भगवान् शिवने कहा- अविमुक्त निवासियोंके | इस परम श्रेष्ठ स्थानको जानकर पुनः संसारमें जन्मकी आकाङ्क्षा न रखनेवाले अनेक सिद्धगणोंने इस स्थानमें निवास किया है। महादेवका यह अतिशय गुह्य स्थान श्रेष्ठ तीर्थ तथा तपोवनस्वरूप है। जो लोग उस उत्तम क्षेत्रमें जाते हैं, वे पुनः संसारमें जन्म नहीं ग्रहण करते सत्पुरुषोंद्वारा परमानन्दको प्राप्त करनेके इच्छुक तथा ज्ञानमें निष्ठा रखनेवाले व्यक्तियोंकी जो गति बतलायी गयी है, वह अविमुक्तक्षेत्रमें मरनेवालेको प्राप्त होती है। इस अविमुक्तक्षेत्रमें भगवान् शंकरकी अनुपम और अनुत्तम प्रीति है, अतः यहाँ जानेसे असंख्य फल और अक्षय गतिकी प्राप्ति होती है। (महा) श्मशानके नामसे प्रसिद्ध यह अविमुक्त परम गुह्य कहा गया है। भूतलपर जो मनुष्य इसका सेवन नहीं करते, वे वस्तुतः ठगे गये हैं। अविमुक्तक्षेत्र स्थित वाबुद्वारा उड़ायी गयी पवित्र भूलके स्पर्शसे अतिशय दुष्कर्म करनेवाले व्यक्ति भी परम गतिको प्राप्त हो जाते हैं। जहाँ स्वयं भगवान् शंकर निवास करते हैं, उस अविमुक्तकी अनुपम महिमा होनेके कारण देवता, दानव और मनुष्य उसका वर्णन नहीं कर सकते।जो अग्निका आधान नहीं करता, यज्ञ नहीं करता, अपवित्र या चोर हैं, वह भी यदि अविमुक्तक्षेत्रमें निवास करता है तो मानो महेश्वरके लोकमें ही निवास कर रहा है। महेश्वरकी कृपासे वहाँ कोई भी पापकर्म नहीं करता। स्त्री अथवा पुरुषद्वारा मानव-बुद्धिके अनुसार जान या अनजानमें भी जो कुछ दुष्कर्म किया होता है, वह सब अविमुक्तक्षेत्रमें प्रवेश करते ही भस्म हो जाता है ॥ 1-10 ॥
नदियाँ, सागर, पर्वत, तीर्थ, देवालय, भूत, प्रेत, पिशाच, शिवगण, मातृगण तथा श्मशान-निवासी- ये सभी उन महात्मा शिवको प्रिय हैं, अतः न तो वे भूतपति शिवको छोड़ते हैं और न शिव उनका परित्याग करते हैं। अविमुक्तमें स्थित वे प्रभु अपने प्रमथगणोंके साथ रमण करते हैं। भयसे त्रस्त, पापी, दुराचाररत | अथवा तिर्यग्योनिमें ही क्यों न उत्पन्न हुए हों, वे सभी अविमुक्तको देखकर महादेवकी अनुकम्पासे परम गतिको प्राप्त हो जाते हैं। भक्तोंपर अनुकम्पा करनेवाले भगवान् शंकर उन सभीको ऐसे श्रेष्ठ स्थानपर पहुँचा देते हैं, जहाँ यज्ञ करनेवाले, भृगुवंशी, अंगिरागोत्री, सिद्ध तथा महाव्रती ऋषिगण जाते हैं। उनके पाप अग्निमें डाली गयी रूईके समान अविमुक्तकी अग्निसे नष्ट हो जाते हैं। अविमुक्तक्षेत्रमें निवास करनेवाले पुरुषोंकी जो गति बतलायी गयी है, वह गति कुरुक्षेत्र, गङ्गाद्वार और पुष्कर तीर्थमें नहीं मिलती। तिर्यग्योनि में उत्पन्न हुए जो जीव अविमुक्तमें निवास करते हैं, वे समयानुसार मृत्युको प्राप्त होनेपर परमगतिको प्राप्त करते हैं। चाहे मेरु या मन्दराचलके बराबर भी पापकर्मकी राशि क्यों न हो, वह सब-का सब पाप अविमुक्तमें आते ही नष्ट हो जाता है ॥11- 18 ॥
शिवजीका यह निवास्थान अविमुक्त श्मशानके नामसे विख्यात है। उन देवाधिदेवका वह परम गुप्त स्थान है, वह तीर्थ है और वह तपोवन है। वहाँ नारायणसहित ब्रह्मा आदि देवगण, योगिसमूह, साध्यगण तथा जीवन्मुक्त शिवपरायण शिवभक्त सनातन भगवान् शिवकी उपासनामें रत रहते हैं। ज्ञानसम्पन्न तपस्वियों तथा यज्ञोंका विधानपूर्वक अनुष्ठान करनेवालोंको जो गति प्राप्त होती है, वही शुभ गति अविमुक्तमें मरनेवालोंके लिये कही गयी है। जगत्की | सृष्टि करनेवाले तथा जगत्का संहार करनेवाले ब्रह्मा| आदि देवगण एवं सम्राट्, विराट् आदि मानवसमूह एवं महः, जन, तप और सत्यलोकमें निवास करनेवाले प्राणी अविमुक्तक्षेत्रमें आकर पुनर्जन्मसे छुटकारा पा जाते हैं। यह मनका तथा भूत, भविष्य और वर्तमानका, परम योग है और ब्रह्मासे लेकर स्थावरपर्यन्त सभी प्राणिसमूहका तथा सांख्य आदि मोक्षका उत्पत्तिस्थान है। जो मनुष्य इस अविमुक्तका परित्याग नहीं करते, वे वञ्चित नहीं हैं। यह अविमुक्तक्षेत्र सभी तीर्थों, स्थानों, क्षेत्रों, श्मशानों, सरोवरों, सभी कूपों, नालों, पर्वतों और जलाशयोंमें उत्तम है। पुण्यकर्मा शिव भक्त अविमुक्तका ही सेवन करते हैं ॥ 19-27॥ यह ब्रह्माका परमस्थान, ब्रह्माद्वारा अध्यासित, ब्रह्माद्वारा सदा सेवित और ब्रह्माद्वारा रक्षित है। ब्रह्माकी प्रसन्नताके लिये यहीं सातों भुवन और सुवर्णमय सुमेरु पर्वत है। यहीं मनका परम योग प्राप्त होता है। इस क्षेत्रमें भगवान् ब्रह्मा तीनों सन्ध्याओंमें शिवके ध्यानमें लीन रहते हैं। यह क्षेत्र पुण्यसे भी पुण्यतम है और पुण्यात्माओं द्वारा सेवित है। यहाँ आदित्यकी उपासना करके विप्रगण अमर हो गये हैं। जो अन्य तीनों वर्णोंके प्राणी हैं, वे भी शिव भक्तिसे युक्त हो अविमुक्तक्षेत्रमें शरीरका परित्याग कर परमगतिको प्राप्त हो जाते हैं। संयत आत्मावाले यतियोंके लिये आठ मासोंका विहार विहित है। वे (चातुर्मासमें) एक स्थानमें केवल चार मास या दो मासतक निवास कर सकते हैं, किंतु अविमुक्तमें निवास करनेवाले यतियोंके लिये (यह) विहारका विधान नहीं है। (वे काशीमें सदा निवास कर सकते हैं।) प्राचीन शास्त्रमें ऐसा देखा गया है कि यहाँ मरनेवालेका पुनर्जन्म नहीं होता, वह निस्संदेह मोक्षको प्राप्त हो जाता है। जो पतिव्रता स्त्रियाँ शिवजीकी भक्तिमें लीन हैं, वे इस अविमुक्तमें शरीरका त्याग कर परमगतिको प्राप्त हो जाती हैं। इनसे अतिरिक्त जो कामपरायण एवं भोगमें आसक्त स्त्रियाँ हैं, वे इस क्षेत्रमें यथासमय मृत्युको प्राप्त होकर परम गतिको प्राप्त हो जाती हैं ॥ 28-36 ॥ जहाँ मनुष्य दुर्लभ योग और मोक्षको प्राप्त करते हैं, उस अविमुक्तक्षेत्रमें पहुँचकर किसी अन्य तपोवनमें जानेकी आवश्यकता नहीं है।ब्राह्मणोंको यहाँ निःसन्देह सर्वभावसे तपस्यामें तत्पर रहना चाहिये। जो मनुष्य अविमुक्तमें निवास करता है, वह मेरे समान हो जाता है; क्योंकि मैं इस स्थानको कभी नहीं छोड़ता, इसीलिये यह अविमुक्त नामसे कहा जाता है। जो मोहग्रस्त पुरुष तमोगुणसे आवृत हो अविमुक्तमें निवास नहीं करते, वे मल-मूत्र वीर्यके मध्यमें पुनः पुनः निवास करते हैं। (अर्थात् उन्हें बारंबार जन्म लेना पड़ता है)। काम, क्रोध, लोभ, दम्भ, स्तम्भ, अतिशय मात्सर्य, निद्रा, तन्द्रा, आलस्य तथा पिशुनता—ये दस विघ्न जो स्वयं इन्द्रद्वारा विहित हैं, अविमुक्तमें स्थित रहते हैं। इनके अतिरिक्त विनायकोंके उपद्रव निरन्तर सिरपर सवार रहते हैं, किंतु ये सभी भक्तोंके प्रति भगवान्की अनुकम्पाके कारण पुण्यफल प्रदान करते हैं, क्योंकि श्रेष्ठ देवताओं और तत्त्वद्रष्टा मुनियोंके द्वारा शास्त्रकी आलोचनाके आधारपर इस स्थानको परम गुह्य कहा गया है। (प्राचीनकालमें मधु कैटभकी) मज्जासे सम्पूर्ण पृथ्वी व्याप्त हो गयी थी, किंतु अविमुक्तकी भूमि उससे रहित थी। महादेवजीके द्वारा रक्षित यह सम्पूर्ण भूमि पवित्र ही बनी रही। इसीलिये ( कल्पसूत्रोक्त-रीतिसे) मनीषिगण अन्यत्र भूमिका संस्कार करते हैं। जो देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और प्रधान नाग भगवान् भवमें निष्ठा रखते हुए उनकी भक्तिमें तत्पर हो अविमुक्तक्षेत्रमें आकर भक्तिपूर्वक वरप्रदान करनेवाले अविनाशी परमपदस्वरूप शंकरकी उपासना करते हैं, वे महादेवमें उसी प्रकार प्रवेश कर जाते हैं, जैसे घीकी आहुति अग्निमें प्रविष्ट होती है। वे उन महादेवको तथा ईश्वरद्वारा अधिकृत शुभमय अविमुक्तको पाकर अपनेको 'मैं कृतार्थ हूँ' - ऐसा अनुभव करते हैं ॥ 37-47 ॥
ऋषि, देव, असुर तथा जप होमपरायण मुमुक्षु और यतिसमूह इस अविमुक्तमें निवास करते हैं। कोई भी पापी अविमुक्तक्षेत्रमें मरकर नरकमें नहीं जाता; क्योंकि ईश्वरके अनुग्रहसे वे सभी परमगतिको प्राप्त होते हैं। यह क्षेत्र पूर्वसे पश्चिमतक ढाई योजन औरदक्षिणसे उत्तरतक आधा योजन विस्तृत बतलाया जाता है। यह शिवपुरी वाराणसी शुक्लनदीतक बसी हुई है। बुद्धिमान् महादेवने इस क्षेत्रका यह विस्तार स्वयं बतलाया है। शिवमें निष्ठावान् और शिवपरायण भक्तगण योग और मोक्षको प्राप्तकर उत्तम ज्ञानकी प्रासिके लिये अविमुक्तक्षेत्रका परित्याग नहीं करते। जो मृत्युलोकवासी व्यक्ति इस क्षेत्रमें निवास करते हैं, वे कभी भी शोचनीय नहीं होते। यह अविमुक्तक्षेत्र योगक्षेत्र है, तपःक्षेत्र है तथा सिद्ध और गन्धर्वोंसे सेवित है। भूतलपर नदी, सागर और पर्वत कोई भी अविमुडके समान नहीं है। भूलोक, अन्तरिक्ष और स्वर्गमें जितने तीर्थ हैं, उनका अविमुक्त अपने प्रभावसे अतिक्रमण कर विराजमान है। अविमुक्तमें नित्य निवास करनेवाले जो द्विजगण ध्यानयोगकी प्राप्तिसे मुक्तात्मा हो समाहित चित्तसे इन्द्रियाँको निरुद्धकर शतरुद्रीका जप करते हैं, वे कृतार्थ हो जाते हैं और भवकी भक्तिको प्राप्त कर निश्चितरूपसे रमण करते हैं। जो यथाशक्ति कामनाओंका परित्याग कर विषयवासनासे रहित, यथाशक्ति सब तरहसे मुक्त, यथाशक्ति तपस्यामें स्थित तथा अपनी इन्द्रियों और आत्माको वशमें कर चुके हैं, उनका पुनर्जन्म नहीं होता। वे उन महात्मा शिवको प्राप्तकर निर्भय विचरण करते हैं। सर्वव्यापी शिव अविमुक्तमें उन व्यक्तियोंको स्वयं ग्रहण कर लेते हैं, अतः सैकड़ों कोटि कल्पोंमें भी उनका पुनरागमन नहीं होता है ll 48- 60 ll
इस महाक्षेत्रको (स्वयं भगवान् शिवने) उत्पन्न किया है, जहाँ मानवोंको सभी सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं। मैंने अविमुतके गुणोंका संक्षेपसे वर्णन किया है। अविमुक्तक्षेत्रका विस्तार समुद्रके रत्नोंकी भाँति दुष्कर है। यह अभक्तोंको मोहित करनेवाला और भक्तोंकी भक्तिकी वृद्धि करनेवाला है। मोहग्रस्त मूढ व्यक्ति इसे श्मशान समझकर इसकी ओर नहीं देखते जो विद्वान् सैकड़ों विघ्नोंसे बाधित होकर भी अविमुक्तक्षेत्रमें निवास करता है, वह उस परमपदको प्राप्त होता है, जहाँ जाकर शोक नहीं करना पड़ता। वह जन्म-जरा-मरणसे रहित होकर शिवलोकको प्राप्त हो जाता है। मोक्षकी कामना करनेवाले पुनर्जन्मसे रहित व्यक्तियोंको जो गति प्राप्त होती है, उसी गतिको प्राप्तकर विद्वान अपनेको कृतकृत्य मानता है जो अभीष्ट गति दान, तप, यज्ञ और ज्ञानसे नहीं प्राप्त होती, वह अविमुक्तक्षेत्रमें सुलभ हो जाती है।जो चाण्डालयोनिमें उत्पन्न, अनेकों रंगोंवाले, कुरूप और निन्दित हैं, जिनका शरीर उत्कृष्ट पातकों एवं पापोंसे परिपूर्ण है, उनके लिये अविमुक्तक्षेत्र परम औषधके समान है-ऐसा पण्डितवर्ग मानते हैं। जो | भगवान् विश्वेश्वरका भक्त हजारों जन्मोंके बाद अविमुक्तमें मृत्युको प्राप्त होता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। इस अविमुक्तक्षेत्रमें किया हुआ यज्ञ, दान, तप, होम आदि सभी कर्म अक्षय हो जाते हैं- इसमें संदेह नहीं है। ऐसे लोग समयानुसार मृत्युको प्राप्तकर अविनाशी शिवसायुज्यको प्राप्त करते हैं। जो हजारों पापोंका | सम्पादन कर बादमें पश्चात्तापका अनुभव करता है, वह अविमुक्तक्षेत्रमें प्राणोंका त्याग करके परमगतिको प्राप्त होता है। इस विषयमें उत्तरायण एवं दक्षिणायनकी कल्पना नहीं करनी चाहिये। जो अविमुक्तमें प्राण त्याग करते हैं, उनके लिये सभी समय शुभ है। उस समय शुभ या अशुभ कालका विचार नहीं करना चाहिये। सभीके नाथ, सर्वव्यापी, अद्भुतकर्मा स्वयं महादेवके माहात्म्यसे यह स्थान परम अद्भुत है। पूर्व समयमें सभी ऋषियोंने स्कन्दद्वारा कथित इस पवित्र वृत्तान्तको सुनकर यह निर्णय किया कि इस अविमुक्तक्षेत्रका विशुद्ध इन्द्रियोंद्वारा सेवन करना चाहिये ।। 61-74 ॥