सूतजी कहते हैं- ऋषियों! एक समय सनक आदि तपस्वी ब्रह्मर्षिगण, सकल राजर्षिवृन्द एवं महेश्वरके भक्तगणोंने कैलास पर्वतके शिखरपर बैठे हुए ब्रह्मज्ञानियोंमें श्रेष्ठ स्कन्दसे पूछा—'स्कन्द ! मृत्युलोकमें जहाँ भगवान् शंकर सदैव विराजमान रहते हैं, वह स्थान आप (हमें) बतलाइये ॥ 1-2 ॥
स्कन्दने कहा- सभी प्राणियोंके आत्मस्वरूप, महात्मा, सनातन, देवाधिदेव, सामर्थ्यशाली, महादेव देवता एवं दानवोंसे दुष्प्राप्य, घोररूप धारणकर प्रलयपर्यन्त जहाँ स्थिररूपसे निवास करते हैं, उसे अत्यन्त गुप्त अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। जहाँ शिव सदा स्थित रहते हैं, उस अविमुतक्षेत्रमें सिद्धि सदा सुलभ है। इस स्थानका जो माहात्म्य भगवान् शङ्करने स्वयं कहा है, उसे सुनिये। यह स्थान परम पवित्र तीर्थ और देवालय है। महाश्मशानपर स्थित जो दिव्य एवं सुगुप्त मन्दिर है, उसका पृथ्वीलोकसे सम्बन्ध नहीं है। वह शिवका मन्दिर अन्तरिक्षमें है। योगी व्यक्ति ही ज्ञानद्वारा उसका साक्षात्कार कर पाते हैं, किंतु जो योगसे रहित हैं वे उसे नहीं देख पाते। जो ब्रह्मचारी, सिद्ध और वेदान्तको | जाननेवाले मृत्युपर्यन्त उस स्थानका परित्याग नहीं करते,उन्हें वह पवित्र गति प्राप्त होती है, जो ब्रह्मचर्यपूर्वक यज्ञोंद्वारा भलीभाँति अनुष्ठान करनेपर क्रियासम्पन्न व्यक्तियोंके लिये कही गयी है। जो विप्र समाधिसे रहित, योगसे शून्य एवं तीनों समय भोजन करते हुए भी वहाँ निवास करता है वह वायुभक्षीके समान माना जाता है। इस अविमुक्त क्षेत्रमें क्षणभर भी ब्रह्मचर्यपूर्वक निवास करनेवाला भक्तिमान् व्यक्ति परम तपको प्राप्त करता है। जो धीर पुरुष अल्प भोजन करते हुए इन्द्रियोंको वशमें कर एक मासतक यहाँ निवास करता है, वह (मानो) महान् दिव्य पाशुपत व्रतका अनुष्ठान कर लेता है। वह पुरुष जन्म और मृत्युके भयको पारकर परमगतिको प्राप्त करता है तथा पुण्यदायक मोक्ष एवं योगगतिका अधिकारी हो जाता है। जिस दिव्य योगगतिको सैकड़ों जन्मोंमें भी नहीं प्राप्त किया जा सकता, वह स्थानके माहात्म्य और शंकरके प्रभावसे यहाँ प्राप्त हो जाती है ॥ 3 – 14 ll
ब्रह्महत्या करनेवाला व्यक्ति भी यदि किसी समय इस अविमुक्तक्षेत्रमें चला जाता है तो इस क्षेत्रके प्रभावसे उसकी ब्रह्महत्या निवृत्त हो जाती है। जो मृत्युपर्यन्त इस क्षेत्रका परित्याग नहीं करता, उसकी केवल ब्रह्महत्या ही नहीं, अपितु पहलेके किये हुए पाप भी नष्ट हो जाते हैं। वह भगवान् विश्वेश्वरको प्राप्तकर पुनः संसारमें जन्म नहीं ग्रहण करता। जो अनन्यचित्त हो अविमुक्त क्षेत्रका परित्याग नहीं करता, उसपर भगवान् शङ्कर सदा प्रसन्न रहते हैं और उसकी सभी कामनाएँ पूर्ण कर देते हैं। जो सांख्य और योगका द्वारस्वरूप है उस स्थानपर भक्तोंपर अनुकम्पा करनेके लिये सर्वशक्तिसम्पन्न भगवान् शङ्कर गणोंके साथ निवास करते हैं। अविमुक्त क्षेत्र श्रेष्ठ स्थान है अविमुक्तमें रहनेसे श्रेष्ठ गति प्राप्त होती है। अविमुक्तमें रहनेसे परम सिद्धि प्राप्त होती है और अविमुक्तमें रहने से श्रेष्ठ स्थान प्राप्त होता है। यदि बुद्धिमान् मनुष्य यह चाहता हो कि मेरा पुनर्जन्म न हो तो उसे देवर्षिगणोंसे सेवित अविमुक्त क्षेत्रमें निवास करना चाहिये। मेरु पर्वत, सभी द्वीपों तथा समुद्रोंके गुणोंका वर्णन किया जा सकता है, किंतु अविमुक्त क्षेत्रके गुणोंका वर्णन नहीं किया जा सकता। मृत्युके समय वायुसे प्रेरित मनुष्योंके मर्मस्थानोंके न हो जानेपर स्मृति नहीं उत्पन्न होती, किंतु अविमुक्तमें अन्तसमय कर्मोंसे प्रेरित भलोंके कानमें स्वयं ईश्वर | मन्त्रका जाप करते हैं। मनुष्य मणिकर्णिकामें शरीरकात्याग करनेपर इष्टगतिको प्राप्त करता है। जो गति अविशुद्ध आत्माओंद्वारा दुष्प्राप्य है, उसे भी वह ईश्वरकी प्रेरणाद्वारा यहाँ प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य अनेक पापोंसे परिपूर्ण इस मानवयोनिको नश्वर समझकर संसार-भयसे छुटकारा देनेवाले, योगक्षेमके प्रदाता, अनेक विघ्नोंके विनाशक, दिव्य अविमुक्त (काशी) में निवास करता है तथा | अनेक विघ्नोंसे आलोडित होनेपर भी अविमुक्तको नहीं छोड़ता, वह वृद्धावस्था, मृत्यु और इस नश्वर जन्मसे छुटकारा पा लेता है तथा अविमुक्तके माहात्म्यसे शिवसायुज्यको प्राप्त करता है ॥ 15-27 ॥