मनुने पूछा- केशव ! दिव्य, अन्तरिक्ष और पृथ्वीसम्बन्धी बड़े-बड़े अद्भुत उपद्रवोंके होनेपर जिस शान्तिका विधान किया जाता है, उसे मैं श्रवण करना चाहता हूँ ॥ 1 ॥
मत्स्यभगवान्ने कहा— राजन् ! अब मैं उत्पातोंके समय की जानेवाली तीनों प्रकारकी शान्तियाँ बतला रहा हूँ। उनमें विशेषरूपसे पृथ्वी-सम्बन्धी महोत्पातोंके अवसरपर शान्ति करनी चाहिये। राजन् ! अन्तरिक्ष-सम्बन्धी उत्पातोंके लिये अभया तथा दिव्य उत्पातोंके लिये सौम्या शान्ति | करनी चाहिये। राजन्! जो विजयाभिलाषी तथा ऐश्वर्यकामीहो, उस शत्रुओंपर विजय पानेके इच्छुक, शत्रुओंद्वारा आक्रान्त, आभिचारिक कर्मोंकी शङ्कासे युक्त, शत्रुओंको विनष्ट करनेके लिये उद्यत राजाके लिये महानु भय उपस्थित होनेपर अभया शान्ति कही गयी है। राजयक्ष्मा रोगसे ग्रस्त, घावसे दुर्बल तथा यज्ञकी कामनावालेके लिये सौम्या शान्तिकी प्रशंसा की गयी है। भूकम्प आनेपर अकाल पड़नेपर, अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं टिडियोंसे भय होनेपर, पागल और चोरसे भय उपस्थित होनेपर राजाको वैष्णवी शान्ति करानी चाहिये। पशुओं और मनुष्योंका भीषण संहार उपस्थित होनेपर तथा भूत-पिशाचादिके दिखायी देनेपर रौद्री शान्ति करानी चाहिये। वेदोंका विनाश उपस्थित होनेपर, लोगंकि नास्तिक हो जानेपर तथा अपूज्य लोगोंकी पूजा होनेपर, ब्राह्मी शान्ति करानी चाहिये। भावी अभिषेक, शत्रुसेनासे उत्पन्न भय, अपने राष्ट्रमें भेद तथा शत्रु वधका अवसर प्राप्त होनेपर रौद्री शान्तिकी प्रशंसा की गयी है । ll 2–10 ॥
तीन दिनोंसे अधिक प्रबल वायुके चलनेपर, सभी भक्ष्य पदार्थोंके विकृत हो जानेपर तथा वातज व्याधिके बिगड़ जानेपर वायवी शान्ति करानी चाहिये। सूखा पड़ जानेका भय हो, वृष्टिसे अधिक हानि हो तथा जलाशयों में कोई विकार उत्पन्न हो गया हो तो ऐसे अवसरपर वारुणी शान्ति करानी चाहिये महाबाहो अभिशापका भय उपस्थित होनेपर भार्गवी तथा स्त्रीके प्रसवमें विकार उत्पन्न होनेपर प्राजापत्या नामकी शान्ति करानी चाहिये। पार्थिवनन्दन गृह सामग्रियोंमें विकार उत्पन्न होनेपर त्वष्ट्री (विश्वकर्मासम्बन्धी) शान्ति करानी चाहिये। राजन्! बालकोंकी बाधा दूर करनेके लिये कौमारी शान्ति होनी चाहिये। अग्नि-विकार उपस्थित होनेपर, आज्ञा भङ्ग होनेपर तथा सेवकादिके विनाश होनेपर आग्नेयो शान्ति करानी चाहिये। अथोंको शान्ति कामनासे उनमें रोग उत्पन्न होनेपर तथा अधिक संख्याकी अभिलाषासे गान्धव शान्ति करानी चाहिये। हाथियोंकी शान्ति कामनासे, उनमें रोग उपस्थित होनेपर तथा उनको रक्षाकी भावनासे आङ्गिरसी शान्ति करानी चाहिये। | पिशाचादिका तथा अकालमृत्युका भय उपस्थित होनेपर और दुःस्वप्न देखनेपर नैर्ऋती शान्ति कही गयी है।मृत्युका भय होनेपर याम्या शान्ति कराये तथा धनका नाश उत्पन्न होनेपर कौबेरी शान्ति करानी चाहिये। ऐश्वर्यकामी मनुष्यको वृक्षों तथा सम्पत्तियोंका विनाश उपस्थित होनेपर पार्थिवी शान्तिका प्रयोग करना चाहिये ।। 11- 20 ॥
मानवश्रेष्ठ ! दिनके या रात्रिके पहले पहरमें सूर्यके हस्त, स्वाती, चित्रा, पुनर्वसु या अश्विनी नक्षत्रमें जानेपर वायव्यकोणमें यदि अद्भुत उपद्रव दिखायी पड़े तो आग्नेयी शान्ति करानी चाहिये। रविनन्दन। दिनके अथवा रात्रिके दूसरे पहरमें सूर्यके पुष्य, भरणी, कृत्तिका, मघा और विशाखा नक्षत्रमें जानेपर आग्नेयकोण या दक्षिण दिशामें यदि कोई उत्पात दिखायी दे तो आग्नेयी शान्ति करानी चाहिये। रविनन्दन दिनके या रात्रिके तीसरे पहरमें रोहिणी, श्रवण, धनिष्ठा, उत्तराषाढ़, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्रमें सूर्यके जानेपर यदि ईशान, पूर्व या अग्निकोणमें कोई उत्पात दिखायी दे तो ऐन्द्री शान्ति करानी चाहिये। रविनन्दन ! दिन या रात्रिके चौथे पहरमें आश्लेषा, रेवती, आर्द्रा, उत्तराभाद्र, शतभिषा या मूल नक्षत्रमें सूर्यके जानेपर पश्चिम दिशामें उत्पात दिखायी देनेपर राजाको वारुणी शान्ति करानी चाहिये। यदि मध्याह्नके समय कहींपर अद्भुत उत्पात होते हैं तो उस समय दोनों प्रकारकी शान्ति करानी चाहिये। इन उपर्युक्त कारणोंके उपस्थित होनेपर ही शान्ति करानी चाहिये, अन्यथा नहीं बिना किसी कारणके की गयी शान्ति निष्फल हो जाती है। राजन्! जिस प्रकार कवचसे सुरक्षित शरीरवाले मनुष्योंको बाणोंका प्रहार किसी प्रकारकी हानि नहीं पहुँचाता, उसी प्रकार धर्मात्मा एवं शान्तिपरायण मनुष्योंको दैव-प्रहार किसी प्रकारकी हानि नहीं पहुँचा सकते ॥ 21–29 ।।