि एक ब्राह्मणको भी भोजन करा दे तो उसे एक करोड़ ब्राह्मणोंको भोजन करानेका फल प्राप्त होता है। जो मनुष्य भक्तिभावसे युक्त होकर नर्मदा एरण्डी संगममें स्नान करता है अथवा मस्तकपर नर्मदेश्वरकी मूर्ति रखकर नर्मदा के जलसे मिले हुए एरण्डीके जलमें गोता लगाता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। राजन्! जो उस तीर्थकी परिक्रमा करता है, उसके द्वारा सात द्वीपोंसे युक्त समूची पृथ्वीकी परिक्रमा हो जाती है।
तदनन्तर सुवर्णतिलक नामक तीर्थमें स्नान करके सुवर्ण दान करे। ऐसा करनेवाला पुरुष सोनेके विमानपर बैठकर रुद्रलोक में जाता और सम्मानपूर्वक वहाँ निवास करता है उसके बाद नर्मदा और इनदीके संगममेंजाना चाहिये। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य गणपति पदको प्राप्त होता है। तत्पश्चात् स्कन्दतीर्थकी यात्रा करे। वह सब पापोंका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नान करनेमात्रसे जन्मभरका किया हुआ पाप नष्ट हो जाता है। पुनः वहाँके आंगिरस तीर्थमें जाकर स्नान करे, इससे एक हजार गोदानका फल मिलता है तथा रुद्रलोकमें सम्मान प्राप्त होता है। आंगिरस तीर्थसे लांगल तीर्थमें जाना चाहिये। वह भी सब पापका नाश करनेवाला है। महाराज! वहाँ जाकर यदि मनुष्य स्नान करे तो सात जन्मके किये हुए पापोंसे छुटकारा पा जाता है-इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। वहाँसे वटेश्वर तीर्थ और सर्वतीर्थकी यात्रा करे। सर्वतीर्थ अत्युत्तम तीर्थ है। वहाँ स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है। उसके बाद संगमेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये। वह सब पापका अपहरण करनेवाला उत्तम तीर्थ है। वहाँसे भद्रतीर्थमें जाकर जो मनुष्य दान करता है, उसका वह सारा दान कोटिगुना अधिक हो जाता है। तत्पश्चात् अंगारेश्वर तीर्थमें जाकर स्नान करे। वहीं नहाने मनुष्य स्वलोकमें प्रतिष्ठित होता है, जो अंगारक चतुर्थीको वहाँ स्नान करता है, वह भगवान् विष्णुके शासनमें रहकर अनन्त कालतक आनन्दका अनुभव करता है। अयोनिसंगम तीर्थमें स्नान करनेसे मनुष्य गर्भमें नहीं आता। जो पाण्डवेश्वर तीर्थमें जाकर वहाँ स्नान करता है, वह अनन्त कालतक सुखी तथा देवता और असुरोंके लिये अवध्य होता है। उत्तरायण आनेपर कम्बोजकेश्वर तीर्थमें जाकर स्नान करे। ऐसा करनेसे मनुष्य जिस वस्तुकी इच्छा करता है, वही उसे प्राप्त हो जाती है। तदनन्तर चन्द्रभागामें जाकर स्नान करे। वहाँ नहानेमात्रसे मनुष्य सोमलोकमें प्रतिष्ठित होता है। इसके बाद शक्रतीर्थकी यात्रा करे। वह सर्वत्र विख्यात, देवराज इन्द्रद्वारा सम्मानित तथा सम्पूर्ण देवताओंसे भी अभिवन्दित है। जो मनुष्य वहाँ स्नान करके सुवर्ण दान करता है अथवा नीले रंगका साँड़ छोड़ता है, वह उस साँड़के तथा उससे उत्पन्न होनेवाले गोवंशके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं; उतने हजार वर्षोंतकभगवान् शिवके धाममें निवास करता है। 6। शक्रतीर्थसे कपिलातीर्थकी यात्रा करनी राजेन्द्र ! चाहिये। वह बड़ा ही उत्तम तीर्थ है। जो यहाँ स्नानके पश्चात् कपिला गौका दान करता है, उसे सम्पूर्ण पृथ्वीके दानका फल प्राप्त होता है। नर्मदेश्वर नामक हर्थ सबसे श्रेष्ठ है ऐसा तीर्थ आजतक न हुआ है न होगा। वहाँ स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है तथा मनुष्य इस पृथ्वीपर सर्वत्र प्रसिद्ध राजाके रूपमें जन्म ग्रहण करता है। वह सब प्रकारके शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न तथा समस्त व्याधियोंसे रहित होता है। नर्मदाके उत्तर तटपर एक बहुत ही सुन्दर तथा रमणीय तीर्थ है, उसका नाम है-आदित्यायतन उसे साक्षात् भगवान् शंकरने प्रकट किया है वहाँ स्नान करके यथाशक्ति दिया हुआ दान उस तीर्थके प्रभावसे अक्षय हो जाता है। दरिद्र, रोगी तथा पापी मनुष्य भी वहाँ स्नान करके सब पापोंसे मुक्त होते और भगवान् सूर्यके लोकमें जाते हैं वहाँसे मासेश्वर तीर्थमें जाकर स्नान करना चाहिये वहाँके जलमें डुबकी लगाने मात्रसे स्वर्गलोककी प्राप्ति होती है तथा जबतक चौदह इन्द्रोंकी आयु व्यतीत नहीं होती, तबतक मनुष्य स्वर्गलोक में निवास करता है। तदनन्तर मासेश्वर तीर्थके पास ही जो नागेश्वर नामका तपोवन है, उसमें निवास करे और वहाँ एकाग्रचित्त हो स्नान करके पवित्र हो जाय। जो ऐसा करता है, वह अनन्त कालतक नाग कन्याओंके साथ विहार करता है। तत्पश्चात् कुबेरभवन नामक तीर्थकी यात्रा करे । वहाँसे कालेश्वर नामक उत्तम तीर्थमें जाय, जहाँ महादेवजीने कुबेरको वर देकर संतुष्ट किया था। महाराज यहाँ स्नान करनेसे सब प्रकारकी सम्पत्ति प्राप्त होती है। उसके बाद पश्चिम दिशाकी ओर मारुतालय नामक उत्तम तीर्थकी यात्रा करे और वहाँ स्नान करके पवित्र एवं एकाग्रचित होकर बुद्धिमान् पुरुष यथाशक्ति सुवर्ण और अन्नका दान करे ऐसा करनेसे वह पुष्पक विमानके द्वारा वायुलोकमें जाता है। युधिष्ठिर। माघ मासमें यमतीर्थकी यात्रा करनीचाहिये। माघकृष्ण चतुर्दशीको जो वहाँ स्नान करता और दिनमें उपवास करके रातमें भोजन करता है, उसे गर्भवासकी पीड़ा नहीं भोगनी पड़ती।
तदनन्तर सोमतीर्थ में जाकर स्नान करे। वहाँ गोता लगानेमात्र से मनुष्य सब पापोंसे छुटकारा पा जाता है। महाराज! जो उस तीर्थमें चान्द्रायण व्रत करता है, वह सब पापोंसे शुद्ध होकर सोमलोकमें जाता है। सोमतीर्थसे स्तम्भतीर्थमें जाकर स्नान करे। ऐसा करनेसे मनुष्य सोमलोकमें प्रतिष्ठित होता है। इसके बाद विष्णुतीर्थकी यात्रा करे। वह बहुत ही उत्तम तीर्थ है। और योधनीपुरके नामसे विख्यात है। वहाँ भगवान् वासुदेवने करोड़ों असुरोंके साथ युद्ध किया था। युद्धभूमिमें उस तीर्थकी उत्पत्ति हुई है। वहाँ स्नान करनेसे भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं। जो वहाँ एक दिन-रात उपवास करता है, उसका ब्रह्महत्या जैसा पाप भी दूर हो जाता है। तत्पश्चात् तापसेश्वर नामक उत्तम तीर्थमें जाना चाहिये; वह अमोहक तीर्थके नामसे विख्यात है। वहाँ पितरोंका तर्पण तथा पूर्णिमा और अमावास्याको विधिपूर्वक श्राद्ध करना चाहिये। वहाँ स्नानके पश्चात् पितरोंको पिण्डदान करना आवश्यक है। उस तीर्थमें जलके भीतर हाथीके समान आकारवाली बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं। उनके ऊपर विशेषतः वैशाख मासमें पिण्डदान करना चाहिये। ऐसा करनेसे जबतक यह पृथ्वी कायम रहती है, तबतक पितरोंको पूर्ण तृप्ति बनी रहती है। महाराज ! वहाँसे सिद्धेश्वर नामक उत्तम तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य गणेशजीके निकट जाता है। उस तीर्थमें जहाँ जनार्दन नामसे प्रसिद्ध लिंग है, वहाँ स्नान करनेसे विष्णुलोक में प्रतिष्ठा होती है। सिद्धेश्वरमें अन्धोन तीर्थके समीप स्नान, दान, ब्राह्मण भोजन तथा पिण्डदान करना उचित है। उसके आधे योजनके भीतर जिसकी मृत्यु होती है, उसे मुक्ति प्राप्त होती है। अन्धोनमें विधिपूर्वक विधिपूर्वक पिण्डदान देनेसे पितरोंको तबतक तृप्ति बनी रहती है, जबतक चन्द्रमा और सूर्यकी सत्ता है। उत्तरायण प्राप्तहोनेपर जो स्त्री या पुरुष वहाँ स्नान करते और पवित्रभावसे भगवान् सिद्धेश्वरके मन्दिरमें रहकर प्रातःकाल उनकी पूजा करते हैं, उन्हें सत्पुरुषोंकी गति प्राप्त होती है। वैसी गति सम्पूर्ण महायज्ञोंके अनुष्ठानसे भी दुर्लभ है।
नारदजी कहते हैं—युधिष्ठिर! तदनन्तर भक्तिपूर्वक भार्गवेश्वर तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। पाण्डुनन्दन ! अब शुक्लतीर्थकी उत्पत्तिका प्रसंग श्रवण करो। एक समयकी बात है, हिमालयके रमणीय शिखरपर भगवान् शंकर अपनी पत्नी उमा तथा पार्षदगणोंके साथ बैठे थे। उस समय मार्कण्डेयजीने उनसे -'देवदेव पूछा - " महादेव! मैं संसारके भयसे डरा हुआ हूँ। आप मुझे कोई ऐसा उपाय बताइये, जिससे सुख प्राप्त हो सके। महेश्वर ! जो तीर्थ सम्पूर्ण तीर्थोंमें श्रेष्ठ हो, उसका मुझे परिचय दीजिये ।
भगवान् शिव बोले- ब्रह्मन् ! तुम महान् पण्डित और सम्पूर्ण शास्त्रोंमें कुशल हो; मेरी बात सुनो। दिनमें या रातमें- किसी भी समय शुक्लतीर्थका सेवन किया जाय तो वह महान फलदायक होता है। उसके दर्शन और स्पर्शसे तथा वहाँ स्नान, ध्यान, तपस्या, होम एवं उपवास करनेसे शुक्लतीर्थ महान् फलका साधक होता है। नर्मदा नदीके तटपर स्थित शुक्लतीर्थ महान् पुण्यदायक है। चाणिक्य नामके राजर्षिने वहीं सिद्धि प्राप्त की थी। यह क्षेत्र चार कोसके घेरेमें प्रकट हुआ है। शुक्लतीर्थ परम पुण्यमय तथा सब पापका नाशक है। वहाँके वृक्षोंकी शिखाका भी दर्शन हो जाय तो ब्रह्महत्या दूर हो जाती है। मुनिश्रेष्ठ! इसीलिये मैं यहाँ निवास करता हूँ। परम निर्मल वैशाख मासके कृष्ण पक्षकी चतुर्दशीको तो मैं कैलाससे भी निकलकर यहाँ आ जाता हूँ। जैसे धोबीके द्वारा जलसे धोया हुआ वस्त्र सफेद हो जाता है, उसी प्रकार शुक्लतीर्थ भी जन्मभरके संचित पापको दूर कर देता है। मुनिवर मार्कण्डेय! वहाँका स्नान और दान अत्यन्त पुण्यदायक है। शुक्लतीर्थसे बढ़कर दूसरा कोई तीर्थ न तो हुआ है और न होगा ही ।मनुष्य अपनी पूर्वावस्थायें जो-जो पाप किये होता है, उन्हें वह शुक्लतीर्थमें एक दिन रातके उपवाससे नष्ट कर डालता है। वहाँ मेरे निमित्त दान देनेसे जो होता है, वह सैकड़ों यज्ञोंके अनुष्ठानसे भी नहीं हो सकता। जो मनुष्य कार्तिक मासके कृष्णपक्षकी चतुर्दशीको वहाँ उपवास करके घीसे मुझे स्नान कराता है, यह अपनी इक्कीस पीढ़ियोंके साथ मेरे लोकमें रहकर कभी वहाँसे भ्रष्ट नहीं होता। शुक्लतीर्थ अत्यन्त श्रेष्ठ है। ऋषि और सिद्धगण उसका सेवन करते हैं। वहाँ स्नान करनेसे पुनर्जन्म नहीं होता जिस दिन उत्तरायण या दक्षिणायनका प्रारम्भ हो, चतुर्दशी हो, संक्रान्ति हो अथवा विषुव नामक योग हो, उस दिन ने स्नान करके उपवासपूर्वक मनको वशमें रखकर समाहितचित्त हो यथाशक्ति वहाँ दान दे तो भगवान् विष्णु तथा हम प्रसन्न होते हैं। शुक्लतीर्थके प्रभावसे वह सब दान अक्षय पुण्यका देनेवाला होता है। जो अनाथ, दुर्दशाग्रस्त अथवा सनाथ ब्राह्मणका भी उस तीर्थमें विवाह कराता है, उस ब्राह्मणके तथा उसकी संतानोंके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, उतने हजार तक वह मेरे लोकमें प्रतिष्ठित होता है।
नारदजी कहते हैं-राजा युधिष्ठिर। शुक्लतीर्थसे गोतीर्थमें जाना चाहिये। उसका दर्शन करने मात्रसे मनुष्य पापरहित हो जाता है। वहाँसे कपिलातीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। वह एक उत्तम तीर्थ है। राजन्! वहाँ स्नान करके मानव सहस्र गो-दानका फल प्राप्त करता है। ज्येष्ठ मास आनेपर विशेषतः चतुर्दशी तिथिको उस तीर्थमें उपवास करके जो मनुष्य भक्तिपूर्वक मौका दीपक जलाता भृतसे भगवान् शंकरको स्नान कराता, घीसहित श्रीफलका दान करता तथा अन्तर्गे प्रदक्षिणा करके घण्टा और आभूषणोंके सहित कपिला गौको दानमें देता है, वह साक्षात् भगवान् शिवके समान होता है तथा इस लोकमें पुनः जन्म नहीं लेता। राजेन्द्र वहाँसे परम उत्तम ऋषितीर्थकी यात्रा करे, उस तीर्थके प्रभावसे द्विज पापमुक्त हो जाता है।
अपितीर्थसे गणेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये। वह बहुतउत्तम तीर्थ है। श्रावण मासके कृष्णपक्षको चतुर्दशीको वहीं स्नान करनेमात्रसे मनुष्य रुद्रलोकमें सम्मानित होता है। वहीं पितरोंका तर्पण करनेपर तीनों ऋणोंसे छुटकारा मिल जाता है। गयेश्वरके पास ही गंगावदन नामक उत्तम तीर्थ है; वहाँ निष्काम या सकामभावसे भी स्नान करनेवाला मानव जन्मभरके पापोंसे मुक्त हो जाता है इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। पर्वके दिन वहाँ सदा स्नान करना चाहिये। उस तीर्थमें पितरोंका तर्पण करनेपर मनुष्य तीनों ऋणोंसे मुक्त होता है। उसके पश्चिम और थोड़ी ही दूरपर दशाश्वमेधिक तीर्थ है: वहाँ भादोंके महीनेमें एक रात उपवास करके जो अमावास्याको स्नान करता है, वह भगवान् शंकरके धामको जाता है। वहाँ भी पर्वके दिनोंमें सदा ही स्नान करना चाहिये। उस तीर्थमें पितरोंका तर्पण करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है।
दशाश्वमेधसे पश्चिम भृगुतीर्थ है, जहाँ ब्राह्मणश्रेष्ठ भृगुने एक हजार दिव्य वर्षोंतक भगवान् शंकरकी उपासना की थी। तभीसे ब्रह्मा आदि सम्पूर्ण देवता और किन्नर भृगुतीर्थका सेवन करते हैं। यह वही स्थान है, जहाँ भगवान् महेश्वर भृगुजीपर प्रसन्न हुए थे। उस तीर्थका दर्शन होनेपर तत्काल पापोंसे छुटकारा मिल जाता है। जिन प्राणियोंकी वहीं मृत्यु होती है, उन्हें गुद्धातिगुह्य गतिकी प्राप्ति होती है-इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। यह क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत तथा सम्पूर्ण पापका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नान करके मनुष्य स्वर्गको जाते हैं तथा जिनकी वहाँ मृत्यु होती है, ये फिर संसारमें जन्म नहीं लेते मुक्त हो जाते हैं। उस तीर्थमें अन्न, सुवर्ण, जूता और यथाशक्ति भोजन देना चाहिये। इसका पुण्य अक्षय होता है जो सूर्यग्रहणके समय वहाँ स्नान करके इच्छानुसार दान करता है, उसके तीर्थस्नान और दानका पुण्य अक्षय होता है। जो मनुष्य एक बार भृगुतीर्थका माहात्म्य श्रवण कर लेता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर रुद्रलोक में जाता है। राजेन्द्र ! वहाँसे परम उत्तम गौतमेश्वर तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। जो मनुष्य वहाँ नहाकर उपवास करता है, वह सुवर्णमय विमानपरबैठकर ब्रह्मलोकमें जाता है। तदनन्तर धौतपाप नामक तीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ स्नान करनेसे ब्रह्महत्या दूर होती है। इसके बाद हिरण्यद्वीप नामसे विख्यात तीर्थ में जाय वह सब पापका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य धनी तथा रूपवान् होता है। वहाँसे कनखलकी यात्रा करे। वह बहुत बड़ा तीर्थ है। वहाँ गरुड़ने तपस्या की थी। जो मनुष्य वहाँ स्नान करता है, उसकी रुद्रलोकमें प्रतिष्ठा होती है। तदनन्तर सिद्धजनार्दन तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ परमेश्वर श्रीविष्णु वाराहरूप धारण करके प्रकट हुए थे। इसीलिये उसे वाराहतीर्थ भी कहते हैं। उस तीर्थमें विशेषतः द्वादशीको स्नान करनेसे विष्णुलोकको प्राप्ति होती है।
राजेन्द्र ! तदनन्तर देवतीर्थमें जाना चाहिये, जो सम्पूर्ण देवताओंद्वारा अभिवन्दित है वहाँ स्नान करके मनुष्य देवताओंके साथ आनन्द भोगता है। तत्पश्चात् शिखितीर्थकी यात्रा करे, वह बहुत ही उत्तम तीर्थ है। वहाँ जो कुछ दान किया जाता है, वह सब का सब कोटिगुना अधिक फल देनेवाला होता है जो कृष्णपक्ष अमावास्याको वहाँ स्नान करता और एक ब्राह्मणको भी भोजन कराता है, उसे कोटि ब्राह्मणोंके भोजन करानेका फल प्राप्त होता है।
राजा युधिष्ठिर। तदनन्तर नर्मदेश्वर तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। वह भी उत्तम तीर्थ है। वहाँ स्नान करके मनुष्य स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। इसके बाद पितामह - तीर्थमें जाना चाहिये, जिसे पूर्वकालमें साक्षात् ब्रह्माजीने उत्पन्न किया था। मनुष्यको उचित है कि वहाँ स्नान करके भक्तिपूर्वक पितरोंको पिण्डदान दे तथा तिल और कुशमिश्रित जलसे पितरोंका तर्पण करे। उस तीर्थके प्रभावसे वह सब कुछ अक्षय हो जाता है। जो सावित्री - तीर्थमें जाकर स्नान करता है, वह सब पापको धोकर ब्रह्मलोक में सम्मानित होता है। वहाँसे मानस नामक उत्तम तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। उस तीर्थमें स्नान करके मनुष्य रुद्रलोकमें प्रतिष्ठित होता है। तत्पश्चात् क्रतुतीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। वह बहुत ही उत्तम, तीनों लोकोंमें विख्यात और सम्पूर्ण पापका नाशकरनेवाला तीर्थ है। इसके बाद स्वर्गबिन्दु नामसे प्रसिद्ध तीर्थमें जाना उचित है। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्यको कभी दुर्गति नहीं देखनी पड़ती। वहाँसे भारभूत नामक तीर्थकी यात्रा करे और वहाँ पहुँचकर उपवासपूर्वक भगवान् विरूपाक्षकी पूजा करे। ऐसा करनेसे वह रुद्रलोकमें सम्मानित होता है। राजन्! जो उस तीर्थमें उपवास करता है, वह पुनः गर्भमें नहीं आता । वहाँसे परम उत्तम अटवी तीर्थमें जाय। वहाँ स्नान करके मनुष्य इन्द्रका आधा सिंहासन प्राप्त करता है। तदनन्तर सब पापका नाश करनेवाले शृंगतीर्थकी यात्रा करे। वहाँ स्नान करनेमात्रसे निश्चय ही गणेशपदकी प्राप्ति होती है। पश्चिम समुद्रके साथ जो नर्मदाका संगम है, वह तो मुक्तिका दरवाजा ही खोल देता है। वहाँ देवता, गन्धर्व, ऋषि, सिद्ध और चारण तीनों सन्ध्याओंके समय उपस्थित होकर देवताओंके स्वामी भगवान् विमलेश्वरकी आराधना करते हैं। विमलेश्वरसे बढ़कर दूसरा कोई तीर्थ न हुआ है न होगा। जो लोग वहाँ उपवास करके विमलेश्वरका दर्शन करते हैं, वे सब पापोंसे शुद्ध हो रुद्रलोकमें जाते हैं।
राजेन्द्र ! वहाँसे परम उत्तम केशिनी तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। जो मनुष्य वहाँ स्नान करके एक रात उपवास करता है तथा मन और इन्द्रियोंको वशमें करकेआहारपर भी संयम रखता है, वह उस तीर्थके प्रभावसे ब्रह्महत्यासे मुक्त हो जाता है। जो सागरेश्वरका दर्शन करता है, उसे समस्त तीर्थोंमें स्नान करनेका फल मिल जाता है। केशिनी - तीर्थसे एक योजनके भीतर समुद्रके भँवरमें साक्षात् भगवान् शिव विराजमान हैं। उनको देखनेसे सब तीर्थोंके दर्शनका फल प्राप्त हो जाता है। तथा दर्शन करनेवाला पुरुष सब पापोंसे मुक्त हो रुद्रलोकमें जाता है। महाराज! अमरकण्टकसे लेकर नर्मदा और समुद्रके संगमतक जितनी दूरी है, उसके भीतर दस करोड़ तीर्थ विद्यमान हैं। एक तीर्थसे दूसरे तीर्थको जानेके जो मार्ग हैं, उनका करोड़ों ऋषियोंने सेवन किया है। अग्निहोत्री, दिव्यज्ञानसम्पन्न तथा ज्ञानी - सब प्रकारके मनुष्योंने तीर्थयात्राएँ की हैं। इससे तीर्थयात्रा मनोवांछित फलको देनेवाली मानी गयी है। पाण्डुनन्दन ! जो पुरुष प्रतिदिन भक्तिपूर्वक इस अध्यायका पाठ या श्रवण करता है, वह समस्त तीर्थोंमें स्नानके पुण्यका भागी होता है। साथ ही नर्मदा उसके ऊपर सदा प्रसन्न रहती है। इतना ही नहीं, भगवान् रुद्र तथा महामुनि मार्कण्डेयजी भी उसके ऊपर प्रसन्न होते हैं। जो तीनों सन्ध्याओंके समय इस प्रसंगका पाठ करता है, उसे कभी नरकका दर्शन नहीं होता तथा वह किसी कुत्सित योनिमें भी नहीं पड़ता ।