युधिष्ठिरने पूछा- भगवन्! अब मैं श्रीविष्णुके व्रतोंमें उत्तम व्रतका, जो सब पापको हर लेनेवाला तथा व्रती मनुष्योंको मनोवांछित फल देनेवाला हो, श्रवण करना चाहता हूँ। जनार्दन ! पुरुषोत्तम मासकी एकादशीकी कथा कहिये, उसका क्या फल है ? और उसमें किस देवताका पूजन किया जाता है? प्रभो ! किस दानका क्या पुण्य है? मनुष्योंको क्या करना चाहिये? उस समय कैसे स्नान किया जाता है? किस मन्त्रका जप होता है? कैसी पूजन विधि बतायी गयी है ? पुरुषोत्तम! पुरुषोत्तम मासमें किस अन्नका भोजनउत्तम है?
भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजेन्द्र ! अधिक मास आनेपर जो एकादशी होती है, वह 'कमला' नामसे प्रसिद्ध है। वह तिथियोंमें उत्तम तिथि है। उसके व्रतके प्रभावसे लक्ष्मी अनुकूल होती हैं। उस दिन ब्राह्म मुहूर्तमें उठकर भगवान् पुरुषोत्तमका स्मरण करे और विधिपूर्वक स्नान करके व्रतो पुरुष व्रतका नियम ग्रहण करे। घरपर जप करनेका एक गुना, नदीके तटपर दूना, गोशालामै सहस्रगुना, अग्निहोत्रगृहमें एक हजार एक सौ गुना, शिवके क्षेत्रोंमें, तीथोंमें, देवताओंके निकट तथातुलसीके समीप लाख गुना और भगवान् विष्णुके निकट अनन्त गुना फल होता है।
अवन्तीपुरीमें शिवशर्मा नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे, उनके पाँच पुत्र थे। इनमें जो सबसे छोटा था, वह पापाचारी हो गया; इसलिये पिता तथा स्वजनोंने उसे त्याग दिया। अपने बुरे कर्मोंके कारण निर्वासित होकर वह बहुत दूर वनमें चला गया। दैवयोगसे एक दिन वह तीर्थराज प्रयागमें जा पहुँचा। भूखसे दुर्बल शरीर और दीन मुख लिये उसने त्रिवेणीमें स्नान किया। फिर क्षुधासे पीड़ित होकर वह वहाँ मुनियोंके आश्रम खोजने लगा। इतनेमें उसे वहाँ हरिमित्र मुनिका उत्तम आश्रम दिखायी दिया। पुरुषोत्तम मासमें वहाँ बहुत से मनुष्य एकत्रित हुए थे। आश्रमपर पापनाशक कथा कहनेवाले ब्राह्मणके मुखसे उसने श्रद्धापूर्वक 'कमला' एकादशीकी महिमा सुनी, जो परम पुण्यमयी तथा भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। जयशर्माने विधिपूर्वक 'कमला' एकादशीकी कथा सुनकर उन सबके साथ मुनिके आश्रमपर ही व्रत किया जब आधी रात हुई तो भगवती लक्ष्मी उसके पास आकर बोलीं- 'ब्रह्मन् ! इस समयकमला' एकादशीके व्रतके प्रभावसे मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ और देवाधिदेव श्रीहरिकी आज्ञा पाकर वैकुण्ठधामसे आयी हूँ। मैं तुम्हें वर दूंगी।'
ब्राह्मण बोला-माता लक्ष्मी ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो वह व्रत बताइये, जिसकी कथा-वार्ता में साधु-ब्राह्मण सदा संलग्न रहते हैं।
लक्ष्मीने कह्य — ब्राह्मण ! एकादशी-व्रतका माहात्म्य श्रोताओंके सुननेयोग्य सर्वोत्तम विषय है। यह पवित्र वस्तुओंमें सबसे उत्तम है। इससे दुःस्वप्नका नाश तथा पुण्यकी प्राप्ति होती है, अतः इसका यत्नपूर्वक श्रवण करना चाहिये। उत्तम पुरुष श्रद्धासे युक्त हो एक या आधे श्लोकका पाठ करनेसे भी करोड़ों महापातकों से तत्काल मुक्त हो जाता है। जैसे मासोंमें पुरुषोत्तम मास, पक्षियोंमें गरुड़ तथा नदियोंमें गंगा श्रेष्ठ हैं; उसी प्रकार तिथियोंमें द्वादशी तिथि उत्तम है। समस्त देवता आज भी [ एकादशी व्रतके ही लोभसे] भारतवर्षमें जन्म लेनेकी इच्छा रखते हैं। देवगण सदा ही रोग-शोकसे रहित भगवान् नारायणका पूजन करते हैं। जो लोग मेरे प्रभु भगवान् नारायणके नामका सदा भक्तिपूर्वक जप करते हैं, उनकी ब्रह्मा आदि देवता सर्वदा पूजा करते हैं। जो लोग श्रीहरिके नाम-जपमें संलग्न हैं, उनकी लीला-कथाओंके कीर्तनमें तत्पर हैं तथा निरन्तर श्रीहरिकी पूजामें ही प्रवृत्त रहते हैं ये मनुष्य कलियुग कृतार्थ हैं। यदि दिनमें एकादशी और द्वादशी हो तथा रात्रि बीतते-बीतते त्रयोदशी आ जाय तो उस त्रयोदशीके पारणमें सौ यज्ञोंका फल प्राप्त होता है। व्रत करनेवाला पुरुष चक्र सुदर्शनधारी देवाधिदेव श्रीविष्णु के समक्ष निम्नांकित मन्त्रका उच्चारण करके भक्तिभावसे संतुष्टचित्त होकर उपवास करे। वह मन्त्र इस प्रकार है
एकादश्यां निराहारः स्थित्वाहमपरे ऽहनि
भोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत ॥
(64।34) 'कमलनयन। भगवान् अच्युत मैं एकादशीको निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करूँगा। आप मुझे शरण दें।'
तत्पश्चात् व्रत करनेवाला मनुष्य मन और इन्द्रियोंको वशमें करके गीत, वाद्य, नृत्य और पुराण पाठ आदिके द्वारा रात्रिमें भगवान् के समक्ष जागरण करें। फिर द्वादशीके दिन उठकर स्नानके पश्चात् जितेन्द्रियभावसे विधिपूर्वक श्रीविष्णुकी पूजा करे। एकादशीको पंचामृतसे जनार्दनको नहलाकर द्वादशीको केवल दूधमें स्नान करानेसे श्रीहरिका सायुज्य प्राप्त होता है। पूजा करके भगवान् से इस प्रकार प्रार्थना करे
अज्ञानतिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव ।
प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ॥
(6439)
'केशव मैं अज्ञानरूपी रतौंधीसे अंधा हो गया हूँ। आप इस व्रतसे प्रसन्न हों और प्रसन्न होकर मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान करें।'
इस प्रकार देवताओंके स्वामी देवाधिदेव भगवान् गदाधरसे निवेदन करके भक्तिपूर्वक ब्राह्मणोंको भोजन कराये तथा उन्हें दक्षिणा दे। उसके बाद भगवान् नारायणके शरणागत होकर बलिवैश्वदेवकी विधि पंचमहायज्ञ का अनुष्ठान करके स्वयं मौन हो अपने बन्धुबान्धवके साथ भोजन करे इस प्रकार जो शुद्धभावसे पुण्यमय एकादशीका व्रत करता है, वह पुनरावृत्तिसे रहित वैकुण्ठधामको प्राप्त होता है।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- राजन्! ऐसा कहकर लक्ष्मीदेवी उस ब्राह्मणको वरदान दे अन्तर्धान हो गयीं। फिर वह ब्राह्मण भी धनी होकर पिताके घरपर आ गया। इस प्रकार जो 'कमला' का उत्तम व्रत करता है तथा एकादशीके दिन इसका माहात्म्य सुनता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
युधिष्ठिर बोले- जनार्दन पापका नाश और पुण्यका दान करनेवाली एकादशीके माहात्म्यका पुनः वर्णन कीजिये, जिसे इस लोकमें करके मनुष्य परम पदको प्राप्त होता है।
भगवान् श्रीकृष्णने कहा- राजन्। शुक्ल या कृष्णपक्षमें जभी एकादशी प्राप्त हो, उसका परित्याग न करे, क्योंकि वह मोक्षरूप सुखको बढ़ानेवाली है।कलियुगमें तो एकादशी ही भव-बन्धनसे मुक्त करनेवाली, सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओंको देनेवाली तथा पापका नाश करनेवाली है। एकादशी रविवारको, किसी मंगलमय पर्वके समय अथवा संक्रान्तिके ही दिन क्यों न हो, सदा ही उसका व्रत करना चाहिये। भगवान् विष्णुके प्रिय भक्तोंको एकादशीका त्याग कभी नहीं करना चाहिये। जो शास्त्रोक्त विधिसे इस लोकमें एकादशीका व्रत करते हैं, वे जीवन्मुक्त देखे जाते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।
युधिष्ठिरने पूछा— श्रीकृष्ण के जीवन्मुक्त कैसे हैं? तथा विष्णुरूप कैसे होते हैं? मुझे इस विषयको जानने के लिये बड़ी उत्सुकता हो रही है।
भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन्! जो कलियुगमें भक्तिपूर्वक शास्त्रीय विधिके अनुसार निर्जल रहकर एकादशीका उत्तम व्रत करते हैं, वे विष्णुरूप तथा जीवन्मुक्त क्यों नहीं हो सकते हैं? एकादशीव्रत के समान सब पापोंको हरनेवाला तथा मनुष्योंकी समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाला पवित्र व्रत दूसरा कोई नहीं है। दशमीको एक बार भोजन, एकादशीको निर्जलव्रत तथा द्वादशीको पारण करके मनुष्य श्रीविष्णुके समान हो जाते हैं। पुरुषोत्तम मासके द्वितीय पक्षकी एकादशीका नाम 'कामदा' है। जो श्रद्धापूर्वक 'कामदा' के शुभ व्रतका अनुष्ठान करता है, वह इस लोक और परलोकमें भी मनोवांछित वस्तुको पाता है। यह 'कामदा' पवित्र, पावन, महापातकनाशिनी तथा व्रत करनेवालोंको भोग एवं मोक्ष प्रदान करनेवाली है। नृपश्रेष्ठ! 'कामदा एकादशीको विधिपूर्वक पुष्प, धूप, नैवेद्य तथा फल आदिके द्वारा भगवान् पुरुषोत्तमकी पूजा करनी चाहिये। व्रत करनेवाला वैष्णव पुरुष दशमी तिथिको काँसके बर्तन, उड़द, मसूर, चना, कोदो, साग, मधु, पराया अन्न, दो बार भोजन तथा मैथुन-इन दसका परित्याग करे। इसी प्रकार एकादशीको जुआ, निद्रा, पान, दाँतुन, परायी निन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध और असत्य भाषण- इन ग्यारह दोषोंको त्याग दे तथा द्वादशीके दिन काँसका वर्तन, उड़द, मसूर, तेल, असत्य भाषण, व्यायाम, परदेशगमन, दो बार भोजन, मैथुन, बैलकी पीठपर सवारी, पराया अन्न तथा साग—इन बारह वस्तुओंका त्याग करे। राजन् ! जिन्होंने इस विधि से'कामदा' एकादशीका व्रत किया और रात्रिमें जागरण करके श्रीपुरुषोत्तमकी पूजा की है, सब पापोंसे मुक्त हो परम गतिको प्राप्त होते हैं। इसके पढ़ने और सुननेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है।