मत्स्यभगवान्ने कहा- रविनन्दन। महान तेजस्वी महासुर कालनेमि दानवोंकी सेनामें उसी प्रकार वृद्धिंगत होने लगा, जैसे ग्रीष्म ऋतुके अन्तमें बादल उमड़ पड़ते हैं। तब वे सभी दानव यूथपति कालनेमिको त्रिलोकीमें व्यास देखकर मरहित हो गये और सर्वोत्तम अमृतका पान कर उठ खड़े हुए। उनके भय और त्रास समाप्त हो चुके थे। वे तारकामय-संग्राममें मय और तारकको आगे रखकर सदा विजयी होते रहे हैं।युद्धाभिलाषी वे दानव युद्धभूमिमें उपस्थित होकर शोभा पा रहे थे। उनमें कुछ परस्पर मन्त्रणा कर रहे थे, कुछ व्यूहकी रचना कर रहे थे और कुछ रक्षकके रूपमें थे। उन सबका कालनेमि दानवके प्रति प्रगाढ़ प्रेम हो गया। तत्पश्चात् वहाँ मय दानवके जितने मुख्य-मुख्य युद्धके अगुआ थे, वे सभी भय छोड़कर हर्षपूर्वक युद्ध करनेके लिये उपस्थित हुए। फिर मय, तारक, वराह, पराक्रमी हयग्रीव, विप्रचित्तिका पुत्र श्वेत, खर, लम्ब, बलिका पुत्र अरिष्ट, किशोर और देवरूपसे प्रसिद्ध मुखसे युद्ध करनेवाला महान् असुर स्वर्भानु- ये सभी अस्त्रवेत्ता थे और सभी तपोबलसे सम्पन्न थे। वे सभी सफलप्रयत्नवाले दानव उस उद्दण्ड कालनेमिके निकट गये। गदा, भुशुण्डि चक्र, कुठार, काल-सदृश मुसल, क्षेपणीय (ढेलवाँस), मुद्रर, पर्वत सदृश पत्थर, भीषण गण्डशैल, पट्टिश, भिन्दिपाल, उत्तम लोहेके बने हुए परिघ, संहारकारिणी बड़ी-बड़ी तोप, यन्त्र, हाथोंसे छूटनेपर भयानक घोट करनेवाले बाण, लम्बे चमकीले भाले, पाश, मूर्च्छन (बेहोश करनेका यन्त्र), रेंगते हुए जीभ लपलपानेवाले सर्पमुख बाग फेंकने योग्य वज्र, चमचमाते हुए तोमर, म्यानसे बाहर निकली हुई तीखी तलवार और तीखे निर्मल शूलोंसे युक्त तथा धनुष धारण करनेवाले उन दैत्योंके मन उत्साहसे सम्पन्न थे, वे उस महासमरमें कालनेमिको आगे करके खड़े हो गये। उस समय देदीप्यमान शस्त्रोंसे युक्त दैत्योंकी वह सेना इस प्रकार शोभा पा रही थी मानो सघन नील बादलोंके छा जानेपर सर्वथा आच्छादित हुआ आकाशमण्डल हो ll 1-15 ॥
दूसरी ओर इन्द्रद्वारा सुरक्षित देवताओंकी सेना भी अट्टहास कर रही थी। वह चन्द्रमा और सूर्यको श्वेत और कृष्ण ताराओंसे युक्त, वायुकी सी वेगशालिनी, सौम्य और तारागणको पताकारूपमें धारण करनेवाली थी। उसके वस्त्र बादलोंसे संयुक्त थे। वह ग्रहों और नक्षत्रोंका उपहास सी कर रही थी। बुद्धिमान् कुबेर, यम, इन्द्र और वरुण उसकी रक्षा कर रहे थे। वह प्रज्वलित अग्निरूप नेत्रोंवाली और नारायणके आश्रित थी। इस प्रकार एवं मन्यसे युक्त सागरसमूहको | तरह भयंकर देवताओंकी वह विशाल दिव्य सेना अस्त्र| धारण किये हुए शोभा पा रही थी। उस समय उन दोनों सेनाओंका ऐसा समागम हुआ जैसे प्रलयकालमें पृथ्वी और आकाशमण्डलका संयोग होता है। देवताओं और दानवोंसे व्याप्त तथा दर्प और विनयकी क्षमा और पराक्रमसे युक्त वह युद्ध अत्यन्त भयंकर हो गया। वहाँ दोनों सेनाओंमेंसे कुछ ऐसे भयंकर देवता और राक्षस निकल रहे थे, जो पूर्वी एवं पश्चिमी सागरोंसे निकलते हुए संक्षुब्ध बादलों जैसे प्रतीत हो रहे थे। उन दोनों सेनाओंसे निकले हुए वे देवता और दानव इस प्रकार हर्षपूर्वक विचरण कर रहे थे, मानो खिले हुए पुष्पोंसे युक्त पर्वतीय वनोंसे गजराज निकल रहे हों 16-233 ॥ तदनन्तर नगाड़ोंपर चोटें पड़ने लगीं और अनेकों शङ्ख बज उठे। वह शब्द अन्तरिक्ष, पृथ्वी, आकाश और दिशाओंमें व्याप्त हो गया। धनुषकी प्रत्यचा चढ़ानेके शब्द तथा सैनिकोंके कोलाहल होने लगे। देवताओंकी दुन्दुभियोंका निनाद दैत्योंके वाद्यशब्दको पराभूत कर दिया। फिर तो वे एक-दूसरेपर टूट पड़े और परस्पर एक-दूसरेको मारकर गिराने लगे। कुछ द्वन्द्व-युद्ध करनेवाले वीर अपनी भुजाओंसे शत्रुकी भुजाओंको मरोड़ दिये। रणभूमिमें देवगण भयंकर अशनि और उत्तम लोहेके बने हुए परिघोंसे प्रहार कर रहे थे तो दानवगण भारी गदाओं और खड्गोंका प्रयोग कर रहे थे। गदाके आघातसे बहुतोंके अङ्ग चूर हो गये। कुछ लोग तो बाणोंकी चोटसे टुकड़े-टुकड़े हो गये। कुछ अत्यन्त घायल होकर धराशायी हो गये। कुछ पुनः उठकर प्रहार करने लगे। तदनन्तर वे क्रोधसे विक्षुब्ध हो रणभूमिमें घोड़े जुते रथों और शीघ्रगामी विमानोंद्वारा एक-दूसरेसे भिड़ गये। युद्ध करते समय वे क्रोधवश अपने होंठोंको दाँतों तले दबाये हुए थे। इस प्रकार रथ रथोंके साथ तथा पैदल पैदलोंके साथ उलझ गये। शब्द करनेवाले उन रथोंका ऐसा भयंकर शब्द होने लगा मानो भाद्रपदमासमें बादल गरज रहे हों। कुछ लोग रथोंको तोड़ रहे थे और कुछ लोग रथोंके धक्केसे रौंदे जा चुके थे। दूसरे रथ मार्गके अवरुद्ध हो जानेके कारण आगे बढ़ने में असमर्थ हो गये। कुछ कवनधारी वीर समरभूमिमें एक-दूसरेको दोनों हाथोंसे उठाकर भूतलपर पटक देते थे। उस समय उनके आभूषण खनखना रहे थे। वहाँ कुछ ढाल धारण करनेवाले दूसरे अस्त्रोंद्वारा भी विपक्षियोंपर प्रहार कर रहे थे ।। 24-33ई ॥इसी प्रकार अन्य वीर युद्धस्थलमें अस्त्रोंद्वारा घायल होकर रक्त वमन करते हुए जलकी वृष्टि करनेवाले बादलोंकी तरह प्रतीत हो रहे थे। उस समय वह युद्ध अस्त्रों एवं शस्त्रोंसे परिपूर्ण, फेंकी गयी एवं फेंकनेके लिये उठायो हुई गदाओंसे युक्त और देवताओं एवं दानवोंसे व्याप्त और संक्षुब्ध होकर शोभा पा रहा था। दानवरूपी महामेघसे युक्त और देवताओंके हथियारोंसे विभूषित वह युद्ध परस्परको वाणवर्षासे मेघाच्छन्न दुर्दिन-सा लग रहा था। इसी बीच क्रोधसे भरा हुआ कालनेमि नामक दानव रणभूमिमें आगे बढ़ा। वह समुद्रकी लहरोंसे पूर्ण होते हुए बादलकी तरह शोभा पा रहा था। प्रज्वलित वज्रोंकी वर्षा करनेवाले उस दानवके बिजलीके समान चञ्चल मस्तकोंसे युक्त शरीरावयवोंसे टकराकर हाथी और पर्वत सदृश विशाल बादल तितर-बितर होकर बिखर रहे थे। क्रोधवश निःश्वास लेते हुए उसकी टेढ़ी भौंहोंसे पसीने की बूँदें टपक रही थीं और मुखसे अग्निकी चिनगारियोंसे व्याप्त लपटें निकल रही थीं। उसकी भुजाएँ आकाशमें तिरछी होकर ऊपरकी ओर बढ़ रही थीं, जो पर्वतसे निकले हुए पाँच मुखवाले नागकी तरह लग रही थीं। उसने ऊँचे-ऊँचे पर्वतों सरीखे अनेक प्रकारके अस्त्रसमूहों, धनुषों और परिषोंसे दिव्य आकाशको आच्छादित कर दिया। वायुद्वारा उड़ाये जाते हुए वस्त्रोंवाला वह दानव संग्रामकी लालसासे डटकर खड़ा हुआ। उस समय वह संध्याकालीन धूपसे ग्रस्त हुई शिलासे युक्त साक्षात् मेरुपर्वतको तरह दीख रहा था। उसने अपनी जंघाओंके वेगसे उखाड़े गये पर्वतशिखरके अग्रवर्ती वृक्षोंके प्रहारसे देवगणोंको उसी प्रकार धराशायी कर दिया, जैसे वज्रके आघातसे विशाल पर्वत ढाह दिये गये थे ॥ 34-43ई ॥
इस प्रकार रणभूमिमें कालनेमिद्वारा आहत हुए देवगण चलने-फिरने में भी असमर्थ हो गये। बहुत से शवों तथा खड्गोंकी चोटसे कुछ लोगोंके सिरके बालक छिन भिन्न हो गये थे। कुछ मुक्कोंकी मारसे मार डाले गये और कुछके टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये। यक्षों और गन्धर्वोके नायक बड़े-बड़े नागके साथ पृथ्वीको गोदमें पड़ गये। समरभूमिमें उस कालनेमिद्वारा भयभीत किये गये देवगणप्रयत्न करनेके लिये उद्यत होनेपर भी कोई उपाय न कर सके; क्योंकि उनका मन भ्रमित हो उठा था। उसने सहस्र नेत्रधारी इन्द्रको भी वाणोंके बन्धनसे इस प्रकार जकड़ दिया था कि वे युद्धस्थलमें ऐरावतपर बैठे हुए भी चलनेमें समर्थ न हो सके। उसने समर-भूमिमें वरुणको जलहीन बादल और निर्जल महासागरकी भाँति कान्तिहीन, व्यापाररहित और पाशसे शून्य कर दिया। स्वेच्छानुसार रूप धारण करनेवाले उस दानवने रणभूमिमें परिधोंकी मारसे वैश्रवण कुबेरको भी जीत लिया। मृत्यु सदृश प्रहार होनेवाले उस युद्धमें कालनेमिने सबके प्राणहर्ता यमको पराजित कर दिया। वे डरकर युद्धका परित्याग कर अपनी दक्षिण दिशाकी ओर चले गये। इस प्रकार उसने चारों लोकपालोंको पराजित कर दिया और अपने शरीरको चार भागों में विभक्त कर वह सभी दिशाओंमें उनका कार्य स्वयं सँभालने लगा। फिर जहाँ ग्रहणके समय राहुका दर्शन होता है, उस दिव्य नक्षत्रमार्गमें जाकर चन्द्रमाकी लक्ष्मी तथा उनके विशाल साम्राज्यका अपहरण कर लिया ।। 44-52 ई ॥
उसने प्रदीप्त किरणोंवाले सूर्यको स्वर्गद्वारसे खदेड़ दिया और उनके सायन नामक साम्राज्य और दिनकी सृष्टि करनेकी शक्तिको छीन लिया। उसने देवताओंके मुखस्वरूप अग्निको सम्मुख देखकर उन्हें अपने मुखमें निगल लिया तथा वायुको वेगपूर्वक जीतकर उन्हें अपना वशवर्ती बना लिया। उसने अपने पराक्रमसे बलपूर्वक समुद्रोंको वशमें करके सभी नदियोंको अपने मुखमें डाल लिया और सागरोंको शरीरका अङ्ग बना लिया। इस प्रकार स्वर्ग अथवा भूतलपर जितने जल थे, उन सबको उसने अपने अधीन कर लिया। उस समय समस्त प्राणियोंको भयभीत करनेवाला वह दैत्य सम्पूर्ण लोकोंसे युक्त होकर महाभूतपति ब्रह्माकी तरह सुशोभित हो रहा था। सम्पूर्ण लोकपालोंके एकमात्र मूर्तस्वरूप तथा चन्द्र सूर्य आदि ग्रहोंसे युक्त उस दानवने पर्वतोंद्वारा सुरक्षित पृथ्वीको स्थापित किया। इस प्रकार अग्नि और वायुके समान वेगशाली दानवराज कालनेमि युद्धस्थलमें लोकोंको उत्पत्तिके स्थानभूत ब्रह्माके पदपर स्थित होकर शोभा पा रहा था। उस समय दैत्यगण उसकी उसी प्रकार स्तुति कर रहे थे, जैसे देवगण ब्रह्माको किया करते हैं 53-59 ॥