श्रीमहादेवजी कहते हैं- देवेश्वरी! श्रावण मास आनेपर पवित्रारोपणका विधान है। इसका पालन करनेपर दिव्य भक्ति उत्पन्न होती है। विद्वान् पुरुषको भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुका पवित्रारोपण करना चाहिये। पार्वती। ऐसा करनेसे वर्षभरकी पूजा सम्पन्न हो जाती है। श्रीविष्णुके लिये पवित्रारोपण करनेपर अपनेको सुख होता है। कपड़ेका सूत, जो किसी ब्राह्मणीका काता हुआ हो अथवा अपने हाथसे तैयार किया हुआ हो, ले आयेऔर उसीसे पवित्रक बनाये। उपर्युक्त सूतके अभावमें किसी उत्तम शूद्र जातिकी स्त्रीके हाथका काता हुआ सूत भी लिया जा सकता है। यदि ऐसा भी न मिले तो जैसा तैसा खरीदकर भी ले आना चाहिये। पवित्रारोपणकी विधि रेशमके सूतसे ही करनी चाहिये अथवा चाँदी या सोनेसे श्रीविष्णु देवताके लिये विधिपूर्वक पवित्रक बनाना चाहिये। सब धातुओंके अभाव में विद्वान् पुरुषको साधारण सूत ग्रहण करना चाहिये। सूतकोतिगुना करके उसे जलसे धोना चाहिये। फिर यदि शिवलिंगके लिये बनाना हो तो उस लिंगके बराबर अथवा किसी प्रतिमाके लिये बनाना हो तो उस प्रतिमा के सिरसे लेकर पैरतकका या घुटनेतकका या नाभिके बराबरतकका पवित्रक बनाना चाहिये। इनमें पहला उत्तम, दूसरा मध्यम और तीसरा लघु श्रेणीका है एक सालमें जितने दिन हों, उतनी संख्या में या उसके आधी संख्यामें अथवा एक सौ आठकी संख्या में सूतसे ही उस पवित्रकर्मे गाँठें लगानी चाहिये। पार्वती! चौवनकी संख्यामें भी गाँठें लगायी जा सकती हैं। विष्णुप्रतिमाके लिये जो पवित्रक बने उसे वनमालाके आकारका बना लेना चाहिये। जैसे भी शोभा हो, वह उपाय करना चाहिये। इससे भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं। पवित्रक तैयार होनेके पश्चात् भगवान्को अर्पण करना चाहिये।
पार्वती कुबेरके लिये पवित्रारोपण करनेकी तिथि प्रतिपदा बतायी गयी है। लक्ष्मीदेवीके लिये द्वितीया सब तिथियोंगे उसम है तुम्हारे लिये तृतीया बतायी गयी है और गणेशके लिये चतुर्थी चन्द्रमाके लिये पंचमी, कार्तिकेयके लिये षष्ठी, सूर्यके लिये सप्तमी, दुर्गाके लिये अष्टमी, मातृवर्गके लिये नवमी, यमराजके लिये दशमी, अन्य सब देवताओंके लिये एकादशी, लक्ष्मीपति श्रीविष्णुके लिये द्वादशी, कामदेवके लिये त्रयोदशी, मेरे लिये चतुर्दशी तथा ब्रह्माजीके लिये पवित्रकसे पूजन करनेके निमित्त पूर्णिमा तिथि बतायी गयी है। ये भिन्न-भिन्न देवताओंके लिये पवित्रारोपणके योग्य तिथियाँ कही गयी हैं। लघु श्रेणीके पवित्रक में बारह, मध्यम श्रेणीके पवित्रकमें चौबीस और उत्तम श्रेणीके पवित्रकमें छत्तीस ग्रन्थियाँ कम-से-कम होनी चाहिये। सब पवित्रकोंको कपूर और केसर अथवा चन्दन और हल्दीमें रंगकर बाँसके नये पात्रमें रखना चाहिये और जहाँ भगवान्का पूजन हो, वहाँ उन सबको देवताकी भाँति स्थापित करना चाहिये। पहले देवताकी पूजा करके फिर उन्हें पवित्रकों में अधिवासित करना चाहिये। पवित्रकर्मे अधिवास हो जानेपर पुन: पूजन करना उचित है। पवित्रकोंमें जो देवता अधिवास करते हैं, उनका आगे बतायी जानेवालीविधिसे संनिधीकरण (समीपतास्थापन) करना चाहिये। ब्रह्मा, विष्णु और तीन सूत्र देवता है तथा क्रिया, पौरुषी, वीरा, अपराजिता, जया, विजया, मुक्तिदा, सदाशिवा, मनोन्मनी और सर्वतोमुखी- ये दस ग्रन्थियोंकी अधिष्ठात्री देवियाँ हैं। इन सबका सूत्रों आवाहन करना चाहिये। शास्त्रोक्त विधिसे मुद्राद्वारा आवाहन करे। सबका आवाहन करके संनिधीकरणकी क्रिया करे।
मुद्राद्वारा समीपता स्थापित करनेका नाम संनिधीकरण है। पहले रक्षामुद्रासे संरक्षण करके धेनुमुद्राके द्वारा उन्हें अमृतस्वरूप बनाये। फिर सबसे पहले भगवान्के आगे कलशका जल लेकर 'क्लीं कृष्णाय' इस मन्त्रसे उन पवित्रकका प्रोक्षण करे। तत्पश्चात् गन्ध, धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल आदि निवेदन करके षोडशोपचार आदिसे पवित्रकके देवताओंका पूजन करे। फिर उन्हें धूप देकर देवताके सम्मुख हो नमस्कारमुद्राके द्वारा देवताको अभिमन्त्रित करे। उस समय इस मन्त्रका उच्चारण करना चाहिये
आमन्त्रितो महादेव सार्धं देव्या गणादिभिः ।
मन्त्रैर्वा लोकपालैश्च सहितः परिचारकैः ॥
आगच्छ भगवन् विष्णो विधेः सम्पूर्तिहेतवे
प्रातस्त्वत्पूजनं कुर्मः सांनिध्यं नियतं कुरु ॥
(88 । 29-30)
'महान् देवता भगवान् विष्णु ! मन्त्रोंद्वारा आवाहन करनेपर आप देवी लक्ष्मी, पार्षद, लोकपाल और
परिचारकोंके साथ विधिकी पूर्तिके लिये यहाँ पधारिये।
प्रातःकालमें आपकी पूजा करूँगा। यहाँ निश्चितरूपमे
सन्निकटता स्थापित कीजिये।'
तदनन्तर वह गन्ध और पवित्रक भगवान् राघवके अथवा श्रीविष्णुके चरणोंके समीप रख दे, फिर प्रातः काल नित्यकर्म करके पुण्याह और स्वस्तिवाचन कराये तथा भगवान्की जय-जयकारके साथ घण्टा आदि बाजे और तुरही आदि बजाते हुए पवित्रकोंद्वारा पूजन करे।
'ॐ वासुदेवाय विद्महे, विष्णुदेवाय धीमहि, तन्नो देवः प्रचोदयात्।"श्रीवासुदेवका तत्त्व जाननेके लिये हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, श्रीविष्णुदेवके लिये ध्यान करते हैं, वे देव विष्णु हमारी बुद्धिको प्रेरित करें।
इस मन्त्रसे अथवा देवताके नाम - मन्त्रसे पवित्रक अर्पण करना चाहिये। इसके बाद भगवान् विष्णुकी महापूजा करे, जिससे सबके आत्मा श्रीविष्णु प्रसन्न होते हैं। चारों ओर विधिपूर्वक दीपमाला जलाकर रखे। भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और चोष्य- ये चार प्रकारके अन्न नैवेद्यके लिये प्रस्तुत करे। पूर्वपूजित पवित्रक भगवान्को अर्पण कर दे। फिर विशेष भक्तिके साथ श्रीगुरुकी पूजा करे गुरु महान् देवता हैं, उन्हें वस्त्र और अलंकार आदि अर्पण करके विधिपूर्वक पूजन करना उचित है। गुरुपूजनके पश्चात् पवित्रक धारण करे। इसके बाद वहाँ जो वैष्णव उपस्थित हों, उन्हें ताम्बूल आदि देकर अग्निको पूर्णाहुति अर्पण करे। अन्तमें लक्ष्मीनिवास भगवान् श्रीकृष्णको कर्म समर्पित करे
महीनं क्रियाहीनं भक्तिहीन तु केशव।
यत्पूजितं मया सम्यक् सम्पूर्ण यातु मे ध्रुवम्
(88139)
"हे केशव! मैंने मन्त्र, क्रिया और भक्तिके बिना जो पूजन किया हो, यह भी निश्चय ही परिपूर्ण हो जाय।' तदनन्तर देवताओंका विसर्जन करके वैष्णव ब्राह्मणों तथा इष्ट-बन्धुओंके साथ स्वयं भी शुद्ध अन्न भोजन करे। जो उत्तम द्विज इस दिव्य पूजनके प्रसंगको सुनते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके परम पदको प्राप्त होते हैं। इस प्रकार पवित्रारोपण करनेपर इस पृथ्वीपर जितने भी दान और नियम किये जाते हैं, वे सब परिपूर्ण होते हैं। पवित्रारोपणका विधान उत्सवोंका सम्राट् है। इससे ब्रह्महत्यारा भी शुद्ध हो जाता है, इसमें तनिक भी अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये। गिरिराजकुमारी। मैंने जो कुछ कहा है, वह सत्य है, सत्य है, सत्य है। पवित्रारोपणमें जो पुण्य है, वही उसके दर्शन में भी है। महाभागे यदि शूद्र भी भक्तिभावसे पवित्रारोपणका विधान पूर्ण कर लें तो परम धन्य माने जाते हैं। मैं इस भूतलपर धन्य कृतकृत्य हूँ; क्योंकि मैंने भगवान् विष्णुकी मोक्षदायिनी भक्ति प्राप्त की है।पार्वतीने पूछा- देवेश्वर! विश्वनाथ! किस मासमें किन-किन फूलोंकर भगवान्की पूजामै उपयोग करना चाहिये? यह बतानेकी कृपा करें। श्रीमहादेवजी बोले- चैत्र मासमें चम्पा और चमेलीके फूलोंसे क्लेशहारी केशवका प्रयत्नपूर्वक पूजन करना चाहिये। दौना, कटसरैया और वरुणवृक्षके फूलोंसे भी जगत्के स्वामी सर्वेश्वर श्रीविष्णुका पूजन किया जा सकता है। मनुष्य एकाग्रचित्त होकर लाल या और किसी रंगके सुन्दर कमलपुष्पोद्वारा चैत्र मासमें श्रीहरिका पूजन करे। देखि वैशाख मासमें जब कि सूर्य वृषराशिपर स्थित हों, केतकी (केवड़े) के पत्ते लेकर महाप्रभु श्रीविष्णुका पूजन करना चाहिये। जिन्होंने भक्तिपूर्वक भगवान्का पूजन कर लिया, उनके ऊपर श्रीहरि संतुष्ट रहते हैं। ज्येष्ठ मास आनेपर नाना प्रकारके फूलोंसे भगवान्की पूजा करनी चाहिये। देवदेवेश्वर श्रीविष्णुके पूजित होनेपर सम्पूर्ण देवताओंकी पूजा सम्पन्न हो जाती है। आषाढ़ मासमें कनेरके फूल, लाल फूल अथवा कमलके फूलोंसे भगवान्की विशेष पूजा करनी चाहिये। जो मनुष्य इस प्रकार भगवान् विष्णुकी पूजा करते हैं, वे पुण्यके भागी होते हैं जो सुवर्णके समान रंगवाले कदम्बके फूलोंसे सर्वव्यापी गोविन्दकी पूजा करेंगे, उन्हें कभी यमराजका भय नहीं होगा। लक्ष्मीपति श्रीविष्णु श्रीलक्ष्मीजीको पाकर जैसे प्रसन्न रहते हैं, उसी प्रकार कदंबका फूल पाकर भी विश्वविधाता श्रीहरिको विशेष प्रसन्नता होती है। सुरेश्वरि । तुलसी, श्यामा-तुलसी तथा अशोकके द्वारा सर्वदा पूजित होनेपर श्रीविष्णु नित्यप्रति कष्टका निवारण करते हैं। जो लोग सावन मास आनेपर अलसीका फूल लेकर अथवा दूर्वादलके द्वारा श्रीजनार्दनकी पूजा करते हैं, उन्हें भगवान् प्रलयकालतक मनोवांछित भोग प्रदान करते रहते हैं। पार्वती भादोंके महीने में चम्पा, श्वेत पुष्प, रक्तसिंदूरक तथा कहारके पुष्पोंसे पूजन करके मनुष्य सब कामनाओंका फल प्राप्त कर लेता है। आश्विनके शुभ मासमें जुही, चमेली तथा नाना प्रकारके शुभ पुष्पोंद्वारा प्रयत्नपूर्वक भक्तिके साथ सदा श्रीहरिका पूजन करना चाहिये। जो कमलके फूल ले आकर श्रीजनार्दनकीपूजा करते हैं, वे मानव इस पृथ्वीपर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- चारों पदार्थ प्राप्त कर लेते हैं। कार्तिक मास आनेपर परमेश्वर श्रीविष्णुकी पूजा करनी चाहिये। उस समय ऋतुके अनुकूल जितने भी पुष्प उपलब्ध हों, वे सभी श्रीमाधवको अर्पण करने चाहिये। तिल और तिलके फूल भी चढ़ाये अथवा उन्हींके द्वारा पूजन करे। उनके द्वारा देवेश्वरके पूजित होनेपर मनुष्य अक्षय फलका भागी होता है। जो लोग कार्तिकमें छितवन, मौलसिरी तथा चम्पाके फूलोंसे श्रीजनार्दनकी पूजा करते हैं, वे मनुष्य नहीं, देवता हैं। मार्गशीर्ष मासमें नाना प्रकारके पुष्पों, विशेषतः दिव्य पुष्पों, उत्तम नैवेद्यों, धूपों तथा आरती आदिके द्वारा सदा प्रयत्नपूर्वक भगवान्कापूजन करे। महादेवि! पौष मासमें नाना प्रकारके तुलसीदल तथा कस्तूरीमिश्रित जलके द्वारा पूजन करना कल्याणदायक माना गया है। माघ मास आनेपर नाना प्रकारके फूलोंसे भगवान्की पूजा करे। उस समय कपूरसे तथा नाना प्रकारके नैवेद्य एवं लड्डुओंसे पूजा होनी चाहिये। इस प्रकार देवदेवेश्वरके पूजित होनेपर मनुष्य निश्चय ही मनोवांछित फलोंको प्राप्त कर लेता है। फाल्गुनमें भी नवीन पुष्पों अथवा सब प्रकारके फूलोंसे श्रीहरिका अर्चन करना चाहिये। सब तरहके फूल लेकर वसन्तकालकी पूजा सम्पादन करे। इस प्रकार श्रीजगन्नाथके पूजित होनेपर पुरुष श्रीविष्णुकी कृपासे अविनाशी वैकुण्ठपदको प्राप्त कर लेता है।