युधिष्ठिर बोले- नारदजी! महर्षि वसिष्ठके बताये हुए अन्यान्य तीर्थोका, जिनका नाम श्रवण करनेसे ही पाप नष्ट हो जाते हैं, मुझसे वर्णन कीजिये । नारदजीने कहा- 'धर्मज्ञ युधिष्ठिर! हिमालयके पुत्र अर्बुद पर्वतकी यात्रा करनी चाहिये, जहाँ पूर्वकालमें पृथ्वी में छेद था। वहाँ महर्षि वसिष्ठका आश्रम हैं, जो तीनों लोकोंमें विख्यात है। वहाँ एक रात निवास करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है। ब्रह्मचर्यके पालनपूर्वक पिंगातीर्थमें आचमन करनेसे कपिला जातिकी सौ गौओंके दानका फल प्राप्त होता है। तत्पश्चात् प्रभासक्षेत्रमें जाना चाहिये। वह विश्वविख्यात तीर्थ है।वहाँ साक्षात् अग्निदेव नित्य निवास करते हैं। उस श्रेष्ठ तीर्थमें शुद्ध एवं एकाग्रचित्त होकर स्नान करनेसे मानव अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञका फल प्राप्त करता है। उसके बाद सरस्वती और समुद्रके संगममें जाकर स्नान करनेसे मनुष्य सहस्र गोदानका फल पाता और स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। जो वरुण देवताके उस तीर्थमें स्नान करके एकाग्रचित्त हो तीन राततक वहाँ निवास तथा देवता और पितरोंका तर्पण करता है, वह चन्द्रमाके समान कान्तिमान् होता और अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है।
भरतश्रेष्ठ ! वहाँसे वरदान नामक तीर्थकी यात्राकरनी चाहिये। वरदानमें स्नान करके मनुष्य सहस्र गोदानका फल प्राप्त करता है। तदनन्तर नियमपूर्वक रहकर नियमित आहारका सेवन करते हुए द्वारकापुरीमें जाना चाहिये। उस तीर्थमें आज भी कमलके चिह्नसे चिलित मुद्राएँ दृष्टिगोचर होती हैं। यह एक अद्भुत बात है। वहाँ कमलदलोंमें त्रिशूलके चिह्न दिखायी देते हैं। यहाँ महादेवजीका निवास है। जो समुद्र और सिन्धु नदीके संगमपर जाकर वरुण-तीर्थमें नहाता और एकाग्रचित्त हो देवताओं, ऋषियों तथा पितरोंका तर्पण करता है, वह अपने तेजसे देदीप्यमान हो वरुणलोकमें जाता है। युधिष्ठिर। मनीषी पुरुष कहते हैं कि भगवान् शंकुकर्णेश्वरकी पूजा करनेसे दस अश्वमेधोंका फल होता है। शंकुकर्णेश्वर तीर्थकी प्रदक्षिणा करके तीनों लोकोंमें विख्यात तिमि नामक तीर्थमें जाना चाहिये। वह सब पापको दूर करनेवाला तीर्थ है। वहाँ स्नान करके देवताओंसहित रुद्रको पूजा करनेसे मनुष्य जन्मभरके किये हुए पापोंको नष्ट कर डालता है। धर्मज्ञ तदनन्तर सबके द्वारा प्रशंसित वसुधारा तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। वहाँ जानेमात्र से ही अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त होता है। कुरुश्रेष्ठ! जो मानव वहाँ स्नान करके एकाग्रचित्त हो देवताओं तथा पितरोंका तर्पण करता है, वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। वहाँ वसुओंका एक दूसरा तीर्थ भी है, जहाँ स्नान और जलपान करनेसे मनुष्य वसुओंका प्रिय होता है। तथा ब्रह्मलुंग नामक तीर्थमें जाकर पवित्र, शुद्धचित्त, पुण्यात्मा तथा रजोगुणरहित पुरुष ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है। वहीं रेणुकाका भी तीर्थ है, जिसका देवता भी सेवन करते हैं। वहाँ स्नान करके ब्राह्मण चन्द्रमाकी भाँति निर्मल होता है।
तदनन्तर पंचनद तीर्थमें जाकर नियमित आहार ग्रहण करते हुए नियमपूर्वक रहना चाहिये। इससे पंचयज्ञोंके अनुष्ठानका फल प्राप्त होता है। भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात् भीमा नदीके उत्तम स्थानपर जाना चाहिये। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य कभी गर्भमें नहीं आता तथा एक लाख गोदानोंका फल प्राप्त करता है। गिरिकुंज नामकतीर्थ तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है। वहाँ जाकर पितामहको नमस्कार करनेसे सहस्र गोदानोंका फल प्राप्त होता है। उसके बाद परम उत्तम विमलतीर्थकी यात्रा करनी चाहिये, जहाँ आज भी सोने और चाँदी जैसे मत्स्य दिखायी देते हैं। नरश्रेष्ठ! वहाँ स्नान करनेसे वाजपेय यज्ञका फल मिलता है और मनुष्य सब पापोंसे शुद्ध हो परम गतिको प्राप्त होता है।
काश्मीरमें जो वितस्ता नामक तीर्थ है, वह नागराज तक्षकका भवन है। वह तीर्थ समस्त पापको दूर करनेवाला है। जो मनुष्य वहाँ स्नान करके देवताओं और पितरोंका तर्पण करता है, वह निश्चय ही वाजपेय यज्ञका फल पाता है। उसका हृदय सब पापोंसे शुद्ध हो जाता है तथा वह परम उत्तम गतिको प्राप्त होता है। वहाँसे मलद नामक तीर्थकी यात्रा करे। राजन्! वहाँ सायं-सन्ध्याके समय विधिपूर्वक आचमन करके जो अग्निदेवको यथाशक्ति चरु निवेदन करता है तथा पितरोंके निमित्त दान देता है, उसका वह दान आदि अक्षय हो जाता है—ऐसा विद्वान् पुरुषोंका कथन है। वहाँ अग्निको दिया हुआ चरु एक लाख गोदान, एक हजार अश्वमेध यज्ञ तथा एक सौ राजसूय यज्ञोंसे भी श्रेष्ठ है। धर्मके ज्ञाता युधिष्ठिर! वहाँसे दीर्घसत्र नामक तीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ जानेमात्रसे मानव राजसूय और अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। शशयान - तीर्थ बहुत ही दुर्लभ है। उस तीर्थ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमाको लोग सरस्वती नदीमें स्नान करते हैं। जो वहाँ स्नान करता है, वह साक्षात् शिवकी भाँति कान्तिमान् होता है; साथ ही उसे सहस्र गोदानका फल मिलता है। कुरुनन्दन ! जो कुमारकोटि नामक तीर्थमें जाकर नियमपूर्वक स्नान करता और देवताओं तथा पितरोंके पूजनमें संलग्न होता है, उसे दस हजार गोदानका फल मिलता है तथा वह अपने कुलका भी उद्धार कर देता है। महाराज चहाँसे एकाग्रचित होकर रुद्रकोटि तीर्थमें जाना चाहिये, जहाँ पूर्वकालमें करोड़ ऋषियोंने भगवान् शिक्के दर्शनकी इच्छासे बड़े हर्षके साथ ध्यान लगाया था। वहाँ स्नान करके पवित्र हुआ मनुष्य अश्वमेधयज्ञका फल पाता और अपने कुलका भी उद्धार करता है। तदनन्तर लोकविख्यात संगम-तीर्थमें जाना चाहिये और वहाँ सरस्वती नदीमें परम पुण्यमय भगवान् जनार्दनकी उपासना करनी चाहिये। उस तीर्थमें स्नान करनेसे मनुष्यका चित्त सब पापोंसे शुद्ध हो जाता है। और वह शिवलोकको प्राप्त होता है।
राजेन्द्र ! तदनन्तर कुरुक्षेत्रकी यात्रा करनी चाहिये। उसकी सब लोग स्तुति करते हैं। वहाँ गये हुए समस्त प्राणी पापमुक्त हो जाते हैं धीर पुरुषको उचित है कि वह कुरुक्षेत्रमें सरस्वती नदीके तटपर एक मासतक निवास करे। युधिष्ठिर ! जो मनसे भी कुरुक्षेत्रका चिन्तन करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह ब्रह्मलोकको जाता है। धर्मज्ञ ! वहाँसे भगवान् विष्णुके उत्तम स्थानको, जो 'सतत नामसे प्रसिद्ध है, जाना चाहिये। वहाँ भगवान् सदा मौजूद रहते हैं। जो उस तीर्थमें नहाकर त्रिभुवनके कारण भगवान् विष्णुका दर्शन करता है, वह विष्णुलोकमें जाता है। तत्पश्चात् पारिप्लवमें जाना चाहिये। वह तीनों लोकोंमें विख्यात तीर्थ है। उसके सेवनसे मनुष्यको अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञोंका फल मिलता है। तत्पश्चात् तीर्थसेवी मनुष्यको शाल्विकिनि नामक तीर्थमें जाना चाहिये। वहाँ दशाश्वमेध घाटपर स्नान करनेसे भी वही फल प्राप्त होता है। तदनन्तर पंचनदमें जाकर नियमित आहार करते हुए नियमपूर्वक रहे। वहाँ कोटि तीर्थमें स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है। तत्पश्चात् परम उत्तम वाराह तीर्थकी यात्रा करे, जहाँ पूर्वकालमें भगवान् विष्णु वराहरूपसे विराजमान हुए थे। उस तीर्थमें निवास करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल प्राप्त होता है। तदनन्तर जयिनीमें जाकर सोमतीर्थमें प्रवेश करे। वहाँ स्नान करके मानव राजसूय यज्ञका फल प्राप्त करता है। कृतशौच-तीर्थमें जाकर उसका सेवन करनेवाला पुरुष पुण्डरीक यज्ञका फल पाता है और स्वयं भी पवित्र हो जाता है। 'पम्पा' नामका तीर्थ तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है, वहाँ जाकर स्नान करनेसे मनुष्य अपनी सम्पूर्ण कामनाओंको प्राप्त कर लेता है। कायशोधन-तीर्थमें जाकर स्नान करनेवालेकेशरीरकी शुद्धि होती है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। तथा जिसका शरीर शुद्ध हो जाता है, वह कल्याणमय उत्तम लोकोंको प्राप्त होता है। तत्पश्चात् लोकोद्धार नामक तीर्थको यात्रा करनी चाहिये, जहाँ पूर्वकालमें सबकी उत्पत्तिके कारणभूत भगवान् विष्णुने समस्त लोकोंका उद्धार किया था राजन् वहाँ पहुँचकर उस उत्तम तीर्थमें स्नान करके मनुष्य आत्मीय जनोंका उद्धार कर देता है। जो कपिला-तीर्थमें जाकर ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए एकाग्रचित्त होकर स्नान तथा देवता पितरोंका पूजन करता है, वह मानव एक सहस्र कपिला- दानका फल पाता है। जो सूर्यतीर्थमें जाकर स्नान करता और मनको काबूमें रखते हुए उपवास परायण होकर देवताओं तथा पितरोंकी पूजा करता है, उसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है तथा वह सूर्यलोकको जाता है। गोभवन नामक तीर्थमें जाकर स्नान करनेवालेको सहस्र गोदानका फल मिलता है।
तदनन्तर ब्रह्मावर्तकी यात्रा करे। ब्रह्मावर्तमें स्नान करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है। वहाँसे अन्यान्य तीर्थोंमें घूमते हुए क्रमशः काशीश्वरके तीर्थों में पहुँचकर स्नान करनेसे मनुष्य सब प्रकारके रोगोंसे छुटकारा पाता और ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठित होता है। तदनन्तर शौच-सन्तोष आदि नियमोंका पालन करते हुए शीतवनमें जाय वहाँ बहुत बड़ा तीर्थ है, जो अन्यत्र दुर्लभ है वह दर्शनमात्रसे एक दण्डमें पवित्र कर देता है। वहाँ एक दूसरा भी श्रेष्ठ तीर्थ है, जो स्नान करनेवाले लोगोंका दुःख दूर करनेवाला माना गया है। वहाँ तत्त्वचिन्तन-परायण विद्वान् ब्राह्मण स्नान करके परम गतिको प्राप्त होते हैं। स्वर्णलोमापनयन नामक तीर्थमें प्राणायामके द्वारा जिनका अन्तःकरण पवित्र हो चुका है, वे परम गतिको प्राप्त होते हैं। दशाश्वमेध नामक तीर्थमें भी स्नान करनेसे उत्तम गतिकी प्राप्ति होती है।
तत्पश्चात् लोकविख्यात मानुष - तीर्थकी यात्रा करे। राजन्। पूर्वकालमें एक व्याधके बाणोंसे पीड़ित हुए कुछ कृष्णमृग उस सरोवर में कूद पड़े थे और उसमें गोता लगाकर मनुष्य शरीरको प्राप्त हुए थे। [ तभीसे वह मानुष तीर्थके नामसे प्रसिद्ध हुआ।] इस तीर्थमें स्नानकरके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जो ध्यान लगाता है, उसका हृदय सब पापसे शुद्ध हो जाता है तथा वह स्वर्गलोक प्रतिष्ठित होता है। राजन्। मानुष तीर्थसे पूर्व दिशामें एक कोसकी दूरीपर आपगा नामसे विख्यात एक नदी बहती है। उसके तटपर जाकर जो मानव देवता और पितरोंके उद्देश्यसे साँवाका बना हुआ भोजन दान देता है, वह यदि एक ब्राह्मणको भोजन ये तो एक करोड़ ब्राह्मणोंके भोजन करानेका फल प्राप्त होता है। वहाँ स्नान करके देवताओं और पितरोंके पूजन तथा एक रात निवास करनेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल प्राप्त होता है। तत्पश्चात् उस तीर्थमें जाना चाहिये, जो इस पृथ्वीपर ब्रह्मानुस्वर तीर्थके नामसे प्रसिद्ध है। यहाँ सप्तर्षियोंके कुण्डोंमें तथा महात्मा कपिलके क्षेत्रमें स्नान करके जो ब्रह्माजीके पास जा उनका दर्शन करता है, वह पवित्र एवं जितेन्द्रिय होता है तथा उसका चित्त सब पापोंसे शुद्ध होनेके कारण वह अन्तमें ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है।
राजन् शुक्लपक्षको दशमीको पुण्डरीक तीर्थमें प्रवेश करना चाहिये। वहाँ स्नान करके मनुष्य पुण्डरीक यज्ञका फल प्राप्त करता है। वहाँसे त्रिविष्टप नामक तीर्थको जाय, वह तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है। यहाँ वैतरणी नामकी एक पवित्र नदी है, जो सब पापोंसे छुटकारा दिलानेवाली है वहाँ स्नान करके शूलपाणि भगवान् शंकरका पूजन करनेसे मनुष्यका हृदय सब पापसे शुद्ध हो जाता है तथा वह परम गतिको प्राप्त होता है। पाणिख्यात नामसे विख्यात तीर्थमें स्नान और देवताओंका तर्पण करके मानव राजसूय यज्ञका फल प्राप्त करता है। तत्पश्चात् विश्वविख्यात मिश्रक (मिश्रिख) मैं जाना चाहिये। नृपश्रेष्ठ। हमारे सुननेमें आया है कि महात्मा व्यासजीने द्विजातिमात्रके लिये वहाँ सब तीर्थोका सम्मेलन किया था, अतः जो मिश्रिखमें स्नान करता है. वह मानो सब तीर्थोंमें स्नान कर लेता है।
नरेश्वर ! जो ऋणान्त कूपके पास जाकर वहाँ एक सेर तिलका दान करता है, वह ऋणसे मुक्त हो परम सिद्धिको प्राप्त होता है। वेदीतीर्थमें स्नान करनेसे मनुष्यको सहस्र गोदानका फल मिलता है। अहन् औरसुदिन ये दो तीर्थ अत्यन्त दुर्लभ हैं। उनमें स्नान करनेसे सूर्यलोककी प्राप्ति होती है। मृगधूम तीर्थ तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है। वहाँ रुद्रपदमें स्नान और महात्मा शूलपाणिका पूजन करके मानव अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। कोटितीर्थमें स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता है। वामनतीर्थ भी तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है। वहाँ जाकर विष्णुपदमें स्नान और भगवान् वामनका पूजन करनेसे तीर्थयात्रीका हृदय सब पापोंसे शुद्ध हो जाता है। कुलम्पुन-तीर्थमें स्नान करके मनुष्य अपने कुलको पवित्र करता है। शालिहोत्रका एक तीर्थ है, जो शातिसूर्य नामसे प्रसिद्ध है उसमें विधिपूर्वक स्नान करनेसे मनुष्यको सहस्र गोदानोंका फल मिलता है। राजन् ! सरस्वती नदीमें एक श्रीकुंज नामक तीर्थ है। वहाँ स्नान करके मनुष्य अग्निष्टोम यज्ञका फल प्राप्त करता है। तत्पश्चात् ब्रह्माजीके उत्तम स्थान (पुष्कर) की यात्रा करनी चाहिये। छोटे वर्णका मनुष्य वहाँ स्नान करनेसे ब्राह्मणत्व प्राप्त करता है और ब्राह्मण शुद्धचित्त होकर परमगतिको प्राप्त होता है।
कपालमोचन तीर्थ सब पापका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नान करके मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है वहाँसे कार्तिकेयके पृथूदक तीर्थमें जाना चाहिये, वह तीनों लोकोंमें विख्यात है वहाँ देवता और पितरोंके पूजनमें तत्पर होकर स्नान करना चाहिये। स्त्री हो या पुरुष, वह मानवबुद्धिसे प्रेरित हो जान-बूझकर या बिना जाने जो कुछ भी अशुभ कर्म किये होता है, वह सब वहाँ स्नान करनेमात्रसे नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, उसे अश्वमेध यज्ञके फल तथा स्वर्गलोककी प्राप्ति होती है। कुरुक्षेत्रको परम पवित्र कहते हैं, कुरक्षेत्रसे भी पवित्र है सरस्वती नदी, उससे भी पवित्र है यहाँ तीर्थ और उन तीथोंसे भी पावन है पृथूदक पृथूदक तीर्थमें जप करनेवाले मनुष्यका पुनर्जन्म नहीं होता। राजन्! श्रीसनत्कुमार तथा महात्मा व्यासने इस तीर्थकी महिमा गायी है। वेदमें भी इसे निश्चित रूपसे महत्त्व दिया गया है। अतः पृथूदक तीर्थमें अवश्य जाना चाहिये। पृथूदक तीर्थसे बढ़कर दूसरा कोई परम पावन तीर्थ नहीं है।निस्सन्देह यही मेध्य, पवित्र और पावन है। वहीं मधुपुर नामक तीर्थ है, वहाँ स्नान करनेसे सहस्र गोदानोंका फल प्राप्त होता है। नरश्रेष्ठ। वहाँसे सरस्वती और अरुणाके संगममें, जो विश्वविख्यात तीर्थ है, जाना चाहिये। वहाँ तीन राततक उपवास करके रहने और स्नान करनेसे ब्रह्महत्या छूट जाती है। साथ ही तीर्थसेवी पुरुषको अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञका फल मिलता है और वह अपनी सात पीढ़ियोंतकका उद्धार कर देता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। वहाँसे शतसहस्र तथा साहस्रक-इन दोनों तीर्थोंमें जाना चाहिये। वे दोनों तीर्थ भी वहीं हैं तथा सम्पूर्ण लोकोंमें उनकी प्रसिद्धि है उन दोनोंमें स्नान करनेसे मनुष्य सहस्त गोदानोंका फल पाता है। वहाँ जो दान या उपवास किया जाता है, वह सहस्रगुना अधिक फल देनेवाला होता है। तदनन्तर परम उत्तम रेणुकातीर्थमें जाना चाहिये और वहाँ देवताओं तथा पितरोंके पूजनमें तत्पर हो स्नान करना चाहिये। ऐसा करनेसे मनुष्यका हृदय सब पापोंसे शुद्ध हो जाता है तथा उसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है। जो क्रोध और इन्द्रियोंको जीतकर विमोचन तीर्थमें स्नान करता है, वह प्रतिग्रहजनित समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है।
तदनन्तर जितेन्द्रिय हो ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए पंचवट तीर्थमें जाकर [स्नान करनेसे] मनुष्यको महान् पुण्य होता है तथा वह स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। जहाँ स्वयं योगेश्वर शिव विराजमान हैं, वहाँ उन देवेश्वरका पूजन करके मनुष्य वहाँकी यात्रा करने मात्र से सिद्धि प्राप्त कर लेता है। कुरुक्षेत्रमें इन्द्रिय-निग्रह तथा ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए स्नान करनेसे मनुष्यका हृदय सब पापोंसे शुद्ध हो जाता है और वह रुद्रलोकको प्राप्त होता है। इसके बाद नियमित आहारका भोजन तथा शौचादि नियमोंका पालन करते हुए स्वर्गद्वारकी यात्रा करे। ऐसा करनेसे मनुष्य अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता और ब्रह्मलोकको जाता है। महाराज नारायण तथा पद्मनाभके क्षेत्रों में जाकर उनका दर्शन करनेसे तीर्थसेवी पुरुष शोभायमान रूप धारण करके विष्णुधामको प्राप्तहोता है। समस्त देवताओंके तीर्थोंमें स्नान करनेमात्रसे मनुष्य सम्पूर्ण दुःखोंसे मुक्त होकर श्रीशिवकी भाँति कान्तिमान् होता है। तत्पश्चात् तीर्थसेवी पुरुष अस्थिपुरमें जाय और उस पावन तीर्थमें पहुँचकर देवताओं तथा पितरोंका तर्पण करे। इससे उसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है। भरतश्रेष्ठ। वहीं गंगाहद नामक कृप है जिसमें तीन करोड़ तीर्थोका निवास है। राजन् ! उसमें स्नान करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकको प्राप्त होता है। आपगामें स्नान और महेश्वरका पूजन करके मनुष्य परम गतिको पाता है और अपने कुलका भी उद्धार कर देता है। तत्पश्चात् तीनों लोकोंमें विख्यात स्थाणुवट तीर्थमें जाना चाहिये यहाँ स्नान करके रात्रिमें निवास करनेसे मनुष्य रुद्रलोकको प्राप्त होता है। जो नियम परायण, सत्यवादी पुरुष एकरात्र नामक तीर्थमें जाकर एक रात निवास करता है, वह ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठित होता है। राजेन्द्र वहाँसे उस त्रिभुवनविख्यात तीर्थमें जाना चाहिये, जहाँ तेजोराशि महात्मा आदित्यका आश्रम है जो मनुष्य उस तीर्थमें स्नान करके भगवान् सूर्यका पूजन करता है, वह सूर्यलोकमें जाता और अपने कुलका उद्धार कर देता है।
युधिष्ठिर इसके बाद सन्निहिता नामक तीर्थको यात्रा करनी चाहिये, जहाँ ब्रह्मा आदि देवता तथा तपोधन ऋषि महान् पुण्यसे युक्त हो प्रतिमास एकत्रित होते हैं। सूर्यग्रहण के समय सन्निहितायें स्नान करनेसे सौ अश्वमेध यज्ञोंके अनुष्ठानका फल होता है। पृथ्वीपर तथा आकाशमें जितने भी तीर्थ, जलाशय, कृष तथा पुण्य-मन्दिर हैं, ये सब प्रत्येक मासकी अमावास्याको निश्चय ही सन्निहितामें एकत्रित होते हैं। अमावास्या तथा सूर्यग्रहणके समय वहाँ केवल स्नान तथा श्राद्ध करनेवाला मानव सहस्र अश्वमेध अनुष्ठानका फल प्राप्त करता है। स्त्री अथवा पुरुषका जो कुछ भी दुष्कर्म होता है, वह सब वहाँ स्नान करनेमात्रसे नष्ट हो जाता है- इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। उस तीर्थमें स्नान करनेवाला पुरुष विमानपर बैठकर ब्रह्मलोकमें जाता है। पृथ्वीपर नैमिषारण्य पवित्र है तथा तीनोंलोकोंमें कुरुक्षेत्रको अधिक महत्त्व दिया गया है। हवासे उड़ायी हुई कुरुक्षेत्रकी धूलि भी यदि देहपर पड़ जाय तो वह पापीको भी परमगतिकी प्राप्ति करा देती है। कुरुक्षेत्र ब्रह्मवेदीपर स्थित है। वह ब्रह्मर्षियोंसे सेवित पुण्यमय तीर्थ है। राजन्! जो उसमें निवास करते हैं, वेकिसी तरह शोकके योग्य नहीं होते। तरण्डकसे लेकर अरण्डकतक तथा रामहद (परशुराम-कुण्ड) से लेकर मचक्रुकतकके भीतरका क्षेत्र समन्तपंचक कहलाता है । यही कुरुक्षेत्र है। इसे ब्रह्माजीके यज्ञकी उत्तर- वेदी कहा गया है।