नारदजीने पूछा- नन्दीश्वर! अब जो व्रत मृत्युलोकवासी पुरुषोंके लिये आरोग्यकारी, अनन्त फलका प्रदाता और शान्तिकारक हो, उसका वर्णन कीजिये ॥ 1 ॥नन्दिकेश्वर बोले- नारदजी विश्वात्मा भगवान्का जो परब्रह्मस्वरूप सनातन तेज है, वह जगत्में सूर्य, अग्नि और चन्द्ररूपसे तीन भागोंमें विभक्त होकर स्थित है। | विप्रवर! उनकी आराधना करके मनुष्य सदा कुशलताका भागी हो जाता है। इसलिये रविवारको रात्रिमें एक बार भोजन करना चाहिये। जब रविवार हस्त नक्षत्रसे युक्त हो तो शनिवारको मत्सररहित हो एक ही बार भोजन करना चाहिये। रविवारको श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको भोजन कराकर नक्तभोजन (रात्रिमें एक बार भोजन करने) का विधान है। तदनन्तर लाल चन्दनसे द्वादश दलोंसे युक्त कमलकी रचना कर उसके पूर्व सूर्यको अधिकवाले दलपर दिवाकरकी, दक्षिणदलपर विवस्वान्की, नैर्ऋत्यकोणस्थित दलपर भगकी, पश्चिमदलपर वरुणदेवकी, वायव्यकोणवाले दलपर महेन्द्रकी उत्तरदलपर आदित्यकी और ईशानकोणस्थित दलपर शान्तकी नमस्कारपूर्वक स्थापना करे। पुनः कर्णिकाके पूर्वदलपर सूर्यके घोड़ोंको, दक्षिणदलपर अर्यमाको, पश्चिमदलपर मार्तण्डको, उत्तरदलपर रविदेवको और कर्णिकाके मध्यभागमें भास्करको स्थित कर दे। तदनन्तर लाल पुष्प, लाल चन्दन और तिलमिश्रित जलसे उस कमलपर अर्घ्य प्रदान करे। उस समय इस मन्त्रका उच्चारण करना चाहिये-'दिवाकर काल आपका ही स्वरूप है, आप समस्त प्राणियोंके आत्मा और वेदस्वरूप हैं, आपका मुख चारों दिशाओंमें है अर्थात् आप सर्वद्रष्टा हैं तथा अग्नि और इन्द्रके रूपमें आप ही वर्तमान हैं, अतः मेरी रक्षा कीजिये। भास्कर ! ऋग्वेदके प्रथम मन्त्र 'अग्निमीले', यजुर्वेदके 'इषे त्वोर्जे' तथा सामवेदके प्रथम मन्त्र अग्न आयाहि' के रूपमें आप ही वर्तमान हैं, आपको नमस्कार है। वरदायक! आप ज्योतिःपुञ्जोंके अधीश्वर हैं, आपको प्रणाम है ॥ 212 ll
इस प्रकार अर्घ्य देकर विसर्जन कर रातमें तेलरहित | भोजन करना चाहिये। एक वर्ष पूरा होनेपर अपनी शक्तिके अनुसार सुवर्णसे एक उत्तम कमल और एक दो भुजाधारी पुरुषकी मूर्ति बनवाये फिर गुड़के ऊपर स्थित के पूर्णपात्रपर उस कमल और पुरुषको रख दे। उस समय एक सवत्सा कपिला गौ भी प्रस्तुत करे, जो अधिक मूल्यवाली हो, जिसके सॉंग सुवर्णसे और खुर चाँदीसे | मढ़े गये हों तथा जिसके निकट कांसदोहनी भी रखी हो।तत्पश्चात् लाल रंगके स्वर्णनिर्मित सिंघा बाजाके साथ
वस्त्र, पुष्पमाला और धूपसे ब्राह्मणकी पूजा करके संकल्पपूर्वक गौ एवं कमलसहित उस पुरुष मूर्तिको ऐसे ब्राह्मणको दान कर दे, जो अनेकों श्रेष्ठ व्रतोंमें दान लेनेका अधिकारी, सुडौल रूपसे सम्पन्न, जितेन्द्रिय, शान्त स्वभाव और विशाल कुटुम्बवाला हो। (उस समय ऐसी प्रार्थना करनी चाहिये) 'जो पापके विनाशक, विश्वके आत्मस्वरूप, सात घोड़ोंसे जुते रथपर आरूढ़ होनेवाले, ऋक्, यजुः साम— तीनों वेदोंके तेजकी निधि, विधाता, भवसागरके लिये नौकास्वरूप और जगत्स्रष्टा हैं, उन सूर्यदेवको बारंबार नमस्कार है।' जो मानव इस लोकमें उपर्युक्त विधिके अनुसार एक वर्षतक इस व्रतका अनुष्ठान करता है, वह पापरहित होकर सूर्यलोकको चला जाता है। उस समय उसके ऊपर चँवर डुलाये जाते हैं। पुण्य क्षीण होनेपर वह इस लोकमें शोक, दुःख, भय और रोगसे रहित होकर बारंबार अमित ओजस्वी एवं धर्मात्मा भूपाल होता है, उस समय सातों द्वीप उसके अधिकारमें रहते हैं। नारदजी! पति, गुरुजन और देवताओंकी शुश्रूषामें तत्पर रहनेवाली जो नारी रविवारको | इस नक्तव्रतका अनुष्ठान करती है, वह भी इन्द्रद्वारा पूजित होकर निस्संदेह सूर्यलोकको चली जाती है। जो मानव इस व्रतको पढ़ता या सुनता है अथवा पढ़नेवालेका अनुमोदन करता है, वह भी इन्द्रलोकमें स्थित होकर देवताओंद्वारा पूजित होता है और अक्षय कालतक स्वर्गलोकमें निवास करता है ॥ 13–20 ॥