ईश्वरने कहा- नारद। इसके बाद में तिलशैलका वर्णन कर रहा हूँ, जिसका विधिपूर्वक दान करनेसे | मनुष्य सनातन विष्णुलोकको प्राप्त होता है। विप्रवर दस द्रोण तिलका बना हुआ तिलशैल उत्तम, पाँच द्रोणका मध्यम और तीन द्रोणका कनिष्ठ बतलाया गया है। इसके चारों दिशाओंमें विष्कम्भपर्वतों की स्थापना तथा अन्यान्य सारा कार्य पूर्ववत् करना चाहिये। मुनिपु अब मैं दानके मन्त्रोंको यथार्थरूपसे बतला रहा हूँ। 'चूँकि मधुदैत्यके थके समय भगवान् विष्णुके शरोरसे उत्पन्न हुए पसीने की बूँदोंसे तिल, कुश और उड़दको उत्पत्ति हुई थी, इसलिये तुम इस लोकमें मुझे शान्ति प्रदान करो। शैलेन्द्र तिलाचल। चूँकि देवताओंके हव्य और पितरोंके कव्य-दोनोंमें सम्मिलित होकर तिल ही सब ओरसे (भूत-प्रेतादिसे) रक्षा करता है, | इसलिये तुम मेरा भवसागरसे उद्धार करो, तुम्हें नमस्कार है। इस प्रकार आमन्त्रित कर जो मनुष्य श्रेष्ठ तिलाचलका दान करता है, वह पुनरागमनरहित विष्णुपदको प्राप्त हो जाता है उसे इस लोक दीर्घायुको प्राप्ति होती है, वह पुत्र एवं पौत्रोंको प्राप्तकर उनके साथ आनन्द मनाता है तथा अन्तमें देवताओं, गन्धवों और पितरोंद्वारा पूजित होकर स्वर्गलोकको चला जाता है ॥ 1-7॥