मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्। इसके बाद अब मैं अगस्त्यके वंशमें उत्पन्न हुए द्विजोंका वर्णन कर रहा हूँ। अगस्त्य, करम्भ, कौसल्य, शकट, सुमेधा, मयोभुव, गान्धारकायण, पौलस्त्य, पौलह तथा क्रतु वंशोत्पन्न- इनके अगस्त्य, महेन्द्र और महर्षि मयोभुव ये तीन शुभ प्रवर माने गये हैं। इनमें परस्पर विवाह नहीं होता। पौर्णमास और पारण इन ऋषियोंके अगस्त्य, पौर्णमास और महातपस्वी पारण-ये तीन प्रवर हैं। पौर्णमासोंका पारणोंके साथ विवाह निषिद्ध है। राजन्! इस प्रकार मैंने ऋषियोंके उत्तम पुरुषोंसे परिपूर्ण वंशका वर्णन कर दिया। इसके बाद अब मैं किसका वर्णन करूँ, यह अब आप बतलाइये ॥ 1-6 ॥
मनुजीने पूछा-भगवन्! पुलह, पुलस्त्य, महात्मा क्रतु और अगस्त्यका वंश कैसा था, इसे बतलाइये ॥ 7 ॥
मत्स्यभगवान् बोले- राजन् ! वैवस्वत मन्वन्तरमें क्रतु जब संतानहीन हो गये, तब उन ऋषिश्रेष्ठने अगस्त्यके धर्मज्ञ पुत्र इध्मवाहको पुत्ररूपमें स्वीकार कर लिया। तभी से अगस्त्यवंशी क्रतुवंशी कहलाने लगे। भूपाल ! पुलहके तीन पुत्र थे, उनका जन्म वृत्तान्त मैं आगे विधिपूर्वक वर्णन करूँगा। पुलहका मन अपनी संतानको देखकर प्रसन्न नहीं रहता था, अतः उन्होंने अगस्त्यके पुत्र दृढास्यको पुत्ररूपमें वरण कर लिया। राजन्! इसीलिये पुलहवंशी अगस्त्यवंशीके नामसे कहे जाते हैं। पुलस्त्य ऋषि अपनी संततिको राक्षसोंसे उत्पन्न होते देखकर अत्यन्त दुःखी हुए तब उन बुद्धिमान्ने अगस्त्य के पुत्रको पुत्ररूपमें वरण कर लिया। राजन्! तभी से पुलस्त्यवंशी भी अगस्त्यवंशी कहलाने लगे। सगोत्र होनेके कारण इन सभीमें परस्पर विवाह सम्बन्ध वर्जित है।नरेश! इस महानुभाव प्रवरोंका वर्णन कर दिया। इन लोगोंके नामोंका कीर्तन करनेसे मानवके सभी पाप नष्ट हो
प्रकार मैंने ब्राह्मणोंके वंशप्रवर्तक जाते हैं ॥8- 14 ॥