सूतजी कहते हैं - महात्मा नारदके ये वचन सुनकर राजर्षि अम्बरीषने विस्मित होकर कहा 'महामुने! आप मार्गशीर्ष (अगहन) आदि पवित्र मनको छोड़कर वैशाख मासकी हो इतनी प्रशंसा क्यों करते हैं? उसीको सब मासोंमें श्रेष्ठ क्यों बतलाते हैं? यदि माधव मास सबसे श्रेष्ठ और भगवान् लक्ष्मीपतिको अधिक प्रिय है तो उस समय स्नान करनेकी क्या विधि है ? वैशाख मासमें किस वस्तुका दान, कौन-सी तपस्या तथा किस देवताका पूजन करना चाहिये? कृपानिधे! उस समय किये जानेवाले पुण्यकर्मका आप मुझे उपदेश कीजिये। सद्गुरुके मुखसे उपदेशकी प्राप्ति दुर्लभ होती हैं। उत्तम देश और कालका मिलना भी बड़ा कठिन होता है। राज्य प्राप्ति आदि दूसरे कोई भी भाव हमारे हृदयको इतनी शीतलता नहीं प्रदान करते, जितनी कि आपका यह समागम ।
नारदजीने कहा- राजन्! सुनो, मैं संसारके हितके लिये तुमसे माधव मासकी विधिका वर्णन करता हूँ। जैसा कि पूर्वकालमें ब्रह्माजीने बतलाया था। पहले तो जीवका भारतवर्षमें जन्म होना ही दुर्लभ है, उससे भी अधिक दुर्लभ है- वहाँ मनुष्यकी योनिमें जन्म । मनुष्य होनेपर भी अपने-अपने धर्मके पालनमें प्रवृत्ति होनी तो और भी कठिन है उससे भी अत्यन्त दुर्लभ है- भगवान् वासुदेवमें भक्ति और उसके होनेपर भी माधव मासमें स्नान आदिका सुयोग मिलना तो और भी कठिन है। माधव मास माधव (लक्ष्मीपति) को बहुत प्रिय है। माधव (वैशाख) मासको पाकर जो विधिपूर्वक स्नान, दान तथा जप आदिका अनुष्ठान करते हैं, वे ही मनुष्य धन्य एवं कृतकृत्य हैं। उनके दर्शन मात्रसे पापियोंके भी पाप दूर हो जाते हैं और वे भगवद्भावसे भावित होकरधर्माचरणके अभिलाषी बन जाते हैं। वैशाख मासके जो एकादशीसे लेकर पूर्णिमातक अन्तिम पाँच दिन हैं, वे समूचे महीने के समान महत्त्व रखते हैं। राजेन्द्र जिन लोगोंने वैशाख मासमें भाँति-भाँतिके उपचारोंद्वारा मधु दैत्यके मारनेवाले भगवान् लक्ष्मीपतिका पूजन कर लिया, उन्होंने अपने जन्मका फल पा लिया। भला कौन-सी ऐसी अत्यन्त दुर्लभ वस्तु है जो वैशाखके स्नान तथा विधिपूर्वक भगवान् के पूजनसे नहीं प्राप्त होती जिन्होंने दान, होम, जप, तीर्थ में प्राणत्याग तथा सम्पूर्ण पापका नाश करनेवाले भगवान् श्रीनारायणका ध्यान नहीं किया, उन मनुष्योंका जन्म इस संसारमें व्यर्थ ही समझना चाहिये। जो धनके रहते हुए भी कंजूसी करता है, दान आदि किये बिना ही मर जाता है, उसका धन व्यर्थ है।
राजन् ! उत्तम कुलमें जन्म, अच्छी मृत्यु श्रेष्ठ भोग, सुख, सदा दान करनेमें अधिक प्रसन्नता, उदारता तथा उत्तम धैर्य- ये सब कुछ भगवान् श्रीविष्णुकी कृपासे ही प्राप्त होते हैं। महात्मा नारायणके अनुग्रहसे ही मनोवांछित सिद्धियाँ मिलती हैं जो कार्तिकमें, माघमें तथा माधवको प्रिय लगनेवाले वैशाख मासमें स्नान करके मधुहन्ता लक्ष्मीपति दामोदरकी विशेष विधिके साथ भक्तिपूर्वक पूजा करता है और अपनी शक्तिके अनुसार दान देता है, वह मनुष्य इस लोकका सुख भोगकर अन्तमें श्रीहरिके पदको प्राप्त होता है। भूप जैसे सूर्योदय होनेपर अन्धकार नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार वैशाख मासमें प्रातः स्नान करनेसे अनेक जन्मोंकी उपार्जित पापराशि नष्ट हो जाती है। यह बात ब्रह्माजीने मुझे बतायी थी। भगवान् श्रीविष्णुने माधव मासकी महिमाका विशेष प्रचार किया है अतः इस महीनेकेआनेपर मनुष्योंको पवित्र करनेवाले पुण्यजलसे परिपूर्ण गंगातीर्थ, नर्मदातीर्थ, यमुनातीर्थ अथवा सरस्वतीतीर्थमें सूर्योदयके पहले स्नान करके भगवान् मुकुन्दकी पूजा करनी चाहिये। इससे तपस्याका फल भोगनेके पश्चात् अक्षय स्वर्गकी प्राप्ति होती है। भगवान् श्रीनारायण अनामय-रोग-व्याधिसे रहित हैं, उन गोविन्ददेवकी आराधना करके तुम भगवान्का पद प्राप्त कर लोगे। राजन्! देवाधिदेव लक्ष्मीपति पापका नाश करनेवाले हैं, उन्हें नमस्कार करके चैत्रकी पूर्णिमाको इस व्रतका आरम्भ करना चाहिये। व्रत लेनेवाला पुरुष यम नियमोंका पालन करे, शक्तिके अनुसार कुछ दान दे, हविष्यान्न भोजन करे, भूमिपर सोये, ब्रह्मचर्यव्रतमें दृढतापूर्वक स्थित रहे तथा हृदयमें भगवान् श्रीनारायणका ध्यान करते हुए कृच्छ्र आदि तपस्याओंके द्वारा शरीरको सुखाये। इस प्रकार नियमसे रहकर जब वैशाखकी पूर्णिमा आये, उस दिन मधु तथा तिल आदिका दान करे, श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको भक्तिपूर्वक भोजन कराये, उन्हें दक्षिणासहित धेनुदान दे तथा वैशाख स्नानके व्रतमें जो कुछ त्रुटि हुई हो उसकी पूर्णताके लिये ब्राह्मणोंसे प्रार्थना करे। भूपाल! जिस प्रकार लक्ष्मीजी जगदीश्वर माधवकी प्रिया हैं, उसी प्रकार माधव मास भी मधुसूदनको बहुत प्रिय है। इस तरह उपर्युक्त नियमोंके पालनपूर्वक बारह वर्षोंतक वैशाख स्नान करके अन्तमें मधुसूदनकी प्रसन्नताके लिये अपनी शक्तिके अनुसार व्रतका उद्यापन करे। अम्बरीष ! पूर्वकालमें ब्रह्माजीके मुखसे मैंने जो कुछ सुना था, वह सब वैशाख मासका माहात्म्य तुम्हें बता दिया। अम्बरीषने पूछा- मुने! स्नानमें परिश्रम तो बहुत थोड़ा है, फिर भी उससे अत्यन्त दुर्लभ फलकी प्राप्ति होती है-मुझे इसपर विश्वास क्यों नहीं होता? मुझे मोह क्यों हो रहा है?
नारदजीने कहा- राजन्! तुम्हारा संदेह ठीक है। थोड़े-से परिश्रमके द्वारा महान् फलकी प्राप्तिअसम्भव-सी बात है; तथापि इसपर विश्वास करो, क्योंकि यह ब्रह्माजीकी बतायी हुई बात है। धर्मकी गति सूक्ष्म होती है उसे समझने में बड़े बड़े पुरुषोंको भी कठिनाई होती है। श्रीहरिकी शक्ति अचिन्त्य है, उनकी कृतिमें विद्वानोंको भी मोह हो जाता है। विश्वामित्र आदि क्षत्रिय थे, किन्तु धर्मका अधिक अनुष्ठान करनेके कारण वे ब्राह्मणत्वको प्राप्त हो गये; अतः धर्मकी गति अत्यन्त सूक्ष्म है। भूपाल! तुमने सुना होगा, अजामिल अपनी धर्मपत्नीका परित्याग करके सदा पापके मार्गपर ही चलता था। तथापि मृत्युके समय उसने केवल पुत्रके स्नेहवश 'नारायण' कहकर पुकारा- पुत्रका चिन्तन करके 'नारायण' का नाम लिया किन्तु इतनेसे ही उसको अत्यन्त दुर्लभ पदकी प्राप्ति हुई। जैसे अनिच्छापूर्वक भी यदि आगका स्पर्श किया जाय तो वह शरीरको जलाती ही है, उसी प्रकार किसी दूसरे निमित्तसे भी यदि श्रीगोविन्दका नामोच्चारण किया जाय तो वह पापराशिको भस्म कर डालता है।" जीव विचित्र हैं, जीवोंकी भावनाएँ विचित्र हैं, कर्म विचित्र है तथा कर्मोंकी शक्तियाँ भी विचित्र हैं। शास्त्रमें जिसका महान् फल बताया गया हो, वही कर्म महान् है [फिर वह अल्प परिश्रम - साध्य हो या अधिक परिश्रम-साध्य]। छोटी सी वस्तुसे भी बड़ी से बड़ी वस्तुका नाश होता देखा - जाता है। जरा सी चिनगारीसे बोझ के बोझ तिनके स्वाहा हो जाते हैं जो श्रीकृष्णके भक्त हैं, उनके अनजानमें किये हुए हजारों हत्याओंसे युक्त भयंकर पातक तथा चोरी आदि पाप भी नष्ट हो जाते हैं। वीर जिसके हृदयमें भगवान् श्रीविष्णुकी भक्ति है वह विद्वान् पुरुष यदि थोड़ा-सा भी पुण्य कार्य करता है तो वह अक्षय फल देनेवाला होता है। अतः माधव मासमें माधवकी भक्तिपूर्वक आराधना करके मनुष्य अपनी मनोवांछित कामनाओंको प्राप्त कर लेता है-इस विषयमें संदेह नहीं करना चाहिये। शास्त्रोक्त विधिसे किया जानेवाला छोटे-से-छोटा कर्म क्यों न हो, उसकेद्वारा बड़े-से-बड़े पापका भी क्षय हो जाता तथा उत्तम कर्मकी वृद्धि होने लगती है। राजन् ! भाव तथा भक्ति दोनोंकी अधिकतासे फलमें अधिकता होती है। धर्मकी गति सूक्ष्म है, वह कई प्रकारोंसे जानी जाती है। महाराज ! जो भावसे हीन है-जिसके हृदयमें उत्तम भाव एवं भगवान्की भक्ति नहीं है, वह अच्छे देश और कालमें जा-जाकर जीवनभर पवित्र गंगा-जलसे नहाता और दान देता रहे तो भी कभी शुद्ध नहीं हो सकता ऐसा मेरा विचार है। अतः अपने हृदय कमलमें शुद्ध भावकी स्थापना करके वैशाख मासमें प्रातः स्नान करनेवाला जो विशुद्धचित्त पुरुष भक्तिपूर्वक भगवान् लक्ष्मीपतिकी पूजा करता है, उसके पुण्यका वर्णन करनेकी शक्ति मुझमें नहीं है। अतः भूपाल ! तुम वैशाख मासके फलके विषयमें विश्वास करो। छोटा-साशुभ कर्म भी सैकड़ों पापकर्मोंका नाश करनेवाला होता है। जैसे हरिनामके भयसे राशि राशि पाप नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार सूर्यके मेषराशिपर स्थित होनेके समय प्रातः स्नान करनेसे तथा तीर्थमें भगवान्की स्तुति करनेसे भी समस्त पापका नाश हो जाता है। * जिस प्रकार गरुड़के तेजसे साँप भाग जाते हैं, उसी तरह प्रातः काल वैशाख स्नान करनेसे पाप पलायन कर जाते हैं—यह निश्चित बात है। जो मनुष्य मेषराशिके सूर्यमें गंगा या नर्मदाके जलमें नहाकर एक, दो या तीनों समय भक्ति भावके साथ पाप-प्रशमन नामक स्तोत्रका पाठ करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर परम पदको प्राप्त होता है। अम्बरीष ! इस प्रकार मैंने थोड़ेमें यह वैशाख स्नानका सारा माहात्म्य सुना दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो ?'