मार्कण्डेयजीने कहा- राजन् ! पुनः प्रयागका ही माहात्म्य सुनो। विद्वानोंका ऐसा कथन है कि नैमिषारण्य, पुष्कर, गोतीर्थ, सिन्धुसागर, गयातीर्थ, धेनुक (गयाके पासका एक तीर्थ) और गङ्गासागर—ये तथा इनके अतिरिक्त तीन करोड़ दस हजार जो अन्य तीर्थ हैं, वे सभी एवं पुण्यप्रद पर्वत प्रयागमें नित्य निवास करते हैं। यहाँ तीन अग्निकुण्ड भी हैं, जिनके बीचसे सम्पूर्ण तीर्थोद्वारा नमस्कृत गङ्गा प्रवाहित होती हुई प्रयागसे आगे निकलती हैं।उसी प्रकार तीनों लोकोंमें विख्यात लोकभाविनी सूर्य पुत्री यमुनादेवी यहाँ गङ्गाके साथ सम्मिलित हुई हैं। गङ्गा और यमुनाका यह मध्यभाग पृथ्वीका जघनस्थल कहा जाता है। राजसिंह ! भूतल, अन्तरिक्ष और स्वर्गलोक सभी जगहमें कुल मिलाकर साढ़े तीन करोड़ तीर्थ हैं, परंतु वे सभी प्रयागस्थित गङ्गाकी सोलहवीं कलाकी भी समता नहीं कर सकते—ऐसा वायुने कहा है। अतः गङ्गाकी ही प्रधानता मानी गयी है। प्रयागमें झुंसी है। यहाँ कम्बल और अश्वतर नामक दोनों नागोंका निवासस्थान है। यहाँ जो भोगवती तीर्थ है, वह प्रजापति ब्रह्माकी वेदी है। युधिष्ठिर! वहाँ शरीरधारी वेद एवं यज्ञ तथा तपोधन महर्षिगण ब्रह्माको उपासना करते हैं। भारत! वहाँ देवगण तथा चक्रवर्ती सम्राट् यज्ञोंद्वारा यजन करते रहते हैं ॥ 1-10 ॥
विभो। तीनों लोकोंमें प्रयागसे बढ़कर अन्य कोई तोर्थ नहीं है, सबसे अधिक प्रभावशालिनी महाभागा गङ्गा जहाँ वर्तमान हैं, वह देश तपोमय ( श्रेष्ठ सत्त्वसे युक्त) है। इस गङ्गा तटवर्ती क्षेत्रको सिद्धक्षेत्र जानना चाहिये। इस माहात्म्यको सत्य मानना चाहिये और साधुओं तथा अपने मित्रों एवं आज्ञाकारी शिष्योंके कानमें ही इसे बतलाना उचित है। यह प्रयाग माहात्म्य धन्य, स्वर्गप्रद, सत्य, सुखदायक, पुण्यप्रद, धर्मसम्पन्न, परम पावन श्रेष्ठ धर्मस्वरूप और समस्त पापोंका विनाशक है। यह महर्षियोंके लिये भी अत्यन्त गोपनीय है। इसका पाठकर द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ) पापरहित हो स्वर्गको प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य पवित्रतापूर्वक इस अविनाशी एवं पुण्यप्रद तीर्थमाहात्म्यको सदा सुनता है, उसे जातिस्मरत्व (जन्मान्तर-स्मरण) की प्राप्ति हो जाती है और वह स्वर्गलोकमें आनन्दका उपभोग करता है। कौरवकुलश्रेष्ठ युधिष्ठिर! शिष्ट पुरुषोंका अनुकरण करनेवाले सत्पुरुष ही इन तीर्थोंमें पहुँच पाते हैं, अतः तुम इन तीर्थोंमें स्नान करो, अश्रद्धा मत करो। सामर्थ्यशाली राजन्! तुम्हारे पूछनेपर हो मैंने सम्यकरूपसे इसका वर्णन किया है। ऐसा प्रश्न कर तुमने अपने पितामह आदि सभी पितरोंका उद्धार कर दिया। (अन्य जितने तीर्थ हैं) वे सभी प्रयागकी सोलहवीं कलाको बराबरी नहीं कर सकते। | युधिष्ठिर। इस प्रकारके ज्ञान, योग और तीर्थको प्राप्तिकासंयोग बड़े कष्टसे मिलता है; क्योंकि उसके संयोगसे मनुष्यको परमगतिकी प्राप्ति हो जाती है, उसके हृदयमें तीनों कालोंका ज्ञान उत्पन्न हो जाता है और वह स्वर्गलोकको चला जाता है ॥ 11-19 ॥