भगवान् शंकरने कहा-नारद। अब में सम्पूर्ण कामनाओंको प्रदान करनेवाली एक अन्य तृतीयाका वर्णन कर रहा हूँ, जिसमें दान देना, हवन करना और जप करना सभी अक्षय हो जाता है। जो लोग वैशाखमासके शुक्लपक्षको तृतीयाके दिन व्रतोपवास करते हैं, वे अपने समस्त सत्कर्माका अक्षय फल प्राप्त करते हैं। वह तृतीया यदि कृत्तिका नक्षत्रसे युक्त हो तो विशेषरूपसे पूज्य मानी गयी है। उस दिन दिया गया दान किया हुआ हवन और जप सभी अक्षय बतलाये गये हैं। इस व्रतका अनुष्ठान करनेवालेकी संतान अक्षय हो जाती है और उस दिनका किया हुआ पुण्य अक्षय हो जाता है। इस दिन अक्षतके द्वारा भगवान् विष्णुको पूजा की जाती है, इसीलिये इसे अक्षय तृतीया| कहते हैं। * मनुष्यको चाहिये कि इस दिन स्वयं अक्षतयुक्त जलसे स्नान करके भगवान् विष्णुकी मूर्तिपर अक्षत चढ़ावे और अक्षतके साथ ही शुद्ध सत्तू ब्राह्मणोंको दान दे; तत्पश्चात् स्वयं भी उसी अन्नका भोजन करे। महाभाग ! ऐसा करनेसे वह अक्षय फलका भागी हो जाता है। उपर्युक्त विधिके अनुसार एक भी तृतीयाका व्रत करनेवाला मनुष्य इन सभी तृतीया व्रतोंके फलको प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य इस तृतीया तिथिको उपवास करके भगवान् जनार्दनकी भलीभाँति पूजा करता है, वह राजसूय यज्ञका फल पाकर अन्तमें | श्रेष्ठ गतिको प्राप्त होता है ॥ 1-7 ॥