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पद्म पुराण (पद्मपुराण)

Padma Purana,Padama Purana ()

खण्ड 3, अध्याय 97 - Khand 3, Adhyaya 97

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श्रीहरिके पुराणमय स्वरूपका वर्णन तथा पद्मपुराण और स्वर्गखण्डका माहात्म्य

सूतजी कहते हैं- ब्राह्मणो! इस प्रकार संसारमें जिनकी महिमा समस्त लोकोंका उद्धार करनेवाली है, उन नानारूपधारी परमेश्वर विष्णुका एक विग्रह पुराण भी है। पुराणों में पद्मपुराणका बहुत बड़ा महत्त्व है। (1) ब्रह्मपुराण श्रीहरिका मस्तक है। (2) पद्मपुराण हृदय है। (3) विष्णुपुराण उनकी दाहिनी भुजा है। (4) शिवपुराण उन महेश्वरकी बायीं भुजा है।(5) श्रीमद्भागवतको भगवान्‌का ऊरुयुगल कहा गया है। (6) नारदीय पुराण नाभि है। (7) मार्कण्डेयपुराण दाहिना तथा (8) अग्निपुराण बायाँ चरण है। (9) भविष्यपुराण महात्मा श्रीविष्णुका दाहिना घुटना है। (10) ब्रह्मवैवर्तपुराणको बायाँ घुटना बताया गया है। (11) लिंगपुराण दाहिना और (12) वाराहपुराण बायाँ गुल्फ (घुट्ठी) है। (13) स्कन्दपुराण रोएँ तथा(14) वामनपुराण त्वचा माना गया है। (15) कूर्मपुराणको पीठ तथा (16) मत्स्यपुराणको मेदा कहा जाता है। (17) गरुडपुराण मज्जा बताया गया है और (18) ब्रह्माण्डपुराणको अस्थि (हट्टी) कहते हैं। इसी प्रकार पुराणविग्रहधारी सर्वव्यापक श्रीहरिका आविर्भाव हुआ है। उनके हृदय स्थानमै पद्मपुराण है, जिसे सुनकर मनुष्य अमृतपद- मोक्ष सुखका उपभोग करता। है। यह पद्मपुराण साक्षात् भगवान् श्रीहरिका स्वरूप है; इसके एक अध्यायका भी पाठ करके मनुष्य सब से मुक्त हो जाता है।

स्वर्गखण्डका श्रवण करके महापातकी मनुष्य भी केंचुलसे छूटे हुए सर्पकी भाँति समस्त पापोंसे मुक्त हो जाते हैं। कितना ही बड़ा दुराचारी और सब धर्मोसे बहिष्कृत क्यों न हो, स्वर्गखण्डका श्रवण करके वह पवित्र हो जाता है- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। द्विजो! समस्त पुराणोंको सुनकर मनुष्य जिस फलको प्राप्त करता है, वह सब केवल पद्मपुराणको सुनकर ही प्राप्त कर लेता है। कैसी अद्भुत महिमा है! समूचे पद्मपुराणको सुननेसे जिस फलकी प्राप्ति होती हैं, वही फल मनुष्य केवल स्वर्गखण्डको सुनकर प्राप्त कर लेता है । माघमासमें मनुष्य प्रतिदिन प्रयागमें स्नान करके जैसे पापसे मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार इस स्वर्गखण्डके श्रवणसे भी वह पापोंसे छुटकारा पा जाता है। जिस पुरुषने भरी सभामें इस स्वर्गखण्डको सुना और सुनायाहै, उसने मानो समूची पृथ्वी दानमें दे दी है, निरन्तर भगवान् विष्णुके सहस्र नामका पाठ किया है, सम्पूर्ण वेदोंका अध्ययन तथा उसमें बताये हुए भिन्न-भिन्न पुण्यकर्मोंका अनुष्ठान कर लिया है, बहुत-से अध्यापकोंको वृत्ति देकर पढ़ानेके कार्यमें लगाया है, भयभीत मनुष्योंको अभयदान किया है, गुणवान् ज्ञानी तथा धर्मात्मा पुरुषोंको आदर दिया है, ब्राह्मणों और गौओंके लिये प्राणोंका परित्याग किया है तथा उस बुद्धिमान्ने और भी बहुतेरे उत्तम कर्म किये हैं। तात्पर्य यह कि स्वर्गखण्डके श्रवणसे उक्त सभी शुभकर्मोंका फल प्राप्त हो जाता है। स्वर्गखण्डका पाठ करनेसे मनुष्यको नाना प्रकारके भोग प्राप्त होते हैं तथा वह तेजोमय शरीर धारण करके ब्रह्मलोकमें जाता और वहीं ज्ञान पाकर मोक्षको प्राप्त हो जाता है। बुद्धिमान् मनुष्य उत्तम पुरुषोंके साथ निवास, उत्तम तीर्थमें स्नान, उत्तम वार्तालाप तथा उत्तम शास्त्रका श्रवण करे। उन शास्त्रोंमें पद्मपुराण महाशास्त्र है, यह सम्पूर्ण वेदोंका फल देनेवाला है। इसमें भी स्वर्गखण्ड महान् पुण्यका फल प्रदान करनेवाला है।

ओ संसारके मनुष्यो ! मेरी बात सुनो- गोविन्दको भजो और एकमात्र देवेश्वर विष्णुको प्रणाम करो । यदि कामनाकी उत्ताल तरंगोंको सुखपूर्वक पार करना चाहते हो तो एकमात्र हरिनामका, जिसकी कहीं तुलना नहीं है, उच्चारण करो।

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पद्म पुराण
Index


  1. [अध्याय 77] आदि सृष्टिके क्रमका वर्णन
  2. [अध्याय 78] भारतवर्षका वर्णन और वसिष्ठजीके द्वारा पुष्कर तीर्थकी महिमाका बखान
  3. [अध्याय 79] जम्बूमार्ग आदि तीर्थ, नर्मदा नदी, अमरकण्टक पर्वत तथा कावेरी संगमकी महिमा
  4. [अध्याय 80] नर्मदाके तटवर्ती तीर्थोंका वर्णन
  5. [अध्याय 81] विविध तीर्थोंकी महिमाका वर्णन
  6. [अध्याय 82] धर्मतीर्थ आदिकी महिमा, यमुना स्नानका माहात्म्य – हेमकुण्डल वैश्य और उसके पुत्रोंकी कथा एवं स्वर्ग तथा नरकमें ले जानेवाले शुभाशुभ कर्मोंका वर्णन
  7. [अध्याय 83] सुगन्ध आदि तीर्थोंकी महिमा तथा काशीपुरीका माहात्म्य
  8. [अध्याय 84] पिशाचमोचन कुण्ड एवं कपीश्वरका माहात्म्य-पिशाच तथा शंकुकर्ण मुनिके मुक्त होनेकी कथा और गया आदि तीर्थोकी महिमा
  9. [अध्याय 85] ब्रह्मस्थूणा आदि तीर्थो तथा प्रयागकी महिमा; इस प्रसंगके पाठका माहात्म्य
  10. [अध्याय 86] मार्कण्डेयजी तथा श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको प्रयागकी महिमा सुनाना
  11. [अध्याय 87] भगवान्के भजन एवं नाम-कीर्तनकी महिमा
  12. [अध्याय 88] ब्रह्मचारीके पालन करनेयोग्य नियम
  13. [अध्याय 89] ब्रह्मचारी शिष्यके धर्म
  14. [अध्याय 90] स्नातक और गृहस्थके धर्मोंका वर्णन
  15. [अध्याय 91] व्यावहारिक शिष्टाचारका वर्णन
  16. [अध्याय 92] गृहस्थधर्ममें भक्ष्याभक्ष्यका विचार तथा दान धर्मका वर्णन
  17. [अध्याय 93] वानप्रस्थ आश्रमके धर्मका वर्णन
  18. [अध्याय 94] संन्यास आश्रमके धर्मका वर्णन
  19. [अध्याय 95] संन्यासीके नियम
  20. [अध्याय 96] भगवद्भक्तिकी प्रशंसा, स्त्री-संगकी निन्दा, भजनकी महिमा, ब्राह्मण, पुराण और गंगाकी महत्ता, जन्म आदिके दुःख तथा हरिभजनकी आवश्यकता
  21. [अध्याय 97] श्रीहरिके पुराणमय स्वरूपका वर्णन तथा पद्मपुराण और स्वर्गखण्डका माहात्म्य