मत्स्यभगवान्ने कहा—- राजन्! इसके बाद अब मैं वसिष्ठगोत्र में उत्पन्न हुए ब्राह्मणोंका वर्णन कर रहा
हूँ, सुनिये। वसिष्ठगोत्रियोंका प्रवर एकमात्र वसिष्ठ ही है। इनका परस्पर विवाह नहीं होता। व्याघ्रपाद, औपगव, वैक्लव, शाद्वलायन, कपिष्ठल, औपलोम, अलब्ध, शठ, कठ, गौपायन, बोधप, दाकव्य, वाह्यक, बालिशय, पालिशय, वाग्ग्रन्थि, आपस्थूण, शीतवृत्त, ब्राह्मपुरेयक, लोभायन, स्वस्तिकर, शाण्डिलि, गौडिनि, वाडोहलि, सुमना, उपावृद्धि, चौलि, बौलि, ब्रह्मबल, पौलि, श्रवस्, पौण्डव तथा याज्ञवल्क्य- ये सभी महर्षि एक प्रवरवाले हैं। महर्षि वसिष्ठ इनके प्रवर हैं और इनमें परस्पर विवाह नहीं होता। शैलालय, महाकर्ण, कौख्य, क्रोधिन, कपिञ्जल, बालखिल्य, भागवित्तायन, कौलायन, कालशिख, कोरकृष्ण, सुरायण, शाकाहार्य, शाकधी, काण्व, उपलप, शाकायन, उहाक, माषशरावय, दाकायन, बालवय, वाकय, गोरथ, लम्बायन, श्यामवय, क्रोडोदरायण,प्रलम्बायन, औपमन्यु, सांख्यायन, वेदशेरक, पालंकायन, उद्गाह, बलेक्षु, मातेय, ब्रह्ममली तथा पन्नगारि-इन सभी ऋषियोंके भगीवसु, वसिष्ठ तथा इन्द्रप्रमदि-ये तीन ऋषि प्रवर कहे गये हैं। इनमें परस्पर विवाह निषिद्ध है ॥1-133॥
नरोत्तम! औपस्थल, अस्वस्थलय, बाल, हाल, हल, मध्यन्दिन, माक्षतय, पैप्पलादि, विचक्षुष, त्रैशुङ्गायण, सैबल्क तथा कुण्डिन इन सभी ऋषियोंके वसिष्ठ, मित्रावरुण तथा महातपस्वी कुण्डिन- ये तीन प्रवर माने गये हैं। दानकाय, महावीर्य, नागेय, परम, आलम्ब, वायन तथा चक्रोड आदि इनमें परस्पर विवाह सम्बन्ध नहीं होता। राजन् ! शिवकर्ण, वय तथा पादप-इन सभीके जातूकर्ण्य, वसिष्ठ तथा अत्रि- ये तीन प्रवर कहे गये हैं। इनमें परस्पर विवाह नहीं होता। इस प्रकार महर्षि वसिष्ठके गोत्रमें उत्पन्न हुए ऋषियोंकी नामावलि मैं आपसे बता चुका। इनके नामोंके संकीर्तनसे मनुष्य सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥14- 20 ॥