View All Puran & Books

पद्म पुराण (पद्मपुराण)

Padma Purana,Padama Purana ()

खण्ड 5, अध्याय 197 - Khand 5, Adhyaya 197

Previous Page 197 of 266 Next

भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली कृत्य, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन

महादेवजी कहते हैं- जो प्रतिदिन मालतीसे भगवान् गरुड़ध्वजका पूजन करता है, वह जन्मके दुःखों और बुढ़ापेके रोगोंसे छुटकारा पाकर मुक्त हो जाता है। जिसने कार्तिकमें मालतीको मालासे भगवान् विष्णुको पूजा की है, उसके पापको भगवान् श्रीकृष्ण धो डालते हैं। चन्दन, कपूर, अरगजा, केशर, केवड़ा और दीपदान भगवान् केशवको सदा ही प्रिय हैं। कमलका पुष्प, तुलसीदल, मालती, अगस्त्यका फूल और दीपदान ये पाँच वस्तुएँ कार्तिकमें भगवान्के लिये परम प्रिय मानी गयी हैं। कार्तिकेय केवड़े के फूलोंसे भगवान् हृषीकेशका पूजन करके मनुष्य उनके परम पवित्र एवं कल्याणमय धामको प्राप्त होता है। जो अगस्त्यके फूलोंसे जनार्दनका पूजन करता है, उसके दर्शनसे नरककी आग बुझ जाती है। जैसे कौस्तुभमणि और वनमालासे भगवान्‌को प्रसन्नता होती है, उसी प्रकार कार्तिकमें तुलसीदलसे वे अधिक संतुष्ट होते हैं।

कार्तिकेय ! अब कार्तिकमें दिये जानेवाले दीपका माहात्म्य सुनो। मनुष्यके पितर अन्य पितृगणोंके साथ सदा इस बातकी अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुलमें भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिकमें दीपदान करके श्रीकेशवको संतुष्ट कर सके। स्कन्द कार्तिकमें घी अथवा तिलके तेलसे जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेध यज्ञसे क्या लेना है। जिसने कार्तिकमें भगवान् केशवके समक्ष दीपदान किया है, उसने सम्पूर्ण यज्ञोंका अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थों में गोता लगा लिया। बेटा! विशेषतः कृष्णपक्षमें पाँच दिन बड़े पवित्र हैं (कार्तिक कृष्णा 13 से कार्तिक शुक्ला 2 तक) उनमें जो कुछ भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय एवं सम्पूर्ण कामनाओंकोपूर्ण करनेवाला होता है। लीलावती वेश्या दूसरेके रखे हुए दीपको ही जलाकर शुद्ध हो अक्षय स्वर्गको चली गयी। इसलिये रात्रिमें सूर्यास्त हो जानेपर घरमें गोशालाएँ, देववृक्षके नीचे तथा मन्दिरोंमें दीपक जलाकर रखना चाहिये। देवताओंके मन्दिरोंमें, श्मशानोंमें और नदियोंके तटपर भी अपने कल्याणके लिये घृत आदिसे पाँच दिनोंतक दीपक जलाने चाहिये। ऐसा करनेसे जिनके श्राद्ध और तर्पण नहीं हुए हैं, वे पापी पितर भी दीपदानके पुण्यसे परम मोक्षको प्राप्त हो जाते हैं।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं— 'भामिनि ! कार्तिक कृष्णपक्षको त्रयोदशीको घरसे बाहर यमराजके लिये दीप देना चाहिये। इससे दुर्मृत्युका नाश होता है। दीप देते समय इस प्रकार कहना चाहिये 'मृत्यु', पाशधारी काल और अपनी पत्नीके साथ सूर्यनन्दन यमराज त्रयोदशीको दीप देनेसे प्रसन्न हों। 9 कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीको चन्द्रोदयके समय नरकसे डरनेवाले मनुष्योंको अवश्य स्नान करना चाहिये। जो चतुर्दशीको प्रातः काल स्नान करता है, उसे यमलोकका दर्शन नहीं करना पड़ता अपामार्ग (आँगा या चिचड़ा) तुम्बी (लौकी), प्रपुन्नाट (चकवड़) और कट्फल (कायफल ) - इनको स्नानके बीचमें मस्तकपर घुमाना चाहिये। इससे नरकके भयका नाश होता है। उस समय इस प्रकार प्रार्थना करे- 'हे अपामार्ग! मैं हराईके ढेले, काँटे और पत्तोंसहित तुम्हें बार-बार मस्तकपर घुमा रहा हूँ। मेरे पाप हर लो। '2 यों कहकर अपामार्ग और चकवड़को मस्तकपर घुमाये। तत्पश्चात् यमराजके नामोंका उच्चारण करके तर्पण करे। वे नाम-मन्त्र इस प्रकार हैं यमाय नमः, धर्मराजाय नमः, मृत्यवे नमः, अन्तकाय नमः, वैवस्वताय नमः, कालायनमः, . सर्वभूतक्षयाय नमः, औदुम्बराय नमः, दध्नाय नमः, नीलाय नमः, परमेष्ठिने नमः, वृकोदराय चित्राय नमः, चित्रगुप्ताय नमः ।

देवताओंका पूजन करके दीपदान करना चाहिये। इसके बाद रात्रिके आरम्भमें भिन्न-भिन्न स्थानोंपर मनोहर दीप देने चाहिये। ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदिके मन्दिरोंमें, गुप्त गृहोंमें, देववृक्षोंके नीचे, सभाभवनमें, नदियोंके किनारे, चहारदीवारीपर, बगीचेमें, बावलीके तटपर, गली-कूचोंमें, गृहोद्यानमें तथा एकान्त अश्वशालाओं एवं गजशालाओंमें भी दीप जलाने चाहिये। इस प्रकार रात व्यतीत होनेपर अमावास्याको प्रात:काल स्नान करें और भक्तिपूर्वक देवताओं तथा पितरोंका पूजन और उन्हें प्रणाम करके पार्वण श्राद्ध करे; फिर दही, दूध, घी आदि नाना प्रकारके भोज्य पदार्थोद्वारा ब्राह्मणोंको भोजन कराकर उनसे क्षमा प्रार्थना करे। तदनन्तर भगवान्‌के जागनेसे पहले स्त्रियोंके द्वारा लक्ष्मीजीको जगाये। जो प्रबोधकाल (ब्राह्ममुहूर्त) - में लक्ष्मीजीको जगाकर उनका पूजन करता है, उसे धन-सम्पत्तिकी कमी नहीं होती। तत्पश्चात् प्रातः काल (कार्तिकशुक्ला प्रतिपदाको) गोवर्धनका पूजन करना चाहिये। उस समय गौओं तथा बैलोंको आभूषणोंसे सजाना चाहिये। उस दिन उनसे सवारीका काम नहीं लेना चाहिये तथा गायको दुहना भी नहीं चाहिये। पूजनके गोवर्धनसे इस प्रकार प्रार्थना करे

गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ॥

विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव l

या लक्ष्मीर्लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ॥

घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु

अग्रतः सन्तु मे गावो गावो मे सन्तु पृष्ठतः

गावो मे हृदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम्

(124 । 31-33)

'पृथ्वीको धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं। भगवान् श्रीकृष्णने आपको अपनी भुजाओंपर उठाया था। आप मुझे कोटि-कोटि गौएँ प्रदान करें। लोकपालोंकी जो लक्ष्मी धेनुरूपमें स्थित है और यज्ञके लिये घृत प्रदान करती है, वह मेरे पापको दूर करे। मेरे आगे गौएँ रहें, मेरे पीछे भी गौएँ रहें, मेरे हृदयमें गौओंका निवास हो तथा मैं भी गौओंके बीचमें निवास करूँ।'

कार्तिक शुक्लपक्षकी द्वितीयाको पूर्वाह्नमें यमकी पूजा करे । यमुनामें स्नान करके मनुष्य यमलोकको नहीं देखता। कार्तिक शुक्ला द्वितीयाको पूर्वकालमें यमुनाने यमराजको अपने घरपर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। उस दिन नारकी जीवोंको यातनासे छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप मुक्त होकर सब बन्धनोंसे छुटकारा पा गये और सब के-सब यहाँ अपनी इच्छाके अनुसार संतोषपूर्वक रहे 1 उन सबने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया, जो यमलोकके राज्यको सुख पहुँचानेवाला था। इसीलिये यह तिथि तीनों लोकोंमें यमद्वितीयाके नामसे विख्यात हुई; अतः विद्वान् पुरुषोंको उस दिन अपने घर भोजन नहीं करना चाहिये। वे बहिनके घर जाकर उसीके हाथसे मिले हुए अन्नको, जो पुष्टिवर्धक है, स्नेहपूर्वक भोजन करें तथा जितनी बहिनें हों, उन सबको पूजा और सत्कारके साथ विधिपूर्वक सुवर्ण, आभूषण एवं वस्त्र दें। सगी बहिनके हाथका अन्न भोजन करना उत्तम माना गया है। उसके अभावमें किसी भी बहिनके हाथका अन्न भोजन करना चाहिये। वह बलको बढ़ानेवाला है। जो लोग उस दिन सुवासिनी बहिनोंको वस्त्र दान आदिसे सन्तुष्ट करते हैं, उन्हें एक सालतक कलह एवं शत्रुके भयका सामना नहीं करना पड़ता। यह प्रसंग धन, यश, आयु, धर्म, काम एवं अर्थकी सिद्धि करनेवाला है।

Previous Page 197 of 266 Next

पद्म पुराण
Index


  1. [अध्याय 148] नारद-महादेव-संवाद- बदरिकाश्रम तथा नारायणकी महिमा
  2. [अध्याय 149] गंगावतरणकी संक्षिप्त कथा और हरिद्वारका माहात्म्य
  3. [अध्याय 150] गंगाकी महिमा, श्रीविष्णु, यमुना, गंगा, प्रयाग, काशी, गया एवं गदाधरकी स्तुति
  4. [अध्याय 151] तुलसी, शालग्राम तथा प्रयागतीर्थका माहात्म्य
  5. [अध्याय 152] त्रिरात्र तुलसीव्रतकी विधि और महिमा
  6. [अध्याय 153] अन्नदान, जलदान, तडाग निर्माण, वृक्षारोपण तथा सत्यभाषण आदिकी महिमा
  7. [अध्याय 154] मन्दिरमें पुराणकी कथा कराने और सुपात्रको दान देनेसे होनेवाली सद्गतिके विषयमें एक आख्यान तथा गोपीचन्दनके तिलककी महिमा
  8. [अध्याय 155] संवत्सरदीप व्रतकी विधि और महिमा
  9. [अध्याय 156] जयन्ती संज्ञावाली जन्माष्टमीके व्रत तथा विविध प्रकारके दान आदिकी महिमा
  10. [अध्याय 157] महाराज दशरथका शनिको संतुष्ट करके लोकका कल्याण करना
  11. [अध्याय 158] त्रिस्पृशाव्रतकी विधि और महिमा
  12. [अध्याय 159] पक्षवर्धिनी एकादशी तथा जागरणका माहात्म्य
  13. [अध्याय 160] एकादशीके जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप, एकादशीकी विधि, उत्पत्ति कथा और महिमाका वर्णन
  14. [अध्याय 161] मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी 'मोक्षा' एकादशीका माहात्म्य
  15. [अध्याय 162] पौष मासकी 'सफला' और 'पुत्रदा' नामक एकादशीका माहात्म्य
  16. [अध्याय 163] माघ मासकी पतिला' और 'जया' एकादशीका माहात्म्य
  17. [अध्याय 164] फाल्गुन मासकी 'विजया' तथा 'आमलकी एकादशीका माहात्म्य
  18. [अध्याय 165] चैत्र मासकी 'पापमोचनी' तथा 'कामदा एकादशीका माहात्म्य
  19. [अध्याय 166] वैशाख मासकी 'वरूथिनी' और 'मोहिनी' एकादशीका माहात्म्य
  20. [अध्याय 167] ज्येष्ठ मासकी' अपरा' तथा 'निर्जला' एकादशीका माहात्म्य
  21. [अध्याय 168] आषाढ़ मासकी 'योगिनी' और 'शयनी एकादशीका माहात्म्य
  22. [अध्याय 169] श्रावणमासकी 'कामिका' और 'पुत्रदा एकादशीका माहात्म्य
  23. [अध्याय 170] भाद्रपद मासकी 'अजा' और 'पद्मा' एकादशीका माहात्म्य
  24. [अध्याय 171] आश्विन मासकी 'इन्दिरा' और 'पापांकुशा एकादशीका माहात्म्य
  25. [अध्याय 172] कार्तिक मासकी 'रमा' और 'प्रबोधिनी' एकादशीका माहात्म्य
  26. [अध्याय 173] पुरुषोत्तम मासकी 'कमला' और 'कामदा एकादशीका माहात्य
  27. [अध्याय 174] चातुर्मास्य व्रतकी विधि और उद्यापन
  28. [अध्याय 175] यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माहात्म्य
  29. [अध्याय 176] वैष्णवोंके लक्षण और महिमा तथा श्रवणद्वादशी व्रतकी विधि और माहात्म्य-कथा
  30. [अध्याय 177] नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन
  31. [अध्याय 178] गृहस्थ आश्रमकी प्रशंसा तथा दान धर्मकी महिमा
  32. [अध्याय 179] गण्डकी नदीका माहात्म्य तथा अभ्युदय एवं और्ध्वदेहिक नामक स्तोत्रका वर्णन
  33. [अध्याय 180] ऋषिपंचमी - व्रतकी कथा, विधि और महिमा
  34. [अध्याय 181] न्याससहित अपामार्जन नामक स्तोत्र और उसकी महिमा
  35. [अध्याय 182] श्रीविष्णुकी महिमा - भक्तप्रवर पुण्डरीककी कथा
  36. [अध्याय 183] श्रीगंगाजीकी महिमा, वैष्णव पुरुषोंके लक्षण तथा श्रीविष्णु प्रतिमाके पूजनका माहात्म्य
  37. [अध्याय 184] चैत्र और वैशाख मासके विशेष उत्सवका वर्णन, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़में जलस्थ श्रीहरिके पूजनका महत्त्व
  38. [अध्याय 185] पवित्रारोपणकी विधि, महिमा तथा भिन्न-भिन्न मासमें श्रीहरिकी पूजामें काम आनेवाले विविध पुष्पोंका वर्णन
  39. [अध्याय 186] कार्तिक-व्रतका माहात्म्य - गुणवतीको कार्तिक व्रतके पुण्यसे भगवान्‌की प्राप्ति
  40. [अध्याय 187] कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसंग शंखासुरके वध, वेदोंके उद्धार तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
  41. [अध्याय 188] कार्तिक मासमें स्नान और पूजनकी विधि
  42. [अध्याय 189] कार्तिक व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि
  43. [अध्याय 190] कार्तिक- व्रतके पुण्य-दानसे एक राक्षसीका उद्धार
  44. [अध्याय 191] कार्तिक-माहात्म्यके प्रसंगमें राजा चोल और विष्णुदास की कथा
  45. [अध्याय 192] पुण्यात्माओंके संसर्गसे पुण्यकी प्राप्तिके प्रसंगमें धनेश्वर ब्राह्मणकी कथा
  46. [अध्याय 193] अशक्तावस्थामें कार्तिक व्रतके निर्वाहका उपाय
  47. [अध्याय 194] कार्तिक मासका माहात्म्य और उसमें पालन करनेयोग्य नियम
  48. [अध्याय 195] प्रसंगतः माघस्नानकी महिमा, शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास- व्रतकी विधिका वर्णन
  49. [अध्याय 196] शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य
  50. [अध्याय 197] भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली कृत्य, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन
  51. [अध्याय 198] प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपंचक व्रतकी विधि एवं महिमा
  52. [अध्याय 199] भक्तिका स्वरूप, शालग्रामशिलाकी महिमा तथा वैष्णवपुरुषोंका माहात्म्य
  53. [अध्याय 200] भगवत्स्मरणका प्रकार, भक्तिकी महत्ता, भगवत्तत्त्वका ज्ञान, प्रारब्धकर्मकी प्रबलता तथा भक्तियोगका उत्कर्ष
  54. [अध्याय 201] पुष्कर आदि तीर्थोका वर्णन
  55. [अध्याय 202] वेत्रवती और साभ्रमती (साबरमती) नदीका माहात्म्य
  56. [अध्याय 203] साभ्रमती नदीके अवान्तर तीर्थोका वर्णन
  57. [अध्याय 204] अग्नितीर्थ, हिरण्यासंगमतीर्थ, धर्मतीर्थ आदिकी महिमा
  58. [अध्याय 205] माभ्रमती-तटके कपीश्वर, एकधार, सप्तधार और ब्रह्मवल्ली आदि तीर्थोकी महिमाका वर्णन
  59. [अध्याय 206] साभ्रमती-तटके बालार्क, दुर्धर्षेश्वर तथा खड्गधार आदि तीर्थोंकी महिमाका वर्णन
  60. [अध्याय 207] वार्त्रघ्नी आदि तीर्थोकी महिमा
  61. [अध्याय 208] श्रीनृसिंहचतुर्दशी के व्रत तथा श्रीनृसिंहतीर्थकी महिमा
  62. [अध्याय 209] श्रीमद्भगवद्गीताके पहले अध्यायका माहात्म्य
  63. [अध्याय 210] श्रीमद्भगवद्गीताके दूसरे अध्यायका माहात्म्य
  64. [अध्याय 211] श्रीमद्भगवद्गीताके तीसरे अध्यायका माहात्म्य
  65. [अध्याय 212] श्रीमद्भगवद्गीताके चौथे अध्यायका माहात्म्य
  66. [अध्याय 213] श्रीमद्भगवद्गीताके पाँचवें अध्यायका माहात्म्य
  67. [अध्याय 214] श्रीमद्भगवद्गीताके छठे अध्यायका माहात्म्य
  68. [अध्याय 215] श्रीमद्भगवद्गीताके सातवें तथा आठवें अध्यायोंका माहात्म्य
  69. [अध्याय 216] श्रीमद्भगवद्गीताके नवें और दसवें अध्यायोंका माहात्म्य
  70. [अध्याय 217] श्रीमद्भगवद्गीताके ग्यारहवें अध्यायका माहात्म्य
  71. [अध्याय 218] श्रीमद्भगवद्गीताके बारहवें अध्यायका माहात्म्य
  72. [अध्याय 219] श्रीमद्भगवद्गीताके तेरहवें और चौदहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  73. [अध्याय 220] श्रीमद्भगवद्गीताके पंद्रहवें तथा सोलहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  74. [अध्याय 221] श्रीमद्भगवद्गीताके सत्रहवें और अठारहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  75. [अध्याय 222] देवर्षि नारदकी सनकादिसे भेंट तथा नारदजीके द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्यके वृत्तान्तका वर्णन
  76. [अध्याय 223] भक्तिका कष्ट दूर करनेके लिये नारदजीका उद्योग और सनकादिके द्वारा उन्हें साधनकी प्राप्ति
  77. [अध्याय 224] सनकादिद्वारा श्रीमद्भागवतकी महिमाका वर्णन तथा कथा-रससे पुष्ट होकर भक्ति, ज्ञान और वैराग्यका प्रकट होना
  78. [अध्याय 225] कथामें भगवान्का प्रादुर्भाव, आत्मदेव ब्राह्मणकी कथा - धुन्धुकारी और गोकर्णकी उत्पत्ति तथा आत्मदेवका वनगमन
  79. [अध्याय 226] गोकर्णजीकी भागवत कथासे धुन्धुकारीका प्रेतयोनिसे उद्धार तथा समस्त श्रोताओंको परमधामकी प्राप्ति
  80. [अध्याय 227] श्रीमद्भागवतके सप्ताहपारायणकी विधि तथा भागवत माहात्म्यका उपसंहार
  81. [अध्याय 228] यमुनातटवर्ती 'इन्द्रप्रस्थ' नामक तीर्थकी माहात्म्य कथा
  82. [अध्याय 229] निगमोद्बोध नामक तीर्थकी महिमा - शिवशर्मा के पूर्वजन्मकी कथा
  83. [अध्याय 230] देवल मुनिका शरभको राजा दिलीपकी कथा सुनाना - राजाको नन्दिनीकी सेवासे पुत्रकी प्राप्ति
  84. [अध्याय 231] शरभको देवीकी आराधनासे पुत्रकी प्राप्ति; शिवशमांके पूर्वजन्मकी कथाका और निगमोद्बोधकतीर्थकी महिमाका उपसंहार
  85. [अध्याय 232] इन्द्रप्रस्थके द्वारका, कोसला, मधुवन, बदरी, हरिद्वार, पुष्कर, प्रयाग, काशी, कांची और गोकर्ण आदि तीर्थोका माहात्य
  86. [अध्याय 233] वसिष्ठजीका दिलीपसे तथा भृगुजीका विद्याधरसे माघस्नानकी महिमा बताना तथा माघस्नानसे विद्याधरकी कुरूपताका दूर होना
  87. [अध्याय 234] मृगशृंग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
  88. [अध्याय 235] मृगशृंग मुनिके द्वारा माघके पुण्यसे एक हाथीका उद्धार तथा मरी हुई कन्याओंका जीवित होना
  89. [अध्याय 236] यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन
  90. [अध्याय 237] महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार
  91. [अध्याय 238] मृगशृंगका विवाह, विवाहके भेद तथा गृहस्थ आश्रमका धर्म
  92. [अध्याय 239] पतिव्रता स्त्रियोंके लक्षण एवं सदाचारका वर्णन
  93. [अध्याय 240] मृगशृंगके पुत्र मृकण्डु मुनिकी काशी यात्रा, काशी- माहात्म्य तथा माताओंकी मुक्ति
  94. [अध्याय 241] मार्कण्डेयजीका जन्म, भगवान् शिवकी आराधनासे अमरत्व प्राप्ति तथा मृत्युंजय - स्तोत्रका वर्णन
  95. [अध्याय 242] माघस्नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
  96. [अध्याय 243] माघ मासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति
  97. [अध्याय 244] सनातन मोक्षमार्ग और मन्त्रदीक्षाका वर्णन
  98. [अध्याय 245] भगवान् विष्णुकी महिमा, उनकी भक्तिके भेद तथा अष्टाक्षर मन्त्रके स्वरूप एवं अर्थका निरूपण
  99. [अध्याय 246] श्रीविष्णु और लक्ष्मीके स्वरूप, गुण, धाम एवं विभूतियोंका वर्णन
  100. [अध्याय 247] वैकुण्ठधाममें भगवान् की स्थितिका वर्णन, योगमायाद्वारा भगवान्‌की स्तुति तथा भगवान्‌के द्वारा सृष्टि रचना
  101. [अध्याय 248] देवसर्ग तथा भगवान्‌के चतुर्व्यूहका वर्णन
  102. [अध्याय 249] मत्स्य और कूर्म अवतारोंकी कथा-समुद्र-मन्धनसे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव और एकादशी - द्वादशीका माहात्म्य
  103. [अध्याय 250] नृसिंहावतार एवं प्रह्लादजीकी कथा
  104. [अध्याय 251] वामन अवतारके वैभवका वर्णन
  105. [अध्याय 252] परशुरामावतारकी कथा
  106. [अध्याय 253] श्रीरामावतारकी कथा - जन्मका प्रसंग
  107. [अध्याय 254] श्रीरामका जातकर्म, नामकरण, भरत आदिका जन्म, सीताकी उत्पत्ति, विश्वामित्रकी यज्ञरक्षा तथा राम आदिका विवाह
  108. [अध्याय 255] श्रीरामके वनवाससे लेकर पुनः अयोध्या में आनेतकका प्रसंग
  109. [अध्याय 256] श्रीरामके राज्याभिषेकसे परमधामगमनतकका प्रसंग
  110. [अध्याय 257] श्रीकृष्णावतारकी कथा-व्रजकी लीलाओंका प्रसंग
  111. [अध्याय 258] भगवान् श्रीकृष्णकी मथुरा-यात्रा, कंसवध और उग्रसेनका राज्याभिषेक
  112. [अध्याय 259] जरासन्धकी पराजय द्वारका-दुर्गकी रचना, कालयवनका वध और मुचुकुन्दकी मुक्ति
  113. [अध्याय 260] सुधर्मा - सभाकी प्राप्ति, रुक्मिणी हरण तथा रुक्मिणी और श्रीकृष्णका विवाह
  114. [अध्याय 261] भगवान् के अन्यान्य विवाह, स्यमन्तकमणिकी कथा, नरकासुरका वध तथा पारिजातहरण
  115. [अध्याय 262] अनिरुद्धका ऊषाके साथ विवाह
  116. [अध्याय 263] पौण्ड्रक, जरासन्ध, शिशुपाल और दन्तवक्त्रका वध, व्रजवासियोंकी मुक्ति, सुदामाको ऐश्वर्य प्रदान तथा यदुकुलका उपसंहार
  117. [अध्याय 264] श्रीविष्णु पूजनकी विधि तथा वैष्णवोचित आचारका वर्णन
  118. [अध्याय 265] श्रीराम नामकी महिमा तथा श्रीरामके १०८ नामका माहात्म्य
  119. [अध्याय 266] त्रिदेवोंमें श्रीविष्णुकी श्रेष्ठता तथा ग्रन्थका उपसंहार