मनुने पूछा-अच्युत ! मन्वन्तर एवं युगों का वर्णन करते समय आपने कल्पका प्रमाण तो बता दिया है, अब मुझे (सभी तीस) कल्पोंके नाम संक्षेपसे बतलाइये ॥ 1 ॥मत्स्यभगवान्ने कहा- अब मैं कल्पोंका वर्णन कर रहा हूँ, जो महान् पातकोंको नष्ट करनेवाला है और जिसका अनुकीर्तन करनेसे वेदाध्ययनका पुण्य प्राप्त होता है। उनमें प्रथम चेतकल्प, दूसरा नीललोहित, तीसरा वामदेव, चौथा रथन्तरकल्प, पाँचवाँ रौरवकल्प, छठा देवकल्प सातवाँ बृहत्कल्प, आठवाँ कंदर्पकल्प, नवाँ सद्य: कल्प, दसवाँ ईशानकल्प, ग्यारहवाँ तमः कल्प, बारहवाँ सारस्वतकल्प, तेरहवाँ उदानकल्प, चौदहवाँ गारुडकल्प तथा पंद्रहवाँ कौर्मकल्प कहा गया है। इस दिन ब्रह्माजीकी पूर्णिमातिथि थी। सोलहवाँ नारसिंहकल्प, सत्रहवीं समानकल्प अठारहवाँ आग्नेयकल्प, उन्नीसवाँ सोमकल्प, बीसवाँ मानवकल्प, इक्कीसवाँ तत्पुमान्कल्प बाईस वैकुण्ठकल्प, तेईसवाँ लक्ष्मीकल्प, चौबीसवाँ सावित्रीकल्प, पचीसवाँ घोरकल्प, छबीसवाँ वाराहकल्प सत्ताईसवाँ वैराजकल्प, अट्ठाईसवाँ गौरीकल्प, उन्तीसवाँ माहेश्वरकल्प कहा गया है, जिसमें त्रिपुरका विनाश हुआ। था तीस पितृकल्प है, जो प्राचीन कालमें ब्रह्माकी अमावस्या थी। इस प्रकार ये सभी तीसों कल्प ब्रह्माके एक मास हैं, जो सभी पातकोंका नाश करनेवाले हैं ॥ 2- 11 ॥
प्रारम्भमें ही जिस कल्पमें जिसका माहात्म्य वर्णन किया गया है, उसी आधारपर ब्रह्माने उस कल्पका वह नाम रखा है। ये तीसों कल्प संकीर्ण, तामस, राजस, सात्त्विक तथा रजस्तमोमय इन भेदोंसे युक्त कहे गये हैं। संकीर्ण कल्पोंमें सरस्वती तथा पितरोंका, तामसमें अग्नि, सूर्य तथा शिवका और राजसमें ब्रह्माका अधिक माहात्म्य कहा गया है। प्राचीन कालमें ब्रह्माने जिस कल्पमें जिस पुराणको कहा है, उसी कल्पका माहात्म्य उस पुराणमें वर्णन किया गया है। सात्त्विक कल्पों में उत्तम रूपसे विष्णु भगवान्का माहात्म्य वर्णित है। योगसे सिद्धि प्राप्त करनेवाले लोग उनके पाठ परमगतिकोप्राप्त होते हैं। जो व्यक्ति प्रत्येक पर्वमें इन ब्रह्म तथा पद्म नामक पुराणोंका पाठ करता है, उसकी बुद्धिको ब्रह्मा धर्ममें लगाते हैं तथा उसे प्रचुर सम्पत्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति पर्व आनेपर इन्हें सोनेका बनवाकर दान करता है, वह ब्रह्मा तथा विष्णुके पुरमें निवास करते हुए स्वर्गमें मुनियोंद्वारा पूजित होता है; क्योंकि कल्पदान सम्पूर्ण पापको नष्ट करनेवाला होता है। विचक्षण पुरुषको इन कल्पोंको मुनिके समान स्वरूपवाला बनाकर दान करना चाहिये। राजन्! यह पुराण-संहिता, जो मैंने तुम्हें बताया है, सभी पापोंको नष्ट करनेवाली तथा नित्य आरोग्य एवं श्रीरूप फल प्रदान करनेवाली है। ब्रह्माका सौ वर्ष शिवका एक दिन तथा शिवका सौ वर्ष विष्णुका एक निमेष कहा जाता है। जब वे विष्णु जागते रहते हैं, तब यह जगत् भी चेष्टावान् रहता है और जब वे शान्त होकर शयन करते हैं, तब सारा जगत् शान्त हो जाता है ।। 12-22 ॥
सूतजी कहते हैं-ऋषियो ! ऐसा कहकर मत्स्यरूपी | देवदेवेश्वर जनार्दन सभी प्राणियोंके सामने वहीं अन्तर्हित हो गये। विवस्वान्के पुत्र मार्तण्ड - कुलवर्धन भगवान् मनु विविध प्रजाओंकी सृष्टि कर अपनी अवधितक उनका पालन करते रहे। उन्हींका यह मन्वन्तर अभीतक चला आ रहा है। इस प्रकार मैंने आपलोगोंसे मत्स्यभगवान्द्वारा कहे गये पुण्यप्रद पवित्र पुराणका वर्णन कर दिया। यह मत्स्यपुराण सभी शास्त्रोंमें शिरोभूषण रूपसे अवस्थित है ॥ 23–25 ॥