मत्स्यभगवान्ने कहा— राजन्! जो (पूर्वोक्त सामादि) तीनों उपायोंके द्वारा वशमें नहीं किये जा सकते, उन्हें दण्डनीतिके द्वारा वशमें करे; क्योंकि दण्ड मनुष्योंको निश्चयरूपसे वशमें करनेवाला है। बुद्धिमान् राजाको सम्यक् रूपसे उस दण्डनीतिका प्रयोग धर्मशास्त्र के अनुसार पुरोहित आदिकी सहायतासे करना चाहिये। उस दण्डनीतिका सम्यक् प्रयोग जिस प्रकार करना चाहिये, उसे सुनिये। राजाको अपने देशमें अथवा पराये देशमें वानप्रस्थाश्रमी, धर्मशील, ममतारहित, परिग्रहहीन और धर्मशास्त्रप्रवीण विद्वान् पुरुषोंकी परिषद्द्वारा भलीभाँति विचार कर दण्डनीतिका प्रयोग करना चाहिये; क्योंकि सब कुछ | दण्डपर ही प्रतिष्ठित है। सभी आश्रमधर्मके व्यक्ति, ब्रह्मचारी, पूज्य, गुरु, महापुरुष तथा अपने धर्ममें स्थित रहनेवाला कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है, जो राजाके द्वारा दण्डनीय न हो; किंतु अदण्डनीय पुरुषोंको दण्ड देने तथा दण्डनीय पुरुषोंको दण्ड न देनेसे राजा इस लोकमें राज्यसे च्युत जाता है और मरनेपर नरकमें पड़ता है। इसलिये विनयशील राजाको लोकानुग्रहकी कामनासे धर्मशास्त्रके अनुसार ही दण्डनीतिका प्रयोग करना चाहिये। जिस राज्यमें श्यामवर्ण, लाल नेत्रवाला और पापनाशक दण्ड विचरण करता है। तथा राजा ठीक-ठीक निर्णय करनेवाला होता है वहाँ प्रजाएँ कष्ट नहीं झेलतीं। यदि राज्यमें दण्डनीतिकी व्यवस्था न रखी जाय तो बालक, वृद्ध, आतुर, संन्यासी, ब्राह्मण, स्त्री और विधवा- ये सभी मात्स्यन्यायके अनुसार आपसमें एक-दूसरेको खा जायँ। यदि राजा दण्डकी व्यवस्था न करे तो सभी देवता, दैत्य, सर्पगण, प्राणी तथा पक्षी | मर्यादाका उल्लङ्घन कर जायँगे ॥ 1-10 ॥यह दण्ड ब्राह्मणके शाप, सभीके अस्त्र-शस्त्र, सभी प्रकारके पराक्रमपूर्वक क्रोधसे किये गये क्रिया कलाप और व्यवसायमें स्थित रहता है। दण्ड देनेवाले व्यक्ति देवताओंद्वारा पूज्य हैं, किंतु दण्ड न देनेवालोंकी पूजा कहीं भी नहीं होती। ब्रह्मा, पूषा और अर्यमा सभी कार्यों में शान्त रहते हैं, इसलिये कोई भी मनुष्य उनकी पूजा नहीं करता। साथ ही दण्ड देनेवाले रुद्र, अग्नि, इन्द्र, सूर्य, चन्द्रमा, विष्णु एवं अन्य देवगणोंकी सभी लोग पूजा करते हैं। दण्ड सभी प्रजाओंपर शासन करता है तथा दण्ड ही सबकी रक्षा करता है। दण्ड सभीके सो जानेपर भी जागता रहता है, अतएव बुद्धिमान् लोग दण्डको धर्म मानते हैं। कुछ पापी राजदण्डके भयसे, कुछ यमराजके दण्डके भयसे और कतिपय पारस्परिक भयसे भी पापकर्म नहीं करते। इस प्रकार इस प्राकृतिक जगत् में सभी कुछ दण्डपर ही प्रतिष्ठित है। यदि दण्ड न दिया जाय तो प्रजा घोर अंधकारमें डूब जाय। चूँकि दण्ड दमन करता है और दुर्मदोंको दण्ड भी देता है, इसलिये दमन करने तथा दण्ड देनेके कारण बुद्धिमान् लोग उसे दण्ड मानते हैं। दण्डके भयसे डरे हुए समस्त देवताओंने यज्ञमें शिवजीका भाग निश्चित किया है और भयके कारण ही स्वामी कार्तिकेयको शैशवावस्थामें ही सारी देवसेनाका सेनापतित्व और वरदान प्रदान किया गया है ।