शेषजी कहते हैं- एक दिन प्रातः काल वह अश्व गंगाके किनारे महर्षि वाल्मीकिके श्रेष्ठ आश्रमपर जा पहुँचा, जहाँ अनेकों ऋषि-मुनि निवास करते थे और अग्निहोत्रका धुंआ उठ रहा था। जानकीजीके पुत्र लव अन्य मुनिकुमारोंके साथ प्रातः कालीन हवन कर्म करनेके उद्देश्यसे उसके योग्य समिधाएँ लानेके लियेवनमें गये थे। वहाँ सुवर्णपत्रसे चिह्नित उस यज्ञ सम्बन्धी अश्वको उन्होंने देखा, जो कुंकुम, अगुरु और कस्तूरीकी दिव्य गन्धसे सुवासित था । उसे देखकर उनके मनमें कौतूहल पैदा हुआ और वे मुनिकुमारोंसे बोले- 'यह मनके समान शीघ्रगामी अश्व किसका है, जो दैवात् मेरे आश्रमपर आ पहुँचा है? तुम सब लोगमेरे साथ चलकर इसे देखो, डरना नहीं।' यह कहकर लव तुरंत ही घोड़ेके समीप गये रघुकुलमें उत्पन्न कुमार लव कंधेपर धनुष-बाण धारण किये उस घोड़ेके समीप ऐसे सुशोभित हुए मानो दुर्जय वीर जयन्त दिखायी दे रहा हो। घोड़ेके ललाटमें जो पत्र बँधा था, उसमें सुस्पष्ट वर्णमालाओंद्वारा कुछ पंक्तियाँ लिखी थीं; जिनसे उसकी बड़ी शोभा हो रही थी लवने पहुँचकर मुनि-पुत्रोंके साथ वह पत्र पढ़ा। पढ़ते ही उन्हें क्रोध आ गया और वे हाथमें धनुष लेकर ऋषिकुमारोंसे बोले, उस समय रोषके कारण उनकी वाणी स्पष्ट नहीं निकल पाती थी। उन्होंने कहा- 'अरे! इस क्षत्रियकी धृष्टता तो देखो, जो इस घोड़ेके भालपत्रपर इसने अपने प्रताप और बलका उल्लेख किया है। राम क्या हैं, शत्रुघ्नकी क्या हस्ती है? क्या ये ही लोग क्षत्रियके कुलमें उत्पन्न हुए हैं? हमलोग श्रेष्ठ क्षत्रिय नहीं हैं?' इस प्रकारकी बहुत-सी बातें कहकर लवने उस घोड़ेको पकड़ लिया और समस्त राजाओंको तिनकेके समान समझकर हाथमें धनुष-बाण से वे युद्धके लिये तैयार हो गये। मुनिपुत्रोंने देखा कि लव घोड़ेका अपहरण करना चाहते हैं, तो वे उनसे बोले - 'कुमार! हम तुम्हें हितकी बात बता रहे हैं, सुनो, अयोध्याके राजा श्रीराम बड़े बलवान् और पराक्रमी हैं। अपने बलका घमंड रखनेवाले इन्द्र भी उनका घोड़ा नहीं छू सकते [ फिर दूसरेकी तो बात ही क्या है ? ]; अतः तुम इस अश्वको न पकड़ो।'
यह सुनकर लवने कहा- 'तुमलोग ब्राह्मण बालक हो; क्षत्रियोंका बल क्या जानो। क्षत्रिय अपने पराक्रमके लिये प्रसिद्ध होते हैं, किन्तु ब्राह्मणलोग केवल भोजनमें ही पटु हुआ करते हैं। इसलिये तुमलोग घर जाकर माताका परोसा हुआ पक्वान्न उड़ाओ!' लवके ऐसा कहनेपर मुनिकुमार चुप हो रहे और उनका पराक्रम देखनेके लिये दूर जाकर खड़े हो गये। तदनन्तर राजा शत्रुघ्नके सेवक यहाँ आये और घोड़ेको बँधा देखकरसबसे बोले-'अहो किसने इस घोड़ेको यहाँ बाँध रखा है? किसके ऊपर आज यमराज कुपित हुए हैं ? लवने तुरंत उत्तर दिया- 'मैंने इस उत्तम अश्वको बाँध रखा है, जो इसे छुड़ाने आयेगा, उसके ऊपर मेरे बड़े भाई कुश शीघ्र ही क्रोध करेंगे। यमराज भी आ जायें तो क्या कर लेंगे? हमारे बाणोंकी बौछारसे सन्तुष्ट होकर स्वयं ही माथा टेक देंगे और तुरंत अपनी राह लेंगे।'
लवकी बात सुनकर सेवकोंने आपसमें कहा 'यह बेचारा बालक है [ इसकी बातपर ध्यान नहीं देना चाहिये]। तत्पश्चात् वे बँधे हुए घोड़ेको खोलनेके लिये आगे बढ़े। यह देख लवने दोनों हाथोंमें धनुष धारणकर शत्रुघ्नके सेवकोंपर क्षुरप्रका प्रहार आरम्भ किया। इससे उनकी भुजाएँ कट गय और वे शोकसे व्याकुल होकर शत्रुघ्नके पास गये । पूछनेपर सबने लवके द्वारा अपनी बाँहें काटी जानेका समाचार कह सुनाया।