मनुजीने पूछा- सम्पूर्ण धर्मज्ञोंमें श्रेष्ठ भगवन्! चूँकि आप सर्वज्ञ कहे जाते हैं, इसलिये अब आप मुझे शुभाशुभसूचक शकुनोंके लक्षण बतलाइये ॥ 1 ॥ मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन् ! शरीरके दाहिने भागमें स्फुरण होना शुभ तथा पीठ, हृदय और बायें भागका स्फुरण अशुभ फलदायक होता है॥ 2 ॥
मनुजीने पूछा— भगवन्! अङ्गका स्फुरण जिस शुभा शुभकी सूचना देनेवाला होता है, उसे मुझे विस्तारपूर्वक बतलाइये, जिससे मैं भूतलपर उसका ज्ञाता हो जाऊँ ॥ 3 ॥मत्स्यभगवान् बोले- रविनन्दन! सिरके स्फुरण पृथ्वीका लाभ होता है, ललाटके स्फुरणसे स्थानकी वृद्धि होती है, भाँह और नासिकाके स्फुरणसे प्रियजनोंका समागम होता है। राजन्। नेत्रोंके फड़कनेसे सेवककी तथा नेत्रोंके समीप स्फुरण होनेसे धनकी प्राप्ति होती है। नेत्रोंके मध्य भागमें स्फुरण होनेसे उत्कण्ठा बढ़ती है, ऐसा विचक्षणोंने अनुभव किया है। नेत्र- पलकोंके फड़कनेसे संग्राममें शीघ्र ही विजय प्राप्त होती है। नेत्रापाङ्गों स्फुरण से स्त्री-लाभ, कानके फड़कनेसे प्रियवार्ता श्रवण, नासिका स्फुरणसे प्रीति एवं सौख्य, निचले होंठके फड़कनेसे संतान प्राप्ति, कण्ठ-स्फुरणसे भोग लाभ तथा दोनों कंधोंके स्फुरण भोगकी वृद्धि होती है बाहुओंके फड़कनेसे मित्र-स्नेहकी प्राप्ति, हाथके स्फुरणसे धनकी प्राप्ति, पीठके फड़कनेसे युद्ध में पराजय तथा छातीके स्फुरणसे विजय प्राप्ति होती है ॥4-8॥ दोनों कुक्षियोंके फड़कनेसे प्रेमकी वृद्धि कही गयी है, स्तनके स्फुरण से स्त्रीसे संतानोत्पत्ति होती है। राजन्। नाभिके स्फुरण से स्थानसे च्युत होना पड़ता है, आँतके फड़कनेसे धनकी प्राप्ति तथा जानुके संधिभागके स्फुरणसे बलवान् शत्रुओंके साथ संधि हो जाती है। रविनन्दन। फिल्लियों के फड़कनेसे राजाके देशके किसी भागका नाश होता है। नृप! दोनों पैरोंके स्फुरणसे उत्तम स्थानकी प्राप्ति होती है। राजन्! पैरोंके तलुओंके फड़कने से लाभदायिनी यात्रा होती है। अङ्गस्फुरणके समान ही लक्षण (कालेदाग) एवं पिटकों (छोटे मांसपिण्ड, जो जन्मसे ही बालकोंके अङ्गोंमें उत्पन्न होते हैं) के भी फलाफलको जानना चाहिये। स्त्रियोंके लिये ये सभी फलागम विपरीत होते हैं। बायें भागके अप्रशस्त अङ्गोंके स्फुरणसे विशेष अशुभ होता है। इसी प्रकार दाहिने भागमें भी शुभ अङ्गोंके स्फुरणसे विशेष शुभ होता है। इस शुभ एवं अशुभ फलके सिद्धि-कथनके अतिरिक्त अनिष्ट चिह्नके प्रकट होनेपर ब्राह्मणोंको सुवर्णदान देकर संतुष्ट करना चाहिये ll 9 - 14 ॥