सूतजी कहते हैं-ऋषियो! (ययातिक पञ्चम पुत्र) तुर्वसुका पुत्र गर्भ और उसका पुत्र गामा हुआ। गोभानुका पुत्र अजेय शूरवीर त्रिसारि हुआ। त्रिसारिको पुत्र करंधम और उसका पुत्र मरुत्त हुआ। उसने (संतानरहित) होनेके कारण) पूरुवंशी दुष्यन्तको अपना पुत्र बनाया। इस प्रकार पूर्वकालमें वृद्धावस्थाके परिवर्तनके समय ययातिद्वारा दिये गये शापके कारण तुर्वसुका वंश पूरुवंशमें प्रविष्ट हो गया था। दुष्यन्तका पुत्र राजा वरूथ * था। वरूथसे आण्डीर (भुवमन्यु) की उत्पत्ति हुई। आण्डीरके संधान, पाण्ड्य, केरल, चोल और कर्ण नामक पाँच पुत्र हुए। उनके समृद्धिशाली देश उन्हींके नामपर पाण्ड्य, चोल और केरल नामसे प्रसिद्ध हुए। (ययातिके चतुर्थ पुत्र) द्रुह्युके सेतु और केतु (अन्यत्र सर्वत्र बभ्रु) नामक दो शूरवीर पुत्र उत्पन्न हुए। सेतुका पुत्र शरद्वान् और उसका पुत्र गन्धार हुआ, जिसके नामसे यह विशाल गान्धार जनपद विख्यात है। उस जनपदके आरट्ट (पंजाबका पश्चिम भाग) प्रदेशमें उत्पन्न हुए घोड़े अश्वजातिमें सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। गन्धारका पुत्र धर्म और उसका पुत्र धृत हुआ। धृतसे विदुषका जन्म हुआ और उसका पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेताके सौ पुत्र हुए जो सब-के-सब राजा हुए। वे सभी उत्तर दिशामें स्थित म्लेच्छ-राज्योंके अधीश्वर थे ॥ 1-9 ॥
( ययातिके तृतीय पुत्र) अनुके सभानर, चाक्षुष और परमेषु नामक तीन शूरवीर एवं परम धार्मिक पुत्र उत्पन्न हुए। सभानरका पुत्र विद्वान् राजा कोलाहल हुआ। कोलाहलका धर्मात्मा पुत्र संजय नामसे विख्यात था।संजयका पुरंजय नामक वीरवर पुत्र हुआ। महाराज जनमेजय ( प्रथम ) पुरंजयके पुत्र हुए। राजर्षि जनमेजयसे महाशाल नामक पुत्र पैदा हुआ जो इन्द्रतुल्य तेजस्वी एवं प्रतिष्ठित कोर्तिवाला राजा हुआ। उन महाशालके महामना नामक पुत्र पैदा हुआ जो परम धर्मात्मा, महान् मनस्वी तथा सातों द्वीपोंका अधीश्वर चक्रवर्ती सम्राट् हुआ। महामनाने दो पुत्रोंको जन्म दिया। वे दोनों धर्मज्ञ उशीनर और तितिक्षु नामसे विख्यात हुए। उशीनरकी भूरा, कृशा, नवा, दर्शा और देवी दृषद्वतीये पाँच पत्रियाँ थी जो सभी राजर्षियोंकी कन्याएँ थीं। उनके गर्भ से उशीनरके परम धर्मात्मा एवं कुलवर्धक पुत्र उत्पन्न हुए थे। वे सभी उशीनरकी वृद्धावस्थामें महान् तपके फलस्वरूप पैदा हुए थे। भृशाका पुत्र नृग और नवाका पुत्र नव हुआ। कृशाने कृशको जन्म दिया। दर्शाके सुव्रत नामक पुत्र हुआ। दृषद्वती के पुत्र उशीनर नन्दन राजा शिवि हुए शिक्षिके पृथुदर्भ, सुबीर, केकय और मद्रक | नामक चार विश्वविख्यात पुत्र हुए। ये सभी शिविगण नामसे भी प्रसिद्ध थे। इनके समृद्धिशाली जनपद केकय (व्यास और शतलजके मध्य पंजाबका पश्चिमोत्तर भाग), मद्रक, सौवीर (सिंधका उत्तरी भाग) और पौर नामसे विख्यात थे। नृगका जनपद केकय और सुव्रतका अम्बष्ठ नामसे प्रसिद्ध था कुशकी राजधानी वृषलापुरी थी। नव नवराष्ट्र के अधीश्वर थे अब तितिक्षुको संततिका वर्णन सुनिये ll 10-21 ll
तितिक्षु पूर्व दिशामें विख्यात राजा हुआ। उसका पुत्र वृषद्रथ और वृषद्रथका पुत्र सेन हुआ। सेनके सुतपा नामक पुत्र उत्पन्न हुआ और सुतपाका पुत्र बलि हुआ। महायोगी बलि अपने वंशके नष्ट हो जानेपर संतानकी कामनासे मानव - योनिमें उत्पन्न हुआ था। इसे महान् आत्मबलसे सम्पन्न भगवान् विष्णुने वामन रूपसे बन्धनोंद्वारा बाँध लिया था। राजा बलिने पाँच क्षेत्रज पुको जन्म दिया जो सभी आगे चलकर पृथ्वीपति हुए। उसने अङ्गवङ्गा, पुण्ड्र और कलिङ्ग नामक को किया जो बलिके क्षेत्र पुत्र कहलाते हैं। ये बलिपुत्र ब्राह्मणसे उत्पन्न होनेके कारण ब्राह्मण थे और सामर्थ्यशाली बलिके वंशप्रवर्तक हुए। पूर्वकालमें ब्रह्माने प्रसन्न होकर बुद्धिमान् बलिको ऐसा वरदान दिया था कि 'तुम महान् योगी होगे। कल्पपर्यन्त परिमाणवाली तुम्हारी आयु होगी। तुम संग्राम में किसीसे पराजित नहीं होगे। धर्मके विषयमें तुम्हारी बुद्धि | उत्तम होगी। तुम त्रिकालदर्शी और असुरवंशमें प्रधान होगे।युद्धमें तुम्हें अनुपम विजय प्राप्त होगी। धर्मके विषय में तुम तत्त्वार्थदर्शी होगे।' इसीके परिणामस्वरूप
सामर्थ्यशाली बलि चारों नियत (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,
शूद्र) वर्णोंकी स्थापना करनेवाला हुआ। बलिके पाँचों
क्षेत्रज पुत्रोंके वंश भी उन्हींके नामपर अङ्ग, वङ्ग,
सुह्मक, पुण्ड्र और कलिङ्ग नामसे विख्यात हुए । उनमें अङ्गके वंशका वर्णन सुनिये ॥ 22-50 ॥
ऋषियो! दीर्घतमाके प्रभावसे सुदेष्णाका जो ज्येष्ठ पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम अङ्ग था। तत्पश्चात् कलिङ्ग,
पुण्ड्र, सुा और वङ्गराजका जन्म हुआ। ये पाँचों दैत्यराजबलिके क्षेत्रज पुत्र थे। ये सभी पुत्र महर्षि दीर्घतमाद्वारा बलिको प्रदान किये गये थे। तदनन्तर उन्होंने मानव योनिमें कई संतानें उत्पन्न कीं। एक बार सुरभि (गौ) दीर्घतमाके पास आकर उनसे बोले—'विभो ! आपने हम लोगोंके प्रति अनन्यभक्ति होनेके कारण भलीभाँति विचारकर पशु- धर्मको प्रमाणित कर दिया है, इसलिये में आपपर परम प्रसन्न हूँ। अनघ ! आपके शरीरमें बृहस्पतिका अंशभूत जो यह पाप स्थित है, उस घोर अन्धकारको सूँघकर मैं आपसे दूर किये देती हूँ। साथ ही आपके शरीरसे बुढ़ापा, मृत्यु और अंधकारको भी सूपकर हटा दे रही हूँ।' (ऐसा कहकर सुरभिने उनके शरीरको सूँघा ।) सुरभिके सूँघते ही वे मुनिश्रेष्ठ दीर्घतमा तुरन्त दीर्घ आयु, सौन्दर्यशाली शरीर और सुन्दर नेत्रोंसे युक्त हो गये ॥ 51-83 ॥
इस प्रकार गौद्वारा अन्धकारके नष्ट कर दिये जानेपर वे गौतम नामसे प्रसिद्ध हुए। तदनन्तर कक्षीवान् अपने पिता गौतमके साथ गिरिव्रजको जाकर उन्हींके साथ निवास करता हुआ चिरकालिक तपस्यायें संलग्न हो गया। वहाँ वह नित्यपिताका दर्शन और स्पर्श करता था। दीर्घकालके पश्चात् महान् तपस्यासे शुद्ध हुए कक्षीवान्ने शूद्रा माताके गर्भसे उत्पन्न हुए शरीरको तपाकर ब्राह्मणत्वकी प्राप्ति कर ली। तब पिता गौतमने उससे कहा- 'बेटा! तुम्हारे जैसे यशस्वी सत्पुत्रसे मैं पुत्रवान् हो गया हूँ। धर्मज्ञ ! अब मैं कृतार्थ हो गया। ऐसा कहकर गौतम अपने शरीरका त्याग कर ब्रह्मलोकको चले गये। ब्राह्मणत्वकी प्राप्ति करके कक्षीवान्ने हजारों पुत्रोंको उत्पन्न किया। कक्षीवान्के वे पुत्र कौष्माण्ड और गौतम नामसे विख्यात हुए ।। 84-89 ।।
इधर बलिने अपने पाँचों निष्पाप पुत्रोंका अभिनन्दन करके उनसे कहा- 'पुत्रो! मैं कृतार्थ हो गया।' स्वयं धर्मात्मा एवं सामर्थ्यशाली बलि योगमायासे समावृत था। वह सम्पूर्ण प्राणियोंसे अदृश्य रहकर कालकी प्रतीक्षा कर रहा था। उन पुत्रोंमें अङ्गका पुत्र राजा दधिवाहन हुआ। राजा दिविरथ दधिवाहनके पुत्र कहे जाते हैं। दिविरथका पुत्र विद्वान् राजा धर्मरथ था। ये धर्मरथ बड़े सम्पत्तिशाली नरेश थे। इन्होंने विष्णुपद पर्वतपर महात्मा शुक्राचार्यके साथ सोमरसका पान किया था। धर्मरथका पुत्र चित्ररथ हुआ उसका पुत्र सत्यरथ हुआ और उससे दशरथका जन्म हुआ जो लोमपाद नामसे विख्यात था। उसके शान्ता नामकी एक (दत्रिमा) कन्या हुई थी।| दशरथका पुत्र महायशस्वी शूरवीर चतुरङ्ग हुआ। चतुरङ्गका पुत्र पृथुलाक्ष नामसे प्रसिद्ध हुआ। अपने कुलकी वृद्धि करनेवाला यह पृथुलाक्ष महर्षि की कृपासे पैदा हुआ था। पृथुलाक्षके चम्प नामक पुत्र हुआ। चम्पकी राजधानीका नाम चम्पा (भागलपुर) था, जो पहले मालिनी नामसे प्रसिद्ध थी। पूर्णभद्रकी कृपासे चम्पका पुत्र हर्यङ्ग हुआ। इस राजाके यज्ञमें महर्षि विभाण्डकने मन्त्रोंद्वारा एक ऐसे हस्तीको भूतलपर अवतीर्ण किया था जो शत्रुओंको विमुख कर देनेवाला एवं उत्तम वाहन था। हर्यङ्गका पुत्र भद्ररथ पैदा हुआ। भद्ररथका पुत्र राजा बृहत्कर्मा हुआ। उसका पुत्र बृहद्भानु हुआ। उससे महात्मवान्का जन्म हुआ। राजेन्द्र बृहद्धानुने एक अन्य पुत्रको भी उत्पन्न किया था जिसका नाम जयद्रथ था। उससे राजा बृहद्रथका जन्म हुआ। बृहद्रथसे विश्वविजयी जनमेजय पैदा हुआ था। उसका पुत्र अङ्ग था और उससे राजा कर्णकी उत्पत्ति हुई थी। कर्णका वृषसेन और उसका पुत्र पृथुसेन हुआ। द्विजवरो! ये सभी राजा अङ्गके वंशमें उत्पन्न हुए थे, मैंने इनका आनुपूर्वी विस्तारपूर्वक वर्णन कर दिया। अब आप लोग पूरुके वंशका | वर्णन सुनिये ॥ 90 - 103 ॥ऋषियोंने पूछा— सूतजी ! कर्ण कैसे अधिरथ सूतके पुत्र थे, पुनः किस प्रकार अङ्गके पुत्र कहलाये? इस रहस्यको सुननेकी हम लोगोंकी उत्कट इच्छा है इसका वर्णन कीजिये क्योंकि आप कथा कहने में परम प्रवीण हैं ll 104 ॥
सूतजी कहते हैं-ऋषियो! बृहद्धानुका पुत्र बृहन्मना नामका राजा हुआ। उसके दो पत्तियाँ थीं। वे दोनों शैव्यकी कन्याएँ थीं। उनका नाम यशोदेवी और सत्या था। अब मुझसे उन दोनोंका वंश-वर्णन सुनिये। बृहन्मनाके संयोगले यशोदेवीने राजा जयद्रथको और सत्याने विश्वविख्यात विजयको जन्म दिया था। विजयका पुत्र बृहत्पुत्र और उसका पुत्र बृहद्रथ हुआ। बृहद्रथका पुत्र महामना सत्यकर्मा हुआ। सत्यकर्माका पुत्र अधिरथ हुआ। यही अधिरथ सूत नामसे भी विख्यात था, जिसने (गङ्गामें बहते हुए) कर्णको पकड़ा था। इसी कारण कर्ण सूत पुत्र कहे जाते हैं। इस प्रकार कर्णके प्रति जो किंवदन्ती फैली है, उसे पूर्णतया मैंने आप लोगोंसे कह दिया ।। 105 - 108 ॥