मत्स्यभगवान् बोले— रविनन्दन ! तदनन्तर देवताओंके लिये उपयुक्त भगवान् विष्णुके उस अभयदायक वचनको सुनकर दैत्य और दानव युद्ध एवं उसमें विजयप्राप्तिके लिये महान् उद्योग करने लगे। उस समय युद्धाकाङ्क्षी मय एक ऐसे दिव्य रथपर सवार हुआ, जो सोनेका बना हुआ था। वह अविनाशी रथ तीन नल्व विस्तारवाला अत्यन्त विशाल तथा चार पहियों और परम सुन्दर महान् जुएसे युक्त था। उसमें क्षुद्र घंटिकाओंके रुनझुन शब्द हो रहे थे। वह गँड्रेके चमड़ेसे आच्छादित, रत्नों और सुवर्णकी सुन्दर जालियोंसे सुशोभित, भेड़ियों और पट्टिबद्ध पक्षियोंकी पच्चीकारीसे | समलंकृत तथा दिव्यास्त्र और तरकससे परिपूर्ण था। उससे | मेघकी गड़गड़ाहटके समान शब्द निकल रहा था। वह श्रेष्ठ रथ सुन्दर धुरी और सुदृढ़ मध्यभागसे युक्त, आकाशमण्डल जैसा विस्तृत तथा गदा और परिघसे परिपूर्ण होनेके कारण | मूर्तिमान् सागर-सा लग रहा था। उसके केयूर, बलय और कूबर (युगंधर) सोनेके बने हुए थे तथा उसपर पताकाएँ और ध्वज फहरा रहे थे, जिससे वह सूर्ययुक्त मन्दराचलकी भाँति शोभित हो रहा था। उसका ऊपरी भाग कहीं गजेन्द्र- चर्म तो कहीं सिंह चर्म जैसा चमक रहा था। उसमें एक हजार रीछ जुते हुए थे, वह घने बादलकी तरह शब्द कर रहा था, शत्रुओंके रथको रौंदनेवाला वह दीप्तिशाली रथ आकाशगामी था, उसपर बैठा हुआ मय ऐसा लग रहा था मानो दीप्तिमान् सूर्य सुमेरु पर्वतपर विराजमान हों ॥ 1-8 ॥इसी प्रकार जो अत्यन्त ऊँचा और दूरतक शब्द करनेवाला था, जिसके सभी अङ्ग स्वर्णमय थे, जो आकार में पर्वतके समान और नीलाञ्जनकी राशि सा दीख रहा था, काले लोहेका बना हुआ था, जिसके लोहेके हरसेमें कूबर बंधा हुआ था, जिसमें कहीं-कहीं अंधकारको फाड़कर किरणें चमक रही थीं, जो बादलकी तरह गर्जना कर रहा था, लोहेकी विशाल जाली और झरोखोंसे सुशोभित था, लोहनिर्मित परिए क्षेपणीय (डेलबॉस) और मुद्ररोंसे परिपूर्ण था, भाला, पाश, बड़े-बड़े शङ्कु कण्टक, भयदायक तोमर और कुठारोंसे सुशोभित था, शत्रुओंसे युद्ध करनेके लिये उद्यत दूसरे मन्दराचलकी भाँति दीख रहा था तथा जिसमें एक हजार गधे जुते हुए थे, ऐसे उत्तम दिव्य रथपर तारकासुर सवार हुआ। क्रोधसे भरा हुआ विरोचन हाथमें गदा लिये हुए उस सेनाके मुहानेपर खड़ा हुआ। वह देदीप्यमान शिखरवाले पर्वतके समान लग रहा था। शत्रुसेनाका मर्दन करनेवाले दानवश्रेष्ठ हयग्रीवने एक हजार रथके साथ अपने रथको आगे बढ़ाया। वाराह नामक दानव अपने एक हजार किष्कु लम्बे विशाल धनुषका टंकार करते हुए सेनाके अग्रभागमें स्थित हुआ, जो वृक्षोंसहित पर्वत-सा दीख रहा था खर नामक दैत्य अभिमानवश नेत्रोंसे रोषजनित जल गिराता हुआ संग्रामके लिये उद्यत हुआ, उस समय उसके दाँत, होंठ और नेत्र फड़क रहे थे ll 9-17 ॥
इसी प्रकार पराक्रमी दानवराज त्वष्टा, जिसमें आठ हाथी जुते हुए थे, ऐसे भयंकर रथपर बैठकर दानव सेनाको व्यूहबद्ध करनेका प्रयत्न करने लगा। विप्रचित्तिका पुत्र श्वेत, जो श्वेत पर्वतके समान विशालकाय और श्वेत कुण्डलोंसे विभूषित था, युद्धके लिये सेनाके अग्रभागमें स्थित हुआ। बलिका पुत्र अरिष्ट, जो महान् बलसम्पन्न और पर्वतको कँपा देनेवाला था तथा पर्वत शिलाएँ जिसकी आयुधभूता थीं, | युद्धकी कामनासे सेनाके सम्मुख खड़ा हुआ। किशोर नामक | दैत्य प्रेरित किये गये सिंह- किशोरकी तरह अत्यन्त हर्षके | साथ दैत्य-सेनाके मध्यभागमें उपस्थित हुआ, जो उदयकालीन सूर्य-सा प्रतीत हो रहा था। नवीन मेघकी-सी कान्तिवाला लम्ब नामक दानव, जो लम्बे वस्त्रों और आभूषणोंसे विभूषित था, दैत्यसेनामें पहुँचकर कुहासेसे घिरे हुए सूर्यकी तरह शोभा पा रहा था। महान् ग्रह राहु, जो मुख, दाँत, होंठ और नेत्रोंसे युद्ध करनेवाला था lहँसते हुए दैत्योंके आगे खड़ा हुआ। इस प्रकार अन्यान्य दानव भी क्रमशः सेनासहित कवच धारण करके युद्धके लिये प्रस्थित हुए। उनमें कुछ लोग घोड़ोंपर सवार थे तो कुछ लोग गजराजोंके कंधोंपर बैठे थे। दूसरे कुछ लोग सिंह, व्याघ्र, वराह और रीछोंपर सवार थे। कुछ गधे और ऊँटोंपर चढ़कर चल रहे थे तो किन्हींके वाहन चीते थे ॥ 18-25 ॥
दूसरे भीषण दैत्य, जिनमें कुछके मुख टेढ़े थे, किन्हींके एक पैर तथा किन्हींके आधा पैर ही था, युद्धकी अभिलाषासे पैदल ही नाचते हुए चल रहे थे। | उन दानवश्रेष्ठों में कुछ ताल ठोंक रहे थे, बहुतेरे उछल कूद रहे थे और कुछ हर्षित होकर सिंहनाद कर रहे थे। इस प्रकार वे दानवगण हाथोंमें भयंकर गदा, परिघ, शिला और मुसल धारण करके अपनी परिघाकार भुजाओंसे देवताओंको धमका रहे थे। उस समय श्रेष्ठ दैत्यगण पाश, भाला, परिघ, तोमर (लकड़ीका बना गोलाकार अस्त्र), अङ्कुश, पट्टिश, शतघ्नी (तोप), शतधार, मुद्गर, गण्डशैल, शैल, उत्तम लोहेके बने हुए परिघ और चक्रोंसे क्रीडा करते हुए दैत्यसेनाको आनन्दित करने लगे। इस प्रकार दानवोंकी वह सारी सेना युद्धके मदसे उन्मत्त हो देवताओंके सम्मुख खड़ी हुई, जो उमड़े हुए मेघोंकी सेना-सी प्रतीत हो रही थी। दानवोंकी वह अद्भुत एवं प्रचण्ड सेना, जो हजारों प्रधान दैत्योंसे भरी हुई तथा वायु, अग्नि, पर्वत और मेघके समान भीषण दीख रही थी, युद्धकी तैयारीके समय युद्धकी इच्छासे उन्मत्त हुई-सी शोभा पा रही थी ॥ 26-32 ॥