गर्गजीने कहा- ब्रह्मन् जिस देशमें रथादि घोड़ोंके बिना जोते ही चलने लगते हैं और घोड़ोंके जोतनेपर एवं उन्हें हाँकनेपर भी नहीं चलते, वहाँ महान् भय उपस्थित होनेवाला है। बिना बजाये ही बाजे बजने लगते हैं और बजानेपर नहीं बजते, अचल वस्तुएँ चलने लगती हैं और चल अचल हो जाती हैं, आकाशमें तुरुहीकी ध्वनि और गन्धर्वोकी गीतोंका शब्द सुनायी पड़ने लगता है, काष्ठ, करछुल एवं फावड़े आदिमें विकार उत्पन्न हो जाते हैं, गौएँ पूँछसे एक-दूसरेको मारने लगती हैं, स्त्रियाँ एक-दूसरेकी हत्या करने लगती हैं और घरेलू वस्तुओंमें भी विकार उत्पन्न हो जाते हैं, उस देशमें शस्त्रास्त्रोंसे घोर भय उत्पन्न होता है। ऐसे उत्पातोंके घटित होनेपर सत्तूसे वायुदेवकी पूजा करके उनके मन्त्रोंका जप करना चाहिये और प्रचुरपरिमाणमें | दक्षिणासहित परमोत्तम अन्नका दान देना चाहिये। इसीसे उस उत्पातका शमन होता है ॥1-5 ॥