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पद्म पुराण (पद्मपुराण)

Padma Purana,Padama Purana ()

खण्ड 5, अध्याय 265 - Khand 5, Adhyaya 265

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श्रीराम नामकी महिमा तथा श्रीरामके १०८ नामका माहात्म्य

पार्वतीजीने कहा- नाथ! आपने उत्तम वैष्णवधर्मका भलीभाँति वर्णन किया। वास्तवमें परमात्मा श्रीविष्णुका स्वरूप गोपनीयसे भी अत्यन्त गोपनीय है। सर्वदेववन्दित महेश्वर मैं आपके प्रसादसे धन्य और कृतकृत्य हो गयी। अब मैं भी सनातन देव श्रीहरिका पूजन करूँगी।

महादेवजी बोले- देवि ! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा! तुम सम्पूर्ण इन्द्रियोंके स्वामी भगवान् लक्ष्मीपतिका पूजन अवश्य करो। भद्रे ! मैं तुम जैसी वैष्णवी पत्नीको पाकर अपनेको कृतकृत्य मानता हूँ।

वसिष्ठजी कहते है-तदनन्तर वामदेवजीके उपदेशानुसार पार्वतीजी प्रतिदिन श्रीविष्णुसहस्रनामका पाठ करनेके पश्चात् भोजन करने लगीं। एक दिन परम मनोहर कैलासशिखरपर भगवान् श्रीविष्णुकी आराधना करके भगवान् शंकरने पार्वतीदेवीको अपने साथ भोजन करनेके लिये बुलाया। तब पार्वतीदेवीने कहा- 'प्रभो! मैं श्रीविष्णुसहस्रनामका पाठ करनेके पश्चात् भोजन करूँगी, तबतक आप भोजन कर लें।' यह सुनकर महादेवजीने हँसते हुए कहा- 'पार्वती ! तुम धन्य हो, पुण्यात्मा हो; क्योंकि भगवान् विष्णुमें तुम्हारी भक्ति है।देवि! भाग्यके बिना श्रीविष्णुभक्तिका प्राप्त होना बहुत कठिन है। सुमुखि ! मैं तो 'राम ! राम! राम !' इस प्रकार जप करते हुए परम मनोहर श्रीराम- नाममें ही निरन्तर रमण किया करता हूँ। राम नाम सम्पूर्ण सहस्रनामके समान है। पार्वती! रकारादि जितने नाम हैं, उन्हें सुनकर राम-नामकी आशंकासे मेरा मन प्रसन्न हो जाता है।* अतः महादेवि! तुम राम नामका उच्चारण करके इस समय मेरे साथ भोजन करो।'

यह सुनकर पार्वतीजीने राम-नामका उच्चारण करके भगवान् शंकरके साथ बैठकर भोजन किया। इसके बाद उन्होंने प्रसन्नचित्त होकर पूछा- 'देवेश्वर ! आपने राम-नामको सम्पूर्ण सहस्रनामके तुल्य बतलाया है। यह सुनकर राम- नाममें मेरी बड़ी भक्ति हो गयी है; अतः भगवान् श्रीरामके यदि और भी नाम हों तो बताइये ।'

महादेवजी बोले- पार्वती! सुनो, मैं श्रीरामचन्द्रजीके नामोंका वर्णन करता हूँ। लौकिक और वैदिक जितने भी शब्द हैं, वे सब श्रीरामचन्द्रजीके ही नाम हैं, किन्तु सहस्रनाम उन सबमें अधिक है और उन सहस्रनामोंमें भी श्रीरामके एक सौ आठ नामोंकी प्रधानता अधिक है। श्रीविष्णुका एक-एक नाम ही सब वेदोंसे अधिकमाना गया है। वैसे ही एक हजार नामोंके समान अकेला म श्रीराम-नाम माना गया है। पार्वती। जो सम्पूर्ण मन्त्रों और समस्त वेदोंका जप करता है, उसकी अपेक्षा कोटिगुना पुण्य केवल राम-नामसे उपलब्ध होता है।" शुभे! अब श्रीरामके उन मुख्य नामोंका वर्णन सुनो, जिनका महर्षियोंने गान किया है। 1 ॐ श्रीरामः जिनमें योगीजन रमण करते हैं, ऐसे सच्चिदानन्दघनस्वरूप श्रीराम अथवा सीतासहित राम 2 रामचन्द्रः चन्द्रमाके समान आनन्ददायी एवं मनोहर राम। 3 रामभद्र: कल्याणमय राम । 4 शाश्वतः सनातन भगवान्। 5 राजीवलोचन: कमलके समान नेत्रोंवाले। 6 श्रीमान् राजेन्द्रः – श्रीसम्पन्न राजाओंके भी राजा, चक्रवर्ती सम्राट् । 7 रघुपुङ्गवः रघुकुलमें सर्वश्रेष्ठ । 8 जानकीवल्लभः - जनककिशोरी सीतके प्रियतम 9 जैत्रः- विजयशील 10 जितामित्रः शत्रुओं जीतनेवाले। 11 जनार्दनः- सम्पूर्ण मनुष्योंद्वारा करने योग्य। 12 विश्वामित्रप्रियः विश्वामित्रजीके प्रियतम । 13 दान्तः - जितेन्द्रिय । शरणागतोंकी रक्षामें संलग्न । याचना 14 शरण्यत्राणतत्परः - - 15 वालिप्रमथनः - वालि नामक वानरको मारनेवाले। 16 वाग्मी – अच्छे वक्ता । 17 सत्यवाक्- सत्यवादी । 18 सत्यविक्रमः - सत्यपराक्रमी । 19 सत्यव्रतः सत्यका दृढ़तापूर्वक पालन करनेवाले। 20 व्रतफल: सम्पूर्ण व्रतोंके प्राप्त होनेयोग्य फलस्वरूप। 21 सदा हनुमदाश्रयः - निरन्तर हनुमान्जीके आश्रय अथवा हनुमानजीके हृदयकमलमें सदा निवास करनेवाले। 22 कौसलेयः - कौसल्याजीके पुत्र 23 खरध्वंसी खर नामक राक्षसका नाश करनेवाले। 24 विराधवध पण्डितः - विराध नामक दैत्यका वध करनेमें कुशल 25 विभीषणपरित्राता विभीषणके रक्षक। 26 दशग्रीवशिरोहर: – दशशीश रावणके मस्तक काटनेवाले। 27 सप्ततालप्रभेत्ता-सात तालवृक्षोंको 28 एक ही वाणसे बींध डालनेवाले। हरकोदण्डखण्डनः – जनकपुरमें शिवजीके धनुषको तोड़नेवाले। 29 जामदग्न्यमहादर्पदलनः - परशुरामजीके |महान् अभिमानको चूर्ण करनेवाले 30 ताडकान्तकृत् ताड़का नामवाली राक्षसीका वध करनेवाले। 31 वेदान्तपारः वेदान्तके पारंगत विद्वान् अथवा वेदान्तसे भी अतीत 32 वेदात्मा वेदस्वरूप] [33] भवबन्धैकभेषजः - संसारबन्धनसे मुक्त करनेके लिये एकमात्र औषधरूप 34 दूषणत्रिशिरोऽरि:- दूषण और त्रिशिरा नामक राक्षसोंके शत्रु 35 त्रिमूर्तिः ब्रह्मा, विष्णु और शिव-तीन रूप धारण करनेवाले। 36 त्रिगुणः - त्रिगुणस्वरूप अथवा तीनों गुणोंके आश्रय 37 त्रयी - तीन वेदस्वरूप । 38 त्रिविक्रमः- वामन अवतारमें तीन पगोंसे समस्त त्रिलोकीको नाप लेनेवाले। 39 त्रिलोकात्मा - तीनों लोकोंके आत्मा 40 पुण्यचारित्रकीर्तनः - जिनकी लीलाओंका कीर्तन परम पवित्र है, ऐसे 41 त्रिलोकरक्षकः - तीनों लोकोंकी रक्षा करनेवाले 42 धन्वी- धनुष धारण करनेवाले 43 दण्डकारण्यवासकृत् - दण्डकारण्यमें निवास करनेवाले। 44 अहल्यापावनः - अहल्याको पवित्र करनेवाले 45 पितृभक्तः पिताके भक्त 46 वरप्रदः - वर देनेवाले। 47 जितेन्द्रियः- इन्द्रियाँको काबू रखनेवाले 48 जितक्रोधः क्रोधको जीतनेवाले। 49 जितलोभः - लोभकी वृत्तिको परास्त करनेवाले। 50 जगद्गुरुः- अपने आदर्श चरित्रोंसे सम्पूर्ण जगत्को शिक्षा देनेके कारण सबके गुरु। 51 प्रक्षवानरसंघाती वानर और भालुओंकी सेनाका संगठन करनेवाले । 52 चित्रकूट- समाश्रयः - वनवासके समय चित्रकूटपर्वतपर निवास करनेवाले। 53 जयन्तत्राणवरदः - जयन्तके प्राणोंकी रक्षा करके उसे वर देनेवाले। 54 सुमित्रापुत्र सेवितः - सुमित्रानन्दन लक्ष्मणके द्वारा सेवित 55 सर्वदेवाधिदेवः - सम्पूर्ण देवताओंके भी अधिदेवता 56 मृतवानरजीवन: मरे हुए वानरोंको जीवित करनेवाले 57 मायामारीचहन्ता मायामय मृगका रूप धारण करके आये हुए मारीच नामक राक्षसका वध करनेवाले। 58 महाभागः - महान् सौभाग्यशाली। 59 महाभुज:- बड़ी-बड़ी बाँहोंवाले। 60 सर्वदेवस्तुतः - सम्पूर्ण देवता जिनकी स्तुति करते हैं,ऐसे 61 सौम्यः शान्तस्वभाव। 62 ब्रह्मण्यः ब्राह्मणोंके हितैषी 63 मुनिसत्तम:-मुनियोंमें श्रेष्ठ । 64 महायोगी – सम्पूर्ण योगोंके अधिष्ठान होनेके कारण महान् योगी 65 महोदारः - परम उदार 66 सुग्रीवस्थिरराज्यदः सुधीको स्थिर राज्य प्रदान करनेवाले। 67 सर्वपुण्याधिकफल:- समस्त पुण्योंके उत्कृष्ट फलरूप। 68 स्मृतसर्वाघनाशनः– स्मरण करनेमात्रसे ही सम्पूर्ण पापों का नाश करनेवाले 69 आदिपुरुषः - ब्रह्माजीको भी उत्पन्न करनेके कारण सबके आदिभूत अन्तर्यामी परमात्मा । 70 महापुरुषः- समस्त पुरुषोंमें महान्। 71 परमः पुरुषः- सर्वोत्कृष्ट पुरुष 72 पुण्योदयः पुण्यको प्रकट करनेवाले 73 महासारः सर्वश्रेष्ठ सारभूत परमात्मा 74 पुराणपुरुषोत्तमः - पुराणप्रसिद्ध क्षर-अक्षर पुरुषोंसे श्रेष्ठ लीलापुरुषोत्तम । 75 स्मितवक्त्रः - जिनके मुखपर सदा मुसकानकी छटा छायी रहती है, ऐसे 76 मितभाषी कम बोलनेवाले । 77 पूर्वभाषी - पूर्ववक्ता । 78 राघवः- रघुकुलमें अवतीर्ण 79 अनन्तगुण-गम्भीर: अनन्त कल्याणमय गुणोंसे युक्त एवं गम्भीर। 80 धीरोदात्तगुणोत्तरः ? - धीरोदात्त नायकके लोकोत्तर गुणोंसे युक्त । 81 मायामानुषचारित्रः - अपनी मायाका आश्रय लेकर मनुष्योंकी-सी लीलाएँ करनेवाले। 82 महादेवाभिपूजितः भगवान् शंकरके द्वारा निरन्तर पूजित। 83 सेतुकृत् - समुद्रपर पुल बाँधनेवाले। 84 जितवारीशः - समुद्रको जीतनेवाले। 85 सर्वतीर्थमयः सर्वतीर्थस्वरूप। 86 हरिः पाप तापको हरनेवाले 87 श्यामाङ्गः श्याम विग्रहवाले 88सुन्दरः परम मनोहर 89 शूरः- अनुपम शीर्यये सम्पन्न वीर। 90 पीतवासाः – पीताम्बरधारी । 91 धनुर्धरः धनुष धारण करनेवाले। 92 सर्वयज्ञाधिपः सम्पूर्ण यज्ञोंके स्वामी । 93 यज्ञः – यज्ञस्वरूप। 94 जरामरणवर्जितः बुढ़ापा और मृत्युसे रहित। 95 शिवलिङ्गप्रतिष्ठाता रामेश्वर नामक ज्योतिलिंगकी स्थापना करनेवाले । 96 सर्वाघगणवर्जितः - समस्त पापराशिसे रहित । 97 परमात्मा परम श्रेष्ठ, नित्यशुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वभाव। 98 परं ब्रह्म- सर्वोत्कृष्ट, सर्वव्यापी एवं सर्वाधिष्ठान परमेश्वर 99 सच्चिदानन्दविग्रहः – सत्, चित् और आनन्द ही जिनके स्वरूपका निर्देश करानेवाला है, ऐसे परमात्मा अथवा सच्चिदानन्दमय दिव्यविग्रह 100 परं ज्योति: परम प्रकाशमय, परम ज्ञानमय। 101 परं धाम सर्वोत्कृष्ट तेज अथवा साकेतधामस्वरूप । 102 पराकाशः - त्रिपाद विभूतिमें स्थित परमव्योम नामक वैकुण्ठधामरूप, महाकाशस्वरूप ब्रह्म । 103 परात्परः पर इन्द्रिय, मन, बुद्धि आदिसे भी परे परमेश्वर। 104 परेशः - सर्वोत्कृष्ट शासक। 105 पारगः सबको पार लगानेवाले अथवा मायामय जगत्की सीमासे बाहर रहनेवाले। 106 पार:- सबसे परे विद्यमान अथवा भवसागरसे पार जानेकी इच्छा रखनेवाले प्राणियों के प्राप्तव्य परमात्मा 107 सर्वभूतात्मकः सर्वभूतस्वरूप। 108 शिवः - परम कल्याणमय- ये श्रीरामचन्द्रजीके एक सौ आठ नाम है। देवि! ये नाम गोपनीयसे भी गोपनीय हैं; किन्तु स्नेहवश मैंने इन्हें तुम्हारे सामने प्रकाशित किया है।जो भक्तियुक्त चित्तसे इन नामका पाठ या श्रवण करता है, वह सौ कोटि कल्पोंमें किये हुए समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है। पार्वती ! इन नामोंका भक्तिभावसे पाठ करनेवाले मनुष्योंके लिये जल भी हो जाते हैं, शत्रु मित्र बन जाते हैं, राजा दास हो जाते हैं, जलती हुई आग शान्त हो जाती है, समस्त प्राणी अनुकूल हो जाते हैं, चंचल लक्ष्मी भी स्थिर हो जाती है, ग्रह अनुग्रह करने लगते हैं तथा समस्त उपद्रव शान्त हो जाते हैं। जो भक्तिपूर्वक इन नामोंका पाठ करता है, तीनों लोकके प्राणी उसके वशमें हो जाते हैं तथा वह मनमें जो-जो कामना करता है, वह सब इन नामोंके कीर्तनसे पा लेता है। जो दूर्वादलके समान श्यामसुन्दर कमलनयन, पीताम्बरधारी भगवान् श्रीरामका इन दिव्य नामोंसे स्तवन करते हैं, वे मनुष्य कभी संसार - बन्धनमें नहीं पड़ते। राम, रामभद्र, रामचन्द्र, वेधा, रघुनाथ, नाथ एवं सीतापतिको नमस्कार है। * देवि! केवल इस मन्त्रका भी जो दिन-रात जप करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो श्रीविष्णुका सायुज्य प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार मैंने तुम्हारे प्रेमवश भगवान् श्रीरामचन्द्रजीकेवेदानुमोदित माहात्म्यका वर्णन किया है। यह परम कल्याणकारक है।

वसिष्ठजी कहते हैं- भगवान् शंकरके द्वारा कहे हुए परमात्मा श्रीरामचन्द्रजीके माहात्म्यको सुनकर पार्वती देवी 'रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥' इस मन्त्रका ही सदा -सब अवस्थाओंमें जप करती हुई कैलासमें अपने पतिके साथ सुखपूर्वक रहने लगीं। राजा दिलीप ! यह मैंने तुमसे परम गोपनीय विषयका वर्णन किया है। जो भक्तियुक्त हृदयसे इस प्रसंगका पाठ या श्रवण करता है, वह सबका वन्दनीय, सब तत्त्वोंका ज्ञाता और महान् भगवद्भक्त होता है। इतना ही नहीं, वह समस्त कर्मोंके बन्धनसे मुक्त हो परमपदको प्राप्त कर लेता है। राजन् ! तुम इस संसारमें धन्य हो; क्योंकि तुम्हारे ही कुलमें पुराणपुरुषोत्तम श्रीहरि सब लोकोंका हित करनेके लिये दशरथनन्दनके रूपमें अवतार लेंगे। अतः इक्ष्वाकुवंशीय क्षत्रिय देवताओंके लिये भी पूजनीय होते हैं; क्योंकि उनके कुलमें राजीवलोचन भगवान् श्रीरामका अवतार होता है।

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पद्म पुराण
Index


  1. [अध्याय 148] नारद-महादेव-संवाद- बदरिकाश्रम तथा नारायणकी महिमा
  2. [अध्याय 149] गंगावतरणकी संक्षिप्त कथा और हरिद्वारका माहात्म्य
  3. [अध्याय 150] गंगाकी महिमा, श्रीविष्णु, यमुना, गंगा, प्रयाग, काशी, गया एवं गदाधरकी स्तुति
  4. [अध्याय 151] तुलसी, शालग्राम तथा प्रयागतीर्थका माहात्म्य
  5. [अध्याय 152] त्रिरात्र तुलसीव्रतकी विधि और महिमा
  6. [अध्याय 153] अन्नदान, जलदान, तडाग निर्माण, वृक्षारोपण तथा सत्यभाषण आदिकी महिमा
  7. [अध्याय 154] मन्दिरमें पुराणकी कथा कराने और सुपात्रको दान देनेसे होनेवाली सद्गतिके विषयमें एक आख्यान तथा गोपीचन्दनके तिलककी महिमा
  8. [अध्याय 155] संवत्सरदीप व्रतकी विधि और महिमा
  9. [अध्याय 156] जयन्ती संज्ञावाली जन्माष्टमीके व्रत तथा विविध प्रकारके दान आदिकी महिमा
  10. [अध्याय 157] महाराज दशरथका शनिको संतुष्ट करके लोकका कल्याण करना
  11. [अध्याय 158] त्रिस्पृशाव्रतकी विधि और महिमा
  12. [अध्याय 159] पक्षवर्धिनी एकादशी तथा जागरणका माहात्म्य
  13. [अध्याय 160] एकादशीके जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप, एकादशीकी विधि, उत्पत्ति कथा और महिमाका वर्णन
  14. [अध्याय 161] मार्गशीर्ष शुक्लपक्षकी 'मोक्षा' एकादशीका माहात्म्य
  15. [अध्याय 162] पौष मासकी 'सफला' और 'पुत्रदा' नामक एकादशीका माहात्म्य
  16. [अध्याय 163] माघ मासकी पतिला' और 'जया' एकादशीका माहात्म्य
  17. [अध्याय 164] फाल्गुन मासकी 'विजया' तथा 'आमलकी एकादशीका माहात्म्य
  18. [अध्याय 165] चैत्र मासकी 'पापमोचनी' तथा 'कामदा एकादशीका माहात्म्य
  19. [अध्याय 166] वैशाख मासकी 'वरूथिनी' और 'मोहिनी' एकादशीका माहात्म्य
  20. [अध्याय 167] ज्येष्ठ मासकी' अपरा' तथा 'निर्जला' एकादशीका माहात्म्य
  21. [अध्याय 168] आषाढ़ मासकी 'योगिनी' और 'शयनी एकादशीका माहात्म्य
  22. [अध्याय 169] श्रावणमासकी 'कामिका' और 'पुत्रदा एकादशीका माहात्म्य
  23. [अध्याय 170] भाद्रपद मासकी 'अजा' और 'पद्मा' एकादशीका माहात्म्य
  24. [अध्याय 171] आश्विन मासकी 'इन्दिरा' और 'पापांकुशा एकादशीका माहात्म्य
  25. [अध्याय 172] कार्तिक मासकी 'रमा' और 'प्रबोधिनी' एकादशीका माहात्म्य
  26. [अध्याय 173] पुरुषोत्तम मासकी 'कमला' और 'कामदा एकादशीका माहात्य
  27. [अध्याय 174] चातुर्मास्य व्रतकी विधि और उद्यापन
  28. [अध्याय 175] यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माहात्म्य
  29. [अध्याय 176] वैष्णवोंके लक्षण और महिमा तथा श्रवणद्वादशी व्रतकी विधि और माहात्म्य-कथा
  30. [अध्याय 177] नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन
  31. [अध्याय 178] गृहस्थ आश्रमकी प्रशंसा तथा दान धर्मकी महिमा
  32. [अध्याय 179] गण्डकी नदीका माहात्म्य तथा अभ्युदय एवं और्ध्वदेहिक नामक स्तोत्रका वर्णन
  33. [अध्याय 180] ऋषिपंचमी - व्रतकी कथा, विधि और महिमा
  34. [अध्याय 181] न्याससहित अपामार्जन नामक स्तोत्र और उसकी महिमा
  35. [अध्याय 182] श्रीविष्णुकी महिमा - भक्तप्रवर पुण्डरीककी कथा
  36. [अध्याय 183] श्रीगंगाजीकी महिमा, वैष्णव पुरुषोंके लक्षण तथा श्रीविष्णु प्रतिमाके पूजनका माहात्म्य
  37. [अध्याय 184] चैत्र और वैशाख मासके विशेष उत्सवका वर्णन, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़में जलस्थ श्रीहरिके पूजनका महत्त्व
  38. [अध्याय 185] पवित्रारोपणकी विधि, महिमा तथा भिन्न-भिन्न मासमें श्रीहरिकी पूजामें काम आनेवाले विविध पुष्पोंका वर्णन
  39. [अध्याय 186] कार्तिक-व्रतका माहात्म्य - गुणवतीको कार्तिक व्रतके पुण्यसे भगवान्‌की प्राप्ति
  40. [अध्याय 187] कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसंग शंखासुरके वध, वेदोंके उद्धार तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
  41. [अध्याय 188] कार्तिक मासमें स्नान और पूजनकी विधि
  42. [अध्याय 189] कार्तिक व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि
  43. [अध्याय 190] कार्तिक- व्रतके पुण्य-दानसे एक राक्षसीका उद्धार
  44. [अध्याय 191] कार्तिक-माहात्म्यके प्रसंगमें राजा चोल और विष्णुदास की कथा
  45. [अध्याय 192] पुण्यात्माओंके संसर्गसे पुण्यकी प्राप्तिके प्रसंगमें धनेश्वर ब्राह्मणकी कथा
  46. [अध्याय 193] अशक्तावस्थामें कार्तिक व्रतके निर्वाहका उपाय
  47. [अध्याय 194] कार्तिक मासका माहात्म्य और उसमें पालन करनेयोग्य नियम
  48. [अध्याय 195] प्रसंगतः माघस्नानकी महिमा, शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास- व्रतकी विधिका वर्णन
  49. [अध्याय 196] शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य
  50. [अध्याय 197] भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली कृत्य, गोवर्धन पूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन
  51. [अध्याय 198] प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपंचक व्रतकी विधि एवं महिमा
  52. [अध्याय 199] भक्तिका स्वरूप, शालग्रामशिलाकी महिमा तथा वैष्णवपुरुषोंका माहात्म्य
  53. [अध्याय 200] भगवत्स्मरणका प्रकार, भक्तिकी महत्ता, भगवत्तत्त्वका ज्ञान, प्रारब्धकर्मकी प्रबलता तथा भक्तियोगका उत्कर्ष
  54. [अध्याय 201] पुष्कर आदि तीर्थोका वर्णन
  55. [अध्याय 202] वेत्रवती और साभ्रमती (साबरमती) नदीका माहात्म्य
  56. [अध्याय 203] साभ्रमती नदीके अवान्तर तीर्थोका वर्णन
  57. [अध्याय 204] अग्नितीर्थ, हिरण्यासंगमतीर्थ, धर्मतीर्थ आदिकी महिमा
  58. [अध्याय 205] माभ्रमती-तटके कपीश्वर, एकधार, सप्तधार और ब्रह्मवल्ली आदि तीर्थोकी महिमाका वर्णन
  59. [अध्याय 206] साभ्रमती-तटके बालार्क, दुर्धर्षेश्वर तथा खड्गधार आदि तीर्थोंकी महिमाका वर्णन
  60. [अध्याय 207] वार्त्रघ्नी आदि तीर्थोकी महिमा
  61. [अध्याय 208] श्रीनृसिंहचतुर्दशी के व्रत तथा श्रीनृसिंहतीर्थकी महिमा
  62. [अध्याय 209] श्रीमद्भगवद्गीताके पहले अध्यायका माहात्म्य
  63. [अध्याय 210] श्रीमद्भगवद्गीताके दूसरे अध्यायका माहात्म्य
  64. [अध्याय 211] श्रीमद्भगवद्गीताके तीसरे अध्यायका माहात्म्य
  65. [अध्याय 212] श्रीमद्भगवद्गीताके चौथे अध्यायका माहात्म्य
  66. [अध्याय 213] श्रीमद्भगवद्गीताके पाँचवें अध्यायका माहात्म्य
  67. [अध्याय 214] श्रीमद्भगवद्गीताके छठे अध्यायका माहात्म्य
  68. [अध्याय 215] श्रीमद्भगवद्गीताके सातवें तथा आठवें अध्यायोंका माहात्म्य
  69. [अध्याय 216] श्रीमद्भगवद्गीताके नवें और दसवें अध्यायोंका माहात्म्य
  70. [अध्याय 217] श्रीमद्भगवद्गीताके ग्यारहवें अध्यायका माहात्म्य
  71. [अध्याय 218] श्रीमद्भगवद्गीताके बारहवें अध्यायका माहात्म्य
  72. [अध्याय 219] श्रीमद्भगवद्गीताके तेरहवें और चौदहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  73. [अध्याय 220] श्रीमद्भगवद्गीताके पंद्रहवें तथा सोलहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  74. [अध्याय 221] श्रीमद्भगवद्गीताके सत्रहवें और अठारहवें अध्यायोंका माहात्म्य
  75. [अध्याय 222] देवर्षि नारदकी सनकादिसे भेंट तथा नारदजीके द्वारा भक्ति, ज्ञान और वैराग्यके वृत्तान्तका वर्णन
  76. [अध्याय 223] भक्तिका कष्ट दूर करनेके लिये नारदजीका उद्योग और सनकादिके द्वारा उन्हें साधनकी प्राप्ति
  77. [अध्याय 224] सनकादिद्वारा श्रीमद्भागवतकी महिमाका वर्णन तथा कथा-रससे पुष्ट होकर भक्ति, ज्ञान और वैराग्यका प्रकट होना
  78. [अध्याय 225] कथामें भगवान्का प्रादुर्भाव, आत्मदेव ब्राह्मणकी कथा - धुन्धुकारी और गोकर्णकी उत्पत्ति तथा आत्मदेवका वनगमन
  79. [अध्याय 226] गोकर्णजीकी भागवत कथासे धुन्धुकारीका प्रेतयोनिसे उद्धार तथा समस्त श्रोताओंको परमधामकी प्राप्ति
  80. [अध्याय 227] श्रीमद्भागवतके सप्ताहपारायणकी विधि तथा भागवत माहात्म्यका उपसंहार
  81. [अध्याय 228] यमुनातटवर्ती 'इन्द्रप्रस्थ' नामक तीर्थकी माहात्म्य कथा
  82. [अध्याय 229] निगमोद्बोध नामक तीर्थकी महिमा - शिवशर्मा के पूर्वजन्मकी कथा
  83. [अध्याय 230] देवल मुनिका शरभको राजा दिलीपकी कथा सुनाना - राजाको नन्दिनीकी सेवासे पुत्रकी प्राप्ति
  84. [अध्याय 231] शरभको देवीकी आराधनासे पुत्रकी प्राप्ति; शिवशमांके पूर्वजन्मकी कथाका और निगमोद्बोधकतीर्थकी महिमाका उपसंहार
  85. [अध्याय 232] इन्द्रप्रस्थके द्वारका, कोसला, मधुवन, बदरी, हरिद्वार, पुष्कर, प्रयाग, काशी, कांची और गोकर्ण आदि तीर्थोका माहात्य
  86. [अध्याय 233] वसिष्ठजीका दिलीपसे तथा भृगुजीका विद्याधरसे माघस्नानकी महिमा बताना तथा माघस्नानसे विद्याधरकी कुरूपताका दूर होना
  87. [अध्याय 234] मृगशृंग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
  88. [अध्याय 235] मृगशृंग मुनिके द्वारा माघके पुण्यसे एक हाथीका उद्धार तथा मरी हुई कन्याओंका जीवित होना
  89. [अध्याय 236] यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन
  90. [अध्याय 237] महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार
  91. [अध्याय 238] मृगशृंगका विवाह, विवाहके भेद तथा गृहस्थ आश्रमका धर्म
  92. [अध्याय 239] पतिव्रता स्त्रियोंके लक्षण एवं सदाचारका वर्णन
  93. [अध्याय 240] मृगशृंगके पुत्र मृकण्डु मुनिकी काशी यात्रा, काशी- माहात्म्य तथा माताओंकी मुक्ति
  94. [अध्याय 241] मार्कण्डेयजीका जन्म, भगवान् शिवकी आराधनासे अमरत्व प्राप्ति तथा मृत्युंजय - स्तोत्रका वर्णन
  95. [अध्याय 242] माघस्नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
  96. [अध्याय 243] माघ मासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति
  97. [अध्याय 244] सनातन मोक्षमार्ग और मन्त्रदीक्षाका वर्णन
  98. [अध्याय 245] भगवान् विष्णुकी महिमा, उनकी भक्तिके भेद तथा अष्टाक्षर मन्त्रके स्वरूप एवं अर्थका निरूपण
  99. [अध्याय 246] श्रीविष्णु और लक्ष्मीके स्वरूप, गुण, धाम एवं विभूतियोंका वर्णन
  100. [अध्याय 247] वैकुण्ठधाममें भगवान् की स्थितिका वर्णन, योगमायाद्वारा भगवान्‌की स्तुति तथा भगवान्‌के द्वारा सृष्टि रचना
  101. [अध्याय 248] देवसर्ग तथा भगवान्‌के चतुर्व्यूहका वर्णन
  102. [अध्याय 249] मत्स्य और कूर्म अवतारोंकी कथा-समुद्र-मन्धनसे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव और एकादशी - द्वादशीका माहात्म्य
  103. [अध्याय 250] नृसिंहावतार एवं प्रह्लादजीकी कथा
  104. [अध्याय 251] वामन अवतारके वैभवका वर्णन
  105. [अध्याय 252] परशुरामावतारकी कथा
  106. [अध्याय 253] श्रीरामावतारकी कथा - जन्मका प्रसंग
  107. [अध्याय 254] श्रीरामका जातकर्म, नामकरण, भरत आदिका जन्म, सीताकी उत्पत्ति, विश्वामित्रकी यज्ञरक्षा तथा राम आदिका विवाह
  108. [अध्याय 255] श्रीरामके वनवाससे लेकर पुनः अयोध्या में आनेतकका प्रसंग
  109. [अध्याय 256] श्रीरामके राज्याभिषेकसे परमधामगमनतकका प्रसंग
  110. [अध्याय 257] श्रीकृष्णावतारकी कथा-व्रजकी लीलाओंका प्रसंग
  111. [अध्याय 258] भगवान् श्रीकृष्णकी मथुरा-यात्रा, कंसवध और उग्रसेनका राज्याभिषेक
  112. [अध्याय 259] जरासन्धकी पराजय द्वारका-दुर्गकी रचना, कालयवनका वध और मुचुकुन्दकी मुक्ति
  113. [अध्याय 260] सुधर्मा - सभाकी प्राप्ति, रुक्मिणी हरण तथा रुक्मिणी और श्रीकृष्णका विवाह
  114. [अध्याय 261] भगवान् के अन्यान्य विवाह, स्यमन्तकमणिकी कथा, नरकासुरका वध तथा पारिजातहरण
  115. [अध्याय 262] अनिरुद्धका ऊषाके साथ विवाह
  116. [अध्याय 263] पौण्ड्रक, जरासन्ध, शिशुपाल और दन्तवक्त्रका वध, व्रजवासियोंकी मुक्ति, सुदामाको ऐश्वर्य प्रदान तथा यदुकुलका उपसंहार
  117. [अध्याय 264] श्रीविष्णु पूजनकी विधि तथा वैष्णवोचित आचारका वर्णन
  118. [अध्याय 265] श्रीराम नामकी महिमा तथा श्रीरामके १०८ नामका माहात्म्य
  119. [अध्याय 266] त्रिदेवोंमें श्रीविष्णुकी श्रेष्ठता तथा ग्रन्थका उपसंहार