पुलस्त्यजी कहते हैं— राजेन्द्र ! अब यदुपुत्र क्रोष्टुके वंशका, जिसमें श्रेष्ठ पुरुषोंने जन्म लिया था, वर्णन सुनो। क्रोष्टुके ही कुलमें वृष्णिवंशावतंस भगवान् श्रीकृष्णका अवतार हुआ है। क्रोष्टुके पुत्र महामना जिनीवान् हुए उनके पुत्रका नाम स्वाति था। स्वातिसे कुशंकुका जन्म हुआ। कुशंकुसे चित्ररथ उत्पन्न हुए, जो शशविन्दु नामसे विख्यात चक्रवर्ती राजा हुए। शशविन्दुके दस हजार पुत्र हुए। वे बुद्धिमान्, सुन्दर, प्रचुर वैभवशाली और तेजस्वी थे। उनमें भी सौ प्रधान थे। उन सौ पुत्रोंमें भी, जिनके नामके साथ 'पृभु' शब्द जुड़ा था, वे महान् बलवान् थे। उनके पूरे नाम इस प्रकार है-पृथुश्रवा पृथुयशा पृथुतेज, पृथूद्भव, पृथुकीर्ति और पृथुमति। पुराणोंके ज्ञाता पुरुष उन सबमें पृथुश्रवाको श्रेष्ठ बतलाते हैं। पृथुश्रवासे उशना नामक पुत्र हुआ, जो शत्रुओंको सन्ताप देनेवाला था। उशनाका पुत्र शिनेयु हुआ, जो सज्जनोंमें श्रेष्ठ था। शिनेयुका पुत्र रुक्मकवच नामसे प्रसिद्ध हुआ, वह शत्रुसेनाका विनाश करनेवाला था। राजा रुक्मकवचने एक बार अश्वमेध यज्ञका आयोजन किया और उसमें दक्षिणाके रूपमें यह सारी पृथ्वी ब्राह्मणोंको दे दी। उसके रुक्मेषु, पृथुरुक्म, ज्यामघ, परिघ और हरि-ये पाँच पुत्र उत्पन्न हुए, जो महान् बलवान् और पराक्रमी थे। उनमेंसे परिघ और हरिको उनके पिताने विदेह देशके राज्यपर स्थापित किया। स्वमेषु राजा हुआ और पृथुस्कम उसके अधीन होकर रहने लगा। उन दोनोंने मिलकर अपने भाई ज्यामघको घरसे निकाल दिया। ज्यामघ ऋक्षवान् पर्वतपर जाकर जंगली फलमूलों से जीवन-निर्वाहकरते हुए वहाँ रहने लगे। ज्यामघकी स्त्री शैब्या बड़ी सती-साध्वी स्त्री थी। उससे विदर्भ नामक पुत्र हुआ। विदर्भसे तीन पुत्र हुए - क्रथ, कैशिक और लोमपाद । राजकुमार क्रथ और कैशिक बड़े विद्वान् थे तथा लोमपाद परम धर्मात्मा थे। तत्पश्चात् राजा विदर्भने और भी अनेकों पुत्र उत्पन्न किये, जो युद्ध कर्ममें कुशल तथा शूरवीर थे। लोमपादका पुत्र बभ्रु और बभ्रुका पुत्र हेति हुआ। कैशिकके चिदि नामक पुत्र हुआ, जिससे चैद्य राजाओंकी उत्पत्ति बतलायी जाती है।
विदर्भका जो क्रथ नामक पुत्र था, उससे कुन्तिका जन्म हुआ, कुन्तिसे धृष्ट और धृष्टसे पृष्टकी उत्पत्ति हुई। पृष्ट प्रतापी राजा था। उसके पुत्रका नाम निर्वृति था। वह परम धर्मात्मा और शत्रुवीरोंका नाशक था। निर्वृतिके दाशार्ह नामक पुत्र हुआ, जिसका दूसरा नाम विदूरथ था। दाशार्हका पुत्र भीम और भीमका जीमूत हुआ। जीमूतके पुत्रका नाम विकल था । विकलसे भीमरथ नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई। भीमरथका पुत्र नवरथ, नवरथका दृढरथ और दृढरथका पुत्र शकुनि हुआ। शकुनिसे करम्भ और करम्भसे देवरातका जन्म हुआ। देवरातके पुत्र महायशस्वी राजा देवक्षत्र हुए। देवक्षत्रका पुत्र देवकुमारके समान अत्यन्त तेजस्वी हुआ। उसका नाम मधु था । मधुसे कुरुवशका जन्म हुआ। कुरुवशके पुत्रका नाम पुरुष था। वह पुरुषोंमें श्रेष्ठ हुआ। उससे विदर्भकुमारी भद्रवतीके गर्भसे जन्तुका जन्म हुआ। जन्तुका दूसरा नाम पुरुद्वसु था। जन्तुकी पत्नीका नामवेत्रकी था। उसके गर्भसे सत्त्वगुणसम्पन्न सात्वतकी उत्पत्ति हुई। जो सात्वतवंशकी कीर्तिका विस्तार करनेवाले थे। सत्त्वगुणसम्पन्न सात्वतसे उनकी रानी कौसल्याने भजिन, भजमान, दिव्य राजा देवावृध, अन्धक, महाभोज और वृष्णि नामके पुत्रोंको उत्पन्न किया। इनसे चार वंशका विस्तार हुआ। उनका वर्णन सुनो। भजमानकी पत्नी संजयकुमारी सृजयीके गर्भसे भाज नामक पुत्रकी उत्पत्ति हुई। भाजसे भाजकोंका जन्म हुआ। भाजकी दो स्त्रियाँ थीं। उन दोनोंने बहुत से पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हैं- विनय, करुण और वृष्णि। इनमें वृष्णि शत्रुके नगरोंपर विजय पानेवाले थे। भाज और उनके पुत्र- सभी भाजक नामसे प्रसिद्ध हुए; क्योंकि भजमानसे इनकी उत्पत्ति हुई थी।
देवावृधसे बभ्रु नामक पुत्रका जन्म हुआ, जो सभी उत्तम गुणोंसे सम्पन्न था। पुराणोंके ज्ञाता विद्वान् पुरुष महात्मा देवावृधके गुणोंका बखान करते हुए इस वंशके विषयमें इस प्रकार अपना उद्गार प्रकट करते हैं— 'देवावृध देवताओंके समान हैं और बभ्रु समस्त मनुष्योंमें श्रेष्ठ हैं। देवावृध और बभ्रुके उपदेशसे छिहत्तर हजार मनुष्य मोक्षको प्राप्त हो चुके हैं।' बभ्रुसे भोजका जन्म हुआ, जो यज्ञ, दान और तपस्यामें धीर, ब्राह्मणभत्त, उत्तम व्रतोंका दृढ़तापूर्वक पालन करनेवाले रूपवान् तथा महातेजस्वी थे। शरकान्तकी कन्या मृतकावती भोजकी पत्नी हुई। उसने भोजसे कुकुर, भजमान, समीक और बलबर्हिष- ये चार पुत्र उत्पन्न किये। कुकुरके पुत्र भूष्णुष्णुकेति धृतिम कपोतरोमा के नैमिति नैमित्तिके सुमृत और मुके पुत्र नरि हुए। नरि बड़े विद्वान् थे। उनका दूसरा नाम चन्दनोदक दुन्दुभि बतलाया जाता है। उनसे अभिजित् और अभिजित्से पुनर्वसु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। शत्रुविजयी पुनर्वसुसे दो सन्तानें हुई; एक पुत्र और एक कन्या पुत्रका नाम आहुक था और कन्याका आहुकी। भोजमें कोई असत्यवादी जन यज्ञ न करनेवाल हजारसे कम दान करनेवाला, अपवित्र और मूर्ख नहीं था। भोजसे बढ़कर कोई हुआ ही नहीं। यहभोजवंश आहुकतक आकर समाप्त हो गया। आयुकने अपनी बहिन आटुकीका व्याह अवन्ती देशमें किया था। आहुकको एक पुत्री भी थी, जिसने दो पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हैं- देवक और उग्रसेन वे दोनों देवकुमारों के समान तेजस्वी हैं। देवकके चार पुत्र हुए, जो देवताओंके समान सुन्दर और वीर हैं। उनके नाम हैं- देववान्, उपदेव, सुदेव और देवरक्षक। उनके सात बहिनें थीं, जिनका व्याह देवकने वसुदेवजीके साथ कर दिया। उन सातोंके नाम इस प्रकार हैं-देवकी, तदेवा, यशोदा, श्रुतिश्रव श्रीदेवा, उपदेवा और सुरूपा । उग्रसेनके नौ पुत्र हुए। उनमें कंस सबसे बड़ा था। शेषके नाम इस प्रकार हैं—न्यग्रोध, सुनामा, कंक, शंकु, सुभू, राष्ट्रपाल, बद्धमुष्टि और सुमुष्टिक। उनके पाँच बहिनें थीं कंसा कंसवती, सुरभी, राष्ट्रपाली और कंका ये सब की सब बड़ी सुन्दरी थीं। इस प्रकार सन्तानसहित उग्रसेनतक कुकुर- वंशका वर्णन किया गया।
[भोजके दूसरे पुत्र] भजमानके विदूरथ हुआ, वह रथियों में प्रधान था। उसके दो पुत्र हुए- राजाधिदेव और शूर राजाधिदेवके भी दो पुत्र हुए- शोणाश्व और श्वेतवाहन वे दोनों वीर पुरुषोंके सम्माननीय और क्षत्रिय धर्मका पालन करनेवाले थे। शोणाश्वके पाँच पुत्र हुए वे सभी शूरवीर और बुद्धकर्ममें कुशल थे। उनके नाम इस प्रकार है-शमी, गदवर्मा, निमूर्त चक्रजित् और शुचि शमीके पुत्र प्रतिक्षत्र, प्रतिक्षत्र के भोज और भोजके हृदिक हुए। हृदिकके दस पुत्र हुए, जो भयानक पराक्रम दिखानेवाले थे। उनमें कृतवर्मा सबसे बड़ा था। उससे छोटोंके नाम शतधन्वा, देवार्ड, सुभानु, भीषण, महाबल, अजात विजाद कारक और करम्भक हैं। देवार्हका पुत्र कम्बलबर्हिष हुआ, वह विद्वान् पुरुष था। उसके दो पुत्र हुए समौजा और असमौजा अजातके पुत्रसे भी समौजा नामके दो पुत्र उत्पन्न हुए। समौजाके तीन पुत्र हुए, जो परम धार्मिक और पराक्रमी थे। उनके नाम हैं सुदृश, सुरांश और कृष्ण । [सात्वतके कनिष्ठ पुत्र] वृष्णिके वंशमें अनमित्रनामके प्रसिद्ध राजा हो गये हैं, वे अपने पिताके कनिष्ठ पुत्र थे उनसे शिनि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। अनमित्रसे वृष्णिवीर युधाजित्का भी जन्म हुआ। उनके सिवा दो वीर पुत्र और हुए, जो ऋषभ और क्षत्रके नामसे विख्यात हुए। उनमेंसे ॠषभने काशिराजकी पुत्रीको पत्नीके रूपमें ग्रहण किया। उससे जयन्तकी उत्पत्ति हुई। जयन्तने जयन्ती नामकी सुन्दरी भार्याके साथ विवाह किया। उसके गर्भसे एक सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ, जो सदा यज्ञ करनेवाला, अत्यन्त धैर्यवान् शास्त्रज्ञ और अतिथियोंका प्रेमी था उसका नाम अक्रूर था। अक्रूर यज्ञकी दीक्षा ग्रहण करनेवाले और बहुत-सी दक्षिणा देनेवाले थे। उन्होंने रत्नकुमारी के साथ विवाह किया और उसके गर्भसे ग्यारह महाबली पुत्रोंको उत्पन्न किया। अकूरने पुनः शूरसेना नमकी पत्नीके गर्भसे देववान् और उपदेव नामक दो और पुत्रोंको जन्म दिया। इसी प्रकार उन्होंने अश्विनी नामकी पत्नीसे भी कई पुत्र उत्पन्न किये।
[विदूरथकी पत्नी] ऐक्ष्वाकीने मीढुष नामक पुत्रको जन्म दिया। उनका दूसरा नाम शूर भी था शूरने भोजाके गर्भसे दस पुत्र उत्पन्न किये। उनमें आनकदुन्दुभि नामसे प्रसिद्ध महाबाहु वसुदेव ज्येष्ठ थे। उनके सिवा शेष पुत्रोंके नाम इस प्रकार है-देवभाग, देवखवा, अनावृष्टि, कुनि, नन्दि, सकृयशाः श्याम समीढु और शंसस्यु। शूरसे पाँच सुन्दरी कन्याएँ भी उत्पन्न हुई, जिनके नाम हैं-श्रुतिकीर्ति, पृथा श्रुतदेवी, श्रुतश्रवा और राजाधिदेवी। ये पाँचों वीर पुत्रोंकी जननी थीं। श्रुतदेवीका विवाह वृद्ध नामक राजाके साथ हुआ। उसने कारूष नामक पुत्र उत्पन्न किया। श्रुतिकीर्तिने केकवनरेशके अंशसे सन्तर्दनको जन्म दिया। त दिनकी पत्नी थी। उसके गर्भ से सुनीथ (शिशुपाल) का जन्म हुआ। राजाधिदेवीके गर्भ से धर्मकी भाव अभिमर्दिताने जन्म ग्रहण किया। शूरकी राजा कुन्तिभोजके साथ मैत्री थी, अतः उन्होंने अपनी कन्यापृथाको उन्हें गोद दे दिया। इस प्रकार वसुदेवकी बहिन पृथा कुन्तिभोजकी कन्या होनेके कारण कुन्तीके नामसे प्रसिद्ध हुई। कुन्तिभोजने महाराज पाण्डुके साथ कुन्तीका विवाह किया। कुन्तीसे तीन पुत्र उत्पन्न हुए- युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन। अर्जुन इन्द्रके समान पराक्रमी हैं। वे देवताओंके कार्य सिद्ध करनेवाले, सम्पूर्ण दानवोंके नाशक तथा इन्द्रके लिये भी अवध्य हैं। उन्होंने दानवोंका संहार किया है। पाण्डुकी दूसरी रानी माद्रवती (माद्री) के गर्भसे दो पुत्रोंकी उत्पत्ति सुनी गयी है, जो नकुल और सहदेव नामसे प्रसिद्ध हैं। वे दोनों रूपवान् और सत्त्वगुणी हैं। वसुदेवजीकी दूसरी पत्नी रोहिणीने, जो पुरुवंशकी कन्या हैं, ज्येष्ठ पुत्रके रूपमें बलरामको उत्पन्न किया। तत्पश्चात् उनके गर्भसे रणप्रेमी सारण, दुर्धर, दमन और लम्बी ठोढ़ीवाले पिण्डारक उत्पन्न हुए। वसुदेवजीकी पत्नी जो देवकी देवी हैं, उनके गर्भसे पहले तो महाबाहु प्रजापतिके अंशभूत बालक उत्पन्न हुए। फिर [कंसके द्वारा उनके मारे जानेपर ] श्रीकृष्णका अवतार हुआ। विजय, रोचमान, वर्द्धमान और देवल- ये सभी महात्मा उपदेवीके गर्भसे उत्पन्न हुए हैं। श्रुतदेवीने महाभाग गवेषणको जन्म दिया, जो संग्राममें पराजित होनेवाले नहीं थे।
[ अब श्रीकृष्णके प्रादुर्भावकी कथा कही जाती है।] जो श्रीकृष्णके जन्म और वृद्धिकी कथाका प्रतिदिन पाठ या श्रवण करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। * पूर्वकालमें जो प्रजाओंके स्वामी थे, वे ही महादेव श्रीकृष्ण लीलाके लिये इस समय मनुष्यों में अवतीर्ण हुए हैं। पूर्वजन्ममें देवकी और वसुदेवजीने तपस्या की थी, उसीके प्रभावसे वसुदेवजीके द्वारा देवकीके गर्भसे भगवान्का प्रादुर्भाव हुआ। उस समय उनके नेत्र कमलके समान शोभा पा रहे थे। उनके चार भुजाएँ थीं। उनका दिव्य रूप मनुष्योंका मन मोहनेवाला था। श्रीवत्ससे चिह्नित एवं शंख-चक्र आदि लक्षणोंसेयुक्त भगवान्के दिव्य विग्रहको देखकर वसुदेवजीबोले- 'प्रभो! इस रूपको छिपा लीजिये। मैं कंससे डरा हुआ हूँ, इसीलिये ऐसा कहता हूँ। उसने मेरे छ; पुत्रोंको, जो देखनेमें बहुत ही सुन्दर थे, मार डाला है।' वसुदेवजीकी बात सुनकर भगवान्ने अपने दिव्यरूपको छिपा लिया। फिर भगवान्की आज्ञा लेकर वसुदेवजी उन्हें नन्दके घर ले गये और नन्दगोपको देकर बोले 'आप इस बालककी रक्षा करें; क्योंकि इससे सम्पूर्ण यादवोंका कल्याण होगा। देवकीका यह बालक जबतक कंसका वध नहीं करेगा, तबतक इस पृथ्वीपर भार बढ़ानेवाले अमंगलमय उपद्रव होते रहेंगे। भूतलपर जितने दुष्ट राजा हैं, उन सबका यह संहार करेगा। यह बालक साक्षात् भगवान् है। ये भगवान् कौरव पाण्डवों के युद्धमें सम्पूर्ण क्षत्रियोंके एकत्रित होनेपर अर्जुनके सारथिका काम करेंगे और पृथ्वीको क्षत्रियहीन करके उसका उपभोग एवं पालन करेंगे और अन्तमें समस्त यदुवंशको देवलोकमें पहुँचायेंगे।
भीष्मने पूछा- ब्रह्मन् ! ये वसुदेव कौन थे? यशस्विनी देवकीदेवी कौन थीं तथा ये नन्दगोप और उनकी पत्नी महाव्रता यशोदा कौन थीं? जिसने बालकरूपमें भगवान्को जन्म दिया और जिसने उनकापालन-पोषण किया, उन दोनों स्त्रियोंका परिचय दीजिये।
पुलस्त्यजी बोले राजन् पुरुष वसुदेवजी कश्यप # और उनको प्रिया देवकी अदिति कही गयी हैं। कश्यप ब्रह्माजीके अंश हैं और अदिति पृथ्वीका। इसी प्रकार द्रोण नामक वसु ही नन्दगोपके नामसे विख्यात हुए हैं तथा उनकी पत्नी धरा यशोदा हैं। देवी देवकीने पूर्वजन्ममें अजन्मा परमेश्वरसे जो कामना की थी, उसकी वह कामना महाबाहु श्रीकृष्णने पूर्ण कर दी। यज्ञानुष्ठान बंद हो गया था, धर्मका उच्छेद हो रहा था; ऐसी अवस्थामें धर्मकी स्थापना और पापी असुरोंका संहार करनेके लिये भगवान् श्रीविष्णु वृष्णिकुलमें प्रकट हुए हैं। रुक्मिणी, सत्यभामा, नग्नजितकी पुत्री सत्या सुमित्रा शैब्या, गान्धार-राजकुमारी लक्ष्मणा सुभीमा, मद्रराजकुमारी कौसल्या और विरजा आदि सोलह हजार देवियाँ श्रीकृष्णकी पत्नियाँ हैं। रुक्मिणीने दस पुत्र उत्पन्न किये; वे सभी युद्धकर्ममें कुशल हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-महाबली प्रद्युम्न, रणशूर चारुदेष्ण, सुचारु चारुभद्र, सदश्व, ह्रस्व, चारुगुप्त, चारुभद्र, चारुक और चारुहास। इनमें प्रद्युम्न सबसे बड़े और चारुहास सबसे छोटे हैं। रुक्मिणीने एक कन्याको भी जन्म दिया, जिसका नाम चारुमती है। सत्यभामासे भानु, भीमरथ, क्षण, रोहित, दीप्तिमान्, ताम्रबन्ध और जलन्धम- ये सात पुत्र उत्पन्न हुए। इन सातोंके एक छोटी बहिन भी है। जाम्बवतीके पुत्र साम्ब हुए, जो बड़े ही सुन्दर हैं। ये सौर- शास्त्रके प्रणेता तथा प्रतिमा एवं मन्दिरके निर्माता हैं। मित्रविन्दाने सुमित्र, चारुमित्र और मित्रविन्दको जन्म दिया। मित्रबाहु और सुनीय आदि सत्याके पुत्र है। इस प्रकार श्रीकृष्णके हजारों पुत्र हुए प्रद्युम्नके विदर्भकुमारी रुक्मवती गर्भसे अनिरुद्ध नामक परम बुद्धिमान् पुत्र उत्पन्न हुआ । अनिरुद्ध संग्राममें उत्साहपूर्वक युद्ध करनेवाले वीर हैं। अनिरुद्धसे मृगकेतनका जन्म हुआ राजा सुपार्श्वकी पुत्री काम्याने साम्यसे तरस्वी नामक पुत्र प्राप्त किया। प्रमुख वीर एवं महात्मा यादवोंकी संख्या तीन करोड़ साठ लाखके लगभग है। वे सभी अत्यन्त पराक्रमी औरमहाबली हैं। उन सबकी देवताओंके अंशसे उत्पत्ति हुई है। देवासुर संग्राममें जो महाबली असुर मारे गये थे, वे इस मनुष्यलोकमें उत्पन्न होकर सबको कष्ट दे रहे थे; उन्हीं का संहार करनेके लिये भगवान् यदुकुलमें अवतीर्णहुए हैं। महात्मा यादवोंके एक सौ एक कुल हैं। भगवान् श्रीकृष्ण ही उन सबके नेता और स्वामी हैं तथा सम्पूर्ण यादव भी भगवान्की आज्ञाके अधीन रहकर ऋद्धि-सिद्धिसे सम्पन्न हो रहे हैं। *