सूतजी कहते हैं-ऋषियो! देवताओं और असुरोंके उस अत्यन्त भीषण संग्रामके अवसरपर दोनों ही सेनाओंमें घोर गर्जनाके साथ-साथ अत्यन्त भयंकर संघर्ष छिड़ गया। उस समय देवता और दैत्य सिंहनाद कर रहे थे, शङ्ख, भेरी और तुरहीका शब्द हो रहा था, हाथी चिपाड़ रहे थे, यूथ के यूथ घोड़े हाँस रहे थे, रथके पहियोंकी घरघराहट हो रही थी और वीरोंद्वारा खींची गयी प्रत्यञ्चाके चटाचट शब्द हो रहे थे। इन सबके सम्मिलित हो जानेसे अत्यन्त भयानक ध्वनि होने लगी। अतिशय क्रोधसे युक्त हो जीवनकी आशाका परित्याग कर परस्पर एक-दूसरेपर विजय पानेकी इच्छासे युक्त वोरोंकी दोनों सेनाएँ आमने-सामने घमासान युद्ध करने लगीं। उस समय परस्पर अनुलोम और विलोमका क्रम नहीं रह गया। पैदल सैनिक रथीके साथ, घुड़सवार रथीके साथ,हाथी पैदल सैनिकके साथ, कहीं एक रथी दूसरे रथीके साथ, एक हाथी दूसरे हाथीके साथ, एक हाथी बहुत से घोड़ोंके साथ और अकेला पैदल सैनिक बहुत-से मतवाले हाथियोंके साथ जूझने लगे ॥ 1-63 ॥ तदनन्तर आकाशमण्डलमें भाला, वज्र, गदा, ढेलवाँस, कुठार, शक्ति, पटा, त्रिशूल, मुद्गर, कुणप, गड, चक्र, शङ्कु, तोमर, चमकीले अङ्कुश, फलयुक्त बाण, बाण, पोला बाण, वत्सदन्त, अर्धचन्द्र, भाला, शतपत्र और निर्मल शुकतुण्डोंके प्रहारसे अत्यन्त अद्भुत आकारवाली वृष्टि दीख पड़ी। उससे सारी दिशाएँ आच्छादित हो गयीं और उसने सारे जगत्को अन्धकारमय बना दिया। उस घोर अन्धकारमें वे परस्पर एक-दूसरेको पहचानतक नहीं पाते थे; अतः वे बिना लक्ष्यके ही अपने भयंकर शस्त्रसमूहोंका प्रहार कर रहे थे। दोनों सेनाओंमें परस्पर कटकर धराशायी होते हुए वीरोंको देख रहे थे। उस समय कटकर गिरे हुए या गिरते हुए ध्वजों, भुजाओं, छत्रों, कुण्डलमण्डित मस्तकों, हाथियों, घोड़ों और पैदल सैनिकोंसे युद्धभूमि इस प्रकार पट गयी थी, मानो आकाशरूपी सरोवरसे गिरे हुए कमल-पुष्पोंसे आच्छादित हो। जिनके दाँत टूट गये थे, कुम्भस्थल विदीर्ण हो गये थे और लम्बे-लम्बे शुण्डदण्ड कटकर गिर गये थे ऐसे पर्वत सदृश विशालकाय गजराज पृथ्वीपर पड़े हुए थे, जिनके शरीरसे खूनकी धाराएँ बह रही थीं। जिनके हरसे, पहिये और धुरे आदि विदीर्ण हो गये थे, ऐसे अनेकों रथ खण्ड-खण्ड होकर पड़े थे। हजारों घोड़े भी टुकड़े टुकड़े हुए पड़े थे। इस प्रकार वहाँ रक्तसे भरे हुए बहुत से गड्ढे बन गये थे, जिससे युद्धभूमिको पार करना कठिन हो गया था। खूनसे भरी हुई नदियाँ भँवर बनाती हुई बह रही थीं, जो मांसभोजियोंको हर्षोल्लसित कर रही थीं। इस प्रकार तरह तरहकी लाशोंसे पटा हुआ वह युद्धस्थल वेतालोंका क्रीडास्थल बन गया था ॥ 7–16 ॥