सूतजी कहते हैं-ऋषियों। अब मैं उत्तम काष्ठ लानेकी विधि बतलाता हूँ। धनिष्ठा आदि पाँच नक्षत्रों और इसके बाद भद्रा आदिको छोड़कर ज्योतिषीद्वारा बताये गये शुभ दिनमें बुद्धिमान् पुरुष काष्ठ लानेके लिये वनको प्रस्थान करे। सर्वप्रथम ग्रहण किये जानेवाले | वृक्षको बलिपूजा करनी चाहिये। पूर्व तथा उत्तर दिशाको और गिरनेवाले वृक्षका काष्ठ गृहनिर्माणमें मङ्गलकारी होता है तथा दक्षिणकी ओर गिरा हुआ अशुभ होता है। दूधवाले वृक्षोंका का घरमें नहीं लगाना चाहिये जो वृक्ष पक्षियोंद्वारा अधिष्ठित तथा वायु और अग्निसे पीड़ित हो, हाथीसे तोड़ा हुआ हो, बिजली गिरनेसे जल गया हो, जिसका आधा भाग सूख गया हो या कुछ अंश | टूट-फूट गया हो, अश्वत्थवृक्ष समाधि या देवमन्दिरसे निकले वृक्ष, नदीके संगमपर स्थित वृक्षोंको अथवा जो | श्मशानभूमि तालाब आदि जलाशयोंपर उगा हुआ हो, ऐसे वृक्षोंको विपुल लक्ष्मीकी इच्छा करनेवाले व्यक्तिको छोड़ देना चाहिये। इसी प्रकार काँटेदार वृक्ष, कदम्ब, निम्ब, बहेड़ा, देरा और आपके वृक्षोंको भी गृहकर्ममें नहीं लेना चाहिये। असना, अशोक, महुआ, सर्ज और साके का मङ्गलप्रद हैं। चन्दन, कटहल, देवदारु तथा दारुव्दीके काष्ठ धनप्रद कहे गये हैं। एक, दो या तीन प्रकारके काठद्वारा बनाया गया भवन शुभ होता है; क्योंकि अनेक प्रकारके काष्ठोंसे बनाया हुआ भवन अनेकों भय देनेवाला होता है। धनदायक शीशम, श्रीपर्णी तथा तिन्दुकोके काष्ठको अकेले ही लगाना चाहिये क्योंकि ये अन्य किसी काठके साथ सम्मिलित कर देनेसे कभी मङ्गलकारी नहीं होते। इसी प्रकार धव कटहल, चीड़, अर्जुन और पद्म वृक्ष भी अन्य काष्ठोंके साथ सम्मिलित होनेपर गृहकार्यके लिये शुभदायक नहीं होते ll 1-1130 ll वृक्ष काटते समय विचक्षण पुरुषको यदि पीले वर्णका चिह्न मिले तो भावी गृहमें गोहका, मंजीठ रंगका मिलनेपर मेढकका, नीला रंग मिलनेपर सर्पका, अरुणरंगसे गिरगिटका, मोतीके समान श्वेत चिह्नसे शुकका, | कपिल वर्णसे चूहेका और तलवारकी भाँति चिह्न मिलनेपर जलका भय जानना चाहिये। इस प्रकारके गर्भवाले वृक्षको वास्तुकर्ममें त्याग देना चाहिये। पहलेसे कटे हुए वृक्षको शुभदायी निमित्त शकुनोंके साथ ग्रहण किया जा सकता है। घरके व्याससे लम्बाईके मानमें गुणाकर आठका भाग दे, जो शेष बचे उसे आयत जानना चाहिये। अब मैं आपलोगोंको आठका भेद बतला रहा हूँ। उन करशेषोंकी क्रमशः ध्वज, धूम, सिंह, खर, श्वान, वृषभ, हस्ती और काक संज्ञा होती है। चारों ओर | मुखवाला तथा विशेषतया पश्चिम द्वारवाला ध्वज शुभकारी होता है। सिंहका उत्तर, वृषभका पूर्व, हाथीका दक्षिण मुख दुःखदायी होता है। सात विभागोंद्वारा इसे कहा जा | चुका है। एक हाथसे ध्वजको, तीन हाथसे सिंहको और पाँच हाथसे वृषभको तो कहा गया। इनके अतिरिक्त जो | त्रिकोणस्थ हों उन्हें व्यवहारमें नहीं लाना चाहिये। विचक्षण पुरुष उक्त करराशिके अंकको आठसे गुणाकर सत्ताईसका भाग देनेपर शेषको नक्षत्र माने। पुनः उस नक्षत्रमें आठका भाग देनेसे जो शेष बचता है, वह व्यय माना गया है। जिसमें व्यय अधिक निकले, उसे नहीं करना चाहिये; क्योंकि वह दोषकारक होता है। आय अधिक होनेपर शान्ति होती है, ऐसा भगवान् हरिने कहा है। गृह पूर्ण हो जानेपर उसमें माङ्गलिक शान्तिकी स्थितिके लिये श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको आगे कर दही, अक्षत, आमके पल्लव, पुष्प तथा फलादिसे सुशोभित जलपूर्ण कलशको देकर तथा अन्य ब्राह्मणोंको सुवर्ण और वस्त्र देकर उस भवनमें गृहपतिको प्रवेश करना चाहिये। उस समय गृह्यसूत्रोंमें प्रासाद एवं वास्तुकी शान्तिके लिये जो विधि कही गयी है, उसके अनुसार हवन एवं बलि-कर्म करे। फिर भक्ष्य एवं भोज्य पदार्थोद्वारा ब्राह्मणोंको सन्तुष्ट करे। तत्पश्चात् श्वेत वस्त्र धारणकर धूपादि द्रव्योंके साथ भवनमें प्रवेश करना चाहिये ॥ 12-23॥