सूतजी कहते हैं-ऋषियो ! मरीचिके वंशज | देवताओंके पितृगण जहाँ निवास करते हैं, वे लोक सोमपथके नामसे विख्यात हैं। देवतालोग उन पितरोंका ध्यान किया करते हैं। वे यज्ञपरायण पितृगण अप्रिवास नामसे प्रसिद्ध हैं। जहाँ वे रहते हैं, वहीं अच्छोदा नामकी एक नदी प्रवाहित होती है, जो उन्हीं पितरोंकी मानसी कन्या है। प्राचीनकालमें पितरोंने वहीं एक अच्छोद नामक सरोवरका भी निर्माण किया था पूर्वकालमें अच्छोदाने एक सहस्र दिव्य वर्षोंतक घोर तपस्या की। उसकी तपस्यासे संतुष्ट होकर पितृगण उसे वर प्रदान करनेके लिये उसके समीप पधारे। वे सब-के सब पिटर दिव्य रूपधारी थे। उनके शरीरपर दिव्य सुगन्धका अनुलेप लगा हुआ था तथा गलेमें दिव्य पुष्पमाला लटक | रही थी। वे सभी नवयुवक, बलसम्पन्न एवं कामदेवके सदृश सौन्दर्यशाली थे उन पितरोंमें अमावसु नामक पितरकोदेखकर वरकी अभिलापावाली सुन्दरी अच्छोदा व्यग्र हो उठी और उनके साथ रहनेकी याचना करने लगी। इस मानसिक कदाचारके कारण सुन्दरी अच्छोदा योगसे भ्रष्ट हो गयी और (उसके परिणामस्वरूप वह स्वर्गलोकसे) भूतलपर गिर पड़ी। उसने पहले कभी पृथ्वीका स्पर्श नहीं किया था। जिस तिथिको अमावसुने अच्छोदाके साथ निवास करनेकी अनिच्छा प्रकट की, वह तिथि उनके धैर्यके प्रभावसे लोगोंद्वारा अमावस्या नामसे प्रसिद्ध हुई। इसी कारण यह | तिथि पितरोंको परम प्रिय है। इस तिथिमें किया हुआ श्राद्धादि कार्य अक्षय फलदायक होता है ॥ 1-8 ॥
इस प्रकार (बहुकालार्जित) तपस्याके नष्ट हो जानेसे अच्छोदा लज्जित हो गयी। वह अत्यन्त दीन होकर नीचे मुख किये हुए देवपुरमें पुनः अपनी प्रसिद्धिके लिये | पितरोंसे प्रार्थना करने लगी। तब रोती हुई उस तपस्विनीको पितरोंने सान्त्वना दी। वे महाभाग पितर भावी देव-कार्यका | विचार कर प्रसता एवं मङ्गलसे परिपूर्ण वाणीद्वारा उससे इस प्रकार बोले— 'वरवर्णिनि ! बुद्धिमान् लोग स्वर्गलोकमें दिव्य शरीरद्वारा जो कुछ शुभाशुभ कर्म करते हैं, वे उसी | शरीरसे उन कर्मोंके फलका उपभोग करते हैं; क्योंकि देव योनिमें कर्म तुरन्त फलदायक हो जाते हैं। उसके विपरीत मानव-योनिमें मृत्युके पश्चात् (जन्मान्तरमें) कर्मफल भोगना पड़ता है। इसलिये पुत्रि ! तुम मृत्युके पश्चात् जन्मान्तरमें | अपनी तपस्याका पूर्ण फल प्राप्त करोगी। अट्ठाईसवें द्वापर में तुम मत्स्य योनिमें उत्पन्न होओगी। पितृकुलका व्यतिक्रमण करनेके कारण तुम्हें उस कष्टदायक योनिकी प्राप्ति होगी। पुनः उस योनिसे मुक्त होकर तुम राजा (उपरिचर) वसुकी कन्या होओगी। कन्या होनेपर तुम अपने दुर्लभ लोकोंको अवश्य प्राप्त करोगी। उस कन्यावस्थामें तुम्हें बदरी (बेर) के वृक्षोंसे व्याप्त द्वीपमें महर्षि पराशरसे एक ऐसे पुत्रकी प्राप्ति होगी, जो बादरायण नामसे प्रसिद्ध होगा और कभी | अपने कर्मसे च्युत न होनेवाले नारायणका अवतार होगा। तुम्हारा वह पुत्र एक ही वेदको अनेक (चार) भागों में विभक्त करेगा। तदनन्तर समुद्र के अंशसे उत्पन्न हुए पुरुवंशी राजा शंतनुके संयोगसे तुम्हें विचित्रवीर्य एवं महाराज चित्राङ्गद नामक दो पुत्र प्राप्त होंगे। बुद्धिमान् विचित्रवीर्यके दो क्षेत्रज धृतराष्ट्र और पाण्डु पुत्रोंको उत्पन्न कराकर तुम प्रौष्ठपदी (भाद्रपदकी पूर्णिमा और पौषकृष्णाष्टमी | आदि) में अष्टकारूपसे पितृलोकमें जन्म ग्रहण करोगी।इस प्रकार मनुष्य-लोकमें सत्यवती और पितृलोकमें आयु एवं आरोग्य प्रदान करनेवाली तथा नित्य सम्पूर्ण मनोवाञ्छित | फर्लोकी प्रदात्री अष्टका नामसे तुम्हारी ख्याति होगी। कालान्तरमें तुम मनुष्यलोकमें नदियोंमें श्रेष्ठ पुण्यसलिला अच्छोदा नामसे नदीरूपमें जन्म धारण करोगी।' ऐसा कहकर पितरोंका वह समुदाय वहीं अन्तर्हित हो गया तथा अच्छोदाको अपने उन समस्त | कर्मफलोंकी प्राप्ति हुई, जो पहले कहे जा चुके हैं ॥ 9–21॥