गर्गजीने कहा- ब्रह्मन् जब नदियाँ, सरोवर या झरने नगरसे दूर हट जाते हैं या अत्यन्त समीप चले आते हैं, सूख जाते हैं, मलिन, कलुषित, संतप्त तथा फेनके समान जन्तुओंसे व्याप्त हो जाते हैं, तेल, दूध, मंदिरा और रक्त बहाने लगते हैं अथवा उनका जल विक्षुब्ध हो उठता है, तब छः महीने के भीतर उस देशपर शत्रुपक्षकी सेनासे भय प्राप्त होनेकी सम्भावना होती है। जब किसी प्रकारसे जलाशय शब्द करने लगते हैं या जलने लगते हैं तथा लपटें, धुआँ एवं धूलि फेंकने लगते हैं, बिना खोदे ही जल निकलने लगता है, जलाशय बड़े-बड़े जन्तुओंसे भर जाते हैं और उनमेंसे संगीतको ध्वनियाँ सुनायी पड़ने लगती हैं, तब प्रजावर्गक मरणका भय उपस्थित होता है। ऐसे अवसरपर घी, मधु और तैलसे जलाशयोंका | अभिषेक कर वरुणके मन्त्रोंका जप करना चाहिये और उन्हीं मन्त्रोंका उच्चारण कर जलमें हवन करना चाहिये। तदनन्तर ब्राह्मणोंको भोजनार्थ मधु तथा घृत मिलाकर श्रेष्ठ अन्न देना चाहिये और जलके महापापको शान्तिके लिये श्वेत वस्त्रोंसे युक्त गौएँ और जल रखनेके घड़े दान करने चाहिये ॥ 1-7॥