सूतजी कहते हैं-ऋषियो देववन्दियोंद्वारा उद्घोषित वह सारा प्रसङ्ग सुनकर तारकको ब्रह्माद्वारा कही हुई बालकके हाथसे वध होनेवाली बातका स्मरण हो आया। तब वह कालधर्मका स्मरण कर कवचरहित अवस्थामें अकेले पैदल ही तुरंत अपने भवन से बाहर निकल पड़ा। उस समय उसका चित्त शोकसे ग्रस्त था। उसने पुकारकर कहा- 'अरे कालनेमि आदि प्रमुख दैत्य योद्धाओ यद्यपि आतुरतावश तुमलोगोंका चित्त उद्भ्रान्त हो उठा है, तथापि तुमलोग दौड़ो, इसे पकड़ लो और इस सेनाके साथ युद्ध करो।' त्या भयंकर आकृतिवाला तारक कुमारको देखकर बोला-'अरे बच्चे क्या तुम युद्ध करना चाहते हो? यदि ऐसी बात है तो आओ और कन्दुकक्रीडाकी तरह खेलो। तुमने अभीतक रणभूमिमें भय उत्पन्न करनेवाले दानवोंको नहीं देखा है। बालक होनेके कारण तुम्हारी बुद्धि इस प्रकारके छोटे-मोटे प्रयोजनोंको देखनेवाली है अर्थात् दूरदर्शिनी नहीं है।' यह सुनकर कुमार भी देवताओंको हर्षित करते हुए आगे खड़े हुए तारकसे बोले- 'तारक! सुनो, मैं तुम्हारे शास्त्रीय अर्थका निरूपण कर रहा है। निर्भीक योद्धा समरभूमिमें शास्त्रीय प्रयोजनको नहीं देखते। तुम मेरे बालकपनकी अवहेलना मत करो। जैसे साँपका बच्चा कष्टकारक होता है और उदयकालीन सूर्यकी ओर भी नहीं देखा जा सकता, उसी तरह मैं दुर्जय बालक हूँ। दैत्य थोड़े अक्षरोंवाला मन्त्र क्या महान् स्फूर्तिदायक नहीं देखा जाता ?' ॥ 1-8 ॥
कुमार इस प्रकारकी बातें कह ही रहे थे कि दैत्यने उनपर मुद्गरसे आघात किया। तब कुमारने अपने अमोघ वर्चस्वी वज्रसे उसे निरस्त कर दिया। तत्पश्चात् दैत्येन्द्रने उन पर | लोहनिर्मित भिन्दिपाल चलाया, किंतु देवशत्रुओंका विनाश करनेवाले कार्तिकेयने उसे हाथसे पकड़ लिया। फिर पान उस दैत्यके ऊपर घोर शब्द करती हुई गदा फेंकी उस गदासे आहत हो वह दैत्य पर्वतराजकी तरह काँप उठा। तब उस देवभूमि अजेय मान लिया और वह बुद्धिसे | विचार करने लगा कि निश्चय ही मेरा काल आ पहुँचा है।तदनन्तर रणमें भीषण कार्य करनेवाले उन कुमारको क्रुद्ध देखकर कालनेमि आदि सभी दैत्येश्वर उनपर प्रहार करने लगे, परंतु उन प्रहारोंका परम कान्तिमान् कुमारपर कुछ भी प्रभाव न पड़ा। उनका शस्त्रास्त्र छोड़नेका श्रम व्यर्थ हो गया। पुनः युद्धनिपुण, देवकण्टक महाबली दैत्येन्द्र देवताओं सहित कुमारपर भाले और वाणोंसे प्रहार करने लगे। इस प्रकार दैत्यास्त्रोंद्वारा प्रहार करनेपर भी कुमारको कुछ भी पीड़ा न हुई पर दानवोंका वह युद्ध जब देवताओंके लिये प्राणघातक सा दीखने लगा, तब देवताओंको अत्यन्त पीड़ित देख कुमार क्रुद्ध हो उठे। फिर तो उन्होंने अपने अस्त्रोंके प्रहारसे दानवोंकी सेनाको खदेड़ दिया। उन अनिवार्य अस्त्रोंकी चोटसे कालनेमि आदि सभी देवकण्टक दानव घायल हो गये, तब वे युद्धसे विमुख हो भाग खड़े हुए ॥ 9 - 173॥ तदनन्तर चारों ओर दैत्योंके इस प्रकार मारे जाने एवं पलायन कर जानेपर असुरनायक महादैत्य तारक क्रोधमें भर गया। तब तपाये हुए स्वर्णके बने हुए बाजूबंदको धारण करनेवाले उस दैत्यने स्वर्णसमूहसे विभूषित अपनी दिव्य गदा हाथमें ली और उस गदासे कुमारपर प्रहार किया। फिर मोर पंखसे सुशोभित बाणोंके | आघातसे देवताओंको युद्ध-विमुख कर दिया। तदुपरान्त क्रोधसे भरे हुए असुरनायक तारकने उस सेनामें दूसरे भल्ल नामक विशाल बाणोंसे गुहके वाहन मयूरको विदीर्ण कर दिया। इस प्रकार रणभूमिमें देवताओंको युद्धविमुख और अपने वाहन मयूरको खून उगलते देखकर षडाननने वेगपूर्वक अपने स्वर्णनिर्मित केयूरसे विभूषित हाथमें स्वर्णजटित निर्मल शक्ति ग्रहण की। तत्पश्चात् देव | सेनानायक कुमार दानवेश्वर तारकको ललकारते हुए बोले 'सुदुर्बुद्धे खड़ा रह, खड़ा रह और जीवलोककी ओर दृष्टिपात कर ले। अपने भलीभाँति सीखे हुए शस्त्रका स्मरण कर ले। अब तू मेरी शक्तिद्वारा मारा जा चुका।' तू ऐसा कहकर उन्होंने उस दैत्यपर अपनी शक्ति छोड़ दी। कुमारके हाथसे छूटी हुई उस शकिने उनके केयूरके शब्दका अनुगमन करती हुई आगे बढ़कर उस दैत्यके हृदयको, जो वज्र और पर्वतके समान अत्यन्त कठोर था, विदीर्ण कर दिया। फिर तो वह प्राणरहित हो भूतलपर उसी प्रकार गिर पड़ा, जैसे प्रलयकालमें पर्वत धराशायी हो जाते हैं। उसकी पगड़ी और मुकुट छिन्न-भिन्न हो गये | और सारे आभूषण पृथ्वीपर बिखर गये ॥ 18- 26 ॥इस प्रकार उस दैत्य के मारे जानेपर देवताओंके उस महोत्सवके अवसरपर नरकोंमें भी कोई पापकर्मा प्राणी दुःखी नहीं था । परम तेजस्वी देवगण षडाननकी स्तुति करके अपनी-अपनी स्त्रियोंसहित क्रीडा करते हुए उत्सुकतापूर्वक अपने-अपने गृहोंको चले गये। सभी इच्छाओंकी पूर्ति हो जानेके कारण सभी देवता परम संतुष्ट थे। वे जाते समय तपोधन सिद्धोंके साथ स्कन्दको वर देते हुए बोले ।। 27–29 ।।
देवताओंने कहा- जो महाबुद्धिमान् मरणधर्मा मनुष्य स्कन्दसे सम्बन्ध रखनेवाली इस कथाको पढ़ेगा, सुनेगा अथवा दूसरेको सुनायेगा, वह कीर्तिमान्, दीर्घायु, सौभाग्यशाली, श्रीसम्पन्न, कान्तिमान्, शुभदर्शन, सभी प्राणियोंसे निर्भय और सम्पूर्ण दुःखोंसे रहित हो जायगा। जो मनुष्य प्रातःकालिक संध्याकी उपासना करनेके बाद स्कन्दके चरित्रका पाठ करेगा वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त होकर महान् धनराशिका स्वामी होगा। यह परम दिव्य स्कन्द-चरित बालकों, रोगियों और राजद्वारपर सेवा करनेवाले पुरुषोंके लिये सर्वदा सभी कामनाओंको पूर्ण करनेवाला है। इसका पाठ करनेवाला मनुष्य शरीरान्त होनेपर षडाननकी सायुज्यताको प्राप्त हो जायगा ॥ 30–33॥