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पद्म पुराण (पद्मपुराण)

Padma Purana,Padama Purana ()

खण्ड 5, अध्याय 252 - Khand 5, Adhyaya 252

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परशुरामावतारकी कथा

श्रीमहादेवजी कहते हैं- पार्वती भृगुवंशमें द्विजवर जमदग्नि अच्छे महात्मा हो गये हैं। ये सम्पूर्ण वेद वेदांगों के पारगामी विद्वान् और महान् तपस्वी थे। धर्मात्मा जमदग्निने इन्द्रको प्रसन्न करनेके लिये गंगाके किनारे एक हजार वर्षतक भारी तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर देवराज इन्द्र ने कहा- 'विप्रवर! तुम्हारे मनमें जैसी इच्छा हो, उसके अनुसार वर मांगो।'

जमदग्नि बोले- देव! मुझे सदा सब कामनाओंको पूर्ण करनेवाली सुरभि गौ प्रदान कीजिये।

तब देवराज इन्द्रने प्रसन्नतापूर्वक उन्हें सब कामनाओंको पूर्ण करनेवाली सुरभि गौ प्रदान की। सुरभिको पाकर महातपस्वी जमदग्नि दूसरे इन्द्रकी भाँति महान् ऐश्वर्यसे सम्पन्न होकर रहने लगे। उन्होंने राजा रेणुककी सुन्दरी कन्या रेणुकाके साथ विधिपूर्वक विवाह किया। तत्पश्चात् परम धार्मिक जमदग्निने पुत्रकी कामनासे पुत्रेष्टि नामक यज्ञ किया और उस यज्ञके द्वारा देवराज इन्द्रको सन्तुष्ट किया। सन्तुष्ट होनेपर शचीपति इन्द्रने जमदग्निको एक महाबाहु, महातेजस्वी और महाबलवान् पुत्र होनेका वरदान दिया। समय आनेपर विप्रवर जमदग्निने रेणुकाके गर्भसे एक महापराक्रमीऔर बलवान् पुत्र उत्पन्न किया, जो भगवान् विष्णुके अंशके अंशसे प्रकट हुआ था। उसमें सब प्रकारके शुभ लक्षण मौजूद थे। पितामह भृगुने आकर उस महापराक्रमी पुत्रका नामकरण-संस्कार किया और बड़ी प्रसन्नताके साथ उसका नाम 'राम' रखा। जमदग्निका पुत्र होनेके कारण वह जामदग्न्य भी कहलाया । भार्गववंशी बालक राम धीरे-धीरे बड़े हुए। उपनयन संस्कारके पश्चात् उन्होंने सब विद्याओंमें प्रवीणता प्राप्त कर ली। तदनन्तर विप्रवर राम शालग्राम पर्वतके शिखरपर तपस्या करनेके लिये गये। वहाँ उन्हें परमतेजस्वी ब्रह्मर्षि कश्यपजीका दर्शन हुआ। रामने बड़े हर्षके साथ उनका पूजन किया। तब उन्होंने रामको विधिपूर्वक अविनाशी वैष्णव मन्त्रका उपदेश दिया। महात्मा कश्यपसे मन्त्रका उपदेश पाकर राम विधिपूर्वक लक्ष्मीपति श्रीविष्णुकी आराधना करने लगे। उन्होंने दिन-रात षडक्षर महामन्त्रका जप करते हुए सर्वव्यापी कमलनयन श्रीहरिके ध्यानपूर्वक अनेक वर्षोंतक तपस्या की। महातपस्वी ब्रह्मर्षि जमदग्नि जितेन्द्रिय एवं मौनभावसे तप करते हुए गंगाके सुन्दर तटपर निवास करते थे। उन्होंने यज्ञ, दान आदि महान् धर्मोका विधिपूर्वक अनुष्ठान किया। इन्द्रकी दी हुईगौके प्रसादसे उनके पास सब सम्पतियाँ भरी-पूरी रहती थीं।

एक समयकी बात है-हैहयराज अर्जुन सब राष्ट्रोंको जीतकर अपनी सारी सेनाके साथ जमदग्नि मुनिके आश्रमपर आये। राजाने महाभाग मुनिवरका दर्शन करके उन्हें प्रणाम किया, उनकी कुशल पूछी और उन्हें भाँति-भाँति के वस्त्र तथा आभूषण दान किये मुनिने भी अपने घरपर आये हुए राजाका मधुपर्ककी विधिसे प्रेमपूर्वक सत्कार किया तथा शक्तिशालिनी सुरभि गौके प्रभावसे सेनासहित राजाको उत्तम भोजन दिया। राजाको उस गौकी शक्ति देखकर बड़ा कौतूहल हुआ और उन्होंने महर्षि जमदग्निसे उस गौको माँगा।

जमदग्नि मुनिके अस्वीकार करनेपर हैहयराजने उस सबला गौको बलपूर्वक ले लिया। तब महाभागा सबलाने क्रोधमें भरकर अपने सींगोंसे राजाके सब सैनिकोंको मार डाला। तदनन्तर स्वयं अन्तर्धान होकर क्षणभरमें इन्द्रके पास जा पहुँची। इधर अपनी सेनाका विनाश देखकर राजा अर्जुन क्रोधसे पागल हो उठा। उसने मुक्कोंसे मार-मारकर मुनि जमदग्निका वध कर डाला और लौटकर अपने नगरमें प्रवेश किया।

उधर रामने देवदेवेश्वर भगवान् विष्णुकी आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया। भगवान्‌ने अपने परशु, वैष्णव महाधनुष और अनेक दिव्यास्त्र प्रदान करके उनसे कहा-'मैं तुम्हें अपनी उत्तम शक्ति प्रदान करता हूँ। मेरी शक्तिसे आविष्ट होकर तुम पृथ्वीका भार उतारने और देवताओंका हित करनेके लिये दुष्ट राजाओंका वध करो। इस समय पृथ्वीपर बहुत-से मदोन्मत्त राजा एकत्र हो रहे हैं। उन्हें मारकर समुद्रपर्यन्त सारी पृथ्वी अपने अधिकारमें कर लो और महान् पराक्रमसे सम्पन्नहो धर्मपूर्वक इसका पालन करो। फिर समय आनेपर मेरी ही कृपासे मेरे परमपदको प्राप्त होओगे।' भगवान् विष्णुके अन्तर्धान होनेपर राम भी तुरंत अपने पिताके आश्रमको लौट गये। वहाँ जब उन्होंने अपने पिताको मारा गया देखा तो वे क्रोधसे मूच्छित हो गये और इस पृथ्वीको क्षत्रियविहीन करनेकी इच्छासे हैहयराजके नगरमें जा पहुँचे। वहाँ राजाको ललकारकर महायुद्धमें प्रवृत्त हुए और उसकी सेनाका संहार करके अन्तमें उन्होंने उसको भी मार डाला।

इस प्रकार सहस्रबाहु अर्जुनका वध करनेके अनन्तर प्रतापी परशुरामजीने कुपित होकर सम्पूर्ण राजाओंका संहार कर डाला। केवल राजा इक्ष्वाकुके महान् कुलपर उन्होंने हाथ नहीं उठाया। एक तो वह नानाका कुल था, दूसरे माता रेणुकाने इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रियोंको मारनेकी मनाही कर दी थी। इसलिये उक्त वंशकी उन्होंने रक्षा की।

इस प्रकार क्षत्रियोंका संहार करनेके पश्चात् प्रतापी परशुरामजीने अश्वमेध नामक महायज्ञका विधिवत् अनुष्ठान किया और उसमें श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको सात द्वीपोंसहित पृथ्वी दान कर दी। तदनन्तर वे भगवान् नर-नारायणके आश्रममें तपस्या करनेके लिये चले गये। पार्वती ! यह मैंने तुमसे परशुरामजीके चरित्रका वर्णन किया है। वे भगवान् विष्णुकी शक्तिके आवेशावतार थे। इसीलिये शक्तिके आवेशसे उन्होंने जो कुछ किया, उसकी उपासना नहीं करनी चाहिये। भगवद्भक्त महात्माओं तथा श्रेष्ठ ब्राह्मणोंके लिये भगवान् श्रीराम तथा श्रीकृष्णके अवतार ही उपासना करनेयोग्य हैं; क्योंकि वे अपने ईश्वरीय गुणोंसे परिपूर्ण हैं और उपासना करनेपर मनुष्योंको मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं।

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पद्म पुराण
Index


  1. [अध्याय 148] नारद-महादेव-संवाद- बदरिकाश्रम तथा नारायणकी महिमा
  2. [अध्याय 149] गंगावतरणकी संक्षिप्त कथा और हरिद्वारका माहात्म्य
  3. [अध्याय 150] गंगाकी महिमा, श्रीविष्णु, यमुना, गंगा, प्रयाग, काशी, गया एवं गदाधरकी स्तुति
  4. [अध्याय 151] तुलसी, शालग्राम तथा प्रयागतीर्थका माहात्म्य
  5. [अध्याय 152] त्रिरात्र तुलसीव्रतकी विधि और महिमा
  6. [अध्याय 153] अन्नदान, जलदान, तडाग निर्माण, वृक्षारोपण तथा सत्यभाषण आदिकी महिमा
  7. [अध्याय 154] मन्दिरमें पुराणकी कथा कराने और सुपात्रको दान देनेसे होनेवाली सद्गतिके विषयमें एक आख्यान तथा गोपीचन्दनके तिलककी महिमा
  8. [अध्याय 155] संवत्सरदीप व्रतकी विधि और महिमा
  9. [अध्याय 156] जयन्ती संज्ञावाली जन्माष्टमीके व्रत तथा विविध प्रकारके दान आदिकी महिमा
  10. [अध्याय 157] महाराज दशरथका शनिको संतुष्ट करके लोकका कल्याण करना
  11. [अध्याय 158] त्रिस्पृशाव्रतकी विधि और महिमा
  12. [अध्याय 159] पक्षवर्धिनी एकादशी तथा जागरणका माहात्म्य
  13. [अध्याय 160] एकादशीके जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप, एकादशीकी विधि, उत्पत्ति कथा और महिमाका वर्णन
  14. [अध्याय 161] मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी 'मोक्षा' एकादशीका माहात्म्य
  15. [अध्याय 162] पौष मासकी 'सफला' और 'पुत्रदा' नामक एकादशीका माहात्म्य
  16. [अध्याय 163] माघ मासकी पतिला' और 'जया' एकादशीका माहात्म्य
  17. [अध्याय 164] फाल्गुन मासकी 'विजया' तथा 'आमलकी एकादशीका माहात्म्य
  18. [अध्याय 165] चैत्र मासकी 'पापमोचनी' तथा 'कामदा एकादशीका माहात्म्य
  19. [अध्याय 166] वैशाख मासकी 'वरूथिनी' और 'मोहिनी' एकादशीका माहात्म्य
  20. [अध्याय 167] ज्येष्ठ मासकी' अपरा' तथा 'निर्जला' एकादशीका माहात्म्य
  21. [अध्याय 168] आषाढ़ मासकी 'योगिनी' और 'शयनी एकादशीका माहात्म्य
  22. [अध्याय 169] श्रावणमासकी 'कामिका' और 'पुत्रदा एकादशीका माहात्म्य
  23. [अध्याय 170] भाद्रपद मासकी 'अजा' और 'पद्मा' एकादशीका माहात्म्य
  24. [अध्याय 171] आश्विन मासकी 'इन्दिरा' और 'पापांकुशा एकादशीका माहात्म्य
  25. [अध्याय 172] कार्तिक मासकी 'रमा' और 'प्रबोधिनी' एकादशीका माहात्म्य
  26. [अध्याय 173] पुरुषोत्तम मासकी 'कमला' और 'कामदा एकादशीका माहात्य
  27. [अध्याय 174] चातुर्मास्य व्रतकी विधि और उद्यापन
  28. [अध्याय 175] यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माहात्म्य
  29. [अध्याय 176] वैष्णवोंके लक्षण और महिमा तथा श्रवणद्वादशी व्रतकी विधि और माहात्म्य-कथा
  30. [अध्याय 177] नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन
  31. [अध्याय 178] गृहस्थ आश्रमकी प्रशंसा तथा दान धर्मकी महिमा
  32. [अध्याय 179] गण्डकी नदीका माहात्म्य तथा अभ्युदय एवं और्ध्वदेहिक नामक स्तोत्रका वर्णन
  33. [अध्याय 180] ऋषिपंचमी - व्रतकी कथा, विधि और महिमा
  34. [अध्याय 181] न्याससहित अपामार्जन नामक स्तोत्र और उसकी महिमा
  35. [अध्याय 182] श्रीविष्णुकी महिमा - भक्तप्रवर पुण्डरीककी कथा
  36. [अध्याय 183] श्रीगंगाजीकी महिमा, वैष्णव पुरुषोंके लक्षण तथा श्रीविष्णु प्रतिमाके पूजनका माहात्म्य
  37. [अध्याय 184] चैत्र और वैशाख मासके विशेष उत्सवका वर्णन, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़में जलस्थ श्रीहरिके पूजनका महत्त्व
  38. [अध्याय 185] पवित्रारोपणकी विधि, महिमा तथा भिन्न-भिन्न मासमें श्रीहरिकी पूजामें काम आनेवाले विविध पुष्पोंका वर्णन
  39. [अध्याय 186] कार्तिक-व्रतका माहात्म्य - गुणवतीको कार्तिक व्रतके पुण्यसे भगवान्‌की प्राप्ति
  40. [अध्याय 187] कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसंग शंखासुरके वध, वेदोंके उद्धार तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
  41. [अध्याय 188] कार्तिक मासमें स्नान और पूजनकी विधि
  42. [अध्याय 189] कार्तिक व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि
  43. [अध्याय 190] कार्तिक- व्रतके पुण्य-दानसे एक राक्षसीका उद्धार
  44. [अध्याय 191] कार्तिक-माहात्म्यके प्रसंगमें राजा चोल और विष्णुदास की कथा
  45. [अध्याय 192] पुण्यात्माओंके संसर्गसे पुण्यकी प्राप्तिके प्रसंगमें धनेश्वर ब्राह्मणकी कथा
  46. [अध्याय 193] अशक्तावस्थामें कार्तिक व्रतके निर्वाहका उपाय
  47. [अध्याय 194] कार्तिक मासका माहात्म्य और उसमें पालन करनेयोग्य नियम
  48. [अध्याय 195] प्रसंगतः माघस्नानकी महिमा, शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास- व्रतकी विधिका वर्णन
  49. [अध्याय 196] शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य
  50. [अध्याय 197] भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली कृत्य, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन
  51. [अध्याय 198] प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपंचक व्रतकी विधि एवं महिमा
  52. [अध्याय 199] भक्तिका स्वरूप, शालग्रामशिलाकी महिमा तथा वैष्णवपुरुषोंका माहात्म्य
  53. [अध्याय 200] भगवत्स्मरणका प्रकार, भक्तिकी महत्ता, भगवत्तत्त्वका ज्ञान, प्रारब्धकर्मकी प्रबलता तथा भक्तियोगका उत्कर्ष
  54. [अध्याय 201] पुष्कर आदि तीर्थोका वर्णन
  55. [अध्याय 202] वेत्रवती और साभ्रमती (साबरमती) नदीका माहात्म्य
  56. [अध्याय 203] साभ्रमती नदीके अवान्तर तीर्थोका वर्णन
  57. [अध्याय 204] अग्नितीर्थ, हिरण्यासंगमतीर्थ, धर्मतीर्थ आदिकी महिमा
  58. [अध्याय 205] माभ्रमती-तटके कपीश्वर, एकधार, सप्तधार और ब्रह्मवल्ली आदि तीर्थोकी महिमाका वर्णन
  59. [अध्याय 206] साभ्रमती-तटके बालार्क, दुर्धर्षेश्वर तथा खड्गधार आदि तीर्थोंकी महिमाका वर्णन
  60. [अध्याय 207] वार्त्रघ्नी आदि तीर्थोकी महिमा
  61. [अध्याय 208] श्रीनृसिंहचतुर्दशी के व्रत तथा श्रीनृसिंहतीर्थकी महिमा
  62. [अध्याय 209] श्रीमद्भगवद्गीताके पहले अध्यायका माहात्म्य
  63. [अध्याय 210] श्रीमद्भगवद्गीताके दूसरे अध्यायका माहात्म्य
  64. [अध्याय 211] श्रीमद्भगवद्गीताके तीसरे अध्यायका माहात्म्य
  65. [अध्याय 212] श्रीमद्भगवद्गीताके चौथे अध्यायका माहात्म्य
  66. [अध्याय 213] श्रीमद्भगवद्गीताके पाँचवें अध्यायका माहात्म्य
  67. [अध्याय 214] श्रीमद्भगवद्गीताके छठे अध्यायका माहात्म्य
  68. [अध्याय 215] श्रीमद्भगवद्गीताके सातवें तथा आठवें अध्यायोंका माहात्म्य
  69. [अध्याय 216] श्रीमद्भगवद्गीताके नवें और दसवें अध्यायोंका माहात्म्य
  70. [अध्याय 217] श्रीमद्भगवद्गीताके ग्यारहवें अध्यायका माहात्म्य
  71. [अध्याय 218] श्रीमद्भगवद्गीताके बारहवें अध्यायका माहात्म्य
  72. [अध्याय 219] श्रीमद्भगवद्गीताके तेरहवें और चौदहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  73. [अध्याय 220] श्रीमद्भगवद्गीताके पंद्रहवें तथा सोलहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  74. [अध्याय 221] श्रीमद्भगवद्गीताके सत्रहवें और अठारहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  75. [अध्याय 222] देवर्षि नारदकी सनकादिसे भेंट तथा नारदजीके द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्यके वृत्तान्तका वर्णन
  76. [अध्याय 223] भक्तिका कष्ट दूर करनेके लिये नारदजीका उद्योग और सनकादिके द्वारा उन्हें साधनकी प्राप्ति
  77. [अध्याय 224] सनकादिद्वारा श्रीमद्भागवतकी महिमाका वर्णन तथा कथा-रससे पुष्ट होकर भक्ति, ज्ञान और वैराग्यका प्रकट होना
  78. [अध्याय 225] कथामें भगवान्का प्रादुर्भाव, आत्मदेव ब्राह्मणकी कथा - धुन्धुकारी और गोकर्णकी उत्पत्ति तथा आत्मदेवका वनगमन
  79. [अध्याय 226] गोकर्णजीकी भागवत कथासे धुन्धुकारीका प्रेतयोनिसे उद्धार तथा समस्त श्रोताओंको परमधामकी प्राप्ति
  80. [अध्याय 227] श्रीमद्भागवतके सप्ताहपारायणकी विधि तथा भागवत माहात्म्यका उपसंहार
  81. [अध्याय 228] यमुनातटवर्ती 'इन्द्रप्रस्थ' नामक तीर्थकी माहात्म्य कथा
  82. [अध्याय 229] निगमोद्बोध नामक तीर्थकी महिमा - शिवशर्मा के पूर्वजन्मकी कथा
  83. [अध्याय 230] देवल मुनिका शरभको राजा दिलीपकी कथा सुनाना - राजाको नन्दिनीकी सेवासे पुत्रकी प्राप्ति
  84. [अध्याय 231] शरभको देवीकी आराधनासे पुत्रकी प्राप्ति; शिवशमांके पूर्वजन्मकी कथाका और निगमोद्बोधकतीर्थकी महिमाका उपसंहार
  85. [अध्याय 232] इन्द्रप्रस्थके द्वारका, कोसला, मधुवन, बदरी, हरिद्वार, पुष्कर, प्रयाग, काशी, कांची और गोकर्ण आदि तीर्थोका माहात्य
  86. [अध्याय 233] वसिष्ठजीका दिलीपसे तथा भृगुजीका विद्याधरसे माघस्नानकी महिमा बताना तथा माघस्नानसे विद्याधरकी कुरूपताका दूर होना
  87. [अध्याय 234] मृगशृंग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
  88. [अध्याय 235] मृगशृंग मुनिके द्वारा माघके पुण्यसे एक हाथीका उद्धार तथा मरी हुई कन्याओंका जीवित होना
  89. [अध्याय 236] यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन
  90. [अध्याय 237] महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार
  91. [अध्याय 238] मृगशृंगका विवाह, विवाहके भेद तथा गृहस्थ आश्रमका धर्म
  92. [अध्याय 239] पतिव्रता स्त्रियोंके लक्षण एवं सदाचारका वर्णन
  93. [अध्याय 240] मृगशृंगके पुत्र मृकण्डु मुनिकी काशी यात्रा, काशी- माहात्म्य तथा माताओंकी मुक्ति
  94. [अध्याय 241] मार्कण्डेयजीका जन्म, भगवान् शिवकी आराधनासे अमरत्व प्राप्ति तथा मृत्युंजय - स्तोत्रका वर्णन
  95. [अध्याय 242] माघस्नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
  96. [अध्याय 243] माघ मासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति
  97. [अध्याय 244] सनातन मोक्षमार्ग और मन्त्रदीक्षाका वर्णन
  98. [अध्याय 245] भगवान् विष्णुकी महिमा, उनकी भक्तिके भेद तथा अष्टाक्षर मन्त्रके स्वरूप एवं अर्थका निरूपण
  99. [अध्याय 246] श्रीविष्णु और लक्ष्मीके स्वरूप, गुण, धाम एवं विभूतियोंका वर्णन
  100. [अध्याय 247] वैकुण्ठधाममें भगवान् की स्थितिका वर्णन, योगमायाद्वारा भगवान्‌की स्तुति तथा भगवान्‌के द्वारा सृष्टि रचना
  101. [अध्याय 248] देवसर्ग तथा भगवान्‌के चतुर्व्यूहका वर्णन
  102. [अध्याय 249] मत्स्य और कूर्म अवतारोंकी कथा-समुद्र-मन्धनसे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव और एकादशी - द्वादशीका माहात्म्य
  103. [अध्याय 250] नृसिंहावतार एवं प्रह्लादजीकी कथा
  104. [अध्याय 251] वामन अवतारके वैभवका वर्णन
  105. [अध्याय 252] परशुरामावतारकी कथा
  106. [अध्याय 253] श्रीरामावतारकी कथा - जन्मका प्रसंग
  107. [अध्याय 254] श्रीरामका जातकर्म, नामकरण, भरत आदिका जन्म, सीताकी उत्पत्ति, विश्वामित्रकी यज्ञरक्षा तथा राम आदिका विवाह
  108. [अध्याय 255] श्रीरामके वनवाससे लेकर पुनः अयोध्या में आनेतकका प्रसंग
  109. [अध्याय 256] श्रीरामके राज्याभिषेकसे परमधामगमनतकका प्रसंग
  110. [अध्याय 257] श्रीकृष्णावतारकी कथा-व्रजकी लीलाओंका प्रसंग
  111. [अध्याय 258] भगवान् श्रीकृष्णकी मथुरा-यात्रा, कंसवध और उग्रसेनका राज्याभिषेक
  112. [अध्याय 259] जरासन्धकी पराजय द्वारका-दुर्गकी रचना, कालयवनका वध और मुचुकुन्दकी मुक्ति
  113. [अध्याय 260] सुधर्मा - सभाकी प्राप्ति, रुक्मिणी हरण तथा रुक्मिणी और श्रीकृष्णका विवाह
  114. [अध्याय 261] भगवान् के अन्यान्य विवाह, स्यमन्तकमणिकी कथा, नरकासुरका वध तथा पारिजातहरण
  115. [अध्याय 262] अनिरुद्धका ऊषाके साथ विवाह
  116. [अध्याय 263] पौण्ड्रक, जरासन्ध, शिशुपाल और दन्तवक्त्रका वध, व्रजवासियोंकी मुक्ति, सुदामाको ऐश्वर्य प्रदान तथा यदुकुलका उपसंहार
  117. [अध्याय 264] श्रीविष्णु पूजनकी विधि तथा वैष्णवोचित आचारका वर्णन
  118. [अध्याय 265] श्रीराम नामकी महिमा तथा श्रीरामके १०८ नामका माहात्म्य
  119. [अध्याय 266] त्रिदेवोंमें श्रीविष्णुकी श्रेष्ठता तथा ग्रन्थका उपसंहार