श्रीपार्वतीजीने कहा – सुव्रत ! इस द्वीपमें जो जो तीर्थ हैं, उनकी गणना करके मुझे बताइये।
श्रीमहादेवजी बोले- सुरेश्वरि इस द्वीपमें सबके क्लेशका नाश करनेवाले महान् देवता भगवान् केशव ही तीर्थरूपसे विराजमान हैं। देवि! अब मैं तुम्हारे लिये उन तीर्थोका वर्णन करता है। पहला पुष्कर तीर्थ है, जो सब तीर्थोंमें श्रेष्ठ और शुभकारक है। दूसरा क्षेत्र काशीपुरी है, जो मुक्ति प्रदान करनेवाली है। तीसरा नैमिष क्षेत्र है, जिसे ऋषियोंने परम पावन माना है। चौथा प्रयाग तीर्थ है, जो सब तीर्थोंमें उत्तम माना गया है। पाँचवाँ कामुक तीर्थ है, जिसकी उत्पत्ति गन्धमादन पर्वतपर बतायी गयी है। छठा मानसरोवर तीर्थ है, जो देवताओंको भी अत्यन्त रमणीय प्रतीत होता है। सात विश्वकाय तीर्थ है, उसकी स्थिति कल्याणमय अम्बर पर्वतपर बतायी गयी है। आठवाँ गौतम नामक तीर्थ है, जिसकी स्थापना पूर्वकालमें मन्दराचल पर्वतपर हुई थी। नवाँ मदोत्कट और दसवाँ रथचैत्रक तीर्थ है। ग्यारहवाँ कान्यकुब्ज तीर्थ है, जहाँ भगवान् वामन विराज रहे हैं। बारहवाँ मलयज तीर्थ है। इसके बाद कुब्जाम्रक, विश्वेश्वर, गिरिकर्ण, केदार और गतिदायक तीर्थ हैं।हिमालयके पृष्ठभागमें बाह्य तीर्थ, गोकर्णमें गोपक, हिमालयपर स्थानेश्वर, बिल्वकमें बिल्वपत्रक, श्रीशैलमें माधव तीर्थ, भद्रेश्वरमें भद्र तीर्थ, वाराहक्षेत्रमें विजय तीर्थ, वैष्णवगिरिपर वैष्णव तीर्थ, रुद्रकोटमें रुद्र तीर्थ, कालंजर पर्वतपर पितृ तीर्थ, कम्पिलमें काम्पिल तीर्थ, मुकुटमें कर्कोटक, गण्डकीमें शालग्रामोद्भव तीर्थ, नर्मदामें शिव तीर्थ, मायापुरीमें विश्वरूप तीर्थ, उत्पलाक्षमें तीर्थ, गयामें पितृ तीर्थ और विष्णुपादोद्भव तीर्थ, विपाशा (व्यास) में विपाप, पुण्ड्रवर्धनमें पाटल, सुपार्श्वमें नारायण, त्रिकूटमें विष्णुमन्दिर, विपुलमें विपुल, मलयाचलमें कल्याण, कोटि तीर्थमें कौरव, गन्धमादनमें सुगन्ध, कुब्जांकमें त्रिसन्ध्य, गंगाद्वारमें हरिप्रिय, विन्ध्यप्रदेशमें शैल तीर्थ, बदरिकाश्रममें शुभ सारस्वत तीर्थ, कालिन्दीमें कालरूप, सह्यपर्वतपर साह्यक और चन्द्रप्रदेशमें चन्द्र तीर्थ है।
तीर्थोंका वर्णन तीर्थ, रैवतक पर्वतपर महाकालमें महेश्वर तीर्थ, विन्ध्य पर्वतकी कन्दरामें अभयद और अमृत नामक तीर्थ, मण्डपमें विश्वरूप तीर्थ, ईश्वरपुरमें स्वाहा तीर्थ, प्रचण्डामें वैगलेय तीर्थ, अमरकण्टकमें चण्डी तीर्थ, प्रभासक्षेत्रमें सोमेश्वर तीर्थ, सरस्वतीमें पारावत तटपर देवमातृ तीर्थ, महापद्ममेंमहालय तीर्थ, पयोष्णीमें पिंगलेश्वर, सिंहिका तथा सौरवमें रवि तीर्थ, कृत्तिकाक्षेत्रमें कार्तिक तीर्थ, शंकरगिरिपर शंकर तीर्थ, सुभद्रा और समुद्रके संगमपर दिव्य उत्पल तीर्थ, विष्णुपर्वतपर गणपति तीर्थ, जालन्धरमें विश्वमुख तीर्थ, तार एवं विष्णुपर्वतपर तारक तीर्थ, देवदारुवनमें पौण्ड्र तीर्थ, काश्मीरमण्डलमें पौष्क तीर्थ, हिमालयपर भौम, हिम, तुष्टिक और पौष्टिक तीर्थ, मायापुरमें कपालमोचन तीर्थ, शंखोद्धारमें शंखधारकदेव, पिण्डमें पिण्डन, सिद्धिमें वैखानस और अच्छोद सरोवरपर विष्णुकाम तीर्थ है, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्षको देनेवाला है। उत्तरकूलमें औषध्य तीर्थ, कुशद्वीपमें कुशोदक तीर्थ, हेमकूटमें मन्मथ तीर्थ, कुमुदमें सत्यवादन तीर्थ, वदन्तीमें आश्मक तीर्थ, विन्ध्यपर्वतपर वैमातृक तीर्थ और चित्तमें ब्रह्ममय तीर्थ है, जो सब तीर्थों में पावन माना गया है। सुन्दरि ! इन सब तीर्थोंमें उत्तम तीर्थका वर्णन सुनो। भगवान् विष्णुके नामकी समता करनेवाला कोई तीर्थ न तो हुआ है और न होगा। भगवान् केशवकी कृपासे उनका नाम लेनेमात्रसे ब्रह्महत्यारा, सुवर्ण चुरानेवाला, बालघातीऔर गोहत्या करनेवाला पुरुष भी पापमुक्त हो जाता है। कलियुगमें द्वारकापुरी परम रमणीय है और वहाँके देवता भगवान् श्रीकृष्ण परम धन्य हैं। जो मनुष्य वहाँ जाकर उनका दर्शन करते हैं, उन्हें अविचल मुक्ति प्राप्त होती है। महादेवि ! ऐसे परम धन्य देवता सर्वेश्वर प्रभु श्रीविष्णुभगवान्का मैं निरन्तर चिन्तन करता रहता हूँ। इस प्रकार यहाँ अनेक तीर्थोंका नामोल्लेख किया गया है। जो इनका जप करता अथवा इन्हें सुनता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। जो इन तीर्थोंमें स्नान करके पापहारी भगवान् नारायणका दर्शन करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके सनातन धामको जाता है। जगन्नाथपुरी महान् तीर्थ है। वह सब लोकोंको पवित्र करनेवाली मानी गयी है। जो श्रेष्ठ मानव वहाँकी यात्रा करते हैं, वे परम गतिको प्राप्त होते हैं। जो श्राद्ध कर्ममें इन परम पवित्र तीर्थोंके नाम सुनाता है, वह इस लोकमें सुख भोगकर अन्तमें भगवान् विष्णुके सनातन धामको जाता है। गोदान, श्राद्धदान अथवा देवपूजाके समय प्रतिदिन जो विद्वान् इसका पाठ करता है, वह परमात्माको प्राप्त होता है।