नारदजी बोले - भगवन्। अब मुझे सब व्रतोंमें प्रधान 'संवत्सरदीप' नामक व्रतकी उत्तम विधि बताइये, जिसके करनेसे सब व्रतोंके अनुष्ठानका फल निस्संदेह प्राप्त हो जाय, सब कामनाओंकी सिद्धि हो तथा सब पापोंका नाश हो जाय। महादेवजीने कहा- देवर्षे। मैं तुम्हें एक पापनाशक रहस्य बताता हूँ, जिसे सुनकर ब्रह्महत्यारा, गोघाती, मित्रहन्ता, गुरुस्त्रीगामी, विश्वासघाती तथा क्रूर हृदयवाला मनुष्य भी शाश्वत मोक्षको प्राप्त होता है तथा अपनी सौ पौड़ियोंका उद्धार करके विष्णुलोकको जाता है। वह रहस्य संवत्सरदीप व्रत है, जो बहुत ही श्रेयस्कर व्रत है। मैं उसकी विधि और महिमाका वर्णन करूँगा। हेमन्त ऋतुके प्रथम मास अगहनमें शुभ एकादशी तिथि आनेपर ब्राह्ममुहूर्तमें उठे और काम-क्रोधसे रहित हो नदीके संगम, तीर्थ, पोखरे या नदीमें जाकर स्नान करे अथवा मनको वशमें रखते हुए घरपर ही स्नान करे। स्नान करनेका मन्त्र इस प्रकार है
स्नातोऽहं सर्वतीर्थेषु गर्ने प्रस्त्रवणेषु च।
नदीषु सर्वतीर्थेषु तत्स्नानं देहि मे सदा ॥
'मैं सम्पूर्ण तीचों, कुण्डों, झरनों तथा नदियोंमें स्नान कर चुका जल! तुम मुझे उन सबमें स्नान करनेका फल प्रदान करो।'
तदनन्तर देवताओं और पितरोंका तर्पण करके जप करनेके अनन्तर जितेन्द्रिय पुरुष देवदेव भगवान् लक्ष्मी नारायणका पूजन करे। पहले पंचामृतसे नहलाकर फिरचन्दनयुक्त जलसे स्नान कराये। तत्पश्चात् इस प्रकार कहे
स्नातोऽसि लक्ष्म्या सहितो देवदेव जगत्पते । मां समुद्धर देवेश घोरात् संसारबन्धनात् ॥ 'देवदेव! जगत्पते! देवेश्वर! आप लक्ष्मीजीके साथ स्नान कर चुके हैं; इस घोर संसार-बन्धनसे मेरा उद्धार कीजिये।'इसके बाद वैदिक तथा पौराणिक मन्त्रोंसे भक्तिपूर्वक लक्ष्मीसहित भगवान् विष्णुका पूजन करे 'अतो देव' इस सूक्तसे अथवा पुरुषसूक्तसे पूजा करनी चाहिये। अथवा
नमो मत्स्याय देवाय कूर्मदेवाय वै नमः ।
नमो वाराहदेवाय नरसिंहाय वै
वामनाय नमस्तुभ्यं परशुरामाय ते नमः
नमोऽस्तु रामदेवाय विष्णुदेवाय ते नमः ॥
नमोऽस्तु बुद्धदेवाय कल्किने च नमो नमः ।
सर्वात्मने तुभ्यं शिरसेत्यभिपूजयेत् ॥
'मत्स्य, कच्छप, वाराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्की-ये दस अवतार धारण करनेवाले आप सर्वात्माको मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करता हूँ।' यों कहकर पूजन करे।
अथवा भगवान्के जो 'केशव' आदि प्रसिद्ध नाम हैं, उनके द्वारा श्रीहरिका पूजन करना चाहिये ।
धूपका मन्त्र
वनस्पतिरसो सुरभिर्गन्धवाञ्छुचिः ।
धूपोऽयं देवदेवेश नमस्ते प्रतिगृह्यताम्
'देवदेवेश्वर! मनोहर सुगन्धसे भरा यह परम पवित्र दिव्य वनस्पतिका रसरूप धूप आपकी सेवामें प्रस्तुत है; आपको नमस्कार है, आप इसे स्वीकार करें।'
दीपका मन्त्र
दीपस्तमो नाशयति दीपः कान्तिं प्रयच्छति ।
तस्माद्दीपप्रदानेन प्रीयतां मे जनार्दनः ॥
'दीप अन्धकारका नाश करता है, दीप कान्ति प्रदान करता है; अतः दीपदानसे भगवान् जनार्दन मुझपर प्रसन्न हों।'
नैवेद्य-मन्त्र
नैवेद्यमिदमन्नाद्ये देवदेव जगत्पते
लक्ष्म्या सह गृहाण त्वं परमामृतमुत्तमम्
'देवदेव! यह अन्न आदिका बना हुआ नैवेद्य सेवामें प्रस्तुत है; जगदीश्वर आप लक्ष्मीजीके साथ इस परम अमृतरूप उत्तम नैवेद्यको ग्रहण कीजिये। ' तदनन्तर श्रीजनार्दनका ध्यान करके शंखमें जल और हाथमें फल लेकर भक्तिपूर्वक अर्घ्य निवेदन करे; अर्घ्यका मन्त्र इस प्रकार है
जन्मान्तरसहस्त्रेण यन्मया पातकं कृतम् ।
तत्सर्वं नाशमायातु प्रसादात्तव केशव ॥
'केशव ! हजारों जन्मोंमें मैंने जो पातक किये हैं, वे सब आपकी कृपासे नष्ट हो जायँ ।' इसके बाद घी अथवा तेलसे भरा हुआ एक सुन्दर नवीन कलश ले आकर भगवान् लक्ष्मीनारायणके सामने स्थापित करे। कलशके ऊपर ताँबे या मिट्टीका पात्र रखे। उसमें नौ तन्तुओंके समान मोटी बत्ती डाल दे तथा कलशको स्थिरतापूर्वक स्थापित करके वहाँ वायुरहित गृहमें दीपक जलाये। देवर्षे! फिर पवित्रतापूर्वक पुष्प और गन्ध आदिसे कलशकी पूजा करके निम्नांकित मन्त्रसे शुभ संकल्प करे
कामो भूतस्य भव्यस्य सम्राडेको विराजते ।
दीपः संवत्सरं यावन्मयायं परिकल्पितः ।
अग्निहोत्रमविच्छिन्नं प्रीयतां मम केशवः ॥
'भूत और भविष्यके सम्राट् तथा सबकी कामनाके विषय एक-अद्वितीय परमात्मा सर्वत्र विराजमान हैं। मैंने एक वर्षतक प्रज्वलित रखनेके लिये इस दीपककीस्थापना की है; यह अखण्ड अग्निहोत्ररूप है। इससे भगवान् केशव मुझपर प्रसन्न हों।
तत्पश्चात् इन्द्रियोंको वशमें रखते हुए वेदोंके स्वाध्याय तथा ज्ञानयोगमें तत्पर रहे। पतितों, पापियों और पाखण्डी मनुष्योंसे बातचीत न करे। रातको गीत, नृत्य, बाजे आदिसे, पुण्य ग्रन्थोंके पाठसे तथा भाँति भौतिके धार्मिक उपाख्यानोंसे मन बहलाते हुए उपवासपूर्वक जागरण करे। इसके बाद सबेरा होनेपर पूर्वाह्नके नित्य कर्मोंका अनुष्ठान करके भक्तिपूर्वक ब्राह्मणोंको भोजन कराये तथा अपनी शक्तिके अनुसार उनकी पूजा करे। फिर स्वयं भी पारण करके ब्राह्मणोंको प्रणाम कर विदा करे। इस प्रकार दृढ संकल्प करके एक वर्षतक दिन-रात उक्त नियमसे रहे। एक या आधे पल सोनेका दीपक बनाये; उसके लिये बत्ती चाँदीकी बतायी गयी है, जो दो या ढाई पलकी होनी चाहिये। घीसे भरा हुआ घड़ा हो तथा उसके ऊपर ताँबेका पात्र रखा रहे मुक्तिकी अभिलाषा रखनेवाले पुरुषको भक्तिपूर्वक भगवान् लक्ष्मीनारायणकी प्रतिमा भी यथाशक्ति सोनेकी बनवानी चाहिये। इसके बाद [[वर्ष पूर्ण होनेपर ] विद्वान् पुरुष साधु एवं श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको निमन्त्रित करे। बारह ब्राह्मण हों यह उत्तम पक्ष है। छः ब्राह्मणोंका होना मध्यम पक्ष है। इतना भी न हो सके तो तीन ब्राह्मणोंको ही निमन्त्रित करे। इनमेंसे एक कर्मनिष्ठ एवं सपत्नीक ब्राह्मणकी पूजा करे। वह ब्राह्मण शान्त होनेके साथ ही विशेषतः क्रियावान् हो। इतिहासपुराणोंका ज्ञाता धर्मज्ञ मृदुल स्वभावका पितृभक्त, गुरुसेवापरायण तथा देवता ब्राह्मणोंका पूजन करनेवाला हो पाद्य- अर्घ्यदान आदिकी विधिसे वस्त्र, अलंकार तथा आभूषण अर्पण करते हुए पत्नीसहित ब्राह्मणदेवकी भक्तिपूर्वक पूजा करके भगवान् लक्ष्मीनारायणको तथा बत्तीसहित दीपकको भी ताम्रपात्रमै रखकर धीसे भरे हुए धड़के साथ ही उस ब्राह्मणको दान कर दे। देवर्षे। उस समय निम्नांकित मन्त्रसे परम पुरुष नारायणदेवका ध्यान भी करता रहे
अविद्यातमसा व्याप्ते संसारे पापनाशनः ।
तस्माद्दत्तो ज्ञानप्रदो मोक्षदश्च मयानघ ॥
'पापरहित नारायण तथा ज्योतिर्मय दीप अविद्यामय अन्धकारसे भरे हुए संसारमें तुम्हीं ज्ञान एवं मोक्ष प्रदान करनेवाले हो; इसलिये मैंने आज तुम्हारा दान किया है । '
फिर पूजित ब्राह्मणको अपनी शक्तिके अनुसार भक्तिपूर्वक दक्षिणा दे। अन्यान्य ब्राह्मणों को भी मृतयुक्त खीर तथा मिठाईका भोजन कराये ब्राह्मणभोजनके अनन्तर सपत्नीक ब्राह्मणको वस्त्र पहनाये। सामग्रियों सहित शय्या तथा बछड़ेसहित धेनु दान करे। अन्य ब्राह्मणोंको भी अपनी सामर्थ्यके अनुसार दक्षिणा दे। सुबदों, स्वजनों तथा बन्धुबान्धवको भी भोजन कराये और उनका सत्कार करे। इस प्रकार इस संवत्सरदीप व्रतकी समाप्तिके अवसरपर महान् उत्सव करे। फिर सबको प्रणाम करके विदा करे और अपनी त्रुटियोंके लिये क्षमा माँगे ।
दान, व्रत, यज्ञ तथा योगाभ्याससे मनुष्य जिस फलको प्राप्त करता है, वही फल उसे संवत्सरदीप व्रतके पालनसे मिलता है। गौ, भूमि, सुवर्ण तथा विशेषत: गृह आदिके दानसे विद्वान् पुरुष जिस फलको पाता है, वही दीपव्रतसे भी प्राप्त होता है। दीपदान करनेवाला पुरुष कान्ति, अक्षय धन, ज्ञान तथा परम सुख पाता है। दीपदान करनेसे मनुष्यको सौभाग्य, अत्यन्त निर्मल विद्या, आरोग्य तथा परम उत्तम समृद्धिकी प्राप्ति होती है इसमें तनिक भी संशय नहीं है। दीपदान करनेवाला मानव समस्त शुभ लक्षणोंसे युक्त सौभाग्यवती पत्नी, पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र तथा अक्षय संतति प्राप्त करता है। दीपदानके प्रभावसे ब्राह्मणको परम ज्ञान क्षत्रियको उत्तम राज्य, वैश्यको धन और समस्त पशु तथा शूद्रको सुखकी प्राप्ति होती है। कुमारी कन्याको सम्पूर्ण शुभ लक्षणोंसे युक्त पति मिलता है। वह बहुत से पुत्र-पौत्र तथा बड़ी आयु पाती है। युवती स्त्री इस व्रतके प्रभावसे कभी वैधव्यका दुःख नहीं देखती। उसका अपनेस्वामीसे कभी वियोग नहीं होता। दीपदानसे मानसिक चिन्ता तथा रोग भी दूर होते हैं। भवभीत पुरुष भयसे तथा कैदी बन्धनसे छूट जाता है। दीपव्रतमें तत्पर रहनेवाला मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पार्पोसे निस्संदेह मुक्त हो जाता है-ऐसा ब्रह्माजीका वचन है।
जिसने श्रीहरिके सम्मुख सांवत्सर दीप जलाया है उसने निश्चय ही चान्द्रायण तथा कृच्छ्र व्रतोंका अनुष्ठान पूरा कर लिया। जिन्होंने भक्तिपूर्वक श्रीहरिकी पूजा करके संवत्सरदीप-व्रतका पालन किया है, वे धन्य हैं तथा उन्होंने जन्म लेनेका फल पा लिया। जो सलाईसे दीपकी बत्तीको उकसा देते हैं, वे भी देवदुर्लभ परमपदको प्राप्त होते हैं। जो लोग सदा ही मन्दिरके दीपमें यथाशक्ति तेल और बत्ती डालते हैं, वे परम धामको जाते हैं। जो लोग बुझते या बुझे हुए दीपको स्वयं जलानेमें असमर्थ होनेपर दूसरे लोगों से उसकी सूचना दे देते हैं, वे भी उक्त फलके भागी होते हैं। जो दीपकके लिये थोड़े-थोड़े तेलकी भीख माँगकर श्रीविष्णुके सम्मुख दीप जलाता है, उसे भी पुण्यको प्राप्ति होती है। दीपक जलाते समय यदि कोई नीच पुरुष भी उसकी ओर श्रद्धासे हाथ जोड़कर निहारता है तो वह विष्णुधाममें जाता है। जो दूसरोंको भगवान् के सामने दीप जलानेकी सलाह देता है तथा स्वयं भी ऐसा करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर विष्णुलोकको प्राप्त होता है।
जो लोग पृथ्वीपर दीपव्रतके इस माहात्म्यको सुनते हैं, वे सब पापोंसे छुटकारा पाकर श्रीविष्णुधामको जाते हैं। विद्वन्। मैंने तुमसे यह दीपव्रतका वर्णन किया है। यह मोक्ष तथा सब प्रकारका सुख देनेवाला, प्रशस्त एवं महान् व्रत है। इसके अनुष्ठानसे पापके प्रभावसे होनेवाले नेत्ररोग नष्ट हो जाते हैं। मानसिक चिन्ताओं तथा व्याधियोंका क्षणभरमें नाश हो जाता है। नारद! इस व्रतके प्रभावसे दारिद्र्य और शोक नहीं होता। मोह और भ्रान्ति मिट जाती है।