सूतजी कहते हैं-ऋषियो वह मङ्गलकारिणी एवं पुण्यमयी दिव्य नदी ऐरावती हिमालयपर्वतसे निकली हुई थी। वह (जलक्रीडार्थ आये हुए) गन्धर्वोसे भरी हुई, इन्द्रद्वारा सदा सेवित, चारों ओरसे ऐरावतके मद | जलसे अभिषिक्त होनेके कारण सुशोभित और मध्यमेंइन्द्रधनुषके समान चमक रही थी। उसके तटपर तपस्वियोंके आश्रम बने हुए थे। वह श्रेष्ठ ब्राह्मणोंद्वारा सुसेवित तथा तपाये हुए सुवर्णके समान चमक रही थी। ऐसी नदीको उस दिन महाराज पुरूरवाने देखा वह श्वेत वर्णवाले हंसोंकी पतियोंसे आच्छम, काश पुष्परूपी चैवरसे सुशोभित और सत्पुरुषोंद्वारा नहलायी गधी-सी दीख रही थी उसे देखकर राजाको परम प्रसन्नता प्राप्त हुई। वह पुण्यमयी नदी शीतल जलसे परिपूर्ण, मनोहारिणी, मनकी प्रसन्नता बढ़ानेवाली, हास और वृद्धिसे संयुक्त, रमणीय, दूसरी चन्द्रमूर्तिके समान उज्वल, अत्यन्त शीतल और वेगसे बहनेवाले जलसे संयुक्त, ब्राह्मणों तथा पचिसमूहद्वारा सुसेवित, हिमालयकी श्रेष्ठ पुत्रीभूत, लोल लहरोंसे सुशोभित, अमृतके समान सुस्वादु जलसे परिपूर्ण तपस्वियों द्वारा सुशोभित, स्वर्गपर चढ़नेके लिये सोपान सदृश, समस्त पापोंकी विनाशिनी, सर्वश्रेष्ठ, समुद्रकी पटरानी, महर्षिगणोंद्वारा सेवित, सभी लोगों के मनमें उत्सुकता प्रकट करनेवाली, परम मनोहर, सभी लोगोंकी हितकारिणी, स्वर्गका मार्ग प्रदान करनेवाली, गोसमूहोंसे व्याप्त तट- प्रान्तवाली, परम सुन्दर, सेवाररहित, हंस तथा सारस पक्षियोंके शब्दसे गूंजित, कमलोंसे सुशोभित, भवररूपी गहरी नाभिसे युक्त, द्वीपरूपी उरु एवं जपन भागवाली, नीले कमलरूपी नेत्रकी शोभासे युक्त, खिले हुए कमल-पुष्परूपी मुखवाली, हिम (बर्फ) तुल्य उज्ज्वल फेनरूपी वस्त्रसे युक्त, चक्रवाकरूपी होंठोंवाली, कल्याणमयी, बगुलोंकी पतिरूपी दाँतोंसे युक्त, चञ्चल मछलियोंकी कतारकी-सी भाँहोंवाली, अपने जलके घुमावसे बने हुए हाथीके रमणीय गण्डस्थलरूपी स्तनोंसे युक्त, हंसरूपी नूपुरके झंकारसे संयुक्त तथा कमलनालरूपी कंकणोंसे सुशोभित थी ॥ 1-12 ॥
राजन् ! उस नदीमें दोपहरके समय अपनी सुन्दरताके मदसे उन्मत्त हुई यूथ की यूथ अप्सराएँ गन्धवोंके साथ सदा क्रीडा करती थीं। उन अप्सराओंके शरीरसे गिरे हुए सुन्दर कुङ्कुमको बहानेवाली वह नदी अपने तटपर उगे हुए वृक्षोंसे गिरे हुए पुष्पोंके कारण रंग-बिरंगवाली तथा सुगन्धसे व्याप्त थी, उसके तरंगसमूहसे आच्छादित होनेके कारण सूर्यमण्डलका दीखना कठिन हो गया था। वह ऐरावतद्वारा किये गये आघात से चिह्नित तटोंसे विभूषित थी। उसका जल ऐरावतके गण्डस्थलसे बहते हुए मद जल तथा देवनाओंके स्तनोंपर लगे हुए चन्दनोंसे युक्तथा, जिसपर भरे मँडरा रहे थे। उसके तटपर उगे हुए वृक्ष सुगन्धित पुष्पोंसे लदे हुए तथा सुगन्धके लोभसे | आकृष्ट हुए चञ्चल भौरोंकी गुंजारसे व्यास थे जिसके तटपर कामके वशीभूत हुए मृग हिरनियोंके साथ बिहार करते थे तथा यहाँ तपोवन, अप्सराओसमेत देवगण, देवताओंके समान सुन्दर एवं पवित्र अङ्गौवाले अन्य पुरुष एवं कमल और चन्द्रमाकी-सी मुखवाली स्वर्गवासिनी स्त्रियाँ भी पायी जाती थीं, जो देवगणों, पुलिन्दों (जंगली जातियों), नृपसमूहों और व्याघ्रदलोंसे अपीडित अर्थात् परम पवित्र जल धारण करती थी, जो कमलयुक्त जल धारण करनेके कारण तारिकाओंसहित निर्मल आकाशके समान सुशोभित तथा सत्पुरुषोंकी अभीष्ट कामनाओंको पूर्ण करनेवाली थी, उसे देखते हुए राजा पुरूरवा आगे बढ़े। जिस नदीके रमणीय तट तीरभूमिमें उगे हुए पूर्णिमाके चन्द्रमाकी किरणोंके समान उज्वल काश-पुष्पों तथा अनेकों प्रकारके विशाल वृक्षोंसे सुशोभित थे, जो सदा विविध मतावलम्बी ब्राह्मणों और देवताओंसे सुसेवित थी, जो सदा भक्तजनोंके सम्पूर्ण पापोंका शीघ्र ही विनाश कर देती थी, जिसमें बहुत-सी छोटी-छोटी नदियाँ आकर मिली थीं, जो निरन्तर मुनीश्वरोंद्वारा सेवित थी, जो पुत्रकी तरह मनुष्योंका पालन करती थी, जो सदा हिम (बर्फ) राशिसे आच्छादित रहती थी, जो निरन्तर देवगणोंसे संयुक्त रहती थी, अपना कल्याण करनेके लिये मनुष्य जिसका आश्रय लेते थे, जिसके किनारे झुंड के झुंड सिंह घूमते रहते थे, जो हाथी समूहोंसे सेवित थी, जिसका जल कल्पवृक्षके पुष्पोंसे युक्त और सुवर्णके समान चमकीला था तथा जिसके तटवर्ती कदम्ब वृक्ष सूर्यको किरणोंके तापसे बढ़े हुए थे—ऐसी ऐरावती नदीको चन्द्रमा सरीखे निर्मल यशवाले राजा पुरूरवाने देखा ॥ 13-25 ॥