गर्गजीने कहा- जिस देशमें ईंधनके बिना ही अग्नि जल उठती है और ईंधन लगानेपर भी अग्नि प्रज्वलित नहीं होती, वह देश राजाओंसे पीड़ित होता है। जहाँ जलमें मांस जलने लगता है या उसका कोई भाग जल जाता है, किलेकी चहारदीवारी, प्रवेशद्वार, तोरण, राजभवन और देवालय ये अकस्मात् जल उठते हैं वहाँ राजाको भय प्राप्त होता है। यदि ये उपर्युक्त वस्तुएँ बिजली गिरनेसे जल जाती हैं तब भी राजाको भय प्राप्त होता है। जहाँ रात्रि तथा धूलि एवं रजःकणोंके बिना ही अन्धकार छा जाय और अग्निके बिना धुआँ दिखायी पड़े, वहाँ महाभयकी प्राप्ति जाननी चाहिये। बादल और नक्षत्रोंसे रहित आकाशमें बिजली काँधने लगे तो भय प्राप्त होता है। इसी प्रकार दिनमें गगनमण्डल तारायुक्त हो जाय तो भी उसी प्रकारका भय कहना चाहिये ॥1-5॥ग्रहों और नक्षत्रोंमें विकारका हो जाना, ताराओंमें विषमताका दिखायी पड़ना, ग्राम, वाहन, रथ, चौपाये, मृग, पक्षी तथा शस्त्रास्त्रोंका अपने-आप प्रज्वलित हो उठना अथवा धूमिल हो जाना और कोशसे अस्त्रादिका निकलना तुमुल संग्रामका सूचक है। जहाँ कहीं भी अग्निके बिना चिनगारियाँ दिखायी पड़ने लगें, स्वाभाविक ढंगसे ही धनुषकी डोरियाँ चढ़ जायँ या विकृत हो जायँ तथा शस्त्रास्त्रोंमें विकार उत्पन्न हो जाय तो वहाँ संग्राम बतलाना चाहिये। ऐसी दशामें वहाँका पुरोहित तीन रात्रितक उपवासकर अत्यन्त समाहित-चित्तसे दूधवाले वृक्षोंकी लकड़ियों, सरसों तथा घीसे अग्नि मन्त्रोंद्वारा हवन करे। तदनन्तर ब्राह्मणोंको भोजन कराये तथा उन्हें सुवर्ण, गौएँ, वस्त्र और पृथ्वीका दान दे। द्विजेन्द्र ! ऐसा करनेसे अग्नि-विकार सम्बन्धी पाप नष्ट हो जाता है ॥ 6-11 ॥