ईश्वरने कहा— नारद । अब मैं (उस) उत्तम गुडपर्वतके दानकी विधि बतला रहा हूँ, जिसका दान करनेसे धनी मनुष्य देवपूजित हो स्वर्गलोकको प्राप्त कर लेता है। दस भार गुडसे बना हुआ गुडपर्वत उत्तम, पाँच भारसे बना हुआ मध्यम और तीन भारसे बना हुआ कनिष्ठ कहा जाता है। स्वल्प वित्तवाला मनुष्य इसके आधे परिमाणसे भी काम चला सकता है। इसमें भी देवताओंका आमन्त्रण, पूजन, स्वर्णमय वृक्ष, देव-पूजन, विष्कम्भपर्वत, सरोवर, वन-देवता, हवन, जागरण और लोकपालोंकी स्थापना आदि धान्यपर्वतकी ही भाँति करना चाहिये। उस समय यह मन्त्र उच्चारण करे 'जिस प्रकार देवगणोंमें ये विश्वात्मा जनार्दन, वेदोंमें सामवेद योगियोंमें महादेव, समस्त मन्त्रोंमें ॐकार और नारियोंमें पार्वती श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार रसोंमें इक्षु रस सदा श्रेष्ठ माना गया है। इसलिये गुडपर्वत! तुम मुझे उत्कृष्ट लक्ष्मी प्रदान करो। गुडपर्वत! चूँकि तुम सौभाग्यदायिनी पार्वतीके भ्राता और निवासस्थान हो, अतः मुझे शान्ति प्रदान करो।' जो मनुष्य उपर्युक्त विधिके अनुसार गुडपर्वतका दान करता है, वह गन्धर्वोद्वारा पूजित होकर गौरीलोक में प्रतिष्ठित होता है तथा सौ कल्प व्यतीत होनेपर दीर्घायु एवं नीरोगतासे सम्पन्न होकर भूतलपर जन्म ग्रहण करता है और शत्रुओंके लिये अजेय होकर सातों द्वीपोंका अधीश्वर होता है ॥ 19 ॥